मायोंग
की माया
प्राकथन
बाल साहित्य और चौपाल की कहानिया मुझे आज भी
कहानिया पढ़ने और सुनाने को प्रेरित करते है| आप सब की तरह मैंने भी कहानियों का रसस्वादन किया है| मैंने भी भारतीय और
अन्तरास्ट्रिये साहित्य से कहानिया पढ़ी है| मै गुलिवर की यात्राये,अरेबियेन नाईटस,राजा विक्रमाद्त्य और सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ, परियों की कहानियों से
काफी प्रभावित हुआ हूँ|कहानियाँ अति कल्पनाशील, तिलस्मी तथा जादुई घटनाओं
से भरी हुई हैं। बाल साहित्य परी कथाओं , जादू टोने और कल्पना शील घटनाओं से भरा हुआ है| इससे प्रभावित हो कर
मैंने यह किताब लिखने का निर्णय लिया |
मेरी नौकरी के दौरान मुझे आसाम जाने का मौका
मिला | मेरे काम की प्रकृति ऐसी
थी की मुझे गाँव गाँव और जंगल जंगल घूमने का मौका मिला | सेना में होने के कारण
पूरी सुरक्षा के साथ जाना पड़ता था | इसका लाभ और हानि दोनों
ही थे |असामी संस्कृति , रीति रिवाज और सभ्यता को
समझने का मौका मिला | सौभाग्य से मेरा निवास
ब्रह्म पुत्र नदी के किनारे पर ही था | हरियाणे की तुलना में असम
काफी हरा भरा प्रदेश है | सदाबहार मौसम मेरे जैसे
घुमकड़ के लिए अधिक अनुकूल रहता है | इस पुस्तक में मै असम के
वन्य जीवन और वनस्पतियों से परिचय के साथ साथ असामी संस्कृति , रीति रिवाज और सभ्यता से
भी परिचय करवाऊंगा| नदियों और ऊँचे नीचे
पहाड़ों के मध्ये खूबसूरत परिदृश्य मन को मोहित करते है और रास्ते की थकान को भुला
देते है| इन सब से जुडी कहानियां
मन की जिज्ञासा को बढ़ा देती है | देवी कामाख्या मंदिर , कामरूप और मायोंग से जुडी
जादुई कहानियों ने मुझे यह पुस्तक लिखने को प्रेरित किया है| इस पुस्तक में गुरुग्राम
के एक निजी विद्यालय की छात्रों का समुह असम के भ्रमण के लिए जाता है| आरम्भ में वह दल पोबित्रो
वन्य प्राणी उद्यान देखने जाता है |वहां पर एक लड़की जिसका
नाम अनवी है को एक जादुई गुड़ियाँ मिल जाती है | प्रस्तूत पुस्तक में अनवी
इन सभी राष्ट्रीय उद्यान और वन्य प्राणी उद्यान का भ्रमण करती है| हर बार उसके साथ जादुई
करिश्मा होता है | हर बार यह जादुई गुडिया
उसे बचा लाती है |यात्रा का सफ़र मायोंग
गाँव से होता है जो जादू के लिए विश्व प्रसीद्ध है | विभिन्न राष्ट्रीय उद्यानों
और वन्य प्राणी उद्यानों में कैसे जाए ,वहां क्या देखे , जादू और चमत्कार से भरी कहानियाँ आपको पढ़ने को मिलेगी |
राष्ट्रीय उद्यान
1. काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान
2. मानस राष्ट्रीय उद्यान
3. नमेरी राष्ट्रीय उद्यान
4. डिब्रू-सैखोवा राष्ट्रीय उद्यान
5. औरंग राष्ट्रीय उद्यान
6. देहिंग पत्कई राष्ट्रीय उद्यान
वन्य प्राणी उद्यान
7. हूल्लोंगापर वन्य प्राणी उद्यान
8. गरमपानी वन्य प्राणी उद्यान
9. बूरा चपोरी वन्य प्राणी उद्यान
10. बोरनाडी वन्य प्राणी उद्यान
11. सोनई रुपाई वन्य प्राणी उद्यान
12. पोबीटोरा वन्य प्राणी उद्यान
13. पाणीदिहिंग पक्षी विहार
14. भेरजन-बोरजन-पदुमोनी वन्य प्राणी उद्यान
15. नाम्बोर वन्य प्राणी उद्यान
16. पूर्वी कर्बी-आंगलोंग वन्य प्राणी
उद्यान
17.लओखोवा वन्य प्राणी उद्यान
18.लओखोवा वन्य प्राणी उद्यान
19. मारत लोंगरी वन्य प्राणी उद्यान
20. नाम्बोर-दोइग्रुन्ग वन्य प्राणी
उद्यान
21. चक्रशिला वन्य प्राणी उद्यान
22. बोरेल वन्य प्राणी उद्यान
23. अम्संग वन्य प्राणी उद्यान
24.डिपोर बिल वन्य प्राणी उद्यान
प्रस्तावित वन्य प्राणी
उद्यान
25. उत्तर कर्बी-आंगलोंग वन्य प्राणी
उद्यान
26. बोर्दोइबम बिल्मुख पक्षी वन्य प्राणी उद्यान
अन्य
27. कामख्या
28. मायोंग गाँव
29. मंजुलिका द्वीप
30. धुबरी
लेखक का परिचय
वैसे तो सेवानिवृति के
बाद मेरे पास समय ही समय रहता था | परन्तु करोना और उसके बाद
लोक डाउन ने तो समय काटना मुसकिल कर दिया था| में भारतीय सेना, भारतीय व्यापार प्राधिकरण
(अब भारतीय व्यापार संवर्धन संगठन) और बैंक की चालीस साल की सेवा के बाद सेवा निवृत हुआ था | और इस को भी लगभग चार साल हो चुके थे| सेवा निवृति के कुछ साल तो घर गृहस्थ के साथ और शोक पूरा
करने में आराम से बीते| बच्चों को रोज कहानी सुनाना एक दिनचर्या का हिस्सा बन चुका
था | परन्तु करोना और लोक डाउन ने सब को दूर कर दिया| इस ऊबाऊ पन को दूर
करने और अपने सुनहरे पल के मधुर संस्मरण बाटने के लिए यह पुस्तक आप सभी को समर्पित
है|
प्रस्तुत
पुस्तक में जादू टोने के सहारे पेड़ पौधों से प्यार और वन्य प्राणियों को समझने और
असम की संस्कृति से परिचय करवाने का प्रयास किया गया है | झाड़ फूक से सचेत करने का एक छोटा सा कदम है |
लेखक
मेरी पहली यात्रा
एक परिचय
कामाख्या
कामरूप का नाम आते ही कामाख्या देवी के
मंदिर का ध्यान अवश्य आत़ा है | यह 51 शक्ति पीठों में से एक है
| यह तांत्रिक देवी हैं और काली तथा 'त्रिपुर सुन्दरी' के साथ इनका निकट समबन्ध
है। इनकी कथा का उल्लेख कालिका पुराण और योगिनी तंत्र में विस्तृत रूप से हुआ है।
समूचे असम और पूर्वोत्तर बंगाल में शक्ति अथवा कामाक्षी की पूजा का बड़ा महात्म्य
है। असम के कामरूप में कामाख्या का प्रसिद्ध मन्दिर अवस्थित है।
पश्चिमी भारत में जो कामरूप
की नारी शक्ति के अनेक अलौकिक चमत्कारों की बात लोकसाहित्य में कही गई है, उसका आधार इस कामाक्षी का
महत्व ही है। 'कामरूप' का अर्थ ही है 'इच्छानुसार रूप धारण कर
लेना' और विश्वास है कि असम की
नारियाँ चाहे जिसको अपनी इच्छा के अनुकूल रूप में बदल देती थीं। विश्व के सबसे प्राचीनतम
तंत्र आगम मठ के अनुसार कामाख्या मे आज भी तंत्र की ऐसी शाखायें है जिनके अनुसार
कुछ भी पाया जा सकता है परंतु बहुत ही कठिन है|
पुराणों के अनुसार पिता
दक्ष के यज्ञ में पति शिव का अपमान होने के कारण सती हवनकुंड में ही कूद पड़ी थीं
जिसके शरीर को शिव कंधे पर दीर्घकाल तक डाले फिरते रहे। सती के अंग जहाँ-जहाँ गिरे वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ बन गए जो
शाक्त तथा शैव भक्तों के परम तीर्थ हुए। इन्हीं पीठों में से एक—कामरूप असम में स्थापित
हुआ, जो आज की गौहाटी के सामने
'कामाख्या' नामक पहाड़ी पर स्थित है।
असम के पूर्वी भाग में
अत्यंत प्राचीन काल से नारी की शक्ति की अर्चना हुई है। महाभारत में उस दिशा के
स्त्रीराज्य का उल्लेख हुआ है। इसमें संदेह नहीं कि मातृसत्तात्मक परंपरा का कोई न
कोई रूप वहाँ था जो वहाँ की नागा आदि जातियों में आज भी बना है। ऐसे वातावरण में
देवी का महत्व चिरस्थायी होना स्वाभाविक ही था और जब उसे शिव की पत्नी मान लिया
गया तब शक्ति संप्रदाय को सहज ही शैव शक्ति की पृष्ठभूमि और मर्यादा प्राप्त हो
गई। फिर जब वज्रयानी प्रज्ञापारमिता और शक्ति एक कर दी गईं तब तो शक्ति गौरव का और
भी प्रसार हो गया। उस शक्ति विश्वास का केंद्र गोहाटी की कामाख्या पहाड़ी का यह
कामाक्षी पीठ है। सती स्वरूप्नी आद्ध्य शक्ती की मा भैरवी कामाख्या का मंदिर विश्व का सर्वोच्च कौमारी तीर्थ भी माना जाता
है |यहाँ पर कौमारी पूजा
अनुष्ठान का बी महत्व है |यहाँ पर सभी वर्णों और
जातियों की कुमारियाँ वन्दनिये और पूजनिये है| यहाँ पर वर्ण भेद करने पर
साधक की सारी शक्तियां ख़तम हो जाती है| यहाँ मनाये जाने वाले
अम्बुवाची पर्व का विशेष महत्त्व है |इस पर्व के दोरान साधक
अपनी दिव्य और आलोकिक शक्त्यों के अर्जन और पुनः संचरण के लिए अनुष्ठान करते है |
मा भगवती के रजस्वला होने से पूर्व
गर्भ गृह में स्थित महा मुद्रा पर सफ़ेद वस्त्र चढ़ाये जाते है, जो रक्त वर्ण हो जाते है | मंदिर के पुजारी ये वस्त्र ही भक्तों को प्रशाद स्वरुप वितरित करते
है | इस दोरान यहाँ पर बंगला
देश,तिब्बत ,नेपाल और अफ़्रीकी देशों से तंत्र साधक यहाँ अपनी साधना के
सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते है| वाम मार्ग साधकों का यह
सवोच्च पीठ है|मच्चंदर नाथ,गोरख नाथ , लोना चमारी और इस्माइल
जोगी आदि तंत्र साधक सांवर तंत्र में अपना स्थान बना कर अमर हुए है| अम्बुवाची पर्व साल में
एक बार मनाया जाता है |शास्त्रों के अनुसार यह
पर्व सतयुग में 16 साल में, द्वापर में 12 साल में और त्रेता युग मे
7 वर्ष में एक बार आत़ा है| यह जून माह में आत़ा है| इस दोरान मा भगवती के
कपाट बंद हो जाते है और उनके दर्शन निषेध हो जाते है |
यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। देश भर मे
अनेकों सिद्ध स्थान है जहाँ माता सुक्ष्म स्वरूप मे निवास करती है प्रमुख
महाशक्तिपीठों मे माता कामाख्या का यह मंदिर सुशोभित है हिंगलाज की भवानी, कांगड़ा की ज्वालामुखी, सहारनपुर की शाकम्भरी
देवी, विन्ध्याचल की
विन्ध्यावासिनी देवी आदि महान शक्तिपीठ श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र एवं तंत्र- मंत्र, योग-साधना के सिद्ध स्थान है। यहाँ मान्यता है, कि जो भी बाहर से आये
भक्तगण जीवन में तीन बार दर्शन कर लेते हैं उनके सांसारिक भव बंधन से मुक्ति मिल
जाती है । " या देवी सर्व भूतेषू मातृ
रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।
इस बारे में कहा जाता है कि अम्बूवाची योग पर्व के दौरान मां भगवती के
गर्भगृह के कपाट स्वत ही बंद हो जाते हैं और उनका दर्शन भी निषेध हो जाता है। इस
पर्व की महत्ता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पूरे विश्व से इस पर्व
में तंत्र-मंत्र-यंत्र साधना हेतु सभी प्रकार की सिद्धियाँ एवं मंत्रों के
पुरश्चरण हेतु उच्च कोटियों के तांत्रिकों-मांत्रिकों, अघोरियों का बड़ा जमघट
लगा रहता है। तीन दिनों के उपरांत मां भगवती की रजस्वला समाप्ति पर उनकी विशेष
पूजा एवं साधना की जाती है।
कामाख्या के बारे में
किंवदंती है कि घमंड में चूर असुरराज नरकासुर एक दिन मां भगवती कामाख्या को अपनी
पत्नी के रूप में पाने का दुराग्रह कर बैठा था। कामाख्या महामाया ने नरकासुर की
मृत्यु को निकट मानकर उससे कहा कि यदि तुम इसी रात में नील पर्वत पर चारों तरफ
पत्थरों के चार सोपान पथों का निर्माण कर दो एवं कामाख्या मंदिर के साथ एक विश्राम-गृह बनवा दो, तो मैं तुम्हारी
इच्छानुसार पत्नी बन जाऊँगी और यदि तुम ऐसा न कर पाये तो तुम्हारी मौत निश्चित है।
गर्व में चूर असुर ने पथों के चारों सोपान प्रभात होने से पूर्व पूर्ण कर दिये और
विश्राम कक्ष का निर्माण कर ही रहा था कि महामाया के एक मायावी कुक्कुट (मुर्गे) द्वारा रात्रि समाप्ति की
सूचना दी गयी, जिससे नरकासुर ने क्रोधित होकर मुर्गे का पीछा किया और
ब्रह्मपुत्र के दूसरे छोर पर जाकर उसका वध कर डाला। यह स्थान आज भी `कुक्टाचकि' के नाम से विख्यात है।
बाद में मां भगवती की माया से भगवान विष्णु ने नरकासुर असुर का वध कर दिया।
नरकासुर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र भगदत्त कामरूप का राजा बना। भगदत्त का वंश
लुप्त हो जाने से कामरूप राज्य छोटे-छोटे भागों में बंट गया
और सामंत राजा कामरूप पर अपना शासन करने लगा। नरकासुर के नीच कार्यों
के बाद एवं विशिष्ट मुनि के अभिशाप से देवी अप्रकट हो गयी थीं और कामदेव द्वारा
प्रतिष्ठित कामाख्या मंदिर ध्वंसप्राय हो गया था।
आदि-शक्ति महाभैरवी कामाख्या के दर्शन से पूर्व महाभैरव उमानंद, जो कि गुवाहाटी शहर के
निकट ब्रह्मपुत्र 'नदी ' के मध्य भाग में टापू के
ऊपर स्थित है, का दर्शन करना आवश्यक है। यह एक प्राकृतिक शैलदीप है, जो तंत्र का सर्वोच्च
सिद्ध सती का शक्तिपीठ है। इस टापू को मध्यांचल पर्वत के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहीं पर समाधिस्थ
सदाशिव को कामदेव ने कामबाण मारकर आहत किया था और समाधि से जाग्रत होने पर सदाशिव
ने उसे भस्म कर दिया था। भगवती के महातीर्थ (योनिमुद्रा) नीलांचल पर्वत पर ही
कामदेव को पुन जीवनदान मिला था। इसीलिए यह क्षेत्र कामरूप के नाम से भी जाना जाता
है।
कामाख्या मंदिर के दर्शन
का समय भक्तों के लिए सुबह 8:00
बजे से दोपहर 1:00
बजे तक और फिर दोपहर 2:30 बजे से शाम 5:30 बजे तक शुरू होता है।
सामान्य प्रवेश नि: शुल्क है, लेकिन भक्त सुबह 5 बजे से कतार बनाना शुरू
कर देते हैं, इसलिए यदि किसी के पास
समय है तो इस विकल्प पर जा सकते हैं। आम तौर पर इसमें 3-4 घंटे लगते हैं। वीआईपी
प्रवेश की एक टिकट लागत है, जिसे मंदिर में प्रवेश
करने के लिए भुगतान करना पड़ता है,
जो कि प्रति व्यक्ति रुपए 501 की लागत पर उपलब्ध है। इस
टिकट से कोई भी सीधे मुख्य गर्भगृह में प्रवेश कर सकता है और 10 मिनट के भीतर पवित्र
दर्शन कर सकता है| यहाँ पर माँ काली के दस
रूप धूमावती, मातंगी, बगोला, तारा, कमला, भैरंवी, चिन्मासा, त्रिपुरा सुंदरी और
भुवनेश्वरी के दर्शन कर सकते है |
जब काम देव ने अपना पुरुषत्व खो दिया था तो
यहीं पट ताप करने पर पुनः अपना पुरुषत्व
प्राप्त हुआ था |
यहाँ की भूमि ऊँची नीची है जिसको असम कहते
है| इस लिए इस प्रदेश का नाम
असम पड़ गया| प्राचीन भारतीय ग्रंथों
में इस का नाम प्रागज्योतिष है | श्री कृष्ण के पौत्र
अनिरुद्ध ने यहाँ की युवती उषा पर मोहित हो कर उसका अपहरण किया था |भगवत पुराण के अनुसार उषा ने अपनी सखी चित्रलेखा द्वारा
अनिरुध का अपहरण करवाया था| प्राचीन असम को कामरूप
के नाम से जाना जाता है | ब्रह्मपुत्र यहाँ की
प्रमुख नदी है | तिब्बत में इसको सान्गापी
कहते है | इसमें कई टापू भी बनते है
|मान्जुली द्वीप 929 किलोमीटर में फैला है जो
विश्व का नदी का सबसे बड़ा द्वीप है | ब्रह्मपुत्र की 35 सहायक नदियाँ है | असम में केवल प्राकृतिक
सौन्द्र्य ही नहीं यहाँ की संस्कृति भी उत्कृष्ट है |बिहू यहाँ की गौरवमयी परम्परा है |माघ महीने में सक्रांति से एक दिन पहले भोगाली बिहू मनाया
जाता है |तिल, चावल, नारियल और गन्ने की भरपूर
फसल होती है|इससे तरह तरह की खाद्य
सामग्री तैयार की जाती है| अतः ऐसे भोगाली बिहू कहते
है|
असमिया कलेंडर बैशाख महीने से आरम्भ होता है
|इस मास में मनाये जाने
वाले बिहू को बैशाख बिहू कहते है |सात दिन चलने वाला बिहू
अलग अलग रिती रिवाजों से मनाया जाता है |इस बिहू को बोहाग बिहू कहते है |प्रथम दिन गाय की पूजा की जाती है सभी अपनी अपनी गायों को
नदी या पोखर में रात को भिगो कर रखी कलई दाल,कच्ची हल्दी से स्नान करवाते है | इस के बाद वहीँ पर गायों
को लौकी बैगन आदि खिलाया जाता है | सायकाल गाय को नई रस्सी
से बांधा जाता है | मान्यता है की ऐसा करने
से गाय साल भर कुशक पूर्वक रहती है |ओषधिये पेड़ पौधे जला कर
मच्छरों को भगाया जाता है| इस दिन चावल खाने निषेध
है |पहले बैशाख में आदमी का
बिहू शुरू होता है | इस दिन लोग कच्ची हाली
लगा कर स्नान करते है और नए वस्त्र पहनते है| पूजा पाठ कर के दही चिवडा
और पकवान खाते है | इस दिन से असमिया नया साल
आरम्भ होता है| इन सात दिनों में 101 हरी पत्तियों वाली सब्जी
खाने का रिवाज है | हर तरफ नई फसल आने की
तैयारी होती है |इसी समय वर्षा की पहली
बूंद गिरती है और पृथ्वी नए साल में नई तरह से सजाती है |20-25 युवक और युवतियों की टोली
ढोल,पपा, गगना,ताल और बांसुरी इत्यादि के साथ अपनर पारम्परिक परिधान में
नाचती और गाती है | इस अवसर पर उन्हें अपना
मन पसंद जीवन साथी चुनने का मौका मिलता है और अपने नए जीवन साथी के साथ नई जिन्दगी
का आरम्भ करते है| यही कारण है की असम में
ज्यादातर विवाह बैशाख मास में सम्पन्न हो जाते है |गांवों में खेल तमाशों का आयोजन किया जाता है |
काति बिहू
या कंगाली बिहू कार्तिक महीने में मनाया जाता है | धान की फसल में दाने आने
शुरू हो जाते है | इन को कीड़ो से बचाने के
लिए यह बिहू मनाया जाता है | आँगन में तुलसी का पोधा
लगा कर दिया जलाया जाता है और भगवान् से प्रार्थना की जाती है की फसल ठीक ठाक रहे |
असम में 27 जिले है| यहाँ की आबादी पर भी
आधुनिकता की छाप पड़ी है| महिलाए पुरुषों से अलग
तरह की पोशाक पहनती है | कमर से ऊपर के हिस्से पर
एक विशेष प्रकार की चद्दर पहनी जाती है और कमर से नीचे मेखला पहनते है| पुरुष गामोशा पहनते है | असम की दो भाग वाली साडी
को मेखला चादर कहते है |इस को ब्लाउज के साथ पहना
जाता है |
पोबितोरा वन्य प्राणी
अभयारण्य
भारत के असम राज्य के मरिगाँव ज़िले में
ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट पर विस्तारित एक 38.85 वर्ग किमी बड़ा एक वन्य
अभयारण्य है। यह भारतीय गैण्डे के लिए संरक्षित एक घास भूमीय व आर्द्रभूमिय क्षेत्र है। इसे सन् 1987 में स्थापित करा गया था।
इस अभयारण्य
के मात्र 16 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र 90 से ज़्यादा गैंडों का आवास
स्थल है। गौरतलब है कि इतने कम क्षेत्रफल में 90 से ज़्यादा गैंडों का रहना
इस अभयारण्य को दुनिया के उच्चतम जनसंख्या घनत्व वाला अभयारण्य बनाता है।गैंडे के
अलावा तेंदुआ, फिशिंग कैट, जंगली बिल्ली, जंगली भैंस, जंगली सुअर, चीनी पैंगोलिन आदि जैसे
अन्य स्तनधारी भी यहाँ पाए जाते हैं।सर्दियों में पोबितोरा पक्षियों के लिये
स्वर्ग बन जाता है, जिसमें हज़ारों जलप्रपात
आर्द्रभूमि को रोमांचित करते हैं।
पोबितोरा वन्यजीव
अभयारण्य का मात्र 16 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र 90 से ज़्यादा गैंडों का आवास
स्थल है। गौरतलब है कि इतने कम क्षेत्रफल में 90 से ज़्यादा गैंडों का रहना
इस अभयारण्य को दुनिया के उच्चतम जनसंख्या घनत्व वाला अभयारण्य बनाता है।
गैंडे के अलावा तेंदुआ, फिशिंग कैट, जंगली बिल्ली, जंगली भैंस, जंगली सुअर, चीनी पैंगोलिन आदि जैसे
अन्य स्तनधारी भी यहाँ पाए जाते हैं।
सर्दियों में पोबितोरा
पक्षियों के लिये स्वर्ग बन जाता है, जिसमें हज़ारों जलप्रपात आर्द्रभूमि को रोमांचित करते
हैं।पोबितोरा को तीन अलग-अलग श्रेणियों में
विभाजित किया जा सकता है: वन, घास का मैदान और जल निकाय।
वहां बच्चों ने हाथियों की सवारी का आनंद
लिया | तरह तरह के पक्षी देखे | अनवी रंग बिरंगे पक्षियों
का आन्नद ले रही थी |अचानक एक लाल छोटी सी
चिड़िया उसके ऊपर आ कर बैठ गयी |अनवी चिड़िया को अपने ऊपर
बैठा देख कर काफी खुश हो रही थी |उसने चिड़िया को अपनी
हथेली पर बैठा लिया |अपनी जेब से बिस्कुट
निकाल कर उस को खिलने लगी | प्यार से उस पर हाथ फेरने
लगी और पूछने लगी भूख लगी है या प्यास ? चिड़िया ने कहा भूख प्यास तो नहीं लगी परन्तु मै तुम्हारी
दोस्त बनना चाहती हूँ | चिड़िया को मनुष्य की तरह
बात करते देख अनवी चौक गई और झट से उस की दोस्त बन गई | उसे प्यार से पुचकारने
लगी | लाल चिड़िया के चक्कर में
अनवी अपने साथियों से बिछुड़ गई | वह लाल चिड़िया से ढेर
सारी बाते करती रही | जब अनवी को अपना दल कहीं
दिखाई नहीं दिया तो वह घबरा कर उदास हो गई | लाल चिड़िया ने उदासी का कारण पूछा तो अनवी ने अपनी समस्या
बता दी | लाल चिडीया ने उसे
सांत्वना दी और साथ ही घर पहुंचाने का वादा किया | अनवी लाल चिड़िया के साथ
चली गई| लाल चिड़िया ने उसे एक पेड़
से फल ला कर दिया | ज्यों ही अनवी ने वह फल
खाया वह चिड़िया जितनी ही छोटी हो गई |अब अनवी भी चिड़िया के साथ
पेड़ की एक टहनी पर बैठ गई |कुछ समय बाद अनवी का संतुलन
बिगड़ गया और वह टहनी से नीचे बह रही नदी में गिर गई |
नदी में गिरते ही अनवी नीचे और नीचे पानी
में जाती जा रही थी |उसे पानी में सांस लेने
में कई परेशानी नहीं हो रही थी | नदी तल में जाने पर उसने
रंग-बिरंगी मच्छलियों को
खेलते देखा तो वह अपनी परेशानी भूल गई और उनके साथ ही खेलने लग गई | अचानक एक लाल मच्छली उसके
हाथ पर आ गई | अनवी ने उसे प्यार से
पुचकारा तो अनवी अपने वास्तविक रूप में नदी
जल से बाहर आ गई | अब वह नदी तट पर उदास
बैठी थी | उसके साथ लाल चिड़िया और
लाल मच्छली दोनों में से कोई नहीं था | वह अपनी कक्षा से भी
बिछुड़ चुकी थी | उसको रह रह कर अपनी
सहेलियों और घरवालों की याद आ रही थी |
समय बीतने के साथ उसकी मनोदशा भी बिगड़ रही
थी | कभी उसे अपने भाई और
बहिनों की याद आती और अभी अपने पालतू कुत्ती मिन्नी की याद आती | इतनी दूर बैठे उसको चिंता
थी की मिन्नी ने कुछ खाया या नहीं | इसी उहपोह में अनवी
विचारों में डूबी हुई थी | अचानक उसको लाल चिड़िया की
आवाज़ सुनाई दी | उसने चिड़िया को इधर उधर
खोजा परन्तु कहीं दिखाई नहीं दी |चिड़िया एक पेड़ से दूसरे
पेड़ पर फुदक रही थी | नजर पड़ते ही अनवी उसका
पीछा करने लगी |
जब अनवी लाल चिड़िया का पीछा कर रही थी तो अचानक उसे एक दरवाजा दिखाई दिया | अनवी उस दरवाजे में प्रवेश कर गई |वह दरवाज एक बड़े कमरे में खुलता था | वहां चार दरवाजे और थे |उन सभी दरवाजों पर ताले लगे हुए थे | अचानक एक छोटी मेज पर एक चाबी पड़ी हुई दिखाई दी | अनवी ने चाबी उठाई और बारी बारी से ताले खोलने का प्रयास किया |कोई ताला नहीं खुला | अंत में एक छोटा ताला खोलने का प्रयास किया तो वह खुल गया| वह दरवाजा रसोई में खुलता था | रसोई में उसने कुछ खाने का सामान तलाशना आरम्भ किया | रसोई में उसे दूध के अलावा कुछ नहीं मिला | अनवी ने बर्तन का सारा दूध पी लिया | उसे दूध का स्वाद कुछ अलग सा लगा परतु भूख में जो मिल गया खा पी लिया | दूध पीते ही अनवी को नींद आ गई और वहीँ पर लुढ़क गई | जब उस की आँख खुली तो स्वयं को एक सुन्दर बगीचे में पाया| उसके कपडे भी बदले जा चुके थे | उसे ऐसा महसूस हो रहा था की किसी ने उसे स्नान करवा कर नए कपडे पहना दिए हों | अचानक उसे रास्ते में मिली गुड़ियाँ का ख़याल आया तो वह उसको तलासने लगी | आखिरकार गुडिया उसे के पास ही मिल गई | बगीचे में उसके पास लाल चिड़िया,एक छोटा सा बन्दर और एक सींग वाला छोटा स गैंडा था | गैंडा आकार में एक फुट से भी छोटा था| अनवी गैंडे को आसानी से उठा सकती थी |