रहस्यमयी दुनियाँ
मायोंग
अनवी की छुट्टियाँ आरम्भ होते ही लाल चिड़िया
उसे उसके विद्यालय की छत से ही ले गई | सभी विद्यार्थियों ने हाथ हिला कर अलविदा कहा |इस बार लाल चिड़िया उसे मायोंग गाँव ले कर गई | लाल चिड़िया ने जो बताया उसका विवरण निम्न
प्रकार से है |
असम के मरिगाँव ज़िले का एक गाँव है जो 'काले जादू' के लिए प्रसिद्ध है। यह गाँव ब्रह्मपुत्र नदी
के तट पर बसा हुआ है और गुवाहाटी से लगभग 40 किमी की दूरी पर है। प्राचीन काल में इसे 'काले जादू का केंद्र कहा जाता था जिसके कारण आज
भी यह पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है| लाल चिड़िया ने अनवी को गाँव के नज़दीक एक झोपड़ी के पास उतारा जो पोबित्रो
वन्य जीव प्राणी उद्यान के नज़दीक ही थी | वहां पहुँचते ही लाल चिड़िया अपने सामान्य आकार में आ गई |
उसने अपनी एक परिचित को आवाज़ लगाई| आवाज़ के साथ ही एक युवती जिसका नाम देवरी था
बाहर आई| उसने हमारा हार्दिक स्वागत किया | देवरी ने पानी अभिमंत्रित कर के लाल चिड़िया पर
छींटे मारे जिससे लाल चिड़िया भी एक सुंदर
युवती बन गई | अब उसका नाम रति था |
वह जादू के प्रभाव से चिड़िया बनी हुई थी | अनवी से परिचय करवाया गया | गृह स्वामिन युवती का नाम देवरी था| असम में बिहू नृत्य काफी प्रसिद्ध है | असामी नृत्य भी कई प्रकार के होते है | देवरी,मिस्सिंग और रति नृत्य काफी प्रसिद्ध है| इस नृत्य शैली पर ही उसका नाम रखा गया था| देवरी आकर्षक नाक
नक्श की युवती थी |बिहु के दौरान ही उसने अपने एक साथी के साथ विवाह कर लिया था | देवरी ने मयोंग गाँव में ही काला जादू सीखा था | अब अनवी भी दोनों के मध्य सामान्य महसूस कर रही
थी| अनवी ने रति और देवरी से पूछा की आप दोनों का
झुकाव काले जादू की तरफ क्यों और कब हुआ ?
देवरी ने बताया की एक बिहू के नृत्य समारोह के दौरान ही मैंने शादी कर ली थी | मेरा पति भी काफी अच्छा नृत्य कर लेता था | गृहस्थ के कुछ साल तो आराम से निकले परन्तु बाद में एक पड़ोसन ने मेरे पति को काला जादू के प्रभाव से एक मेंढा बना लिया | वह उसे मेंढा बना कर अपने घर में ही रखने लगी |
मैंने काफी सालों तक अपने पति की तलाश की परन्तु कोई सफलता नहीं मिली |मैने एक भैंस पाल ली और उससे अपना ख़र्चा चलाने
लगी| अपने खेत में काम कर अपना गुजारा करने लगी | खेत से चावल और तालाब से मछली मिल जाती थी| सुबह और सांयकाल घर के बाहर ही ताम्बुल , शराब और सब्जी बेच कर गुजारा करने लगी |देवरी के पति देवांग पड़ोसन के यहाँ मेंढा बन कर
रह रहा था| रात्रि में पुरुष बना कर घर में रखती और दिन
में मेंढा बना कर घर में बांध लेती थी |
एक बार मायोंग में एक काला जादू का सिद्ध तांत्रिक आया और देवरी ने उसको अपने पति के गुम होने की बात बताई| तांत्रिक ने सारा रहस्य बताया |उसने बताया की देवांग के बायें कान में एक सोने की मुरकी थी |मुरकी कान में पहनने की सोने की बाली को कहते है |यह बात देवरी भी जानती थी| अब भी वह मुरकी मेंढे के कान में है| कुछ दिनों तक तो देवांग वापिस अपने घर आना चाहता था| परन्तु अब पड़ोसन से उसे प्यार हो गया| अब वह दिन में भी आदमी बना रहे तो तुम्हारे पास नहीं आना चाहता | यह सुन कर देवरी को काफी दुःख हुआ | उसे मेंढे के कान की मुरकी पहचान कर यकीन हो गया की वह देवांग ही है जो मेंढा बना हुआ है|
इसके बाद देवरी ने बूढ़े मायोंग में योनिकुण्ड में कठिन साधना की और काला जादू से अपने पति और पड़ोसन को पक्षी बनाया और जातिन्गा की वादियों में टकरा कर दोनों को मार दिया | यहाँ से लगभग 300 किलोमीटर दूरी पर जातिन्गा नामक एक जगह है |
जातिन्गा
जातिन्गा एक रहस्यमयी जगह है |यहाँ पर हर साल सैकड़ों पक्षी आते है और तेज़
रफ़्तार से पेड़ो और इमारतों से टकरा कर आत्महत्या करते है | जातिन्गा नदी घाटी
का गाँव भारत के असम राज्य के दीमा
हसाओ जिले में स्थित है। यह गुवाहाटी से 330 किलोमीटर दक्षिण
में है। इस गाँव में लगभग 2,500 खासी-पन्नार आदिवासी लोग और कुछ असमिया बसे हुए
हैं। पक्षियों की रहस्यमयी मौत के लिए यह गाँव प्रसिध्द है।मानसून के अंत में
विशेष रूप से चांदनी और धूमिल अंधेरी रातों में शाम 6 और 9:30 बजे के बीच पक्षी
अंधेरे आसमान से बाहर निकलना शुरू कर देंते हैं क्योंकि वे रोशनी के लिए आकर्षित
होते हैं। स्थानीय लोगों द्वारा बांस के डंडों का उपयोग करके इन घबराए हुए
पक्षियों को पकड़ लिया जाता है। स्थानीय आदिवासियों ने इस प्राकृतिक घटना को
लोंगों को आतंकित करने के लिए आकाश में उड़ने
वाली आत्माओं का नाम दिया था । इस घटना के शिकार में केवल एक ही प्रजाति के पक्षी नहीं होते, विभिन्न प्रजातियों के पक्षी मारे जाते है | मरने वाले पक्षी
वय उम्र के होते है | 1960 के दशक में यह घटना विश्व के सामने आई |घना कोहरे और उच्च गति की हवाओं के कारण
पक्षी भटक जाते है | पक्षी, ज्यादातर किशोर और स्थानीय होते है , अपने वेग से तेज गति की हवाओं से परेशान होते हैं। अशांत पक्षी रोशनी की ओर
उड़ते हैं, ऊँचे मकानों और पेड़ो से टकरा कर मारे या घायल
हो जाते हैं।
जातिन्गा, एक छोटा आदिवासी गाँव और असम का एकमात्र हिल स्टेशन है |यह साल के कुछ हफ्तों के दौरान पक्षियों की रहस्यमय आत्महत्या के लिए जाना जाता है। पक्षी वैज्ञानिक इस रहस्य को जानने और समझने की कोशिश कर रहे हैं कि जतिंगा में उन हफ्तों में पक्षी आश्चर्यजनक व्यवहार क्यों करते हैं?
जातिन्गा केवल पक्षियों की मौत के बारे में ही नहीं जाना जाता
है। जातिन्गा मधुरभाषी लोगों के लिए , संतरे, अनानास, और चारों ओर सांस
लेने वाले प्राकृतिक दृश्य के लिए प्रसिद्ध हैं। यह धरती पर स्वर्ग है | हस्यमयी पक्षियों की घटना ने जतिंगा को पहाड़ी
हाफलोंग से केवल नौ किमी दूर असम में दीमा हसाओ का जिला मुख्यालय बना दिया है, जो विश्व में
प्रवासी पक्षियों के अजीब व्यवहार के लिए प्रसिद्ध है| इस प्रकार की घटना सितंबर से नवंबर के महीनों के दौरान होती है।
आसामी कवियों और लेखकों ने अपनी रचानाओ में इन पक्षियों की कहानियों को बताने के लिए चुना है| । एक पुस्तक
"लव विद जटिंगा "50 कविताओं का एक संग्रह है| इन कविताओं
के माध्यम से कवि एक ही सवाल पूछता है की
जटिंगा के पक्षी इतने रहस्यमय तरीके से मौत को गले क्यों लगाते हैं| पाठकों को अपनी कविताओं के माध्यम से यहाँ की
सैर भी कराते है| यह गाँव उदात्त बोरेल पर्वत (दक्षिणी असम में) की गोद
में स्थित है।
इन 50 कविताओं में से 24 कविताएँ इस गाँव के
बारे में ही हैं| यहाँ के लोग, पक्षी, घुमावदार रास्ते, मीठी हवा और
इसकी मेहनत करने वाली महिलाओं का इस पुस्तक में वर्णन है | एक अन्य कविता
आने वाले पक्षियों का स्वागत करती है| उन्हें जीने दें
और आकर्षण को बढायें| जटिंगा वैली में पहाड़ की ढलान पर खड़ा वॉच-टॉवर सब का
स्वागत करता है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है की पक्षियों के बारे में जो कथित तौर पर
आत्महत्या करने के लिए जतिंगा के पास आते हैं, कवि उन्हें पंख वाले स्वर्गदूत कहते हैं| यहाँ डोलॉन्ग, कोपिली और दियुंग
जैसी कुछ नदियों बहती है |यहाँ का पनमूर झरना भी काफी चर्चा में रहा है | यह रहस्य विज्ञान
अभी तक नहीं सुलझा पाया है|
इसके बाद देवरी ने बताया की उसने भी सम्मोहन शक्ति से एक आदमी को अपने घर रखा था जो उसके खेत और तालाब पर काम करता था| साप्ताहिक बाज़ार में सामान बेच कर आता था| दस साल तक वह देवरी के पास रहा | देवरी ने घर की हर सुख सुविधा दी | परन्तु वह उसका मन नहीं बदल पाई | अंत में देवरी ने उसे बंधन से मुक्त कर दिया| जब वह लौट कर अपने पुराने घर गया तो उसकी पत्नी ने उसे स्वीकार नहीं किया|
रति भी मुझे घायल अवस्था में पोबित्रो वन्य जीव
प्राणी उद्यान में मिली थी| वास्तव में यह एक शेरनी है | जंगल में तीन शेरों में अपने अधिपत्य की लड़ाई हुई और इस लड़ाई में वह घायल हो गई| एक शेर वहीँ मारा गया और शेष दो घायल अवस्था में जंगल में चले गए | में घायल शेरनी को तो घर नहीं ला सकती थी| अतः लाल चिड़िया बना कर घर ले आई| एक सप्ताह के इलाज के बाद चिड़िया बिलकुल ठीक हो
गई| इसके बाद मैने इसे वापिस जंगल में छोड़ना चाहा
तो इसने मेरे पास ही रहना स्वीकार किया| हिंसात्मक जीवन से यह परेशान हो चुकी थी |अब यह चिड़िया बन कर मेरे पास रह रही है | मैंने इसे अपना आकर छोटा और बड़ा बनाना सिखा दिया है ताकि संकट के समय अपना
बचाव कर सके | तंत्र साधना सिखाने के लिए इसे मैंने लड़की भी
बनाया था जैसा की यह अब है |
देवरी ने आगे बताया की मैं स्वयं काला जादू से
किसी का नुक्सान नहीं करती और न ही इस को इजाज़त है |में काला जादु का प्रयोग लोक कल्याण के लिए करती हूँ | जो लोग तंत्र साधना और काला जादू से दूसरों का
नुकसान करते है उनका अंत समय भी परेशानियों से गुजरता है|
मायंग' शब्द की उत्पत्ति की व्याख्या कई तरह से की जाती है जिसमें सबसे प्रमुख है, संस्कृत शब्द माया से इसकी उत्पत्ति । इसके
अलावा दिमासा भाषा में मियाङ शब्द का अर्थ है हाथी।इस क्षेत्र में हाथी बहुत पाये
जाते है | माना जाता है की मियाङ से मायंग बना है | इसी तरह माँ (शक्ति माँ) और 'अंग' मिलाकर भी इसकी उत्पत्ति मानी जाती
है। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि मणिपुर के मोइरंग के मूल निवासी इस क्षेत्र में
बसे हुए थे जिसके कारण इसे मायंग कहा जाने लगा।
इस गांव को काले जादू तांत्रिक और
चुड़ैलों के निवास के रूप में जाना जाता है। कहते हैं काले जादू से किसी पुतले पर
सुई चुभोकर इंसान को तकलीफ़ दी जा सकती है। उसे वश में करके मन चाहा काम करवाया जा
सकता है। इंसान को जानवर बनाया जा सकता है। यही कारण है कि आज भी काले जादू का नाम
आते ही लोगों के दिमाग में सबसे पहले नींबू, मिर्च, सुई, पुतला और ख़ौफ़ आता है।
इस जगह के बारे में प्रसिद्ध, डरावनी कहानियां हैं, जैसे लोग का हवा में ग़ायब हो जाना है | पुरुषों को जानवरों में बदल दिया जाता है| जंगली जानवरों को जादुई रूप से तबाह किया जाता है। हालांकि इन सभी के लिए कोई स्पष्ट सबूत नहीं है| यहां स्थानीय और बुजुर्ग लोग दावा करते कि उन्होंने स्वयं मायोंग में ऐसी चीजें देखी हैं और इसलिए इन कहानियों को सच मानते हैं। ऐसी एक कहानी मोहम्मद शाह और उनकी सेना की भी है। ऐसा कहा जाता है कि 1330 के दशक के दौरान युद्ध के दौरान, मोहम्मद शाह के एक लाख घुड़सवार काले जादू और तंत्र विद्या के कारण मायांग के पास ग़ायब हो गए और एक भी निशान पीछे नहीं छोड़ा गया।
प्राचीन काल से मायोंग भारत में जादू और जादूगरों का केंद्र रहा है। और इस प्रकार यहां मंत्र साधना के अभ्यास किए गए, जिनमें से नरबली, और पशु बलि सबसे प्रमुख था। देवी शक्ति की पूजा करने के अनुष्ठानों के रूप और काले जादू की विभिन्न शक्तियों को प्राप्त करने के लिए नर बलि दी जाती थी । मायोंग में हालिया खुदाई में तलवारें मिलीं है| यह माना जाता है की इनका इस्तेमाल सदियों पहले मनुष्यों की बलि के लिए किया जाता था |मायोंग की अधिकतर आबादी काला जादू जानती है और इनका का अभ्यास करती है। जब आप यहां जाते हैं तो स्थानीय लोग आपकी हाथ की रेखाएं पढ़ने की पेशकश करेंगे। यहां पर कुछ लोग भविष्य वक्ता के रूप में काम करते हैं और शीशे और टूटे गिलास के टुकड़ों का उपयोग करके किसी व्यक्ति के भविष्य की भविष्यवाणी करने का दावा करते हैं।
भारत में काले जादू का प्रचलन यूं तो सदियों से रहा है। मगर असम का मायोंग गांव ऐसा है जिसे काले जादू का गढ़ माना जाता है। इस गांव का नाम लेने से भी आसपास के गांव वाले डरते हैं। यहां के हर घर में आज भी जादू किया जाता है। मान्यता है कि पूरे विश्व में काले जादू की शुरुआत यहीं से हुई थी। बिमारियों को दूर करने के लिये काला जादू का प्रयोग करते हैं | अब यहां काला जादू किसी को परेशान करने के लिए नहीं किया जाता। लोग यहां अब इसका उपयोग सिर्फ बिमारियों को दूर करने के लिए करते हैं। यहां अक्सर बीमार इंसान की पीठ पर थाली टिका कर मंत्र उच्चारण के साथ मिट्टी मारी जाती है और कहा जाता है यह बिमारियों को दूर करने का पारंपरिक तरीका है।
साधना और मन्त्रों की पांडुलिपियां आज भी यहाँ मौजूद हैं | यहां दो कुंड हैं
एक अष्टदल कुंड व
दूसरा योनि कुंड। योनि कुंड पर हिंदू व अष्टदल कुंड पर बौद्ध अपनी तंत्र विद्या को
सिद्ध करने के लिए साधना किया करते थे। यहां के संग्रहालय में 12वीं शताब्दी की कई पांडुलिपियां मौजूद हैं। ये
तंत्र के वे कीमती दस्तावेज़ हैं जिनका मूल्य केवल इस भाषा को समझने वाले ही बता
सकते हैं। एक जान कार के अनुसार इन लिपियों में उड़ने के लिए, किसी को मारने के लिए व वश में करने के लिए
काला जादू किस तरह किया जाए ये सारी जानकारियाँ मौजूद हैं।
मायोंग में बूढ़े मायोंग नाम की एक जगह है जिसे काले जादू का केंद्र माना जाता
है। यहां पर भगवान शिव व पार्वती के अलावा गणेश जी की भी तांत्रिक प्रतिमा है।
जिसके सामने प्राचीन समय मे नर बलि दी जाती थी। इसके अलावा यहां योनि कुंड भी है
जिसके आसपास कई मंत्र लिखे हैं। इसी जगह पर सबसे अधिक काले जादू के प्रयोग किए गए।
स्थानीय लोग मानते हैं कि काले जादू की मंत्र शक्ति के कारण ये कुंड हमेशा पानी से
लबालब रहता है।
नकारात्मक तंत्र-मंत्रों द्वारा मानवीय जीवन को
प्रभावित करना ही काला जादू है। यह एक जटिल प्रक्रिया है, जिसका प्रयोग दूसरों को हानि पहुंचाने लिए
विशेष क्रियाओं द्वारा सम्पन्न किया जाता है। नकारात्मकता, लालच, निराशा, कुंठा, ईर्ष्या अक्सर लोगों को काले जादू की तरफ आकर्षित करती हैं। जिसका सबसे बड़ा
शिकार समाज का अशिक्षित वर्ग बनता है। जो यह क्रिया करता
है उसे तांत्रिक
कहते
है। काली शक्तियों
के लिए
पश्चिम बंगाल के
बाद असम को काला जादू का सबसे बड़ा गढ़ माना जाता है। जहां तंत्र-मंत्र और गुप्त
साधनाओं द्वारा इंसानी समस्या को खत्म करने का दावा किया जाता है। मायोंग गांव काला जादू के क्षेत्र में काफी आगे
माना जाता है। कहा जाता है यहां हर घर में गुप्त तंत्र साधनाएं चलती हैं। इसलिए आस
पास के गांव मायोंग का नाम लेने से भी डरते हैं।
इस गांव के बारे में कहा जाता है कि इसका संबंध
महाभारत काल से हैं। कहा जाता है कि भीम का पुत्र
घटोत्कच मायोंग का
ही राजा था। हालांकि यह बात पौराणिक किवदंतियों तक ही सीमित है। जानकारों का मानना
है कि काले जादू की शुरूआत इसी गांव से हुई है। इसलिए यहां दूर-दूर से लोग काला
जादू, तंत्र विद्या सीखने के लिए आते हैं।लेकिन आसपास
के गांव के लोग यहां आने से डरते हैं, उनका मानना है कि यहां उन्हें जानवर बना दिया जाएगा।
मायोंग के लोग अपने बच्चों को खेती-बाड़ी के
अलावा तंत्र-मंत्र सिद्धि और जादू की कला विरासत में देते हैं। वह कहते हैं कि हम
किसी एक व्यक्ति को ही सिखा सकते हैं। इसलिए अपने परिवार के सदस्य को सिखाते हैं, बाहरी को नहीं। कहते हैं कि तांत्रिक तो मंत्र से नाव तक डुबो देते थे। रोगों का
उपचार करते हैं। आज भी इस गांव में देश के कई हिस्सों से लोग असाध्य रोगों के
उपचार के लिए आते हैं। हालांकि यह बात भी सच है कि मायोंग के लोग अब ख़ुद इलाज के
लिए काला जादू या मंत्र पर भरोसा नहीं करते, वे डॉक्टरों के पास जाते हैं।
तांत्रिक बताते हैं कि उनके पास आया एक युवक
दर्द से कराह रहा था। उन्होंने पीतल की भारी थाली को उल्टा किया और मंत्र पढ़ते
हुए युवक की पीठ पर चिपका दिया। उसके बाद वह मंत्र पढ़ते रहे और उस थाली पर पूरी
ताकत से भभूत फेंकते रहे, लेकिन वह अपनी जगह से नहीं हिली।
काफी देर बाद थाली फिसल कर पीठ से नीचे आ गिरी
और इसी के साथ युवक का दर्द भी छू मंत्र हो गया | अपनी योग्यता
साबित करने के लिए
तांत्रिक ने कई आश्वासन दिए | प्रमाण कोई नहीं था | उस थाली को फिर से युवक की पीठ पर चिपकाने के
लिए कहा, लेकिन वहां मौजूद कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं कर पाया। इसी तरह तांत्रिकों के पास उपचार कराने हरियाणा, कोलकाता, कर्नाटक सहित देश के विभिन्न हिस्सों से लोग आते हैं। वह मंत्र के ज़रिए चोर
का पता बता देते है और चोरी हुआ सामान भी बरामद कर लेते हैं।
मंत्र से बाघ को भी वश में कर लेते है | मायोंग गांव के लोग अपने पूर्वज चूड़ा बेज की
कहानियां बड़े चाव से सुनाते हैं। एक शिक्षक बताते हैं कि कोटिला बेज और लक्खी बेज
'लुकी मंत्र' के द्वारा ग़ायब हो सकते थे और 'बाघ बाधा मंत्र' से किसी गुस्साए बाघ को बंदी बना सकते थे।
गाँव के एक अन्य सज्जन बताते है की ‘मायाराज मायोंगेर की कहानी ’ नामक क़िताब में ऐसी कई घटनाओं का ज़िक्र किया
है, जिनमें इस गांव के अनेक तांत्रिक मंत्रों से
बाघिन को वश में करने, हवा में उड़ने, ग़ायब होने और वशीकरण की कहानियां लिखी हैं। उन्होंने बताया कि ऐसे मंत्र भी
हैं, जिनके जरिए आप तीन घंटे का रास्ता एक घंटे में
तय कर सकते हैं।
बताते हैं कि इस तरह की घटनाएँ देखी कम हैं, सुनी बहुत जाती हैं। काला जादू के महारथी
पेटुला बेज, लक्खी बेज और सुरा बेज मंत्र और साधना के ज़रिए
ग़ायब भी हो जाते थे। उन्हें भी कई मंत्र कंठस्थ हैं। लेकिन वह चेतावनी देते हैं कि केवल मंत्र जानने भर से आप ओझा नहीं बन
सकते। मंत्र को सिद्ध करना पड़ता है।
सभी भारतीयों का ये मौलिक कर्तव्य है कि वो
वैज्ञानिक मनोवृती को बढ़ावा दें| लेकिन आज हम जो बात कहने वाले हैं, वो हमारे पहले विचारों
से मेल नहीं खाती| समाज की घटनाओं और किम्वदात्न्तियों में इस तरह
की मनोवृति ज्यादा पाई जाती है |
गांव में कदम रखते ही आपको काला जादू से जुड़ी
कहानियां सुनने के लिए मिल जाएंगी | जैसे जादू से इंसान का ग़ायब हो जाना या किसी जानवर के रूप में परिवर्तित कर
देना | यहां के तांत्रिकों का दावा है कि वो मंत्रों
के सहारे से खोई हुई चीज़ ढूंढ सकते हैं| एक कटोरे में कुछ फूल डाल कर मंत्रोच्चारण
करेंगे और कटोरा ख़ुद-ब-ख़ुद लुढ़कता चोर/खोई हुई वस्तु तक पहुंच जाएगा | जादू के सहारे ये कई बीमारियों को ठीक करने का
भी दावा करते हैं|
मायोंग वासियों को अपनी कला पर गर्व है और
उन्होंने इसे “मायोंग ब्लैक मैजिक और व्हिच्क्रफ्त संग्रहालय,” गुवाहाटी में सहेज कर रखा है| इस संग्रहालय को नेशनल जियो ग्राफिक ने दुनिया
के 10 अनोखे म्यूज़ियम की सूची में रखा है|
यह गाँव ब्रह्मपुत्र नदी और पबित्रो वन्य
प्राणी उद्यान से घिरा हुआ है | इस उद्यान में भारतीय एक सिंग वाले गैंडे विचरण करते है | यहाँ पहुंचते ही अनछुई और रहस्यमयी भूमि पर आने का अहसास होने लगता है| हर साल यहाँ लगभग 2000 प्रवासी पक्षी आते है | पोबितोरा वन्य अभ्यारण्य ब्रह्मपुत्र नदी के
दक्षिणी तट पर 38.85
वर्ग किमी बड़ा एक
वन्य अभ्यारण्य है। यह भारतीय गैण्डे के लिए संरक्षित एक घास भूमी व आर्द्र भूमि
क्षेत्र है।
ये गांव काली शक्तियों के लिए इतना प्रसिद्ध है
कि दुनियाभर से काला जादू पर शोध और सीखने के लिए लोग इस जगह पर आते है, हालाँकि इस काले जादू से इंसानों की बीमारियाँ
दूर की जाती है इसलिए यहाँ पर हर साल हज़ारों लोग अपना इलाज कराने के लिए भी आते
है |वही जानकारों का मानना है कि काला जादू दरअसल
एक तंत्र विद्या है, जिसमे अपनी आध्यात्मिक ऊर्जा की सहायता से किसी
को जीवन दिया जा सकता है या किसी की तकलीफ़ को दूर भी किया जा सकता है|
हालाँकि कुछ स्वार्थी लोगो ने इस प्राचीन
विद्या का गलत उपयोग करके इसे समाज के सामने एक गलत रूप में दिखाया है | जिसके कारण लोग इसे काली शक्तिया मानकर इनसे
डरते है और यही वजह है कि लोग इस गांव को काले जादू का केंद्र मानकर यहाँ आने से
कतराते है | क्योंकि वो मानते है कि इस गांव के लोग अपनी
काली शक्तियों के दम पर किसी को भी ग़ुलाम बना सकते है|
काला जादू का नाम सुनते ही आपके दिमाग में भी
अमावस्या की काली रात और उस काली रात में तांत्रिक बाबा मंत्र जप करते हुए दिखाई
देते हैं| सभी का यही हाल है क्योंकि हमने इसे देखा ही ऐसे है जिसके चलते आपके दिमाग में सबसे
पहले यही छवि बनती है| कई बच्चों को तो इस काले जादू के बारे में पता
भी नहीं होता हैं| लेकिन भारत में ही एक ऐसा गाँव हैं जहां के
बच्चे तक काला जादू करना जानते हैं| वैसे तो ये सब करना गैर क़ानूनी है लेकिन फिर भी
लोग इसमें यकीन करते हैं|
धुबड़ी की यात्रा
मायोंग के बाद लाल चिड़िया अनवी को धुबड़ी की यात्रा पर ले कर गई |धुबड़ी की जानकारी भी बड़ी रोचक और ज्ञानवर्धक
रही |आइये आपको भी मेरे साथ धुबड़ी की यात्रा करवाते
है |असम को हम बचपन से दो कारणों से जानते थे।
कमरू-कमख्या और काला जादू। कामाख्या देवी का मंदिर का इलाक़ा पहले कामरूप कहलाता था, अब यह जिले का नाम है। बचपन में कमरू-कमख्या और काला जादू ख़ौफ़ के पर्याय थे।
तब मैंने सपने में भी मैंने सोचा था कि सेना की सेवा के लिए दो साल तक वहीं रहूँगा और काला जादू का केंद्र रहे धुबड़ी की भी यात्रा करुंगा।
धुबड़ी तीन तरफ से ब्रह्मपुत्र और गदाधर नदियों
से घिरा, गुवाहाटी और ढाका के लगभग बीच में बसा असम का एक छोटा-सा शहर है । कहा जाता है यह
नेताई धुबुरीन के नाम इस जगह का नाम रखा गया है , जो कभी काला जादू की प्रमुख जादूगरनी थी। उसके आतंक का आलम यह था कि जब राजा
मान सिंह के पोते और औरंगज़ेब के सेनापति राजा राम सिंह की कैद से छत्रपति शिवाजी
और उनके पुत्र आज़ाद हो गये तो औरंगज़ेब ने सजा स्वरूप उन्हें और उनकी पल्टन को
असम पर अधिपत्य करने के लिए आदेश सुनाया। इस आदेश को सुनते ही सब कांप गये| नेताई धुबुरीन से बचना मुश्किल था और नहीं गये तो नाफरमानी का डर भी था।
राजा राम सिंह ने सिखों के नौ
वें गुरु तेग बहादुर सिंह के पास जाकर साथ चलने का अनुरोध किया ताकि उनकी
आध्यात्मिक शक्तियां थुबुरीन की काली शक्तियों से रक्षा कर सके। गुरु ने यह
प्रस्ताव इसलिए स्वीकार कर लिया क्योंकि वे उस भूमि का दर्शन करना चाहते थे| यहां 1505 में गुरु नानक देव असम की कला, साहित्य जन-जीवन को गहराई से प्रभावित करने वाले गुरु शंकर देव से मिलने आये
थे। राजा राम सिंह गुरु तेगबहादुर के साथ 1669 में धुबड़ी आए।
गुरु ने नेताई धुबुरीन के हर वार को नाकाम किया। कहा जाता है कि धु्बुरीन ने पहले एक पेड़ को जड़ सहित उखाड़ कर गुरू पर फेंका और वार के नाकाम होने पर एक बड़ी सी चट्टान फेंकी| इस चट्टान पर ब्रह्मपुत्र नदी में लोग कपड़े धोते थे । पेड़ -चट्टान अब भी उस जगह पर हैं। अंत में नेताई धुबुरीन की हार हुई । उसके बाद गुरु तेग बहादुर ने अहोम राजा चक्रध्वज सिंघा और राजा राम सिंह के बीच समझौता करवाया और दोनों पक्ष के सैनिकों को पांच लाख टोकरी मिट्टी उस जगह पर डालने के लिए कहा जहां गुरू नानक देव बैठे थे ताकि एक टीला बन जाए और उस पर गुरुद्वारा बन सके। मैं जिस दिन धुबरी के इस गुरुद्वारे में पहुंचा, उस दिन पटना में उनके पुत्र और दसवें गुरु गोविंद सिंह जी का प्रकाशोत्सव मनाया जा रहा था।
धुबड़ी से पहले महामाया का प्रसिद्ध मंदिर है।
जब मैं यहां गया तो प्रकृति के परिवेष में चुपचाप बैठा उसमें एकाकार होने की कोशिश
करता रहा। लौटने से पहले पुजारी ने कहा प्रसाद ग्रहण करके जाएं | यहाँ बिना
लहसुन-प्याज़ का बना पवित्र माँस भात का प्रसाद मिलता है। बताया जाता है की यहां कम से कम बारह पशु-पक्षियों, भैंस, बकरी, कबूतर और हंस की बलि रोज दी जाती है| उन्ही का माँस बिना लहसुन-प्याज़ के पका कर चावल के साथ प्रसाद के रूप में दिया
जाता है। पांच सौ वर्ष पुरानी प्रथा है| मैं ठहरा शुद्ध शाकाहारी। इलायची दाना और सिंदूर लेकर देवी को प्रणाम किया और
लौट आया| कामाख्या में भी जब जानवरों को बलि के लिए काटे
जाते देखता हूं, तो परेशान हो जाता हूं।
तांत्रिक ,मंत्र साधना और ज्योतिष को हम विभिन्न रूप में जान सकते है | इन से संक्षेप में परिचय करवाता हूँ |सिर्फ पाठकों की जानकारी के लिए इन को संक्षेप और वर्गीकृत रूप में जानकारी
उपलब्ध करवाई जा रही है |
ज्योतिष विद्या
ज्योतिष विद्या के कई अंग है जैसे सामुद्रिक
शास्त्र, हस्तरेखा विज्ञान, लाल किताब, अंक शास्त्र, अंगूठा शास्त्र, ताड़ पत्र विज्ञान, नंदी नाड़ी ज्योतिष, पंच पक्षी सिद्धांत, नक्षत्र ज्योतिष, वैदिक ज्योतिष, रमल शास्त्र, पांचा विज्ञान आदि। भारत की इस प्राचीन विद्या के माध्यम से जहां अंतरिक्ष, मौसम और भूगर्भ की जानकारी हासिल की जाती है
वहीं इसके माध्यम से व्यक्ति का भूत और भविष्य भी जाना जा सकता है।
वेदों के छ: अंग है जिन्हें वेदांग कहा गया है।
इन छह अंगों में से एक ज्योतिष है। वेदों और महाभारतादि ग्रंथों में नक्षत्र
विज्ञान अधिक प्रचलित था। ऋग्वेद में ज्योतिष से संबंधित 30 श्लोक हैं, यजुर्वेद में 44 तथा अथर्ववेद में 162 श्लोक हैं। यूरेनस को एक राशि में आने के लिए 84 वर्ष, नेप्च्यून को 1648
वर्ष तथा प्लूटो
को 2844
वर्षों का समय
लगता है।वैदिक ज्ञान के बल पर भारत में एक से बढ़कर एक खगोल शास्त्री, ज्योतिष व भविष्यवक्ता हुए हैं। इनमें महर्षि गर्ग, आर्यभट्ट, भृगु, बृहस्पति, कश्यप, पराशर वराहमिहिर, पित्रायुस, बैद्धनाथ आदि प्रमुख हैं।
ज्योतिष शास्त्र के तीन प्रमुख भेद है:
• सिद्धांत ज्योतिष,
• संहिता ज्योतिष और
• होरा शास्त्र।
सिद्धांत ज्योतिष के प्रमुख आचार्य ब्रह्मा, आचार्य, वशिष्ठ, अत्रि, मनु, पौलस्य, रोमक, मरीचि, अंगिरा, व्यास, नारद, शौनक, भृगु, च्यवन, यवन, गर्ग, कश्यप और पराशर है। संहिता ज्योतिष के प्रमुख आचार्य मुहूर्त गणपति, विवाह मार्तण्ड, वर्ष प्रबोध, शीघ्र-बोध, गंगाचार्य, नारद, महर्षि भृगु, रावण, वराहमिहिराचार्य है। होरा शास्त्र के प्रमुख आचार्य पुराने आचार्यों में पराशर, मानसागर, कल्याणवर्मा, दुष्टिराज, रामदैवज्ञ, गणेश, नीपति आदि हैं।
वास्तु शास्त्र
वास्तु शास्त्र को गृह निर्माण, महल निर्माण, पूल, तालाब आदि के निर्माण सहित शहर के निर्माण की
विद्या माना गया है। प्राचीन भारत के प्रमुख वास्तुशास्त्री महर्षि विश्वकर्मा और
मयदानव है।
भारतीय वास्तुशास्त्र
में गृह निर्माण से संबंधित कई तरह के रहस्यों को उजागर किया गया है। जैसे कि भूमि
कैसी हो, घर का बाहरी और भीतरी वास्तु कैसा हो। इसके
अलावा घर के निर्माण के वक्त आने वाली बाधा के क्या संकेत हैं। भारतीय
वास्तुशास्त्र एक चमत्कारिक विद्या है। इंद्रप्रस्थ और द्वारिका नगरी के निर्माण
से यह सिद्ध होता है। बगैर किसी मशीनरी के वास्तु के माध्यम से जल को पहाड़ी पर
चढ़ाया जाता था। इसके अलावा महल में सिर्फ एक जगह ताली बजाने पर उस ताली की आवाज़
महल के अंतिम कक्ष और बाहरी दरवाज़े तक भी पहुंच सकती थी।
कहते हैं कि भवन-निर्माण के समय कारीगर के पागल
हो जाने पर गृह-पति और घर का विनाश हो जाता है इसलिए उस घर में रहने का विचार
त्याग ही देना चाहिए। इसके अलावा वास्तु के अनुसार ही धरती में जल और ऊर्जा की
स्थिति का भी आकलन किया जा सकता है। दरअसल, भारतीय वास्तुशास्त्र एक चमत्कारिक विद्या है जिसके माध्यम से जीवन को बदला जा
सकता है।
चौकी बांधना
अक्सर ये काम बंजारे, गडरिये या आदिवासी लोग करते हैं। वे अपने किसी
जानवर या बच्चे की रक्षा करने के लिए चौकी बांध देते हैं। जैसे गडरिये अपने बच्चे
को किसी पेड़ की छांव में लेटा देते हैं और उसके आसपास छड़ी से एक गोल रेखा खींच
देते हैं। फिर कुछ मंत्र बोल कर चौकी बांध देते हैं। उनके इस प्रयोग से उक्त गोले में कोई भी बिच्छू, जानवर या कोई बुरी नियत का व्यक्ति नहीं आ
सकता।
इसी विधा का प्रयोग लक्ष्मण ने सीता माता की सुरक्षा के लिए किया था जिसे आज लक्ष्मण रेखा
कहा जाता है। दरअसल, चौकी बांधने का प्रयोग कई राजा महाराजा अपने
खज़ाने की रक्षा के लिए भी करते रहे हैं। आज भी उनका खज़ाने इसी कारण से सुरक्षित
भी है। रावण ने तो अपने संपूर्ण महल की चौकी बांध रखी थी।
चौकी बांधने के कई तरीके होते हैं। चौकी किसी
देवी या देवता की बांधी जाती है या नाग महाराज की। चौकी भैरव और दस महाविद्याओं की
भी बांधी जाती है। कुछ लोग भूत प्रेत की चौकी बांधते हैं , तो कुछ नाग देवता की। कहते हैं कि कई गडे ख़ज़ाने की चौकी बंधी हुई है। माना
जाता है कि बंजारा, आदिवासी, पिंडारी समाज अपने धन को ज़मीन में गाड़ ने के बाद उस जमीन के आस-पास
तंत्र-मंत्र द्वारा 'नाग की चौकी' या 'भूत की चौकी' बिठा देते थे जिससे कि कोई भी उक्त धन को खोदकर प्राप्त नहीं कर पाता था। जिस
किसी को उनके खजाने के पता चल जाता और वह उसे चोरी करने का प्रयास करता तो उसका
सामना नाग या भूत से होता था।
पानी या खोई वस्तु खोजने की विद्या
पानी खोजने वाले साधक भारत में मिल जाएंगे। ये नीम की टहनी, धातु की मुड़ी हुई छड़, दोलक आदि का उपयोग करके पानी की उपस्थिति की
जानकारी देते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि वे कई मामलों में सही साबित होते हैं, और प्रशिक्षित भू-वैज्ञानिकों को भी मात दे
देते हैं। साधको
का कहना है कि
नीचे मौजूद पानी के कारण होनेवाले सूक्ष्म कंपनों या पानी के कारण पृथ्वी के
चुंबकीय क्षेत्र में होनेवाले परिवर्तनों को वे भाँप लेते हैं। कुछ साधक यह भी
दावा करते हैं कि वे बता पाते हैं कि पानी खारा है या मीठा या वह बह रहा है या
स्थिर है।
इसी प्रकार ऐसे भी कई लोग हैं जो आंखें बंद कर
किसी की भी खोई हुई वस्तु का पता बता देते हैं। यह काम वे आत्मसम्मोहन के जरिये
करते हैं। यहीं काम आजकल पेंडुलम डाउजिंग के माध्यम से किया जाता है।
हमारे अवचेतन मन में वह शक्ति होती है कि हम एक
ही पल में इस ब्रह्मांड में कहीं भी मौजूद किसी भी तरंगों से संपर्क कर सकते हैं, सारा ब्रह्मांड तरंगों के माध्यम से एक-दूसरे
से जुड़ा हुआ है। उन तरंगों के माध्यम से हम जो जानना चाहते हैं या हमारे जो भी
सवाल होते हैं - जैसे जमीन के अंदर पानी खोजना या कोई खोई हुई चीजों को तलाश ना
उसे हम डाउजिंग कहते हैं। डाउजिंग किसी भी छुपी हुई बात को खोजने वाली विद्या है।
मंत्र विद्या
तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या है।
मंत्र शक्ति से भी कई तरह के कार्यों को संपन्न किया जा सकता है और उसी तरह मंत्र
से भी मनचाही इच्छा की पूर्ति होती है। मंत्रों में तांत्रिक और साबर मंत्र को
सबसे असर कारक माना जाता है| यंत्र कई प्रकार के होते है और अलग अलग कार्यों
के लिए होते हैं जैसे लक्ष्मी प्राप्ति हेतु लक्ष्मी यंत्र और युद्ध में विजय
प्राप्ति हेतु बगलामुखी यंत्र।
कई लोग अपने संकट को दूर करने और जीवन में धन, संपत्ति, सफलता, नौकरी, स्त्री और प्रसिद्ध पाने के लिए किसी यंत्र, मंत्र या तंत्र का सहारा लेते हैं। ये कितने सही हैं यह तो शोध का विषय है, लेकिन लोग इन पर विश्वास करते हैं। मंत्र की
शक्ति के बारे में हर धर्म के ग्रंथों में लिखा हुआ है। हिंदू गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र और बजरंग बली के मंत्रों के
अलावा अथर्ववेद में उल्लेखित मंत्रों को सिद्ध और शक्तिशाली मानते हैं। इसके अलावा
साबर मंत्रों की महिमा का वर्णन भी मिलता है।
झाड़-फूंक
मेहंदीपुर बालाजी राजस्थान में भूत
ओपरी पराई के इलाज के लिए प्रसिद्ध है | झाड़-फूंक कर लोगों का भूत भगाने या कोई बीमारी का इलाज करने, नजर उतारने या सांप के काटे का जहर उतारने का
कार्य ओझा लोग करते थे। यह कार्य हर धर्म में किसी न किसी रूप में आज भी पाया जाता
है। समाज में ऐसे व्यक्ति को ओझा कहा जाता है। कुछ ऐसे दिमागी विक़ार होते हैं, जो डॉक्टरों से दूर नहीं होते हैं। ऐसे में लोग
पहले ओझाओं का सहारा लेते थे। ओझा की क्रिया द्वारा दिमाग पर गहरा असर होता था और
व्यक्ति के मन में यह विश्वास हो जाता था कि अब तो मेरा रोग और शोक दूर हो जाएगा।
यह विश्वास ही व्यक्ति को ठीक कर देता था। कमाल की बात तो यह है की लोग करोना के
इलाज के लिए भी झाडा लगाने का दावा करते है |
प्राण विद्या
प्राण विद्या के
अंतर्गत स्पर्श चिकित्सा, त्रिकालदर्शिता, सम्मोहन, टैलीपैथी, सूक्ष्म शरीर से बाहर निकलना, पूर्व जन्म का ज्ञान होना, दूर श्रवण या दृश्य को देखाना आदि अनेक विद्याएं शामिल है। इसके अलावा प्राण विद्या के हम आज कई चमत्कारर देखते हैं।
जैसे किसी ने अपने शरीर पर ट्रक चला लिया। किसी ने अपनी भुजाओं के बल पर प्लेन को
उड़ने से रोक दिया। कोई जल के अंदर बगैर सांस लिए घंटों बंद रहा। किसी ने खुद को
एक सप्ताह तक भूमि के दबाकर रखा। इसी प्राण विद्या के बल पर किसी को सात ताले में
बंद कर दिया गया, लेकिन वह कुछ सेकंड में ही उनसे मुक्त होकर
बाहर निकल आया। कोई किसी का भूत, भविष्य आदि बताने में सक्षम है तो कोई किसी की नजर बांध कर जेब से नोट ग़ायब
कर देता है। इसी प्राण विद्या के बल पर कोई किसी को स्वस्थ कर सकता है तो कोई किसी
को जीवित भी कर सकता है।
साधना
ऐसे हैरतअंगेज़ कारनामे जो सामान्य व्यक्ति
नहीं कर सकता उसे करके लोगों का मनोरंजन करना यह सभी भारतीय प्राचीन विद्या को
साधने से ही संभव हो पाता है। आज भी वास्तु और ज्योतिष का ज्ञान रखने वाले ऐसे लोग
मौजूद है जो आपको हैरत में डाल सकते हैं। वैदिक गणित, भारतीय संगीत, ज्योतिष, वास्तु, सामुद्रिक शास्त्र,
हस्तरेखा, सम्मोहन,टैलीपैथी, काला जादू, तंत्र, सिद्ध मंत्र और टोटके, पानी बताना, गंभीर रोग ठीक कर देने जैसे चमत्कारिक प्रयोग आदि ऐसी हजारों विद्याएं आज भी
प्रचलित है जिन्हें वैज्ञानिक रूप में समझने का प्रयास किया जा रहा है। भारत में कई तरह की साधनाएं प्रचलन में रही।
इनमें से कुछ साधनाओं का शैव और शाक्त संप्रदाय से संबंध है तो कुछ का
प्राचीनकालीन सभ्यताओं से। ऐसे ही कुछ साधनाओं में शमशान साधना, कर्णपिशाचनी साधना, वीर साधना, प्रेत साधना, अप्सरा साधना, परी साधना, यक्ष साधना और तंत्र साधनाओं के बारे में सभी
जानते हैं। उपरोक्त के अलावा भी हजारों तरह की गुप्त साधनाएं भारत में प्रचलित है, जिनमें से अधिकतर का हिन्दू धर्म से कोई संबंध
नहीं लेकिन यह प्रचलित स्थानीय संस्कृति और सभ्यता का हिस्सा है।
योग
कहते हैं कि नियमित यम-नियम और योग के अनुशासन
से जहां उड़ने की शक्ति प्राप्त की जा सकती है वहीं दूसरों के मन की बातें भी
जानी जा सकती है। परा और अपरा सिद्धियों के बल पर आज भी ऐसे कई लोग हैं जिनको
देखकर हम अचरज करते हैं।
सिद्धि
सिद्धि शब्द का अर्थ है सफलता। सिद्धि अर्थात
किसी कार्य विशेष में पारंगत होना। समान्यतया सिद्धि शब्द का अर्थ चमत्कार या
रहस्य समझा जाता है, लेकिन योगानुसार सिद्धि का अर्थ इंद्रियों की
पुष्टता और व्यापकता होती है। अर्थात, देखने, सुनने और समझने की क्षमता का विकास। सिद्धियां दो प्रकार की होती हैं|
• एक परा सिद्धि
• दूसरी अपरा सिद्धि
।
विषय संबंधी सब प्रकार की उत्तम, मध्यम और अधम सिद्धियां 'अपरा सिद्धि' कहलाती है। यह मुमुक्षुओं के लिए है। इसके अलावा जो स्व-स्वरूप के अनुभव की
उपयोगी सिद्धियां हैं वे योगिराज के लिए उपादेय 'परा सिद्धियां' हैं।
टैलीपैथी
दूर संवेदन या परस्पर भाव बोध को आजकल टैलीपैथी
कहा जाता है। अर्थात बिना किसी आधार या यंत्र के अपने विचारों को दूसरे के पास
पहुंचाना तथा दूसरों के विचार ग्रहण करना ही टैलीपैथी है। प्राचीन काल में यह
विद्या ऋषि मुनियों के पास होती थी। हालांकि यह विद्या आदि वासियों और बंजारों के
पास भी होती थी। वे अपने संदेश को दूर बैठे किसी दूसरे व्यक्ति के दिमाग में डाल देते
थे। टैलीपैथी विद्या का एक दूसरा रूप में इंटियूशन पॉवर है ।
दरअसल हम सब में थोड़ी-बहुत इंटियूशन पॉवर होती
है, लेकिन कुछ लोगों में यह इतनी स्ट्रांग होती है
कि वह अपनों के साथ घटने वाली अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की घटनाओं को आसानी से
जान लेते हैं। हालांकि अभी तक प्रामाणिक रूप से ऐसी कोई उपलब्धि वैज्ञानिकों को
हासिल नहीं हो सकी है, जिसके आधार पर टेलीपैथी के रहस्यों से पूरा
पर्दा उठ सकें।
काला जादू कई रहस्यों और भ्रांतियों से भरा पड़ा
है | यदि आदमी का मनोबल ऊंचा हो तो कोई समस्या नहीं
आती| तांत्रिक लोग आम आदमी को मनोवैज्ञानिक ढंग से
अपना शिकार बनाते है |जब मनोबल का स्तर न्यूनतम हो तो अपने घर में भी
भूत दिखाई देता है | गलती से चाँद पर दृष्टि पड़ जाए तो उसमें भी भूत
की आकृति दिखाई देने लग जाती है |रास्ते में पड़ने
वाले पेड़ पोधो की आकृति और उनकी छाया भी डरावनी लगने लगती है |खेत के रास्ते में अचानक कोई जीव जंतु निकल कर भागता है तो उस से भी डर लगने लगता है | इस के अलावा मूठ करना, वशीकरण, डायन साधना, काम साधना ,वीर साधना और चौकी साधना आदि कई नामों से जाना
जाता है |
मायोंग गाँव में भ्रमण करते समय एक विचित्र
वातावरण का अनुभव हो रहा था |अनवी अपनी सहेली
के साथ निडर हो कर भ्रमण कर रही थी | तभी देवरी ने एक कांसी की थाली ली और इसमें पानी भरा | इसके बाद पानी को अभिमंत्रित किया जो मन्त्रों
के प्रभाव से उबलने लगा | थोड़ी देर में पानी ठंडा और एक शीशे की तरह हो
गया | अब शीशे में चित्र साफ़ साफ़ दिखाई दे रह थे | सबसे पहले देवरी ने अनवी को पोबोत्रो वन्य
प्राणी उद्यान में वह बगीचा दिखाया जहाँ वह पिछली यात्रा में लाल चिड़िया,छोटे बंदर और एक फुट का एक सींगवाला गैंडे से
मिली थी | देवरी कहने लगी की तुम्हारे पास एक तितली भी आई
थी | ये सभी मेरे दोस्त है |ये सभी मेरी सम्मोहन शक्ति से सम्मोहित रहते है
| हम कभी किसी को हानि नहीं पहुँचाते| उनके काले धागे खोलने के बाद सभी अपने अपने
परिवेष में खुश है |जब हमें मिलना हो तो सभी इस बाग़ में आ जाते है |बंदर भी मेरे मन्त्रो से आकार में छोटा बड़ा हो
जाता है| यह कामाख्या मंदिर के पास नदी में उमा शंकर
मंदिर
के पास बीमार मिला
था| इसका असली रंग सोने जैसा है| यहाँ पाए जाने वाले बंदर सुनहरे रंग के होते हैं| उसके
उपचार के बाद मैं
वापस इसको मंजुली
टापू में छोड़ना चाहती थी |परन्तु इसने
मेरे साथ रहना
चाहा|
मैं नदी किनारे बाग में इसको प्यार कर रही थी तभी एक तितली ने कहा क्या सारा प्यार इसको ही दे दोगी| मुझे भी अपना दोस्त बना लो |हमारी दोस्ती काफी जमी |देवरी ने तितली को अभिमंत्रित कर अद्र्श्ये होने की शक्ति प्रदान की और साथ ही वह जिस भी प्राणी पर बैठ जाये वह भी अदृश्य हो जाता है | इस प्रकार यह संकट में अपना बचाव कर सकती है |
इन सब को देख लेने के बाद अनवी की इच्छा हुई की
वह गुरुग्राम में अपनी मम्मी पापा को भी देखे | इस पर देवरी ने ऐसा करने से मना कर दिया | अनवी मायोंग और पोबित्रो के रहस्यमयी संसार से विचलित हो गई थी |जंगली प्राणियों में इतनी प्रगाढ़ मित्रता और आपसी समझ से काफी प्रभावित हुई | अचानक उसे याद आया की उसकी छुटिया भी ख़तम हो
रही है | कल उसे अपने विद्यालय भी जाना है | उसके आग्रह पर रति ने उसे दो घंटे की उड़ान के
बाद घर पहुंचा दिया |रति को हाथ हिला कर अलविदा कहा|
दो यात्राओं के बाद विद्यालय में अनवी चर्चा
का विषय बन गई थी | पूरी का कक्षा ने अनवी को लाल चिड़िया से विद्यालय से जाते देखा
था | इसके बाद का हाल अगली यात्रा में जानेगें |