Tuesday, 28 August 2018

मायोंग की माया नगरी

                                                

              मायोंग की माया नगरी       

पूरी दुनियां  काला  जादू ,मन्त्र -तन्त्र  और सिद्धियों से प्रभावित होती  रही है। ऐसी  घटनाये सभी को रोमांचित करती  रही हैं| इस पुस्तक का उद्देश्य  केवल मनोरंजन और असम के विभिन्न वन्य प्राणी अभ्यारण्य से परिचित करवाना और प्रकृति के नज़दीक जाना है| जादू  टोना और अन्धविश्वास फैलाना बिलकुल नहीं है | हम सभी प्रत्यक्ष और अप्रयत्क्ष रूप से ऐसी घटनाओं से रूबरू होते रहते है | किसी गली चौराहे पर चौमुखा दीपक काजल और रोली के तिलक के साथ चावल का टोटका देखा होगा | नयी बनी बहुमूल्य इमारत पर नज़रिया लटकते देखा होगा | बच्चे पर कला टीका और गले में ताबीज अवश्य देखा होगा | ये सब जादू मंत्र के होने के प्रमाण है | इन सब को मानवाना  मेरा लक्ष्य नहीं है | लेकिन इन सब से इंकार भी नहीं कर सकते | फिर क्यों ने इन सब से मनोरंजन और ज्ञान्वर्धन किया जाये | प्रस्तुत पुस्तक में जगहों के नाम असम के रीति रिवाज़ों और त्योहारों से परिचय वास्तविक हैं | पात्र  और घटनाएँ काल्पनिक हैं |

                                                               कथा काम रूप 

काम रूप का नाम आते ही कामाख्या देवी के मंदिर का ध्यान अवश्य आता है | हिन्दू पौराणिक कथा अनुसार माँ सती के शरीर के टुकड़े सुदर्शन चक्र से कट  कर ५१ जगहों पर गिरे थे | ये सभी जगह शक्ति पीठ के नाम से जानी जाती हैं | माँ सती  का योनि भाग जहाँ गिरा वह कामाख्या शक्ति पीठ के नाम से जाना जाता है | यह मंदिर नीलाचल पहाड़ी पर स्थित है | यह स्थान कला जादू के लिए प्रसिद्ध है | तांत्रिक यहाँ पर अपनी सिद्धि और साधना के लिए आते है | यह स्थान कला जादू के लिए आवश्यक माना जाता है | यहाँ पर तांत्रिको द्वारा दी जाने वाली नर बलि, पशु बाली  पक्षियों की मुक्ति की कहानियां सुनी और पढ़ी  जा सकती है | साधना में लीन  अघोरियों को देखा जा सकता है | सती स्वरूपनी आधयषाकरी  महा भैरवी कामाख्या तीर्थ विश्व का सर्वोच्च कौमारी तीर्थ  भी माना जाता है | इसलिए यहाँ कौमारी पूजा अनुष्ठान का भी महत्व है | यहाँ आध्या -शक्ति कामाख्या कौमारी रूप में सदा विराजमान है | यहाँ पर सभी जातियों और वर्णो की कौमारियां वन्दनिये और पूजनीय है | यह मन जाता है की वर्ण  भेद करने पर साधक की सिद्धियां ख़तम हो जाती है | इस उपलक्ष्य  में मनाया जाने वाला अम्बुवाची पर्व का काफी महत्वपूर्ण है|  इस दौरान दिव्य शक्तियों के अर्जन ,तंत्र मंत्र में निपुण साधक अपनी शक्तियों का पुनर्श्रावण  अनुष्ठान कर शक्तियों को स्थिर रखते है | माँ भगवती के रजस्वला होने पूर्व गर्भ गृह में स्थित महा मुद्रा पर सफ़ेद कपड़ा चढ़ाया जाता है | तीन दिन के लिए मंदिर के कपाट बंद  हो जाते है | तीन दिन उपरांत कपाट खोले जाते है | रक्त वर्ण हुए वस्त्र श्रद्धालुओं को प्रसाद स्वरूप दिए जाते है | इस दौरान यहाँ पर भारत, बांग्ला देश, तिब्बत और अफ्रीकी देशों से तंत्र साधक अपनी साधना के सर्वोच्च शिखर को प्राप्त करते हैं | वाममार्ग साधना का तो यह सर्वोच्च पीठ है | मछँदर नाथ , गोरख नाथ, लोनाचमारी और ईस्माइलजोगी आदि तंत्र साधको ने अपनी साधन करके सांवर तंत्र में अपना स्थान बना कर अमर हुए है | अम्बुवाची पर्व साल में एक बार मनाया जाता है | शास्त्रों के अनुसार सत युग में यह पर्व १६ वर्षो में एक बार आता था | द्वापर में १२ वर्षो में, त्रेता युग में ७ वर्ष में और कलयुग में प्रत्येक वर्ष मनाया जाता हैं | इस दौरान माँ भगवती के कपाट अपने आप बंद हो जाते थे  | और दर्शन भी निषेध हो जाते थे | इस दौरान पूरे विश्व के उच्च कोटि के तांत्रिकों , मंत्र साधको, अघोरियों और साधकों का जम घट लग जाता हैं | अपनी सिद्धियां आगे भी बनी रहें , इसके लिए साधना करते है. | तीन दिनों बाद मंदिर के कपाट खुल जाते है और इसके साथ विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है |
    एक बार मद में चूर असुर राज नर्का  सुर  माँ भगवती से विवाह करने का दुराग्रह कर बैठा | कामाख्या महा माया ने उस का अंत समय निकट जान कर उसे नीलाचल पर्वत के चारों और सीढ़ियां बनाने और कामाख्या मंदिर के पास एक विश्राम गृह सुबह दिन निकलने से पहले बनाने को कहा और यदि ऐसा नहीं कर पाए तो तुम्हारी मौत निश्चित है |  गर्व में चूर असुर ने चारों और सीढ़ियां प्रातः कल होने सर पूर्व ही बना दी| विश्राम गृह का निर्माण कर रहा था तभी महा माया के मायावी मुर्गे ने बांग  लगा दी | जिससे क्रोधित हो नरका सुर ने मुर्गे का पीछा किया और ब्रह्मा पुत्र नदी के दूसरे तट  पर जा कर उसका वध कर डाला | यह जगह आज भी कुक्टाचकी के नाम से जानी जाती है | माँ भगवती की माया से भगवान विष्णु ने  नरका सुर का वध कर दिया | नरका सुर की मृत्यु के बाद उसका पुत्र भगदत्त काम रूप का राजा बना | भगदत्त का वंश लुप्त होने पर काम रूप राज्य छोटे छोटे भागों में बट गया |और  सामंत राजा राज्य करने लगे |
     मुनि वशिष्ठ के श्राप के कारण देवी लुप्त हो गयी  | फलस्वरूप काम रूप का प्रतिष्ठित कामाख्या मंदिर धवंश  पर्याय हो गया | मायावी कामाख्या के दर्शन करने से पूर्व महा भैरव  उमानंद के दर्शन फल दायक होते है | यह मंदिर गुवाहाटी शहर के नज़दीक ब्रह्मपुत्र नदी के मध्य एक टापू पर स्थित है | यह एक प्राकृतिक शैल द्वीप है , जो तंत्र साधना का सर्वोच्च सिद्धि सती का शक्ति पीठ है | इस टापू को मध्यांचल के नाम से भी जाना जाता है | यहीं पर सदा शिव समाधी में लींन थे| तभी काम रूप ने बाण मर कर घायल कर दिया था | माँ भगवती के महा तीर्थ योनि मुद्रा पर ही कामदेव को पुनः जीवन दान मिला था |
                                                    कामाख्या मंदिर के रहस्य
१. अम्बुवाची पूजा :-माना   जाता है की जून माह (अषाढ़  माह की सप्तमी ) से यह मेला मनाया जाता है | इन तीन दिनो  यह मंदिर माँ के रजस्वला होने पर बंद रहता है | चौथे दिन विशेष पूजा के साथ यह मंदिर आम जनता के लिए खुलता है |
२.विभिन्न किंवदंतियों और पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर में भगवान गणेश के अनोखे चित्र बने है |
३. यहाँ पर दैनिक पूजा के अलावा निम्नलिखित पूजा और भी होती  है :- दुर्गा पूजा, अम्बुबाची पूजा, पोहन बिया, दुर्गा डियूल , बसंती पूजा, मदन डियूल पूजा।
४. दुर्गा पूजा नवरात्रों में होती है |
५. नरका सुर द्वारा बनाई  गयी सीढ़ियों को मेखलायजा पथ कहते है | दारंग में  कुक्टाचकी स्थित है |
६. पोहंन  बिया: - पूष मास के दौरान भगवान कामेश्वर और कामेश्वरी की प्रतीकात्मक शादी के रूप में पूजा होती है |
७. बसंती पूजा :- यह पूजा चैत्र मास में आयोजित की जाती है |
         
          इस मंदिर में देवी की कोई मूर्ति नहीं है |यहाँ पर देवी के योनी भाग की पूजा होती है|.कामाख्या में माता सती का योनी भाग गिरा था ( असामी  में योनी को गुव्हा कहते है )|  मंदिर में एक कुण्ड है जो हमेशा फूलों से भरा रहता है | इस के पास ही एक और मंदिर है जहाँ देवी की मूर्ति स्थापित है |  अम्बुबाची पर्व के बाद भगतों को प्रसाद स्वरूप एक लाल रंग का गीला कपड़ा दिया जाता है| जिसको अम्बुबाची वस्त्र कहते है | यहाँ पर देवी काली के दस रूप -धूमावती, मातंगी, बगोला , तारा, कमला , भैरवी , चिन्मासा, भुवनेश्वरी  और त्रिपुरा सुन्दरी की मूर्तियाँ देखने को मिल जाएगी |

           कम देव को तप करने पर अपना पुरुषत्व यहीं पर प्राप्त हुआ था | ऊँची नीची भूमि को असम कहते है इसी कारण यह प्रदेश असम कहलाता है | प्राचीन भारतीय ग्रंथों में इस का उल्लेख प्रग्ज्योतिश पुर के नाम से है | श्री कृष्णा  के पौत्र अनिरुद्ध ने यहाँ  की उषा नाम की युवती पर मोहित हो कर उसका अपहरण कर लिया था | भगवत पुराण के अनुसार उषा ने अपनी सखी चित्रलेखा द्वारा अनिरुध का अपहरण करवाया था | प्राचीन असम को काम रूप के नाम से जाना जाता है | ब्रह्मा पुत्र यहाँ की प्रमुख नदी है | तिब्बत में इसे सान्गापी  कहते है | प्रवाह क्षेत्र का ढाल कम होने के कारण नदी कई शाखाओं में बंट जाती है |इस से नदी में अनेकों द्वीप बने हुए है | मंजुली द्वीप ९२९ किलोमीटर में फैला दुनियां का सब से बड़ा नदी द्वीप है | ब्रह्म पुत्र की ३५ सहायक नदियाँ है |
           असम का केवल प्राक्रितिक सौंदर्य ही नहीं संस्कृति भी उत्कृष्ट है.| महिलाओं का सौदर्य जादू करने वाला है | असम में मनाया जाने वाले  बिहू तीन प्रकार के होते है :-
        भोगाली बिहू :-माघ मास में सक्रांति से एक दिन पहले भोगाली बिहू मनाया जाता है तिल, चावल , नारियल,और गन्ना की भरपूर फसल होती है | इन से तरह तरह की खाद्य सामग्री बनायीं जाती है | इसलिए इस को भोगाली बिहू कहते है | नई फसल भोगने के कारण इसको भोगाली बिहू कहते है
           बैशाख बिहू :-असम का नया साल बैशाख महीने से आरम्भ होता है | यह पर्व सात दिन तक अलग अलग रूप में मनाया जाता है | बैशाख महीने की सक्रांति से बोहाग बिहू आरम्भ होता है |प्रथम दिन को गाय का बिहू कहा जाता है | उस दिन सभी लोग अपनी अपनी गायों को नदी या तलब पर स्नान करवाते  है | रात भर भिगो कर रखी हुई कलाई की दाल और हल्दी का लेप कर के स्नान करवाया जाता है |इसके बाद गाय को वहीँ पर लौकी , बैगन आदि खिलाये जाते है | माना जाता है की ऐसा करने से गाय साल भर कुशल पूर्वक रहती है. सांयकाल गाय को नई  रस्सी से बंधा जाता है | औषधिये पेड़ पौधे जला कर मच्छरों  को दूर भगाया जाता है |इस दिन लोग दिन में चावल नहीं खाते |केवल दही और चिवड़ा ही खातें है |
बैशाख बिहू में आदमी कच्ची हल्दी से नहा कर नए कपडे पहनते है |पूजा पाठ कर के दही चिवड़ा और पकवान खाते है |इन सात दिनों में १०१ हरी पत्तियों वाली सब्जी खाने का रिवाज है | इसी समय वर्षा की पहली बूंद पड़ती है और पृथ्वी नए साल में नई तरह सजती  है | हर तरफ से नई  फसल आने ही तैयारी होती है |इस अवसर पर बिहू नाचते है | २०से २५ युवक युवतियों की टोली ढोल , पेपा, गगना , ताल बांसुरी इत्यादि के साथ पारंपरिक परिधानों में एक साथ बिहू नृत्य करते है |इस दौरान ही युवक युवतियां अपने मनपसंद जीवन साथी चुनते है | और नया जीवन आरम्भ करते है | इसलिए असम में ज्यादातर शादियां बैशाख माह में ही सम्पन्न हो जाती है | बिहू के समय गाँवों में विभिन्न तरह के खेलों का आयोजन होता है | खेतों में पहली बार हल जोता  जाता है माना जाता है की  ढोल की आवाज से बादल आ जाते है |
             काती/ कंगाली  बिहू :-जब धन की फसल में दाने आरम्भ होते है तो उनको कीड़ो के प्रकोप से बचने के लिए कार्तिक महीने की सक्रांति  के दिन काती बिहू मनाया जाता है | आँगन  में तुलसी का पोधा  लगा कर दीपक जला कर भगवान से प्रार्थना की जाती है की फसल ठीक ठाक हो |

             असम में २७ जिले है.| यहाँ की आबादी पर भी आधुनिकता का असर पड़ा है | मेखला  महिलाओं का पहनावा है और पुरुष गामोषा  पहनते है | असम की दो टुकड़ो की साड़ी काफी प्रसिद्ध है |जिसको मेखला चद्दर के नाम से जाना जाता है |इसको ब्लाउज के साथ पहन जाता है |असम में शिल्प की एक समृद्ध परम्परा रही है, वर्तमान केन और बाँस शिल्प, घंटी धातु और पीतल शिल्प, रेशम और कपास बुनाई, खिलौने और मुखौटा बनाने, मिट्टी के बर्तनों और मिट्टी काम, काष्ठ शिल्प, गहने बनाने, संगीत बनाने के उपकरणों, आदि के रूप में प्रमुख स्थान बना रहा है | असम भी लोहे से नावों, पारंपरिक बंदूकें और बारूद, हाथी दांत शिल्प, रंग और पेंट, लाखआदि  पारंपरिक निर्माण सामग्री और दैनिक  उपयोग की वास्तु बनाने में उत्कृष्ट है |केन और बाँस शिल्प के दैनिक जीवन में सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाता है|घरेलू सामान से लेकर, उपसाधन बुनाई, मछली पकड़ने का सामान, फर्नीचर, संगीत वाद्ययंत्र, निर्माण सामग्री, आदि उपयोगिताएँ और सोरायी  और बोटा  जैसे प्रतीकात्मक लेख, घंटी धातु और पीतल से बने प्रदान हर असमिया घर में पाए जाते है|सर्थेबरी पारंपरिक घंटी धातु और पीतल के शिल्प का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्रों में हैं। असम में रेशम के कई प्रकार बनाये जाते  है, सबसे प्रतिष्ठित हैं: मूगा - प्राकृतिक सुनहरे रेशम, पैट - एक मलाईदार उज्ज्वल चांदी के रंग का रेशम और इरी - एक सर्दियों के लिए गर्म कपड़े के विनिर्माण के लिए इस्तेमाल किया किस्म। सुआल्कुची पारंपरिक रेशम उद्योग के लिए केंद्र है |इस के अलावा ब्रह्मपुत्र घाटी के लगभग हर हिस्से के ग्रामीण परिवार में उत्कृष्ट कढ़ाई डिजाइन के साथ रेशम और रेशम के वस्त्र उत्पादन होता हैं। असम में विभिन्न सांस्कृतिक समूह अद्वितीय कढ़ाई डिजाइन और अद्भुत रंग संयोजन के साथ सूती वस्त्रों के विभिन्न प्रकार बनाते हैं।यहाँ खिलौना और मुखौटा आदि बनाने काम करते है | ज्यादातर वैष्णव मठों में मिट्टी के बर्तनों और निचले असम जिलों में काष्ठ शिल्प, लौह शिल्प, गहने, मिट्टी के काम आदि का अद्वितीय शिल्प लोगों के पास है।
                                 मायोंग गाँव
    यह गाँव गुवाहाटी से ४० किलोमीटर की  दूरी पर स्थित है|इस गांव के साथ कई किंवदंतियां और कथाएं जुड़ी हैं। इस गांव को यह नाम कैसे मिला, इसके बारे में ही कई कहानियां सुनी जा सकती हैं। कुछ लोग मानते हैं कि मणिपुर के माईबोंग समुदाय के लोग यहां आकर बस गए थे और इसीलिए इसे मायोंग पुकारा जाने लगा। अन्यों का दावा है कि इस नाम का उद्भव मा-एर-ओंगोशब्दे यानी मां के एक हिस्सेसे हुआ है।मायोंग एक पहाड़ी व जंगली इलाका है| यहां बड़ी संख्या में हाथी पाए जाते हैं। मणिपुरी भाषा में हाथी को मियोंग कहते हैं। कुछ लोगों का विश्वास है कि गांव का नाम इसी शब्द से बना है। इसके नाम को लेकर अन्य कई मान्यताएं तथा विश्वास भी प्रचलित हैं। ऐसा लगता है कि इस गांव के नाम सहित इससे जुड़ी हर चीज कहानियों के रहस्य में डूबी हुई है।

    इस स्थान के पारम्परिक महत्त्व का पता इसी तथ्य से लगता है कि इसे देश की जादू-टोने की राजधानी माना जाता है। इस गांव की यात्रा कुछ ऐसे दुर्लभ तरीकों को देखने का अवसर दे सकती है जो आधुनिक जगत को अप्राकृतिक लग सकते हैं परंतु ये किसी को भी हिला देने में सक्षम हैं। गांव में एक अनूठा उत्सव मायोंग-पोबित्र भी आयोजित किया जाता है जिसे जादू तथा वन्य जीवन के संगम के रूप में मनाया जाता है। यहां रहने वालों को नहीं पता है कि यह स्थान जादू-टोने के लिए इतना लोकप्रिय हो गया अथवा यहां जादू-टोने का अभ्यास करने वाला पहला व्यक्ति कौन था? फिर भी अन्य विधाओं की ही तरह इस गांव में जादू-टोने की कलाएक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को मिलती रही है।खास बात है कि अनेक प्राचीन पांडुलिपियों में भी इस स्थान को काले जादू-टोने की धरती के रूप में बताया गया है। यहां ऐसी कई प्राचीन व दुर्लभ पांडुलिपियां भी हैं जिनमें ऐसे मंत्र है जो किसी भी व्यक्ति को अजेय बना सकते हैं परंतु आज तक इन मंत्रों को कोई समझ नहीं सका है। काले जादू का अभ्यास करने वालों को यहां बेज या ओझा कहते हैं। ये लोग बीमारियों को ठीक करने के लिए भी काले जादू  का प्रयोग करते हैं, क्योकि माना जाता है कि इन्हें आयुर्वेद का भी गहन ज्ञान होता है। पीठ के दर्द को जादू से खींच लेते है। यदि दर्द ज्यादा गम्भीर हो तो मंत्रो द्वारा ताम्बे की थाली पीठ पर चिपका दी  जाती है जो  मन्त्रों से चिपक जाती है | थाली बेहद गर्म होकर जमीन पर गिर जाती है।हाथ देख कर भविष्य बताना से लेकर उपचार तक किया जाता है|माना जाता है  कि ये लोग कुछ भी कर सकते हैं। कहते हैं कि पहले दूर-दूर से लोग यहां काला जादू सीखने आते थे। आज भी गांव में 100 जादूगरों का समुदाय है परंतु उनमें ज्यादातर गुजारे के लिए खेतों में काम करने को मजबूर हैं।अफसोस की बात है कि सदियों से जादूगिरी के लिए प्रसिद्ध रहे इस गांव को वह आकर्षण नहीं मिल सका जो मिलना चाहिए था। वित्त तथा अवसरों की कमी की वजह से इस गांव में जादूगिरी की कला पहले वाली लोकप्रियता खो रही है| यदि ध्यान न दिया गया तो वह दिन भी दूर नहीं जब यह स्थान वह कला खो दे जो इसे खास बनाती है।गांव में जादूगिरी को समर्पित एक म्यूजियम है। यहां काले जादू से संबंधित कई दुर्लभ व प्राचीन पांडुलिपियां प्रदर्शित हैं। गांव के साथ लगते पोबित्र वन्य जीव उद्यान में भारतीय गैंडों की सर्वाधिक सघन संख्या है जो इस गांव का एक अन्य आकर्षण है।
    भारत का  मायोंग  गांव जिसे आज भी काले जादू का गढ़ माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहां के लोग काले जादू से पुतले में सुई चुभोकर किसी भी इंसान को तकलीफ पहुंचा सकते हैं। शायद यही कारण है कि काले जादू का नाम आते ही किसी भी शख्स के दिमाग में सबसे पहले नींबू, मिर्च, सुई और पुतले का ही खौफ दिमाग में घरकर जाता है।यहां के घर में आज भी काला जादू किया जाता है। दरअसल मायोंग संस्कृत​ शब्द माया से बना हुआ है। जयसंहिता यानि महाभारत में भी मायोंग का वर्णन किया गया है। माना जाता है कि भीम का मायावी पुत्र घटोत्कच मायोंग का ही राजा था।बात 1332 की है जब असम पर मुगल बादशाह मोहम्मद शाह ने करीब एक लाख घुड़सवारों के साथ आक्रमण किया था उस दौरान यहां हजारों की संख्या में मौजूद तांत्रिकों ने मायोंग को बचाने के लिए एक मायावी दीवार खड़ी कर दी थी। जैसे ही मुगल सैनिक इस को  दीवार पार करते सैनिक गायब हो जाते थे।
    अधिकांश लोग या तो अपनी बीमारियां दूर करवाने आते हैं या फिर किसी पर काला जादू करवाने के लिए आते हैं। आपको बतादें कि मायोंग में भी एक बूढ़े मायोंग नाम की एक जगह है जिसे लोग काले जादू का केंद्र मानते हैं। पहले यहां नरबलि दी जाती थी। यहां एक योनिकुंड है जिस पर आज भी मंत्र शक्ति लिखा हुआ है। इसी मंत्र शक्ति के कारण इस कुंड में हमेशा पानी भरा रहता है।ऐसी मान्यता है कि बूढ़े मायोंग के लोग काले जादू में इतने सिद्धहस्त हैं कि अपने जादू से इंसान को गायब कर देते हैं या फिर उसे जानवर बना देते हैं। यहां के लोग आज भी सम्मोहन विद्या से जंगली जानवरों तक को पालतू बना देते हैं।
बेसन, उडद के आटे आदि से गुड़िया बनाकर और जिस पर जादू करना होता है इस गुड़िया को जाग्रत किया जाता है। यह एक ऐसी दुलर्भ प्रक्रिया है जिसमें कुछ लोग ही सिद्धहस्त हैं।धर्म और तांत्रिक विशेषज्ञों का कहना है कि जादू का लक्ष्य किसी भी इंसान को तकलीफ पहुंचाना नहीं होता है। ये काला जादू का शब्द भी गलत है। दरअसल तंत्र की ये एक ऐसी विधा है जिसे भगवान भालेनाथ ने अपने भक्तों को दिया था। प्राचीन काल में विशेष मंत्रों से सिद्धहस्त व्यक्ति पुतले के अंग विशेष में सुई चुभोकर रोगी के रोग को दूर करता था। पुतले में सुई चुभोकर रोगी को एक विशेष सकारात्मक ऊर्जा प्रदान की जाती थी। बाद में इसी विधि ने वैज्ञानिक तरीके से रेकी और एक्यूप्रेशर का रूप ले लिया।

    प्राचीन काल में काल जादू से लोगों को वश में करके गुलाम बनाया जाता था|  इंद्रजाल के लिए मंत्र तंत्र, सम्मोहन , वशीकरण और उच्चारण का प्रयोग किया जाता है | इंद्र जाल के मुख्य प्रयोग लोगों को मंत्र मुग्ध करने भ्रमित कर देना है| इंद्र जाल करने वाला जो चाहता है वह उसी के अनुरूप द्रश्य पैदा कर देता है| इंद्रजाल का ज्ञाता अपनी मंत्र माया के प्रयोग से एक अलग ही संसार खड़ा कर देता है| इसमें जादूगर दर्शकों में मन और कल्पना को एक विशिष्ट द्रश्य पर केन्द्रित कर देता है| जब दर्शकों का ध्यान केन्द्रित हो जाता है तब जादूगर विशिष्ट ध्वनि और चेष्टा करता है, इससे दर्शकों को लगता है कि ये घटना उनके सम्मुख हो रही है| इंद्रजाल जादू के पीछे मुख्य बात ये है कि हर वो चीज़ जो जिससे आखें, बुद्धि और चेतना भ्रमित हो वह इंद्रजाल से किया जा सकता है| इंद्रजाल के बारे में विश्वसार, डारमंत्र और रावण संहिता में विशेष उल्लेख मिलता है|
इंद्रजाल के नाम से एक जडी-बुटी भी बहुत प्रचलित है| ये जड़ी समुद्र या पहाड़ी क्षेत्रों से प्राप्त की जा सकती है|ये जड़ी तांत्रिक प्रयोगों में काफी असरदार होती है|ये जड़ी तंत्र-मंत्र जादू टोन आदि से सम्बंधित कुप्रभावों से आपको बचाती है. इंद्रजाल जड़ी एक समुद्री पौधा है| ये मकड़ी के जाले के सामान दिखती है| इंद्रजाल का उपयोग लोगों को जादू दिखाने के लिए किया जाता है |इसका उपयोग शत्रु पर विजय पाने के लिए भी किया जाता है | चाणक्य के अनुयायी कामनदक ने भी इंद्रजाल के उपयोग को उचित ठहराया है |

    असम के जतिंगा गांव में सितंबर से अक्टूबर के महीने में रात के समय पक्षियों का एक बड़ा समूह  काफी तेजी से जंगल की और से उड़ता हुआ आता है और इमारतों और पेड़ों से टकरा कर आत्महत्या कर लेता है|पक्षियों द्वारा सामूहिक आत्महत्या एक रहस्य का विषय है | आसाम का काला जादू और तंत्र सिद्धि से कठिन से कठिन समस्या का समाधान किया जा सकता है| इसके प्रयोग से मुश्किल से मुश्किल परिस्थियों पर विजय पायी जा सकती है| ये जादू विद्या, प्रेम विवाह, गृह क्लेश, धन की रूकावट, व्यापार में हानि, नौकरी न मिलना, प्रमोशन में अड़चन, दुश्मन या सौतन से छुटकारा, अदालत में मामले, संतान की समस्या आदि में काफी असरदार होता है|

    अपराजिता एक लता जातीय बूटी है जो जो की वन उपवनो में विभिन्न वृक्षों या तारों के सहारे उर्ध्वगामी होकर सदा हरी भरी रहती है |यह समस्त भारत में पाई जाती है ,इसकी विशेष उपयोगिता बंगाल में दुर्गा देवी तथा काली देवी की पूजा के अवसर पर स्पष्ट दर्शित होती है |नवरात्रादी के विशिष्ट अवसर पर नौ वृक्षों की टहनियों की पूजा में एक अपराजिता भी होती है | यहाँ के कुछ अघोरी लोग तो इतने शक्तिशाली हैं कि वह पूरा साल गायब होकर ही साधना करते रहते हैं| यहाँ के गाँव के लोग अपने बच्चों को बचपन से ही काला जादू सिखाते हैं| जब शिव भगवान सती का शव लेकर जा रहे थे, तब उनकी योनीइस स्थान पर गिरी थी. यह मंदिर काले जादू और टोटकों के लिए काफी मशहूर है| मंदिर के आसपास के जंगलों में कई संत तंत्र साधना ही करते रहते हैं| इस मंदिर के अंदर भी एक प्राकृतिक गुफ़ा है जहां पानी का झरना भी है| बोला जाता है कि यह पानी भी कम शक्तिशाली नहीं है|  सबसे अधिक हैरान करने वाली बात यह है कि काले जादू के नाम पर असम में हर साल हजारों उल्लूओं की बलि दे दी जाती है| यहाँ के काला  जादू की सनसनीखेज बात यह है कि यहाँ का काला जादू 100 प्रतिशत सही सिद्ध हो रहा है| यहाँ के लोग काले जादू के लिए आत्माओं का भी प्रयोग करते हैं| इस तरह से आज आप जान गये हैं कि असम जादू-टोने का देश क्यों बोला जाता है  और आज भी यहाँ लोग जाने से क्यों डरते हैं| वैसे अगर आप कभी असम घूमने जायें तो सावधानी जरूर बरतें|

    विशेषज्ञ के अनुसार, काला जादू बहुत ही दुर्लभ प्रक्रिया है, जिसका उपयोग कर के किसी भी परिस्थिति को अंजाम दे सकते है, चाहे वो कितनी भी शक्तिशाली क्यों ना हो| काला जादू करने के लिए एक गुड़िया उपयोग में ली जाती है, वो किसी भी खाद्य प्रदार्थ से बनी होती है| विशेषज्ञ के द्वारा इसमे विशेष मंत्र से जान डाली जाती है| उसके बाद जिस किसी पे भी काला जादू करना है उसका नाम लिख के गुड़िया को जाग्रत किया जाता है।

वुडू का रहस्य

ऐसा माना जाता है की, 1847 में एरजुली डेंटर नाम की वुडू देवी ने एक पेड़ पर अवतार लिया था, उसे सभी सुंदरता और प्यार की देवी के नाम से जानते थे, वुडू देवी ने कई लोगो को परेशानियों और बीमारियों से मुक्त कराया| इस तरह वह प्रसिद्ध हो गयी| लेकिन, एक पादरी को यह सब पसन्द नही आया उसने ईर्ष्या द्वेष में पेड़ के तने को कटाव दिया। इसके बाद वहा लोगो ने एक वुडू देवी की मूर्ति बनाई और पूजा करने लगे.
    काले-जादू को अलग अलग धर्मों में अलग अलग नाम से जाना गया। आज भी ऐसे सैकड़ों बौध भिक्षु हैं, जिनके पास कुछ अद्भुत शक्तियां मौजूद हैं। कुछ बरस पहले थाईलैंड के एक बौद्ध भिक्षु का चमत्कार पूरी दुनिया के लिए अजूबा बन गया था। ध्यान में डूबे ये बौद्ध भिक्षु बिना किसी सहारे जमीन से करीब एक फीट ऊपर उठ गया था। लेकिन सवाल ये है कि क्या वाकई काला-जादू होता है?.क्या वाकई हिन्दुस्तान के उस रहस्यमयी गांव में ऐसी कोई शक्तियां आज भी मौजूद हैं?

    आसाम को ही पुराने समय में कामरूप प्रदेश के रूप में जाना जाता था। कामरुप प्रदेश को तन्त्र साधना के गढ़ के रुप में दुनियाभर में बहुत नाम रहा है। पुराने समय में इस प्रदेश में मातृ सत्तात्मक समाज व्यवस्था प्रचलित थी, यानि कि यंहा बसने वाले परिवारों में महिला ही घर की मुखिया होती थी। कामरुप की स्त्रियाँ तन्त्र साधना में बड़ी ही प्रवीण होती थीं। बाबा आदिनाथ, जिन्हें कुछ विद्वान भगवान शंकर मानते हैं, के शिष्य बाबा मत्स्येन्द्रनाथ जी भ्रमण करते हुए कामरुप गये थे। बाबा मत्स्येन्द्रनाथ जी कामरुप की रानी के अतिथि के रुप में महल में ठहरे थे। बाबा मत्स्येन्द्रनाथ, रानी जो स्वयं भी तंत्रसिद्ध थीं, के साथ लता साधना में इतना तल्लीन हो गये थे कि वापस लौटने की बात ही भूल बैठे थे। बाबा मत्स्येन्द्रनाथ जी को वापस लौटा ले जाने के लिये उनके शिष्य बाबा गोरखनाथ जी को कामरुप की यात्रा करनी पड़ी थी। 'जाग मछेन्दर गोरख आया' उक्ति इसी घटना के विषय में बाबा गोरखनाथ जी द्वारा कही गई थी। कामरुप में श्मशान साधना व्यापक रुप से प्रचलित रहा है। इस प्रदेश के विषय में अनेक आश्चर्यजनक कथाएँ प्रचलित हैं। पुरानी पुस्तकों में यहां के काले जादू के विषय में बड़ी ही अद्भुत बातें पढऩे को मिलती हैं। कहा जाता है कि बाहर से आये युवाओं को यहाँ की महिलाओं द्वारा भेड़, बकरी बनाकर रख लिया जाता था। आसाम यानि कि कामरूप प्रदेश की तरह ही बंगाल राज्य को भी तांत्रिक साधनाओं और चमत्कारों का गढ़ माना जाता रहा है। बंगाल में आज भी शक्ति की साधना और वाममार्गी तांत्रिक साधनाओं का प्रचलन है। बंगाल में श्मशान साधना का प्रसिद्ध स्थल क्षेपा बाबा की साधना स्थली तारापीठ का महाश्मशान रहा है। आज भी अनेक साधक श्मशान साधना के लिये कुछ निश्चित तिथियों में तारापीठ के महाश्मशान में जाया करते हैं। महर्षि वशिष्ठ से लेकर बामाक्षेपा तक अघोराचार्यों की एक लम्बी धारा यहाँ तारापीठ में बहती आ रही है। आपने 64 कलाएं और अष्ट सिद्धि के बारे में सुना होगा। इससे कुछ अलग प्राचीन काल से ही भारत में ऐसी कई विद्याएं प्रचलन में रही जिसे आधुनिक युग में अंधविश्वास या काला जादू मानकर खारिज कर दिया गया, लेकिन अब उन्हीं विद्याओं पर जब पश्‍चिमी वैज्ञानिकों ने शोध किया तब पता चला कि कुछ-कुछ इसमें सच्चाई है।

प्लेनचिट : आजकल इस विद्या को प्लेनचिट कहा जाता है। यह आत्माओं को बुलाने का विज्ञान है। प्राचीन काल से ही यह कार्य किया जाता रहा है। कुछ आत्माएं जिन्हें शांति प्राप्त नहीं हुई है, वे प्लेनचिट के माध्यम से आपको भूत, भविष्य एवं वर्तमान तीनों कालों की जानकारी दे सकती हैं। आप उनसे अपनी परेशानी का हल प्राप्त कर सकते हैं। हालांकि इसमें खतरे बहुत है। कहते हैं कि उनसे परीक्षा के प्रश्न पत्र की जानकारी ली जा सकती है। उनसे आप अपना भविष्य या किसी गढ़े धन के बारे में पूछ सकते हो। इसके अलावा आप उन्हें अपने जीवन की परेशानी बताकर उसका हल भी जान सकते हैं।

प्लेनचिट कैसे बनाएं: प्लेनचिट मुख्यतः दो तरह के होते हैं। पहले तरीके के प्लेनचिट पर एक तरफ अंग्रेजी या हिन्दी के अक्क्षर लिख लें और दूसरी तरफ अंक लिख लें। ऊपर हां और नीचे ना लिख दें। बीच में एक गोला बनाएं और उस पर एक कटोरी को उल्टा रख लें। फिर कमरे के किसी कोने में अगरबत्ती जला लें। फिर तीन या पांच लोग मिलकर उस कटोरी पर अपनी अंगुली रखकर किसी आत्मा का आह्‍वान करें। जब आत्मा आ जाती है यह कटोरी अपने आप ही चलने लगती है। जो भी पूछा जाता है कटोरी धीरे धीरे चलकर अंक या अक्षरों पर पहुंचकर जबाब देती है। जैसे उससे उसका नाम पूछा गया तो वह कटोरी चलकर अंग्रेजी या हिन्दी में लिखे अक्षरों को ढांकती जाएगी। जैसे रावण है तो पहले वह R पर, फिर A पर फिर V पर फिर A पर और अंत में N पर जाएगी।

 सम्मोहन विद्या : प्राचीनकालीन से प्राण विद्या का एक हिस्सा है। सम्मोहन को अंग्रेजी में हिप्नोटिज्म कहते हैं। इस प्राचीन विद्या का एक ओर जहां दुरुपयोग हुआ और हो रहा है, वहीं इस विद्या के माध्यम से लोगों का भला ‍भी किया जा रहा है। भला करने वालों का अपना स्वार्थ भी उसमें शामिल है। सम्मोहन के बारे में हर कोई जानना चाहता है, लेकिन सही जानकारी के अभाव में वह इसे समझ नहीं पाता हैसवाल यह उठता है कि क्या सम्मोहन विद्या से किसी भी प्रकार का रोग दूर हो सकता है? क्या सम्मोहन से किसी भी प्रकार की शक्ति और सिद्धि प्राप्त की जा सकती है और क्या इसके माध्यम से दूसरों को अपने इशारे पर नचाया जा सकता है? सवाल और भी हो सकते हैं लेकिन आखिर सम्मोहन विद्या का सत्य क्या है और क्या है इसका रहस्य? सम्मोहन विद्या भारतवर्ष की प्राचीनतम और सर्वश्रेष्ठ विद्या है। सम्मोहन विद्या को ही प्राचीन समय से 'प्राण विद्या' या 'त्रिकालविद्या' के नाम से पुकारा जाता रहा है। कुछ लोग इसे मोहिनी और वशीकरण विद्या भी कहते हैं। हिप्नोटिज्म मेस्मेरिज्म का ही सुधरा रूप है। यूनानी भाषा हिप्नॉज से बना है हिप्नोटिज्म जिसका अर्थ होता है निद्रा। 'सम्मोहन' शब्द 'हिप्नोटिज्म' से कहीं ज्यादा व्यापक और सूक्ष्म है। पहले इस विद्या का इस्तेमाल भारतीय साधु-संत सिद्धियां और मोक्ष प्राप्त करने के लिए करते थे। जब यह विद्या गलत लोगों के हाथ लगी तो उन्होंने इसके माध्यम से काला जादू और लोगों को वश में करने का रास्ता अपनाया। मध्यकाल में इस विद्या का भयानक रूप देखने को मिला। फिर यह विद्या खो-सी गई थी। आधुनिक युग में भारत की सम्मोहन विद्या पर पश्चिमी जगत ने 18वीं शताब्दी में ध्यान दिया। भारत की इस रहस्यमय विद्या को अर्ध-विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित कराने का श्रेय सर्वप्रथम ऑस्ट्रियावासी फ्रांस मेस्मर को जाता है। बाद में 19वीं शताब्दी में डॉ. जेम्स ब्रेड ने मेस्मेर के प्रयोगों में सुधार किया और इसे एक नया नाम दिया 'हिप्नोटिज्म'।इस विद्या का उपयोग ईसाई मिशनरियों ने ईसाई धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए किया और वे आज भी कर रहे हैं। वे लोगों को बार-बार सुझाव-निर्देश देकर यह विश्वास कराने में कामयाब रहते हैं कि ईसाई धर्म ही सर्वश्रेष्ठ धर्म है। वे इसके माध्यम से गरीब मुल्कों के गरीबों में उनका इलाज कर इसे यीशु के चमत्कार से जोड़कर करते हैं। वे चंगाई सभा करके इस विद्या के माध्यम से लोगों को सम्मोहित करते हैं।

मेस्मेरिज्म क्या है : पाश्चात्य डॉक्टर फ्रेडरिक एंटन मेस्मर ने 'एनिमल मेग्नेटिज्म' का सिद्धांत प्रतिपादित करते हुए अनेक व्यक्तियों को रोगों से मुक्त किया था। उनके प्रयोगों को मेस्मेरिज्म कहा जाता है। मेस्मेरिज्म के प्रयोगों पर जांच बैठाई गई और बाद में इसे खतरनाक मानते हुए इसे प्रतिबंधित कर दिया गया। 1841 में मेस्मेरिज्म के प्रयोगों में सुधार करने और उसमें निहित वैज्ञानिक तथ्यों को उद्घाटित करने और उसे हिप्नोटिज्म के रूप में परिवर्तत करने का श्रेय डॉक्टर जेम्स ब्रेड को जाता है। चेतन मन और अचेतन मन : हमारे मन की मुख्यतः दो अवस्थाएं (कई स्तर) होती हैं- 1. चेतन मन और 2. अवचेतन मन (आदिम आत्मचेतन मन): सम्मोहन के दौरान अवचेतन मन को जाग्रत किया जाता है। ऐसी अवस्था में व्यक्ति की शक्ति बढ़ जाती है लेकिन उसका उसे आभास नहीं होता, क्योंकि उस वक्त वह सम्मोहनकर्ता के निर्देशों का ही पालन कर रहा होता है।

1. 
चेतन मन : इसे जाग्रत मन भी मान सकते हैं। चेतन मन में रहकर ही हम दैनिक कार्यों को निपटाते हैं अर्थात खुली आंखों से हम कार्य करते हैं। विज्ञान के अनुसार मस्तिष्क का वह भाग जिसमें होने वाली क्रियाओं की जानकारी हमें होती है। यह वस्तुनिष्ठ एवं तर्क पर आधारित होता है।
2. 
अवचेतन मन : जो मन सपने देख रहा है वह अवचेतन मन है। इसे अर्धचेतन मन भी कहते हैं। गहरी सुसुप्ति अवस्था में भी यह मन जाग्रत रहता है। विज्ञान के अनुसार जाग्रत मस्तिष्क के परे मस्तिष्क का हिस्सा अवचेतन मन होता है। हमें इसकी जानकारी नहीं होती। अवचेतन मन की शक्ति : हमारा अवचेतन मन चेतन मन की अपेक्षा अधिक याद रखता है एवं सुझावों को ग्रहण करता है। आदिम आत्मचेतन मन न तो विचार करता है और न ही निर्णय लेता है। उक्त मन का संबंध हमारे सूक्ष्म शरीर से होता है। यह मन हमें आने वाले खतरे या उक्त खतरों से बचने के तरीके बताता है। इसे आप छठी इंद्री भी कह सकते हैं। यह मन लगातार हमारी रक्षा करता रहता है। हमें होने वाली बीमारी की यह मन 6 माह पूर्व ही सूचना दे देता है और यदि हम बीमार हैं तो यह हमें स्वस्थ रखने का प्रयास भी करता है। बौद्धिकता और अहंकार के चलते हम उक्त मन की सुनी-अनसुनी कर देते हैं। उक्त मन को साधना ही सम्मोहन है।
अवचेतन को साधने का असर : सम्मोहन द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है। इससे विचारों का संप्रेषण (टेलीपैथिक), दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, अदृश्य वस्तु या आत्मा को देखना और दूरस्थ दृश्यों को जाना जा सकता है। इसके सधने से व्यक्ति को बीमारी या रोग के होने का पूर्वाभास हो जाता है।
म्मोहन के प्रकार : वैसे सम्मोहन के कई प्रकार हैं, लेकिन मुख्‍यत: 5 प्रकार माने गए हैं- 1. आत्म सम्मोहन, 2. पर सम्मोहन, 3. समूह सम्मोहन, 4. प्राणी सम्मोहन और 5. परामनोविज्ञान सम्मोहन। 1. आत्म सम्मोहन : वास्तव में सभी प्रकार के सम्मोहनों का मूल आत्म सम्मोहन ही है। इसमें व्यक्ति खुद को सुझाव या निर्देश देकर तन और मन में मनोवांछित प्रभाव डालता है।

2. 
पर सम्मोहन : पर सम्मोहन का अर्थ है दूसरे को सम्मोहित करना। इसमें सम्मोहनकर्ता दूसरे व्यक्ति को सम्मोहित कर उसके मनोविकारों को दूर कर उसके व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक निर्देश दे सकता है या उसके माध्यम से लोगों को चमत्कार भी दिखा सकता है। 3. समूह सम्मोहन : किसी भीड़ या समूह को सम्मोहित करना ही समूह सम्मोहन है। माना जाता है कि यह सम्मोहन करना आसान है, क्योंकि व्यक्ति एक-दूसरे का अनुसरण करने में माहिर है। इसमें सम्मोहनकर्ता पूरी सभा या किसी निश्‍चित समूह को एक साथ सम्मोहित करने की क्षमता रखता है।
4. 
प्राणी सम्मोहन : पशु और पक्षियों को सम्मोहित करना ही प्राणी सम्मोहन कहलाता है। अक्सर सर्कस में रिंगमास्टर प्राणी सम्मोहन करते हैं। इसके लिए वे तीव्र विद्युत प्रकाश, बहुत शोर-शराबे, मनुष्यों की भीड़, चोट पहुंचाकर, मृत्यु होने आदि के भयों की कृत्रिम रचना करके किसी भी प्राणी या पशु-पक्षी की आंखों में आंखें डालकर देखते हैं तो वह सम्मोहित हो जाता है, हालांकि यह थोड़ा मुश्किल जरूर है।
5. 
परामनोविज्ञान सम्मोहन : परामनोविज्ञान का विषय बहुत ही विस्तृत है लेकिन इसकी शुरुआत सम्मोहन से ही होती है। इसके अंतर्गत किसी दूर बैठे व्यक्ति या समूह को सम्मोहित करना, अपने पूर्व जन्म के बारे में जानकारी पाना, सम्मोहित अवस्था में किसी की खोई हुई वस्तु का पता लगाना, आत्माओं से संपर्क करना, भूत, भविष्य और वर्तमान में घटने वाली घटनाओं को जान लेना आदि कार्य शामिल हैं।इसमें व्यक्ति सम्मोहन की इतनी गहरी अवस्था में जाकर पूर्णत: ईथर माध्यम से जुड़ जाता है। यह अवस्था किसी योगी या सिद्धपुरुष से कम नहीं होती।
सुझाव या निर्देश का प्रभाव : व्यक्ति को सम्मोहित करने के लिए उसकी पांचों इंद्रियों के माध्यम से उसे जो सुझाव प्रभाव, वस्तु, आवाज, सुगंधी, खाने वाली वस्तु के स्वाद, स्पर्श, आदि द्वारा दिया जा सकता है, वह देते हैं। सुझावों द्वारा व्यक्ति सम्मोहित हो जाता है। एक कहावत है- 'करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात है सिल पर पड़त निशान' अर्थात बार-बार प्रयास करने से बुद्धिहीन मस्तिष्क भी काम करने लगता है। सम्मोहन व्यक्ति के मन की वह अवस्था है जिसमें उसका चेतन मन धीरे-धीरे निद्रा की अवस्था में चला जाता है और अर्धचेतन मन सम्मोहन की प्रक्रिया द्वारा निर्धारित कर दिया जाता है। साधारण नींद और सम्मोहन की नींद में अंतर होता है। साधारण नींद में हमारा चेतन मन अपने आप सो जाता है तथा अर्धचेतन मन जागृत हो जाता है। सम्मोहन निद्रा में सम्मोहनकर्ता चेतन मन को सुलाकर अवचेतन को आगे लाता है और उसे सुझाव के अनुसार कार्य करने के लिए तैयार करता है। हर व्यक्ति का जीवन उसके या किसी और व्यक्ति के सुझावों पर चलता है। व्यक्ति को सम्मोहित करने के लिए उसकी पांचों इंद्रियों के माध्यम से जो प्रभाव उसके मन पर डाला जाता है उसे ही यहां सुझाव कहते हैं। दुनिया का प्रत्येक धर्म व्यक्ति को बचपन से ही बार-बार दिए जाने वाले सुझाव और निर्देश द्वारा ही नियमों का पालन करने के लिए मजबूर करता है। धर्म इसके लिए ईश्वर का भय और लालच का सहारा लेता है।
सम्मोहन सीखने के पूर्व : सम्मोहन करने से पूर्व सम्मोहन सीखना होगा। सम्मोहन सीखने के लिए आत्म सम्मोहन को करना होगा। आत्म सम्मोहन को करने के लिए अवचेतन मन को समझना होगा और इसे शक्तिशाली बनाना होगा। चेतन मन से अवचेतन मन में जाकर उस मन में चेतना को जाग्रत रखना ही आत्म सम्मोहन है। जैसे कभी-कभी सपनों में आपको इस बात का भान हो जाता है कि सपने चल रहे हैं। इसका मतलब यह है कि आप चेतन और अवचेतन मन के बीच अचेतन मन में हैं। इसे अर्धचेतन मन भी कह सकते हैं।
कैसे साधें इस मन को :
पहला तरीका : वैसे इस मन को साधने के बहुत से तरीके या विधियां हैं, लेकिन सीधा रास्ता है कि प्राणायाम से सीधे प्रत्याहार और प्रत्याहार से धारणा को साधें। जब आपका मन स्थिर चित्त हो, एक ही दिशा में गमन करे और इसका अभ्यास गहराने लगे तब आप अपनी इंद्रियों में ऐसी शक्ति का अनुभव करने लगेंगे जिसको आम इंसान अनुभव नहीं कर सकता। इसको साधने के लिए त्राटक भी कर सकते हैं। त्राटक भी कई प्रकार से किया जाता है। ध्यान, प्राणायाम और नेत्र त्राटक द्वारा आत्म सम्मोहन की शक्ति को जगाया जा सकता है।
दूसरा तरीका : शवासन में लेट जाएं और आंखें बंद कर ध्यान करें। लगातार इसका अभ्यास करें और योग निद्रा में जाने का प्रयास करें। योग निद्रा अर्थात शरीर और चेतन मन इस अवस्था में सो जाता है लेकिन अवचेतन मन जाग्रत रहता है। समझाने के लिए कहना होगा कि शरीर और मन सो जाता है लेकिन आप जागे रहते हैं। यह जाग्रत अवस्था जब गहराने लगती है तो आप ईथर माध्‍यम से जुड़ जाते हैं और फिर खुद को निर्देश देकर कुछ भी करने की क्षमता रखते हैं।
अन्य तरीके : कुछ लोग अंगूठे को आंखों की सीध में रखकर, तो कुछ लोग स्पाइरल (सम्मोहन चक्र), कुछ लोग घड़ी के पेंडुलम को हिलाते हुए, कुछ लोग लाल बल्ब को एकटक देखते हुए और कुछ लोग मोमबत्ती को एकटक देखते हुए भी उक्त साधना को करते हैं, लेकिन यह कितना सही है यह हम नहीं जानते।
सम्मोहन से नुकसान : आत्म सम्मोहन : आत्म सम्मोहन या किसी सम्मोहनकर्ता से सम्मोहित होने के खतरे और नुकसान भी हैं। सम्मोहन का चेतन मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। चेतन मन तो अवचेतन मन का गुलाम होता है। अवचेतन मन जो सुझाव-निर्देश देता है चेतन मन उसे ही सत्य मानता है, भले ही तार्किक रूप से वह गलत हो इसलिए आत्म सम्मोहन से पहले सकारात्मक विचारों की शिक्षा लेना जरूरी है या सकारात्मक भावों और विचारों को जगाने वाली किताबें पढ़ना चाहिए और उनके दिशा-निर्देशों का पालन करना चाहिए।
दूसरे से सम्मोहित होना : यदि व्यक्ति किसी प्रशिक्षित सम्मोहनकर्ता के बजाय अनाड़ी सम्मोहनकर्ता से सम्मोहित होता है तो इसकी कोई गारंटी नहीं कि वह क्या सुझाव या निर्देश देगा। सम्मोहन की मनोवैज्ञानिक जानकारी नहीं रखने वाला सम्मोहनकर्ता सम्मोहित व्यक्ति को ऐसे सुझाव दे सकता है, जो बाद में उसके लिए हानिकारक सिद्ध सकते हैं।
एक प्रशिक्षित सम्मोहनकर्ता सम्मोहित व्यक्ति की समस्याओं को हल करने और उसके व्यक्तित्व का उचित विकास करने का प्रयास करता है। वह एक-एक शब्द और वाक्य का उपयोग सम्मोहित व्यक्ति के मनोवैज्ञानिक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए सावधानीपूर्वक करता है। एक युवती हिप्नोटिज्म की गहरी अवस्था में सम्मोहनकर्ता के सामने बैठी थी। सम्मोहनकर्ता धीर-गंभीर लहजे में उसे निर्देश दे रहा था। उसने एक पेंसिल के सिरे पर रबर लगाकर कहा कि यह अंगारे की तरह दहक रहा है। यह अंगारे की तरह लाल है। फिर सम्मोहनकर्ता ने उस पेंसिल के साथ जुड़े रबर को युवती की बांह में छुआया। युवती न सिर्फ चिल्ला पड़ी, बल्कि थोड़ी देर बाद वहां छाला भी पड़ गया। सम्मोहन के इस एक प्रयोग से पता चलता है कि 'मन' की ताकत से ही यह संसार और हमारा 'जीव' संचालित होता है। इस एक उदाहरण से ही यह भी पता चलता है कि कल्पना, विचार और भाव कितना महत्वपूर्ण होता है। इन प्रयोगों से निष्कर्ष निकलता है कि मानसिक उत्प्रेरण का परिणाम शारीरिक बदलाव में देखा जा सकता है। सम्मोहन से निम्नलिखित फायदे हो सकते हैं-
1. किसी भी शारीरिक रोग को कुछ हद तक ठीक किया जा सकता है।
2. 
किसी भी मानसिक रोग को बहुत हद तक ठीक किया जा सकता है।
3. 
इसके माध्यम से किसी भी प्रकार का डर या फोबिया दूर किया जा सकता है।
4. 
इससे व्यक्ति का विकास कर सफलता अर्जित की जा सकती है।
5. 
सम्मोहन से दूर बैठे किसी भी व्यक्ति की स्थिति जानी जा सकती है।
6. इसके माध्यम से शरीर से बाहर निकलकर हवा में घूमा जा सकता है।
7. 
इसके माध्यम से भूत, भविष्य और वर्तमान की घटनाओं को जाना जा सकता है।
8. 
इससे अपने पिछले जन्म को जाना जा सकता है।
9. 
इसके माध्यम से किसी की भी जान बचाई जा सकती है।
10. 
इसके माध्यम से लोगों का दु:ख-दर्द दूर किया जा सकता है।
11. 
इसके माध्यम से खुद की बुरी आदतों से छुटकारा पाया जा सकता है।
12. इसके माध्यम से भरपूर आत्मविश्वास और निडरता हासिल की जा सकती है।

सम्मोहन में यही किया जाता है। विशेष सुझाव और निर्देश को बार-बार दोहराया जाता है। इस दोहराव से ही व्यक्ति अपने अवचेतन मन में चला जाता है और फिर वह उन सुझावों को सत्य मानने लगता है।

सम्मोहन विद्या को ही प्राचीन समय से 'प्राण विद्या' या 'त्रिकालविद्या' के नाम से पुकारा जाता रहा है। सम्मोहन का अर्थ आमतौर पर वशीकरण से लगाया जाता है। वशीकरण अर्थात किसी को वश में करने की विद्या, ‍ज‍बकि यह सम्मोहन की प्रतिष्ठा को गिराने वाली बात है।मन के कई स्तर होते हैं। उनमें से एक है आदिम आत्म चेतन मन। आदिम आत्म चेतन मन न तो विचार करता है और न ही निर्णय लेता है। उक्त मन का संबंध हमारे सूक्ष्म शरीर से होता है। यह मन हमें आने वाले खतरे या उक्त खतरों से बचने के तरीके बताता है। यह मन लगातार हमारी रक्षा करता रहता है। हमें होने वाली बीमारी की यह मन छह माह पूर्व ही सूचना दे देता है और यदि हम बीमार हैं तो यह हमें स्वस्थ रखने का प्रयास करता है। बौद्धिकता और अहंकार के चलते हम उक्त मन की सुनी-अनसुनी कर देते है। उक्त मन को साधना ही सम्मोहन है। यह मन आपकी हर तरह की मदद करने के लिए तैयार है, बशर्ते आप इसके प्रति समर्पित हों। यह मन आपकी हर तरह की मदद करने के लिए तैयार है, बशर्ते आप इसके प्रति समर्पित हों। यह किसी के भी अतीत और भविष्य को जानने की क्षमता रखता है। आपके साथ घटने वाली घटनाओं के प्रति आपको सजग कर देगा, जिस कारण आप उक्त घटना को टालने के उपाय खोज लेंगे। आप स्वयं की ही नहीं दूसरों की बीमारी दूर करने की क्षमता भी हासिल कर सकते हैं। सम्मोहन द्वारा मन की एकाग्रता, वाणी का प्रभाव व दृष्टि मात्र से उपासक अपने संकल्प को पूर्ण कर लेता है। इससे विचारों का संप्रेषण (टेलीपैथिक), दूसरे के मनोभावों को ज्ञात करना, अदृश्य वस्तु या आत्मा को देखना और दूरस्थ दृश्यों को जाना जा सकता है।


ज्योतिष : ज्योतिष विद्या के कई अंग है जैसे सामुद्रिक शास्त्र, हस्तरेखा विज्ञान, लाल किताब, अंक शास्त्र, अंगूठा शास्त्र, ताड़ पत्र विज्ञान, नंदी नाड़ी ज्योतिष, पंच पक्षी सिद्धांत, नक्षत्र ज्योतिष, वैदिक ज्योतिष, रमल शास्त्र, पांचा विज्ञान आदि। भारत की इस प्राचीन विद्या के माध्यम से जहां अंतरिक्ष, मौसम और भूगर्भ की जानकारी हासिल की जाती है वहीं इसके माध्यम से व्यक्ति का भूत और भविष्य भी जाना जा सकता है।

ज्योतिष शास्त्र के प्रकार :-

 भारतीय ज्योतिष शास्त्र में अलग-अलग तरीके से भाग्य या भविष्य बताया जाता है। माना जाता है कि भारत में लगभग 150 से ज्यादा ज्योतिष विद्या प्रचलित हैं। प्रत्येक विद्या आपके भविष्य को बताने का दावा करती है। माना यह ‍भी जाता है कि प्रत्येक विद्या भविष्य बताने में सक्षम है, लेकिन उक्त विद्या के जानकार कम ही मिलते हैं, जबकि भटकाने वाले ज्यादा। मन में सवाल यह उठता है कि आखिर किस विद्या से जानें हम अपना भविष्य, प्रस्तुत है कुछ प्रचलित ज्योतिष विद्याओं की जानकारी।

1. कुंडली ज्योतिष :- 
यह कुंडली पर आधारित विद्या है। इसके तीन भाग है- सिद्धांत ज्योतिष, संहिता ज्योतिष और होरा शास्त्र। इस विद्या के अनुसार व्यक्ति के जन्म के समय में आकाश में जो ग्रह, तारा या नक्षत्र जहाँ था उस पर आधारित कुंडली बनाई जाती है। बारह राशियों पर आधारित नौ ग्रह और 27 नक्षत्रों का अध्ययन कर जातक का भविष्य बताया जाता है। उक्त विद्या को बहुत से भागों में विभक्त किया गया है, लेकिन आधुनिक दौर में मुख्यत: चार माने जाते हैं। ये चार निम्न हैं- नवजात ज्योतिष, कतार्चिक ज्योतिष, प्रतिघंटा या प्रश्न कुंडली और विश्व ज्योतिष विद्या।
2. लाल किताब 
की विद्या :- यह मूलत: उत्तरांचल, हिमाचल और कश्मीर क्षेत्र की विद्या है। इसे ज्योतिष के परंपरागत सिद्धांत से हटकर 'व्यावहारिक ज्ञान' माना जाता है। इसे बहुत ही कठिन विद्या माना जाता है। इसके अच्‍छे जानकार बगैर कुंडली को देखे उपाय बताकर समस्या का समाधान कर सकते हैं। उक्त विद्या के सिद्धांत को एकत्र कर सर्वप्रथम इस पर एक ‍पुस्तक प्रकाशित की थी जिसका नाम था 'लाल किताब के फरमान'। मान्यता अनुसार उक्त किताब को उर्दू में लिखा गया था इसलिए इसके बारे में भ्रम उत्पन्न हो गया। 3. गणितीय ज्योतिष :- इस भारतीय विद्या को अंक विद्या भी कहते हैं। इसके अंतर्गत प्रत्येक ग्रह, नक्षत्र, राशि आदि के अंक निर्धारित हैं। फिर जन्म तारीख, वर्ष आदि के जोड़ अनुसार भाग्यशाली अंक और भाग्य निकाला जाता है।
4. नंदी नाड़ी ज्योतिष :- यह मूल रूप से दक्षिण भारत में प्रचलित विद्या है जिसमें ताड़पत्र के द्वारा भविष्य जाना जाता है। इस विद्या के जन्मदाता भगवान शंकर के गण नंदी हैं इसी कारण इसे नंदी नाड़ी ज्योतिष विद्या कहा जाता है।
5. पंच पक्षी सिद्धान्त :- 
यह भी दक्षिण भारत में प्रचलित है। इस ज्योतिष सिद्धान्त के अंतर्गत समय को पाँच भागों में बाँटकर प्रत्येक भाग का नाम एक विशेष पक्षी पर रखा गया है। इस सिद्धांत के अनुसार जब कोई कार्य किया जाता है उस समय जिस पक्षी की स्थिति होती है उसी के अनुरूप उसका फल मिलता है। पंच पक्षी सिद्धान्त के अंतर्गत आने वाले पाँच पंक्षी के नाम हैं गिद्ध, उल्लू, कौआ, मुर्गा और मोर। आपके लग्न, नक्षत्र, जन्म स्थान के आधार पर आपका पक्षी ज्ञात कर आपका भविष्य बताया जाता है।
6. हस्तरेखा ज्योतिष:- हाथों की आड़ी-तिरछी और सीधी रेखाओं के अलावा, हाथों के चक्र, द्वीप, क्रास आदि का अध्ययन कर व्यक्ति का भूत और भविष्य बताया जाता है। यह बहुत ही प्राचीन विद्या है और भारत के सभी राज्यों में प्रचलित है।

7. नक्षत्र ज्योतिष :- 
वैदिक काल में नक्षत्रों पर आधारित ज्योतिष विज्ञान ज्यादा प्रचलित था। जो व्यक्ति जिस नक्षत्र में जन्म लेता था उसके उस नक्षत्र अनुसार उसका भविष्य बताया जाता था। नक्षत्र 27 होते हैं।
8. अँगूठा शास्त्र:- यह विद्या भी दक्षिण भारत में प्रचलित है। इसके अनुसार अँगूठे की छाप लेकर उस पर उभरी रेखाओं का अध्ययन कर बताया जाता है कि जातक का भविष्य कैसा होगा।
9. सामुद्रिक विद्या:- यह विद्या भी भारत की सबसे प्राचीन विद्या है। इसके अंतर्गत व्यक्ति के चेहरे, नाक-नक्श और माथे की रेखा सहित संपूर्ण शरीर की बनावट का अध्ययन कर व्यक्ति के चरित्र और भविष्य को बताया जाता है।
10. चीनी ज्योतिष:- चीनी ज्योतिष में बारह वर्ष को पशुओं के नाम पर नामांकित किया गया है। इसे पशु-नामांकित राशि-चक्रकहते हैं। यही उनकी बारह राशियाँ हैं, जिन्हें 'वर्ष' या 'सम्बन्धित पशु-वर्ष' के नाम से जानते हैं। 
यह वर्ष निम्न हैं- चूहा, बैल, चीता, बिल्ली, ड्रैगन, सर्प, अश्व, बकरी, वानर, मुर्ग, कुत्ता और सुअर। जो व्यक्ति जिस वर्ष में जन्मा उसकी राशि उसी वर्ष अनुसार होती है और उसके चरित्र, गुण और भाग्य का निर्णय भी उसी वर्ष की गणना अनुसार माना जाता है।
11. वैदिक ज्योतिष :- वैदिक ज्योतिष अनुसार राशि चक्र, नवग्रह, जन्म राशि के आधा‍र पर गणना की जाती है। मूलत: नक्षत्रों की गणना और गति को आधार बनाया जाता है। मान्यता अनुसार वेदों का ज्योतिष किसी व्यक्ति के भविष्य कथक के लिए नहीं, खगोलीय गणना तथा काल को विभक्त करने के लिए था।
12. टैरो कार्ड :- टैरो कार्ड में ताश की तरह पत्ते होते हैं। जब भी कोई व्यक्ति अपना भविष्य या भाग्य जानने के लिए टैरो कार्ड के जानकार के पास जाता है तो वह जानकार एक कार्ड निकालकर उसमें लिखा उसका भविष्य बताता है।यह उसी तरह हो सकता है जैसा की पिंजरे के तोते से कार्ड निकलवाकर भविष्य जाना जाता है। यह उस तरह भी है जैसे कि बस स्टॉप या रेलवे स्टेशन पर एक मशीन लगी होती है जिसमें एक रुपए का सिक्का डालो और जान लो भविष्य। किसी मेले या जत्रा में एक कम्प्यूटर होता है जो आपका भविष्य बताता है।उपरोक्त विद्या जुए-सट्टे जैसी है यदि अच्छा कार्ड लग गया तो अच्छी भविष्यवाणी, बुरा लगा तो बुरी और सामान्य लगा तो सामान्य। हालाँकि टैरो एक्सपर्ट मनोविज्ञान को आधार बनाकर व्यक्ति का चरित्र और भविष्य बताते हैं। अब इसमें कितनी सच्चाई होती है यह कहना मुश्किल है। इसके अलावा माया, हेलेनिस्टिक, सेल्टिक, पर्शियन या इस्लामिक, बेबिलोनी आदि अनेक ज्योतिष धारणाएँ हैं। हर देश की अपनी अलग ज्योतिष धारणाएँ हैं और अलग-अलग भविष्यवाणियाँ।

वेदों के छ: अंग है जिन्हें वेदांग कहा गया है। इन छह अंगों में से एक ज्योतिष है। वेदों और महाभारतादि ग्रंथों में नक्षत्र विज्ञान अधिक प्रचलित था। ऋग्वेद में ज्योतिष से संबंधित 30 श्लोक हैं, यजुर्वेद में 44 तथा अथर्ववेद में 162 श्लोक हैं। यूरेनस को एक राशि में आने के लिए 84 वर्ष, नेप्चून को 1648 वर्ष तथा प्लूटो को 2844 वर्षों का समय लगता है।

वैदिक ज्ञान के बल पर भारत में एक से बढ़कर एक खगोलशास्त्री, ज्योतिष व भविष्यवक्ता हुए हैं। इनमें गर्ग, आर्यभट्ट, भृगु, बृहस्पति, कश्यप, पाराशर वराहमिहिर, पित्रायुस, बैद्धनाथ आदि प्रमुख हैं।  
ज्योतिष शास्त्र के तीन प्रमुख भेद है: सिद्धांत ज्योतिष, संहिता ज्योतिष और होरा शास्त्र।

* सिद्धांत ज्योतिष के प्रमुख आचार्य- ब्रह्मा, आचार्य, वशिष्ठ, अत्रि, मनु, पौलस्य, रोमक, मरीचि, अंगिरा, व्यास, नारद, शौनक, भृगु, च्यवन, यवन, गर्ग, कश्यप और पाराशर है।
* संहिता ज्योतिष के प्रमुख आचार्य- मुहूर्त गणपति, विवाह मार्तण्ड, वर्ष प्रबोध, शीघ्रबोध, गंगाचार्य, नारद, महर्षि भृगु, रावण, वराहमिहिराचार्य है।
* होरा शास्त्र के प्रमुख आचार्य- पुराने आचार्यों में पाराशर, मानसागर, कल्याणवर्मा, दुष्टिराज, रामदैवज्ञगणेश, नीपति आदि हैं।

वास्तु शास्त्र : वास्तु शास्त्र को गृह निर्मा, महल निर्माण, पु, तालाब आदि के निर्माण सहित शहर के निर्माण की विद्या माना गया है। प्राचीन भारत के प्रमुख वास्तुशास्त्री महर्षि विश्वकर्मा और मयदानव है। भारतीय वास्तुशस्त्र में गृह निर्माण से संबंधित कई तरह के रहस्यों को उजागर किया गया है। जैसे कि भूमि कैसी हो, घर का बाहरी और भीतरी वास्तु कैसा हो। इसके अलावा घर के निर्माण के वक्त आने वाली बाधा के क्या संकेत हैं। भारतीय वास्तुशास्त्र एक चमत्कारिक विद्या है। इंद्रप्रस्थ और द्वारिका नगरी के निर्माण से यह सिद्ध होता है। बगैर किसी मशीनरी के वास्तु के माध्यम से जल को पहाड़ी पर चढ़ाया जाता था। इसके अलावा महल में सिर्फ एक जगह ताली बजाने पर उस ताली की आवाज महल के अंतिम कक्ष और बाहरी दरवाजे तक भी पहुंच सकती थी।कहते हैं कि भवन-निर्माण के समय कारीगर के पागल हो जाने पर गृहपति और घर का विनाश हो जाता है इसलिए उस घर में रहने का विचार त्याग ही देना चाहिए। इसके अलावा वास्तु के अनुसार ही धरती में जल और ऊर्जा की स्थिति का भी आंकलन किया जा सकता है। दरअसल, भारतीय वास्तुशास्त्र एक चमत्कारिक विद्या है जिसके माध्यम से जीवन को बदला जा सकता है।

चौकी बांधना : अक्सर ये काम बंजारे, गडरिये या आदिवासी लोग करते हैं। वे अपने किसी जानवर या बच्चे की रक्षा करने के लिए चौकी बांध देते हैं। जैसे गडरिये अपने बच्चे को किसी पेड़ की छांव में लेटा देते हैं और उसके आसपास छड़ी से एक गोल लकीर खींच देते हैं। फिर कुछ मंत्र बुदबुदाकर चौकी बांध देते हैं। उनके इस प्रयोग से उक्त गोले में कोई भी बिच्छू, जानवर या कोई बुरी नियत का व्यक्ति नहीं आ सकता। उल्लेखनीय है कि यहीं प्रयोग लक्ष्मण ने सीता माता की सुरक्षा के लिए किया था जिसे आज लक्ष्मण रेखा कहा जाता है। दरअसल, चौकी बांधने का प्रयोग  कई राजा महाराजा अपने खजाने की रक्षा के लिए भी करते रहे हैं। आज उनका खजान इसी कारण से सुरक्षित भी है। रावण ने तो अपने संपूर्ण महल की चौकी बांध रखी थी।
 चौकी बांधने के कई तरीके होते हैं। चौकी किसी किसी देवी या देवता की बांधी जाती है या नाग महाराज की। चौकी भैरव और दस महाविद्याओं की भी बांधी जाती है। कुछ लोग भूत प्रेत की चौक बांधते हैं तो कुछ नगर देवता की। कहते हैं कि कई गढ़े खजाने की चौकी बंधी हुई है।माना जाता है कि बंजारा, आदिवासी, पिंडारी समाज अपने धन को जमीन में गाड़ने के बाद उस जमीन के आस-पास तंत्र-मंत्र द्वारा 'नाग की चौकी' या 'भूत की चौकी' बिठा देते थे जिससे कि कोई भी उक्त धन को खोदकर प्राप्त नहीं कर पाता था। जिस किसी को उनके खजाने के पता चल जाता और वह उसे चोरी करने का प्रयास करता तो उसका सामना नाग या भूत से होता था।
पानी खोजने या खोई वस्तु खोजने की विद्या : पानी खोजने वाले सगुनिए भारत में मिल जाएंगे। सगुनिए नीम की टहनी, धातु की मुड़ी हुई छड़, दोलक आदि का उपयोग करके पानी की उपस्थिति की जानकारी देते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि वे कई मामलों में सही साबित होते हैं, और प्रशिक्षित भूवैज्ञानिकों को भी मात दे देते हैं। सगुनियों का कहना है कि नीचे मौजूद पानी के कारण होनेवाले सूक्ष्म कंपनों या पानी के कारण पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में होनेवाले परिवर्तनों को वे भांप लेते हैं। कुछ सगुनिए यह भी दावा करते हैं कि वे बता पाते हैं कि पानी खारा है या मीठा या वह बह रहा है या स्थिर है। इसी प्रकार ऐसे भी कई लोग हैं जो आंखें बंद कर किसी की भी खोई हुई वस्तु का पता बता देते हैं। यह काम वे आत्मसम्मोहन के जरिये करते हैं। यहीं काम आजकर पेंडुलम डाउजिंग के माध्यम से किया जाता है।  
हमारे अवचेतन मन में वह शक्ति होती है कि हम एक ही पल में इस ब्रह्मांड में कहीं भी मौजूद किसी भी तरंगों से संपर्क कर सकते हैं, सारा ब्रह्मांड तरंगों के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़ा हुआ है। उन तरंगों के माध्यम से हम जो जानना चाहते हैं या हमारे जो भी सवाल होते हैं - जैसे जमीन के अंदर पानी खोजना या कोई खोई हुई चीजों को तलाशना उसे हम डाउजिंग कहते हैं। डाउजिंग किसी भी छुपी हुई बात को खोजने वाली विद्या है।

मंत्र, तंत्र और यंत्र : तंत्र शास्त्र भारत की एक प्राचीन विद्या है। मंत्र शक्ति से भी कई तरह के कार्यों को संपन्न किया जा सकता है और उसी तरह यंत्र से भी मनचाही इच्छा की पूर्ति होती है। मंत्रों में तांत्रिक और साबर मंत्र को सबसे असरकारक माना जाता है, जबकि यंत्र कई प्रकार और कार्यों के लिए होते हैं जैसे लक्ष्मी प्राप्ति हेतु लक्ष्मी यंत्र और युद्ध में विजय प्राप्ति हेतु बगलामुखी यंत्र। कई लोग अपने संकट को दूर करने और जीवन में धन, संपत्ति, सफलता, नौकरी, स्त्री और प्रसिद्ध पाने के लिए किसी यंत्र, मंत्र या तंत्र का सहारा लेते हैं। ये कितने सही हैं यह तो शोध का विषय है, लेकिन लोग इन पर विश्वास करते हैं। मंत्र की शक्ति के बारे में हर धर्म के ग्रंथों में लिखा हुआ है। हिंदू गायत्री मंत्र, महामृत्युंजय मंत्र और बजरंग बली के मंत्रों के अलावा अथर्ववेद में उल्लेखित मंत्रों को सिद्ध और शक्तिशाली मानते हैं। इसके अलावा साबर मंत्रों की महिमा का वर्णन ‍भी मिलता है।
झाड़-फूंक : झाड़-फूंक कर लोगों का भूत भगाने या कोई बीमारी का इलाज करने, नजर उतारने या सांप के काटे का जहर उतारने का कार्य ओझा लोग करते थे। यह कार्य हर धर्म में किसी न किसी रूप में आज भी पाया जाता है। ऐसे व्यक्ति को ओझा कहा जाता है। कुछ ऐसे दिमागी विकार होते हैं, जो डॉक्टरों से दूर नहीं होते हैं। ऐसे में लोग पहले ओझाओं का सहारा लेते थे। ओझा की क्रिया द्वारा दिमाग पर गहरा असर होता था और व्यक्ति के मन में यह विश्वास हो जाता था कि अब तो मेरा रोग और शोक ‍दूर हो जाएगा। यह विश्वास ही व्यक्ति को ठीक कर देता था।
प्राण विद्या : प्राण विद्या के अंतर्गत स्पर्श चिकित्सा, त्रिकालदर्शिता, सम्मोहन, सम्प्रेषण, सूक्ष्म शरीर से बाहर निकलना, पूर्वजन्म का ज्ञान होना, दूर श्रवण या दृष्य को देखा आदि अनेक विद्याएं शामिल है। इसके अलावा  प्राण विद्या के हम आज कई चमत्का‍र देखते हैं। जैसे किसी ने अपने शरीर पर ट्रक चला लिया। किसी ने अपनी भुजाओं के बल पर प्लेन को उड़ने से रोक दिया। कोई जल के अंदर बगैर सांस लिए घंटों बंद रहा। किसी ने खुद को एक सप्ताह तक भूमि के दबाकर रखा। इसी प्राण विद्या के बल पर किसी को सात ताले में बंद कर दिया गया, लेकिन वह कुछ सेकंड में ही उनसे मुक्त होकर बाहर निकल आया। कोई किसी का भूत, भविष्य आदि बताने में सक्षम है तो कोई किसी की नजर बांध कर जेब से नोट गायब कर देता है। इसी प्राण विद्या के बल पर कोई किसी को स्वस्थ कर सकता है तो कोई किसी को जीवित भी कर सकता है।इसके अलावा ऐसे हैरतअंगेज कारमाने जो सामान्य व्यक्ति नहीं कर सकता उसे करके लोगों का मनोरंजन करना यह सभी भारतीय प्राचीन विद्या को साधने से ही संभव हो पाता है। आज भी वास्तु और ज्योतिष का ज्ञान रखने वाले ऐसे लोग मौजूद है जो आपको हैरत में डाल सकते हैं। वैदिक गणित, भारतीय संगीत, ज्योतिष, वास्तु, सामुद्रिक शास्त्र, हस्तरेखा, सम्मोहन, टैलीपैथी, काला जादू, तंत्र, सिद्ध मंत्र और टोटके, पानी बताना, गंभीर रोग ठीक कर देने जैसे चमत्कारिक प्रयोग आदि ऐसी हजारों विद्याएं आज भी प्रचलित है जिन्हें वैज्ञानिक रूप में समझने का प्रयास किया जा रहा है।
योग की सिद्धियां : कहते हैं कि नियमित यम‍-नियम और योग के अनुशासन से जहां उड़ने की शक्ति प्राप्त ‍की जा सकती है वहीं दूसरों के मन की बातें भी जानी जा सकती है। परा और अपरा सिद्धियों के बल पर आज भी ऐसे कई लोग हैं जिनको देखकर हम अचरज करते हैं।

सिद्धि का अर्थ : सिद्धि शब्द का सामान्य अर्थ है सफलता। सिद्धि अर्थात किसी कार्य विशेष में पारंगत होना। समान्यतया सिद्धि शब्द का अर्थ चमत्कार या रहस्य समझा जाता है, लेकिन योगानुसार सिद्धि का अर्थ इंद्रियों की पुष्टता और व्यापकता होती है। अर्थात, देखने, सुनने और समझने की क्षमता का विकास।

परा और अपरा सिद्धियां : सिद्धियां दो प्रकार की होती हैं, एक परा और दूसरी अपरा। विषय संबंधी सब प्रकार की उत्तम, मध्यम और अधम सिद्धियां 'अपरा सिद्धि' कहलाती है। यह मुमुक्षुओं के लिए है। इसके अलावा जो स्व-स्वरूप के अनुभव की उपयोगी सिद्धियां हैं वे योगिराज के लिए उपादेय 'परा सिद्धियां' हैं।
सम्प्रेषण विद्या : दूर संवेदन या परस्पर भाव बोध को आजकल टैलीपैथी कहा जाता है। अर्थात बिना किसी आधार या यंत्र के अपने विचारों को दूसरे के पास पहुंचाना तथा दूसरों के विचार ग्रहण करना ही सम्प्रेषण है।प्राचीन काल में यह विद्या ऋषि मुनियों के पास होती थी। हालांकि यह विद्या आदिवासियों और बंजारों के पास भी होती थी। वे अपने संदेश को दूर बैठे किसी दूसरे व्यक्ति के दिमाग में डाल देते थे। टैलीपैथी विद्या का एक दूसरा रूप में इंटियूशन पॉवर।दरअसल हम सबमें थोड़ी-बहुत इंटियूशन पॉवर होती है, लेकिन कुछ लोगों में यह इतनी स्ट्रांग होती है कि वह अपनों के साथ घटने वाली अच्छी और बुरी दोनों प्रकार की घटनाओं को आसानी से जान लेते हैं। हालांकि अभी तक प्रामाणिक रूप से ऐसी कोई उपलब्धि वैज्ञानिकों को हासिल नहीं हो सकी है, जिसके आधार पर टेलीपैथी के रहस्यों से पूरा पर्दा उठ सकें।

साधनाएं : भारत में कई तरह की साधनाएं प्रचलन में रही। इनमें से कुछ साधनाओं का शैव और शाक्त संप्रदाय से संबंध है तो कुछ का प्राचीनकालीन सभ्यताओं से। ऐसे ही कुछ साधनाओं में शमशान साधना, कर्णपिशाचनी साधना, वीर साधना, प्रेत साधना, अप्सरा साधना, परी साधना, यक्ष साधना और तंत्र साधनाओं के बारे में सभी जानते हैं।उपरोक्त के अलावा भी हजारों तरह की गुप्त साधनाएं भारत में प्रचलित है, जिनमें से अधिकतर का हिन्दू धर्म से कोई संबंध नहीं लेकिन यह प्रचलित स्थानीय संस्कृति और सभ्यता का हिस्सा है।

                       प्रथम यात्रा

    यहाँ पर उपरोक्त विवरण केवल इस लिए किया गया है की आप आगे की कहानी को समझ सके और पूरा मनोरंजन कर सके |असम में कई वन्य प्राणी अभ्यारण्य है | जो सभी के लिए ज्ञानवर्धक है |गुरूग्राम के एक विद्यालय के विद्यार्थी अपने साथियों के साथ असम घुमने गए और वहा पर उन्होंने क्या देखा और क्या समस्याएँ आई , इस कथा का असली कथानक है |

    अनवी अपनी कक्षा के साथ असम भ्रमण के लिए आती है | उनका विचार असम के वन्य प्राणी अभ्यारण्य और वन्य राष्ट्रिय उद्यान देखने का था| इनमे प्रमुख निम्नलिखित है :-

राष्ट्रीय उद्यान व वन्यजीव अभ्यारण में अंतर :- वन्यजीव अभ्यारणों का गठन किसी एक प्रजाति अथवा कुछ बिशिष्ट प्रजातियों के संरक्षण के लिये किया जाता है, अर्थात ये बिशिष्ट प्रजाति आधारित संरक्षित क्षेत्र होते हैं ! जबकि राष्ट्रीय पार्क का गठन विशेष प्रकार की शरणस्थली के रूप में संरक्षण के लिये किया जाता है अर्थात इस विशेष शरणस्थली क्षेत्र में रहने बाले सभी जीवों का संरक्षण समान रूप से किया जाता है !
·          राष्ट्रीय पार्क में किसी भी प्रकार के अधिवास और मानवीय गतिविधि की अनुमति नही होती है , यहां तक कि जानवरों को चराने या जंगली उत्पादों को इकट्ठा करने की अनुमति भी नही होती है| जबकि वन्यजीव अभयारण्य में मानव गतिविधियों की अनुमति दे दी जाती है !
·          एक वन्यजीव अभयारण्य में शिकार अनुमति के बिना निषिद्ध है , हालांकि चराई और मवेशियों की आवाजाही की अनुमति है ! जबकि एक राष्ट्रीय उद्यान में शिकार और चराई  पूरी तरह से निषिद्ध हैं !
·          एक वन्यजीव अभ्यारण को राष्ट्रीय पार्क में परिवर्तित किया जा सकता है जबकि एक राष्ट्रीय पार्क को अभ्यारण घोषित नही किया जा सकता !
·          वन्यजीव अभ्यारण और राष्ट्रीय पार्क दोनों की घोषणा राज्य सरकार केवल आदेश देकर कर सकती है जबकि सीमा में परिवर्तन के लिये राज्य विधानमंडल को एक संकल्प पारित करना होता है !

. मानस नेशनल पार्क:-असम के गुवाहाटी में स्‍थित मानस नेशनल पार्क विश्‍व धरोहरों में शामिल है। हिमालय की तलहटी में स्‍थित इस अभयारण्‍य में दुर्लभ वन्‍य जीव पाए जाते हैं। जिसमें कि हेपीड खरगोश, गोल्‍डन लंगूर और पैगी हॉग शामिल हैं। इन्‍हें देखने लोग दूर-दूर से आते हैं। 
2. ओरंग नेशनल पार्क:-असम के शोणितपुर जिले में स्‍थित ओरंग नेशनल पार्क गैंडे के लिए जाना जाता है। यहां आपको काफी संख्‍या में गैंडे मिलेंगे। साल 1985 में इसको अभयारण्‍य घोषित किया गया। इसके बाद यहां पर पर्यटकों का तांता सा लगने लगा।
 ३. नमेरी नेशनल पार्क:-असम के तेजपुर से करीब 35 किमी दूर स्‍थित है नमेरी नेशनल पार्क। यहां आपको हाथी देखने को मिल जाएंगे आप इनकी सवारी भी कर सकते हैं। इसके अलावा पक्षियों से लगाव रखते हैं तो करीब 300 चिड़ियों की प्रजातियां यहां पाई जाती हैं।
. काजीरंगा नेशनल पार्क:-यह असम का सबसे बड़ा और मशहूर राष्‍ट्रीय उद्यान है। यह अभयारण्‍य एक सींग वाले गैंडा के लिए जाना जाता है। इसके अलावा पक्षियों व अन्‍य जीव-जंतुओं की तमाम प्रजातियां यहां देखने को मिल जाती हैं।
.  डिब्रू सैखोवा नेशनल पार्क:-असम के डिब्रूगढ़ में स्‍थित सैखोवा नेशनल पार्क मुख्‍य रूप से सफेद पंखों वाले देवहंस के संरक्षण के लिए बनाया गया था। बाद में यह राष्‍ट्रीय उद्यान जंगली घोड़ों और चमकदार सफेद पंखों वाली बतख के रूप में प्रसिद्ध हो गया। यहां पक्षियों की करीब 350 से ज्‍यादा प्रजातियां पाई जाती हैं।
.  पोबीटोरा वन्य जीव अभ्यारण्य :- यह गुव्हाटी से ५० किलोमीटर दूर मारीगाँव जिले में है |इसके किनारे पर मायोंग गाँव स्थित है | यह अभ्यारण्य मुख्य रूप से एक सींग वाले गेंडे के लिए जाना जाता है। 30.8 वर्ग किमी में फैले इस अभ्यारण्य में 16 वर्ग किमी में सिर्फ गेंडे रहते हैं। चूंकि यहां बड़ी संख्या में गेंडें हैं, इसलिए ऐसा कहा जाता है कि गेंडे अभ्यारण्य से बाहर भी निकल आते हैं। गेंडें के अलावा इस वन्य जीव अभ्यारण्य की दूसरी विशेषता यहां हर साल आने वाले प्रवासी पक्षी हैं। यहां हर साल करीब 2000 प्रवासी पक्षियां आते हैं। अभ्यारण्य में एशियाई भैंस, तेंदुआ, जंगली बिल्ली और जंगली भालू सहित कई अन्य जीव भी देखे जा सकते हैं ७.  चक्रशिला वन्यजीव अभयारण्य:- चक्रशिला वन्यजीव अभयारण्य भारत का दूसरा गोल्डन लंगूर के निवास स्थान के लिए प्रसिद्ध है। यह पहले एक आरक्षित वन था, लेकिन वर्ष 1 99 4 में इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था। इस पार्क में पर्यटक 14 विभिन्न प्रजातियों की सब्जियों, 60 प्रकार की मछली और उभयचर की 11 प्रजातियों के अलावा पक्षियों की 273 प्रजातियों को देख सकते हैं। वन्यजीव अभयारण्य में दो झीलें हैं, जो इस पार्क की सुन्दरता को बढ़ाती हैं, इन झीलों को धीर बील और डिप्लाई बील कहा जाता है, और ये अभयारण्य पर दोनों तरफ स्थित हैं।
८. होलोगापार गिब्बन वन्यजीव अभयारण्य :- भारत में एकमात्र वन्यजीव अभयारण्य है जो पहाड़ी गिब्बन का घर है। यह छोटा वन्यजीव अभयारण्य बंगाल धीमी लॉरी, हाथी, बाघ, तेंदुए, पैंगोलिन, सुअर-पूंछ वाले मैकक, असमिया मैकक, स्टंप पूंछ मैकक, रीसस मैकक और कैप्ड लैंगर्स का घर है। इसके अलावा यहां भारतीय पाइड हॉर्न बिल, ओस्प्रे, हिल मन्ना और कालीज फिजेंट जैसे अभयारण्य में कई प्रकार के प्रवासी और निवासी पक्षियों को देखा जा सकता है।

    पूरी कक्षा के साथ अनवी असम घुमाने चल पड़ती है |एक सिंग वाले गेंडे को देखने उन का पहला पड़ाव पोबीटोरा वन्य जीव अभ्यारण्य 

7 comments:

  1. Nice try keep learning and writing

    ReplyDelete
  2. Find hindi blogging community on internet and post your blog link to like minded groups

    ReplyDelete
  3. पद्मनाभस्वामी मंदिर का खजाना बहुमूल्य वस्तुओं का संग्रह है जिसमें सोने के सिंहासन, मुकुट, सिक्के, मूर्तियाँ और आभूषण, हीरे और अन्य कीमती पत्थर शामिल हैं। यह भारतीय राज्य केरल के तिरुवनंतपुरम में श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के कुछ उपनगरीय वाल्टों में खोजा गया था, जब इसके छह में से पांच वॉल्ट 27 जून 2011 को खोले गए थे।
    https://hi.letsdiskuss.com/which-is-the-temple-of-india-whose-doors-open-and-close-on-their-own

    ReplyDelete