Thursday, 27 January 2022

रिसते रिश्ते

  

 

रिसते रिश्ते

 

  

  

दो शब्द

       आधुनिकता की दौड़ में  प्रगति के साथ साथ हमारा सामाजिक पतन भी हो रहा है| पूरे गाँव में आपसी भाई चारा होता था |सभी एक दूसरे का सम्मान करते थे|  गाँव के बूढ़े बुजर्गों को ताऊ ,दादा,चाची,दादी और माँ का सम्मान और संबोधन दिया जाता था | पड़ोस की लड़की सभी की बेटी,बहिन या बुआ हुआ करती थी| जैसे हम अपनी बहिन या बुआ को सम्मान देते थे वैसा ही सभी को मिलता था| शादी विवाह केवल एक परिवार का कार्यक्रम नहीं होता था| इसमें पूरे गाँव का योगदान होता था| यह योगदान केवल शारीरिक ही नहीं यह आर्थिक और मानसिक भी हुआ करता था| उस समय बरात तीन दिन तक रूकती थी| हर समय का बारात का खाना और चाय नास्ता अलग अलग परिवारों से होता था | बारात का स्वागत सभी आत्मीयता से करते थे |रात्री को बारात जनवासे में नहीं मिलती थी|एक एक बाराती अलग अलग घरों में चले जाते थे | वहां उनकी भरपूर आवाभगत होती थी| उस समय चाय का इतना प्रचलन नहीं होता था| हुक्का पानी की आवाभगत में कोई कमी नहीं होती थी| आराम और सोने का उचित प्रबंध होता था|

       समय के साथ हमारा परिधान,परिवेश और खानपान सभी बदल गया |संयुक्त परिवार से एकाकी परिवार हो गए |अपने घर के बुजर्ग पराये हो गए |दूसरों की तो बात ही क्या? विवाह और गमी केवल अपनो तक सिमित रह गयी| अपनो की परिभाषा भी बदल गई| जो मेरे आता है मैं  उसके जाउंगा |वह ही मेरा अपना है| इसमें भाई और बहिन का कोई विचार नहीं है| विवाह घर की देहली की बजाय आजकल समारोह स्थल पर होने लग गए| भाई चारा और आपसी लगाव ख़त्म हो गया | खर्चे बढ़ गए और आमदनी सीमित रह गई| सामर्थ्य अनुसार खर्च की बजाय आपसी स्पर्धा बढ़ गई| पैसे की कमी अनैतिक साधनों से की जाने लगी| समाज में दिखावा ज्यादा हो गया| नशे की लत बढ़ने लगी| यह भी प्रतिष्ठा और समान का सूचक बन गया| गरीब और गरीब और अमीर और अमीर होने लग गया| आपसी रिश्ते दरक गए| रिश्तों में दरार आ गयी | अपने घर में बेटी सुरक्षित नहीं रही|

       ऐसे परिद्रश्य में हिन्दू मुस्लिम सामंजस्य की कामना बेमानी है| परन्तु कुछ घटनाए इस को पुनर्जीवित कर देती है| प्रस्तुत कहानी इन्हीं रिश्तों के ताने बाने पर बुनी गई है| आशा है पाठकों को पसंद आएगी|

 

लेखक

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

रिसते रिश्ते

       कहानी ज्यादा पुरानी नहीं है| समय ने इस पीढ़ी को कई परिवर्तन एक साथ दिखा दिए| टी वी,रेडियो,टेप रिकार्डर ,घडी,वी सी आर,फ़ोन, अलार्म और न जाने क्या क्या आया और चले गए| इन सब का स्थान एक मोबाइल ने ले लिया|पहले गाय को बच्छडा और एक पोता हो जाए तो ये माना जाता था की उस आदमी के दिन संवर गए| परतु अब तो गाय बेचारी स्वयं कचरे में मुह मारती रहती है| आदमी के पास पैसा चाहिए |कैसे आया इससे कोई लेना देना नहीं है| पहले कर्ज को एक कलंक  समझा जाता था| परतु अब कर्ज एक सरकारी अनुदान की तरह माना जाता है| मुफ्त की सरकारी योजनाये आमजन को मुफ्तखोर बना रही है|आज का युवा काम चोर होता जा रहा है| कोई काम करना भी चाहे तो काम मिलता कहाँ  है| इसके साथ ही समाज में आपसी सामंजस्य भी ख़तम हो रहा है| गावों में रिस्तों में जो प्रगाढ था वह अब रिसने लगा है| रिश्तों  के गिरते स्तर पर यह कहानी है|

      मिश्रा जी का परिवार गाँव में अच्छी साख रखता था|गाँव में पंडिताई करके गुजर बसर कर रहा था|उनका एक पुत्र कैलाश था |पढ़ाई में वह चल नहीं पाया|
शीघ्र ही वह अपने पिताजी का काम में हाथ बताने लगा| संयोग से कैलाश को गाँव में ही डाकिये की नौकरी मिल गई| पुस्तैनी काम के अलावा वह गाँव में डाक बांटने लगा| विवाह शादी में वह फेरे करवाने लगा|चूँकि वह ज्यादा नहीं पढ़ा था संस्कृत के श्लोकों का उच्चारण भी ठीक से नहीं कर सकता था| ज्यादातर वह मन में ही उच्चारण कर क्रिया क्रम पूरे कर लेता था|पत्र बाँटते समय किसी किसी के निवेदन पर पत्र पढ़ कर भी सुना देता था| किसी किसी के निवेदन पर पत्र लिख भी दिया करता था|जवानी की देहली पर कैलाश की जिन्दगी पींगें ले रही थी|

       भारत पाक बटवारे के बाद गाँव में कुछ मुस्लिम परिवार गाँव वालों की सहमती से ही रुक गए थे |अब उनके लगभग पचास घर हो गए थे| जमीर की बहिन नजदीक  के गाँव में ही ब्याही थी| उन का रंगाई का पुस्तैनी काम था | औधोगिकीकरण के कारण यह काम बंद हो गया था| जुबेदा जमीर की बहिन के पति का एक बिमारी में देहांत हो गया था| वहां उनकी देख भाल करने वाला कोई नहीं था| अतः जमीर अपनी बहिन जुबेदा को अपनी भांजी सहित अपने घर ले आया था| जमीर की पत्नी का भी देहांत हो चूका था| कुछ साल जुबेदा के आराम से गुजरे| अचानक उसके भाई जमीर का भी देहांत हो गया| अब जुबेदा और उसकी लड़की रेशमा  पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पडा था| घर चलाने में भारी कठिनाई आ रही थी| मुस्लिम होने के कारण लोग घरों में काम करवाने में भी संकोच करते थे|

       डाक बाँटते एक दिन वह उनके घर की तरफ से जा रहा था की उसे जुबेदा ने आवाज लगाईं| घर आने पर जुबेदा ने उसे एक फ़ार्म भरने को दिया| वह फार्म बिधवा पेंशन का आवेदन पत्र था| फ़ार्म में वह जो जो पंक्तिया भर सकता था भर दिया बाकी कल भर कर लाने का वादा करके फ़ार्म अपने साथ ले कर चला गया| उसने अपने विद्यालय के अध्यापक की मदद से फ़ार्म पूरा किया और पेंशन की प्रक्रिया को भी समझा| वादे के अनुसार वह फ़ार्म ले कर उनके घर पहुंचा| जहाँ जुबेदा और रेशमा पहले से ही इंतज़ार कर रही थी| दरवाजे पर रेशमा आई और उसे अन्दर ले कर गई| कैलाश को चारपाई पर बैठाया गया| उसके दाए बाए रेशमा और जुबेदा बैठ गई|उसने उनको फ़ार्म दिया और आगे की प्रक्रिया समझाई| उस आवेदन के साथ उसके पति का मृत्यु प्रमाणपत्र,आधार कार्ड,राशन कार्ड आदि आवश्यक दतावेज लगाने थे| उनके पास मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं था |यह बनवाने के लिए जुबेदा के ससुराल से पटवारी और सचिव से लिखवाकर देना था| जुबेदा के लिए वहां जाना और कागजी कार्यवाही करवाना एक मुसकिल काम | जुबेदा रुवाशी हो गई और अपनी मजबूरी जाहिर करने लगी| परन्तु कैलाश फ़ार्म दे कर अपने काम पर चला गया|

       दूसरे दिन कैलाश को रेशमा रास्ते से पकड़ कर अपने घर ले आई| अभी तक वह उसे मामा कह केर संबोधित करती थी| परन्तु आज मामा की जगह वह पंडितजी संबोधित कर रही थी| वैसे गाँव में लोग उसे पंडितजी के नाम से ही संबोधन करते थे| जुबेदा भी उसे कभी भाई और कभी पंडितजी के नाम से संबोधन करने लगी| अचानक रेशमा ने कहा यदि बुरा न मानो तो आप को चाय पिला देते है|हमारे घर से न पीवो तो पड़ोस के हिदू परिवार से बनवा दे| इस पर कैलाश ने कहा ,“हिन्दू मुस्लिम की कोई बात नहीं” | मैं शाकाहारी हूँ और आपके यहाँ अक्सर मांस बनता है|इसलिए चाय का लिए परेशान न हो |इस पर रेशमा ने कहा आप मांस की बात  करते ,दो समय का खाना मिल जाए तो कम है|  आप ने मुझे क्यों बुलाया है ,काम बताओ |रेशमा कहने लगी पिताजी का मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने में आप की मदद चाहिए |कैलाश ने कहा पटवारी और सचिव से लिखवा लिया क्या? रेशमा कहने लगी समस्या तो वहां जाने की ही है| मैं आप दे साथ चलती हूँ दोनों जाकर लिखवा लायेगें |थोड़ी ना नुकर के बाद कैलाश रेशमा के साथ जाने को सहमत हो गया|

       कैलाश के सहयोग से जुबेदा की विधवा पेंशन बन गई| बार बार घर आने जाने से कैलाश और रेशमा के मन में प्यार का अंकुर फूटने लगा| कैलाश अब उनके छोटे मोटे बाहर के काम भी करने लगा| कुछ समय पश्चात वह उनके घर की चाय भी पीने लगा|आरम्भ में जुबेदा इससे बेखबर थी| परन्तु यह उम्र जुबेदा की भी आई थी| उसने अपनी मजबूरी और बेटी की उम्र को देख सब कुछ अनदेखा कर दिया| कैलाश उनके यहाँ रोज आने लगा|अब मामा भांजी के रिश्ते बदल चुके थे|कैलाश के इस नए रिश्ते की खबर आस पास में भी फ़ैलाने लगी| हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों में इस की चर्चा हो रही थी| लोग चटकारे ले कर इसकी चर्चा करने लगे|अब कैलाश उनकी आर्थिक सहायता भी करने लगा|सामाजिक बदलाव के साथ साथ गाँव का परिदृश्य भी बदल गया था| जिन लड़कों का कहीं रिश्ता नहीं हो रहा था उनके रिश्ते बंगाल, बिहार और मध्यप्रदेश से होने लगे| या यूँ कहो बहुए खरीद कर लायी जाने लगी|इस प्रकार के रिश्तों में जातपात और धर्म का कोई अवरोध नहीं था| पहले रिश्ता करते समय कुल,खानदान,जाति,धर्म और बराबरी का बिचार किया जाता था| इन  सब के अलावा गोत्र ,शासन और कुंडली का मिलान भी किया जाता था|

       भ्रूण ह्त्या से यह समस्या और विकट होती जा रही है| अब हर गाँव में बिहार,ओड़िसा और मध्यप्रदेश से लायी गयी बहुए मिल जायेगी| माँ बाप लाखों खर्च कर के लड़के का घर बसाते है| परन्तु वही लड़का अपनी मर्जी से कोई अंतर जातीय विवाह कर लेता है तो समाज में तूफ़ान आ जाता है| उनका परिवार से बहिष्कार कर दिया जाता है| नयी पीढ़ी अपने रास्ते स्वयं बना रही है| एक गाँव या  एक गोत्र में शादी करने पर ह्त्या तक कर दी जाती है|इस सम्बन्ध में कई खाप पंचायते अपने अपने फरमान जारी कर चुकी है, जो कानून के खिलाफ और काफी खतरनाक भी है| लेकिन इन सब के उलटा कैलाश और रेशमा के सम्बन्ध पर कोई उबाल नहीं आया| फिर समाज में रिसते पहले की तरह इतने मजबूत नहीं थे | अब तक गाँव में भी पाश्चात्य सभ्यता और फिल्मों का प्रभाव आ चुका था| सभी अपने तक ही सीमित रहना उचित समझते थे|

       कैलाश पूर्ववत गाँव में विवाह शादी आदि समारोह में जाता रहा| और दूसरी और रेशमा के घर भी आना जाना बना रहा| कभी कभी वह रात को भी वहां रुकने लगा| एक दिन रेशमा ने एक लड़के को जन्म दिया| वह बिना शादी किये माँ बन चुकी थी| पुनः गाँव में एक विषय चर्चा के लिए आ गया था| दूसरी और कैलाश ने अपनी जिम्मेवारी पूरी निष्ठा से निभाई| उसके माँ बाप, माँ और पुत्र  को घर लाने को तैयार नहीं थे| काफी विवाद के बाद कैलाश रेशमा के घर पर ही रहने लगा| वहीँ रह कर वह डाक और जजमानी  करने लगा| हम उम्र मजाक में तो कैलाश से चुटकी ले लेते थे परन्तु कोई इस रिश्ते पर आपति नहीं करता था| करे भी कैसे? यही रिश्ता बंगाल और आसाम से होता तो सब ठीक था? इस पर जाती धर्म का कोई अवरोध नहीं था| फिर रेशमा का गाँव और धर्म भी दूसरा ही था| विवादों में फ़सने की बजाय लोगों ने दूर रहना ही उचित समझा |

       समय ने पुनः करवट ली और तीन साल के बाद रेशमा ने दूसरे पुत्र को जन्म दिया |इस बार रेशमा और उसकी माँ पहले की बजाय काफी सहज महसूस कर रही थी| गाँव और समाज से कोई छिन्टा कसी नहीं थी| विधवा पेंशन और कैलाश की सहायता से गुजर बसर चल रहा था| परतु परिवार बढ़ने के साथ साथ घर खर्च भी बढ़ने लगा |परन्तु आमदनी वही थी| रेशमा ने इधर उधर काम करने का प्रयास किया परन्तु सफलता नहीं मिली| उसने कैलाश की संपत्ति से अपना हिस्सा माँगने को कहा| परन्तु मिश्रा जी कुछ भी देने को तैयार नहीं हुए | मामला अदालत तक गया परन्तु मिश्रा जी के पास रहने के मकान के अलावा कुछ था ही नहीं| चुनाव प्रणाली ने आपस का भाई चारा भी ख़तम कर लिया था| गाँव में गुटबाजी आम हो गई थी| यह गुटबाजी दोनों पक्षों को हवा देने लगी| परिणाम स्वरुप बेटा परिवार से बहिष्कृत कर दिया गया|

       कुछ दिन कैलाश अपने ससुराल में ही रहा |परन्तु गुटबाजी का शिकार हो उसे गाँव भी छोड़ना पड़ा |वह अपनी सास , पत्नी और बच्चों के साथ नजदीक ही शहर में आ गया| यहाँ जीविका चलाना और भी कठिन हो गया था| डाक का काम छूट गया था| गाँव की जजमानी भी नहीं रही थी| और मकान का किराया भी देना पद रहा था|कम से कम गाँव में मकान किराया तो नहीं देना पद रहा था| अब रेशमा से वह रेशमी मिश्रा हो गई थी|उसने अपना मुस्लिम परिधान त्याग साडी पहनना आरम्भ  कर दिया था| जुबेदा हमेशा सूट सलवार ही पहनती थी| हाँ वह घर से बाहर कम ही निकलती थी|

       रेशमी घर में ही सिलाई और छपाई का काम आरम्भ किया | उसने अपना स्वयं सहायता समूह बनाया और जिला ग्रामीण विकास प्राधिकरण से प्रशिक्षण लिया|उसने एक बैंक से ऋण ले कर अपना काम आरम्भ किया| उसके पास खोने को तो कुछ था ही नहीं |निडर हो आत्मीयता से काम आरम्भ किया| आरम्भ में उसके साथ एक मोहल्ले की महिलाए जुडी|उसके उत्पाद उत्कृष्ठ गुणवत्ता के थे | लोंगों ने काफी पसंद किया| जिला स्तर की प्रतियोगता में  प्रथम स्थान पाया| इसके बाद उसे सूरजकुंड मेले में भी भाग लेने का मौका मिला| वहां पर उसकी मुलाक़ात   राजस्थान से आई रुमा देवी से हुई| रुमा देवी को अपनी हस्तकला की प्रदर्शनी का पहला अवसर दिल्ली के फैशन शो में मिला| विभिन्न तरह के कपड़ो और साड़ियों पर उनकी कशीदाकारी की इन शो में प्रदर्शनी की गई| इसके पश्चात राजस्थान हेरिटेज वीक जयपुर के फैशन शो में भी रूमा देवी ने भाग लिया| अब तक इन्हें कोई ख़ास लोकप्रियता हासिल नहीं हुई|अगली बार राजस्थान स्थापना दिवस पर आयोजित मेगा शो की फैशन प्रदर्शनी में रुमा शामिल हुई|. यह शो 112 देशों में प्रसारित किया गया था| राजस्थानी वेशभूषा को इस बार अच्छी पहुँच मिली और कई बड़े फैशन डिजायनरों के आर्डर आने लगे| मेहनत, संघर्ष और सफलता का मिश्रण बनी रूमा से रेशमी काफी प्रभावित हुई|उसने अपने उत्पादों में और निखार लाया और काफी संख्या में महिलाए उसके समूह से जुड़ने लगी| अब वह राजस्थानी हस्तशिल्प जैसे साड़ी, बेडशीट, कुर्ता समेत अन्य कपड़े लंदन, जर्मनी, सिंगापुर और कोलंबो तक भेजने लगी|

       रेशमी की सफलता की  कहानी आम चर्चा का विषय बन चुकी थी| कई मुस्लिम समुदायों ने उसे अपनी और खींचने की कोशीश की | इस विवाद के बाद रेशमा से रेशमी तक की कहानी सार्वजनिक हो गई| परतु इससे उसको कोई फर्क नहीं पडा |उसके समूह में सभी समुदायों की महिला आने लगी| मिश्रा जी भी बेटे बहु को अपना कहने लगे| अचानक एक दिन जुबेदा का देहांत हो गया| दोनों समुदायों ने अपने अपने रीती रिवाजों के अनुसार अंतिम क्रिया करने पर जोर दिया| प्रशाशन के हस्तक्षेप से ही धार्मिक संघर्ष होते होते टला| अंतिम फैसला रेशमी पर ही छोड़ दिया गया|

       दोनों समुदायों की सभा ने फैसला लिया  की जुबैदा जन्म और शादी के बाद भी मुस्लिम ही थी अतः उसका अन्तं संस्कार मुस्लिम रीती से किया जाना चाहिये| इस फैसले का कैलाश स्वागत किया| रेशमी ने मृत्यु  बाद की रस्में पूरी की | इसके बाद की रस्म सूहा और अरबिन कैलाश ने निभाई| हालाकि कैलाश इन सब से परिचित नहीं था परन्तु मुस्लिम समुदाय से प्रबुद्ध व्यक्तियों की सलाह अनुसार किया| कैलाश ने सभी वाजिब कार्य किये| यह घटना हिन्दू मुस्लिम एकता की एक मिसाल बन गया| समय गुजरने के साथ साथ कैलाश और रेशमी की कहानी लोग भूल गए थे |      

टीस

                       टीस

 


प्रस्तावना

 

      समाज में व्यापत आर्थिक,धार्मिक,जाती और लैंगिक असमानता मानव जाति पर एक कलंक हैं | इसका कारण कोई भी हो परन्तु मानव जीवन पर इसका असर व्यापक होता है| जन्म लेना अ मरना मनुष्य के वश में नहीं है , परन्तु इन दोनों घटनाओं के मध्य समय बिताना कभी कभी काफी दूभर हो जाता है और कभी समय कब गुजर गया पता ही नहीं चलता |यही असमानता मन में एक खटास पैदा कर देती है| यह खटास एक लम्बे संघर्ष को जन्म देती है| संघर्ष की परिणिति सफलता और असफलता में से एक हो सकती है| असफल आदमी पुनः प्रयास करता रहता है तो सफलता उसकी सभी शिकायते दूर कर देती है| परन्तु असफलता में में एक टीस पैदा करती है| इसकी परिणिति जाति संघर्स ,धार्मिक उन्माद, और अन्य सामजिक विकृतियों को जन्म देती है| राजनैतिक लकड़ियाँ इसको दावानल में परवर्तित कर देती हैं|  राजनीतिक दल इस को भुनाने का कोई अवसर नहीं छोड़ती| कोई भी दल इसके समाधान में रूचि नहीं रखता | सभी घाव को हरा रखने की कौशिश करते हैं| परन्तु समय सभी घाव भर देता है| जिन नेताओं को हम अपना आदर्श समझते है वे केवल स्वार्थ की रोटियां सकतें है|

      इस तरह की मानसिकता दिल में एक टीस पैदा करती है| जिसे हम अपना कर्णधार समझते है वे केवल अवसरवादी निकलते है| समाज सेवा में भी अपनी सेवा करते है |सामजिक असमानता की वेदना से निकली टीस ही इस पुस्तक की जन्मदात्री है| आशा है पाठकों में चेतना जगाने के साथ पुस्तक पढ़ने में रूचि भी बनी रहेगी| पाठक अपने सुझाव इ-मेल के माध्यम से भेज सकतें है| E-mail – hemrajsharma@yahoo.com

 

 

मन के उदगार





हेम राज शर्मा, लेखक

       अपनी बात कहना और लोगों को समझा पाना दोनों में काफ़ी अंतर है| सभी के मन में उद्वेग आते है| बहुत कम लोग इनको होठों से बाहर निकाल पते है| ज्यादातर अपने विचारों को मन में ही दफ़न कर के रखते है| वह भी केवल इसलिए की कोई क्या कहेगा ? यह बात इस से काफी मिलती जुलती है की आप प्रथम बार मंच पर अपनी बात कहने आते है और कह नहीं पाते |जब एक बार आप का डर निकल जाता है तो आप निर्भीक हो कर अपनी बात कह जाते है| यह मेरी सातवी पुस्तक है | पिछली पुस्तकों पर पाठकों की मिलिजुली प्रतिक्रियाये रही है| निसंदेह पाठकों ने मुझे रास्ता दिखाया है|और इन प्रतिक्रियाओं से मुझे एक नया रास्ता मिला है| मई आप सभी का आभार प्रकट करता हूँ| और आशा रखता हूँ की भविष्य में भी आप का सहयोग मिलता रहेगा| यह पुस्तक हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में उपलब्ध होगी|

 

धन्यवाद

 

 

 

      जब हमसे एक दोस्त बिछुड़ जाता है तो हम दूसरा सहारा ढूंढ लेते है| एक रिश्ते में दरार आ जाती है तो हम दूसरा सहारा तलास लेते है| ठीक उसी तरह जैसे हवा के कम दबाव वाली जगह पर अधिक दबाव की हवा आ जाती है| और इसी तरह प्रकृति अपना संतुलन बनाये रखती है|

      समाज में भी जब सम्बन्ध विच्छेद होता है तो कालांतर में दूसरी और से उसकी भरपाई हो जाती है| जाती,वर्ग, समाज, और धार्मिक अंतर मानव निर्मित है| प्रक्रति इस अंतर को पाटने का काम करती है और मनुष्य इस अंतर को और बढाता  है| सामजिक उत्पीडन से मन में एक खटास पैदा होती है और यह बगावत को जन्म देती है| रह रह कर उठाने वाली पीड़ा में के घाव नहीं भरने देती और समय असमय दिल में एक टीस बन कर उठती है| यह टीस कुछ कर गुजरने को प्रेरित करती है| सामाजिक बंधनों को तोड़ने को विवश हो उठाते है | समाज से बगावत आपको हाशिये से बाहर कर देता है| सभी शांतिपूर्वक रहना चाहते  है ,परतु परिस्थितियां बगावत करने को मजबूर कर देती है| बगावत के विरुद्ध बुलंद आवाज ही नया रास्ता दिखाती है| मानव प्रकृति आमतोर पर सहनशील होती है , परन्तु अति उसे मुखर कर देती है| वह व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाने को मजब उर हो जाता है| कभी कभी ताकतवर शक्तिया उसकी आवाज सदा सदा के लिए बाद कर देती है| कभी कभी बुलंद आवाज समाज के नियमों को बदलने में कामयाब हो जाती है| इससे परिवर्तन के नए आयाम स्थापित हो जाते है| लेकिन सतत प्रयास ही सफलता का रास्ता दिखाते है|

      इतने परिवर्तन के बावजूद समाज में पुत्र मोह को कम नहीं किया जा सका है| लड़कियों को दोयम दर्जा ही दिया जाता है|जबकि इसे अनेकों उदहारण देखने को मिल जाते हैं जब बुढापे का सहारा लडकिया बनी हैं| लड़कों ने बूढ़े माँ-बाप से किनारा किया है | परन्तु समाज में बिना बदलाव के यह अंतर कम नहीं किया जा सकता है|इसमें कुछ धार्मिक मान्यताएं ,कुछ सामाजिक रीति रिवाज, और कुछ समाज में व्याप्त मनोवृति भी काम करती हैं| इसको समय कि ब्यार ही बदल सकती है| यह एक मंद प्रवाह से ही होता है| अब समाज धीरे धीरे प्रेम विवाह और  अंतरजातीय विवाह को स्वीकार रहा है| गले तो नहीं उतर रहा परन्तु समाज धीरे धीरे बिना शादी के साथ रहने पर कोई एतराज नहीं कर रहा| यह सामजिक समरसता और रीति रिवाजों में बदलाव का आरम्भ है| बाप का नाम बताना भी अनिवार्य नहीं है|

       माता पिता की असामयिक मृत्यु के बाद निम्बो का कोई सहारा नहीं था| चाचा चाची ने निम्बो को अभागिन बता किनारा कर लिया| वह अपने ननिहाल में रहने लगी|हम उम्र मामा के बच्चों जितना प्यार तो नहीं मिला परन्तु इसके अलावा कोई चारा नहीं था| परन्तु इस भेद भाव ने निम्बो के मन में एक टीस पैदा कर दी| यह टीस ही बगावत की जड़ बनी| निम्बो घर के काम में पूरा हाथ बटाती और इसके बाद अपनी पढ़ाई करती| जब की ममेरे भाइयों के पास पढ़ने और खेलने के अलावा और कोई काम नहीं था| मन तो निम्बो का भी करता की वह भी खेले परन्तु फुर्सत मिले तो | केवल एक ही जगह उसको शान्ति मिलती वह थी उसकी नानी की गोद| नानी प्यार तो भरपूर करती परन्तु हमेसा पक्ष अपने पोतों का ही लेती थी| यह उसकी भी मजबूरी थी|

      बच्चों के आपसी झगड़ों में दोष किसी का भी हो डाट निम्बो को ही पड़ती थी| इस भेद भाव ने निम्बो के तेवर और मुखर कर दिए थे| खानेपीने में अंतर,कपडे पहनने में अंतर, बाहर आने जाने में भी पाबंदी, इन सब के बावजूद घर का काम केवल निम्बो के लिए| भाई कोई गलती करे तो उसके लिए भी निम्बो ही जिम्मेवार |साथ में नानी का उपदेश भी सुनने को मिलता| निम्बो तू लड़की है तुझे तो यह सब सहन करना ही पडेगा| जैसे निम्बो अपनी इच्छा से लड़की बनी हो| क्या लड़की होना निम्बो का दोष है? निम्बो कभी अपने आप को और कभी अपने भाग्य को कोसती| और अन्त में अपनी नानी की गोद में मन हल्का कर लेती |

 

       नानी के स्वर्गवास  के बाद निम्बो का एकमात्र सहारा भी ख़तम हो गया| उम्र के साथ साथ निम्बो की जिम्मेवारिया और बंदिशें बढती गई | सामाजिक पाबंदियां भी बढती गई| लड़कों से मिलना जुलना बंद हो गया| प्रातः काल के साथ ही उसे इस प्रकार के दिशा निर्देश रोज सुनने को मिलते थे | इन सभी के बावजूद निम्बो पढ़ाई में अब्बल थी | अध्यापक उसकी कुशाग्र बुद्धि की प्रसंशा करते थे | भगवान एक सहारा छीन लेता है तो दूसरा सहारा उपलब्ध करवा देता है| अच्छे परीक्षा परिणाम की वजह से उसकी पढ़ाई में कोई बाधा नहीं आई| पढ़ाई में रूचि उसे हमेशा आगे की और बढ़ाती जाती थी| उम्र और काम का दायरा बढ़ने लगा| अब वह खेत खलिहान में भी मदद करने लगी| यौवन की दहली पर लड़कों की नजर उसपर पड़ने लगी| खेत आते जाते उसको लड़के परेशान करने लगे| मामी उसी को डाट डपट कर संभल कर आने जाने की हिदायत दे देती| एल दिन खेत से आते समय एक लड़के ने उसको पकड़ लिया | उसकी आवाज सुन कर पड़ोस के खेत में काम कर रहे लोंगों ने उसे बचा लिया| निम्बो रोटी बिलखती अपने घर आई | मामी को अपनी व्यथा कथा सुनाई|

       लड़का दबंग परिवार से था|  सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया और मामले को रफा दफा कर दिया गया| बदनामी के डर से इस घटना को ज्यादा तूल नहीं दिया गया| इस घटना के बाद निम्बो सहमी सहमी सी रहने लगी| उसकी टीस और बढ़ने लगी| इस टीस को उसने अपनी ताकत बनाया | बाहर आना जाना और कम हो गया | अपनी पढ़ाई में और ज्यादा समय बिताने लगी| विद्यालय की अंतिम वर्ष की पढ़ाई के बाद मामा मामी ने उसकी शादी कर मुक्ति पाना ही उचित समझा| वह आगे पढ़ना चाहती थी परन्तु उसकी इच्छा का कोई महत्व नहीं था | मामा मामी की इच्छा को प्रभु का आदेश मान निम्बो अपनी ससुराल आ गई| वह एक गरीब परिवार में ब्याही गई थी| उसका पति मजदूरी करता था |घर में एक बूढी सास थी| निम्बो दिन भर घर गृहस्थी के कामें व्यस्त रहती और अपनी सास की सेवा करती|

       एक दिन निम्बो के चाचा आये और कुछ कागजों पर हस्ताक्षर कार्नर को कहा| निम्बो ने कागज़ अपने पास में रख लिए और एक दो दिन में लौटाने को कहा| चाचा को आशाओं पर पानी फिरता नजर आने लगा| परन्तु इन्तजार के अलावा उसके सामने दूसरा कोई रास्ता नहीं था| निम्बो ने सभी कागजों को ध्यान से पढ़ा और जाना की उसके पिता की जमीन पर इतने सालों से उसके चाचा खेती करते  आ रहें है उसको पता ही नहीं था | ना कभी उनको निम्बो की याद आई| आज खेती की जमीन को लौटाने की बजाय अपने नाम करवाने के कागज़ पर हस्ताक्षर करवाने आ गए| दो दिन बाद उसके चाचा पुनः आ गए और कागज़ माँगने लगे| निम्बो ने उनसे आग्रह किया की उसके हिस्से की जमीन उसके नाम करवा दी जाए| यह सुन चाचा के पैरों तले जमीन  खिसकने लगी| उनका पारा सातवें आसमान पर चढाने लगा| सात पुस्तों का वास्ता दे ,खान दान की नाक आदि का वास्ता दे उसे प्रभावित करने लगे| फिर कहने लगे की तेरे भात छुछक  भी हम ही भरेगें| कुछ अन्य रिश्तेदारों का भी दबाव बनाने का प्रयास किया गया| निम्बो ने एक ही बात कही की मेरे माता –पिता के स्वर्गवास के बाद यदि आप मुझे अपना समझतें तो मुझे अपने ननिहाल में नहीं जाना पड़ता| आप ही मेरा पालन पोषण करते| उस वक्त तो आपने आसानी से पल्ला झाड लिया | इतना तो मुझे भी याद आता है की मेरा बचपन ननिहाल में बीता और आप एक भी दिन मेरी खोज खबर के लिए नहीं आये| इतने दिनों से मेरे हिस्से की जमीन पर आप खेती करते आ रहे हो मुझे कुछ भी नहीं दिया| कम से कम मेरी शादी में कन्यादान  ही कर देते|

       काफी कुछ सुनने के बाद निम्बो के चाचा उदास मन वापिस लौट आये| निम्बो को जमीन ना देनी पड़े इसके लिए हर संभव प्रयास किये परन्तु काफी संघर्ष और विवाद के बाद निम्बो को अपना हक़ मिल ही गया| चाचा चची ने काफी मुह फुलाया परन्तु जमीन का बटवारा हुआ और निम्बो को उसका हक़ मिल ही गया| निम्बो को बटवारे के बाद कुए से दूर की जमीन मिली | यहाँ सिचाई संभव नहीं थी| यह जमीन कम उपजाऊ थी और रास्ते के साथ थी जहाँ आते जाते पशु आसानी से नुक्सान कर सकते थे| निम्बो ने जो मिला उसी में संतोष करना उचित समझा| निम्बो के भाग्य ने करवट ली और उसके खेत के साथ से ही राष्ट्रीय राज मार्ग निकल गया| इससे निम्बो की जमीन के भाव काफी बढ़ गए और सरकार की और से मुवावजा भी काफी अच्छा मिल गया था| सड़क से लगते जमीन के भाव आसमान छूने लगे| अब चाचा जी अपने फैसले पर पश्चाताप कर रहे थे |

       निम्बो अपनी गृहस्थी में काफी खुश थी|उसके दो सुंदर बच्चे थे| एक लड़का और एक लड़की| परन्तु उसकी ख़ुशी ज्यादा दिन नहीं चल पाई| उसके पति एक दुर्घटना में चल बसे| अब सास और बच्चों का भार निम्बो पर ही था| निम्बो ने अपने खेत की जमीन पर सड़क के साथ लगते दो गोदाम बनवाये और कृषि विपणन समीति को किराए पर दे दिए | किराए से उसकी अच्छी आमदनी होने लगी| इससे उसका गुजारा आराम से होने लगा| एक विधवा का जीवन अपने आप में ही एक अभिशाप है| परन्तु समाज सहारा देने की बजाय उसे और शापित कर देता है| सहारा देने की बजाय उसके रास्ते में और अवरोध खड़े कर देता है| उसके सामने नए नए सामजिक और धार्मिक प्रपंच रचे जाते है| इन रुकावटों को पार करों तो सामजिक और धार्मिक रिवाजो और प्रथाओं की दुहाई दे कर उसका रास्ता रोका जाता| कई बार निम्बो के मन में आता यह समाज किस काम का| इसे चाहिए की जरूरतमंद को सहारा दे परन्तु यह तो रुकावट पैदा करता है| परतु इस तरह के तानो की वह आदि हो चुकी थी| यह ताने उसकी टीस बढाते जा रहे थे |  निम्बो ने बच्चों को पढ़ाया और देर रात तक उनके साथ बैठ कर वह स्वयं भी पढाई करती रही| लड़का आई आई टी  करने लगा और लड़की ने एम् बी बी एस में प्रवेश ले लिया था |

       एक बार निम्बो अपने किसी काम से चंडीगढ़ से वापिस लौट रही थी की उसकी बस की टक्कर दूसरी बस से हो गई| जो सवारिया आगे बैठी थी उनको ज्यादा चौत आई | निम्बो को सिर  और सीने  में  ज्यादा चौत आई |घायल सवारियों को पीजी आई रोहतक में दाखिल करवाया गया| आसपास के लोगों ने और स्वाथ्य सवारियों ने घायलों की काफी मदद की | निम्बो की पहचान बस में साथ बैठे युवक से हो गई थी |लम्बे सफ़र में एक दूसरे से बातचीत और परिचय होना स्वाभाविक है| संयोग से उस युवक को कोई चोट नहीं आई| उसने निम्बो की काफी मदद की | निम्बो खुद करवट नहीं ले सकती थी| उसे अस्पताल में एक सहायक की नितांत आवश्यकता थी| नीरव ने उसे अस्पताल पहुंचाया  और जब तक निम्बो की देखभाल के लिए कोई नहीं आया वह उसके साथ अस्पताल में ही रहा| दुर्घटना की खबर निम्बो ने अपनी पुत्री और पुत्र को पहुंचाई| समाचार तो सास को भी मिल गया था परन्तु कर्कस शरीर उसका साथ नहीं दे रहा था| पुत्र और पुत्री एक संक्षिप्त मुलाक़ात के बाद अपने अपने सस्थान में पढ़ाई के लिए चले गए| अतः उसने रंजन से ही रुकने का आग्रह किया की वह ही उसका थोडा और साथ दे| रंजन ने अपने आफिस से छुट्टी ले कर निम्बो की खूब सेवा की | कुछ समय बाद निम्बो को अस्पताल से छुट्टी मिल गई और वह घर आ गई| रंजन उसको घर छोड़ने आया था| यहाँ रंजन ने देखा की निम्बो बिना मदद के अपना काम नहीं कर पा रही थी| उसकी सास इस अवस्था में नहीं थी की वह निम्बो की कुछ मदद कर सके| निम्बो को हर काम में मदद चाहिए |

       रंजन ने उसकी मजबूरी को समझा और रोज सुबह और सांयकाल निम्बो के घर पर आने लगा और रात को भी वहीँ रुकने लगा| रंजन ने निम्बो की लगभग पांच महीने दिल से सेवा की|  उसे शौच के लिए ले जाना स्नान आदि करवाना,दवाई और खाना खिलाना रंजन के काम थे | आरम्भ में तो निम्बो स्वयं करवट भी नहीं ले सकती थी| रंजन ने अपनी नौकरी और निम्बो की सेवा में तालमेल बैठा कर पांच माह तक सेवा की| इस दौरान उसने निम्बो की सास की भी खूब सेवा की | धीरे धीरे निम्बो काफी ठीक हो चुकी थी|वह अपना काम स्वयं करने लगी| रंजन ने अब घर आना जरूरी नहीं समझा और वह कई दिनों तक वह उनके पास नहीं आया| मा ने  फ़ोन पर उसको डाट लगाईं और उसी संध्या वह मिलने आ गया| माँ और निम्बो के कहने पर वह हर छुट्टी और सप्ताहंत वहां आने लगा|

 

      पड़ोसियों को यह नया रिश्ता खटकने लगा| और तरह तरह के नाम देने लगे| इन तानो ने निम्बो और रंजन की चाहत को और बढ़ा दिया| वे एक दूसरे को चाहने लगे| वह अस्पताल के अन्तरंग पलों को याद करने लगी| कोई भी रिश्तेदार या पडोसी अस्पताल में मदद को नहीं आये और जिसने मदद की वह भी उनको नहीं सुहाता | मदद भी की तो एक अनजान आदमी ने जिसका कोई रिश्ता नहीं ,बिरादरी भी दूसरी, उम्र में भी निम्बो से छोटा| जिसने अपनी छुट्टिया ले कर अस्पताल में अपनो से ज्यादा और उम्मीद से अधिक सेवा की| वह भी निस्वार्थ| कई बार वह निम्बो को घर से अस्पताल जांच के लिए ले गया और लाया| शौच के लिए ले जाना स्नान आदि करवाना,दवाई और खाना खिलाना कपडे धोना और बदलना  रंजन की दिनचर्या बंचुकी थी| उनकी आपसी हिचकचाट भी ख़त्म हो चुकी |कोई अपरिचित तो यह सब नहीं कर सकता था| अस्पताल के पांच महीने और उसके बाद घर पर निम्बो की सेवा से दोनों काफी नजदीक आ चुके थे | रंजन का साथ उसको काफी सकून देने लगा| दोनों एक दूसरे को चाहने लगे| वह भूल चुकी थी की वह विधवा थी| पुरुष का साथ पा उसकी सुनी बगिया में बहार आ चुकी थी| अब रंजन स्थाई तौर पर निम्बो के घर पर ही रहने लगा| पड़ोसियों  के पूछने पर वह उनका किरायेदार था| बच्चे और माँ यथास्थिति से परिचित थे| माँ भी रंजन की सेवा से खुश थी| वह निम्बो के परिवार का एक हिस्सा बन चूका था| निम्बो के यहाँ रहते ही रंजन की पदौनोती हो गई थी| अब दोनों पति पत्नी की तरह रहने लगे| साथ बाज़ार जाने आने लगे | बाहर घूमने जाने लगे | बच्चो के हालचाल पूछने भी दोनों जाने लगे|

       दोनों की घनिष्टता नयी कहानी लिखने लगी| अचानक रंजन दो दिन से घर नहीं आया| माँ ने निम्बो को पूछा क्या बात है रंजन क्यों नहीं आ रहा? निम्बो ने रुवासे मन से कहा ! कब तक हमारी सेवा करता रहेगा रंजन ? उसे भी तो घर परिवार चाहिए| माँ निम्बो की टीस समझ चुकी थी| उसने कांपते हाथ निम्बो के सर पर घुमाए और रंजन को बुलाने के लिए कहा| क्या बात है क्या तुम्हारी लड़ाई हो गई है? माँ ने निम्बो समझाया अब मैं कुछ दिनों की मेहमान हूँ | निम्बो का दिल भर आया और वह फफक फफक कर रोने लगी| माँ ने निम्बो को समझाया की अब तक के जीवन के सफ़र में समझ चुकी होगी सभी रिश्ते स्वार्थी है| इन सब के मध्य मुझे रंजन  का प्यार निस्वार्थ लगा| मैं चाहती हूँ की तुम रंजन से शादी कर लो| माँ के मुख से अचानक ये शब्द सुन कर निम्बो चौक गई और दौड़ कर अपने बिस्तर आ कर गिर पड़ी और सुबक सुबक कर रोने लगी|

       निम्बो के मस्तिष्क में माँ के शब्द बार बार घमासान मचा रहे थे| वह इस के परिणाम की सोच रही थी| रंजन की क्या चाहता है? बच्चे क्या कहेंगे? समाज की प्रतिक्रिया क्या होगी? अचानक वह बिस्तर से उठी और तैयार हो कर रंजन के कार्यालय पहुँच  गई | यों तो निम्बो का आना कोई नयी  बात नहीं थी| कार्यालय में सभी जानते थे| लेकिन अचानक आने से रंजन भी चौक गया| वहां से दोनों एक पार्क में आ कर बैठ गए| और माँ के दिए सुझाव पर मंथन करने लगे| जीवन के किस पड़ाव पर किस रिश्तेदार ने क्या मदद की और कितनी ? पड़ोसियों ने छिटाकसी और ताने देने के अलावा कोई मदद की हो तो बताओ ? नहीं तो फिर इन की परवाह क्यों जो कभी कोई काम नहीं आये| निम्बो के बच्चे  अपनी अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले थे| एक बार निम्बो ने उन से उनके भविष्य की योजना के बारे में जानना चाहा तो दोनों ने बताया की दोनों विदेश में नौकरी करेंगे और वहीँ पर आगे की पढ़ाई करेंगे | निम्बो को अपना जीवन अन्धकार में लगने लगा| रंजन तो पहले से ही शादी करना चाहता था| निम्बो ही इस रिश्ते को नया नाम नहीं देना चाहती थी| कई दिनों तक मौन रहने के बाद दोनों वृन्दावन गए | वहां एकांत में बैठ कर दोनो ने मन का मेल धोया| निम्बो रंजन को कहने लगी मैं तुमसे दस साल बड़ी हूँ |मेरे शादी योग्य दो बच्चे भी है| वे कुछ  ही समय में अपने पैरों पर खड़े हो जायेंगे |ऐसे में मैं तुन्हें कोई संतान नहीं दे पाउंगी| रंजन ने कहा मैंने तुम्हारे साथ के अलावा और कोई इच्छा नहीं रखी| निम्बो ने कहा तुम्हारे माँ और बाप भी तुमसे कुछ आपेक्षाये राखी है| हमारी दोनों की जातियां भी एक नहीं है| रंजन ने कहा तबतक इन बातों से कोई समस्या नहीं आई तो अब क्यों? रंजन के जबाब ने निम्बो को निरुत्तर कर दिया| दोनों एक मंदिर में गए और वहाँ पर शादी कर ली|दोनों घर आये और माँ से आशीर्वाद लिया| घर के लिए कोई नयी बात नहीं थी| माँ और बच्चे इस से पहले ही अवगत थे| अब सामाजिक तौर पर वे वैवाहिक बंधन में बांध चुके थे|

        इस शादी के एक साल बाद ही माँ का देहांत हो गया था| लड़का यू. एस. ए. जा चूका था| लड़की ने आस्ट्रेलिया जाने की तैयारी कर ली थी| रंजन सरकारी नौकरी करता था |उसने अपने सेवा रिकॉर्ड में नॉमिनी निम्बो को बना दिया था| सभी बैंक खातों में में भी एक दूसरे को नॉमिनी बना दिया था| |अब तक उसकी पदोन्नति भ हो चुकी थी| दोनों की गृहस्ती ठीक से चल रही थी| निम्बो के गाँव की जमीन पर कोई ध्यान नहीं जा रहा था|निम्बो का चाचा पहले से ही जला भुना बैठा था|उसने लमीन के रिकॉर्ड में हेरेफेरी करके निम्बो का हिस्सा बैंक में गिरवी रखा कर ऋण ले लिया था |उस जमीन पर एक लघु उद्योग की यूनिट लगा ली थी| रंजन को मैं अपने पारिवारिक मामले में नहीं लाना छह रही थी| रंजन और निम्बो के बीच पैसे के मामले में कभी कोई समस्या नहीं उत्पन्न हुई|दोनों ने अपने अपने वित्तीय संसाधनों का उपयोग किया था| यद्यपि रंजन की बैंक की पास बुक और चेक बुक दोनों निम्बो के पास रहती थी| रंजन का पूरा वेतन उसके खाते में जमा हो रहा था| रंजन का अपना कोई खर्चा तो था ही नहीं|

      निम्बो ने बैंक को इस हेरा फेरी की जान करी दी| और अपने वकील के माध्यम से कानूनी नोटिस भी भिजवा दिया| बैंक ने उस खाते में लेनदेन बंद कर दिया था | एक लम्बी प्रक्रिया के बाद निम्बो अपनी जमीन को ऋण मुक्त करवा पाई| निम्बो के चाचा की लगाईं लघु उद्योग की यूनिट बंद हो चुकी थी| उस पर काफी कर्ज हो गया था| अपनों के व्यवहार से निम्बो काफी परेशान थी| परन्तु विपरीत परिस्थितियों ने निम्बो को लड़ना सिखा दिया था|रिश्तों से उसका मोह भंग हो चुका था| उसका किसी से मोह नहीं रहा|अब वह निम्बो से निर्मोही बन गयी थी|

       रंजन की उम्र तीस पार कर चुकी थी|उसके मातापिता उसकी शादी करना चाह रहे थे | अनेकों रिश्ते आये परन्तु रंजन सभी के लिए मना कर देता |अंत में उसने खुलासा कर दिया की उसने निम्बो से शादी करली है| वस्तुस्थिति जान कर घर में सन्नाटा छा गया| हर प्रयास किया गया| परन्तु रंजन निम्बो को छोड़ने को तैयार नहीं था| इस बात की भनक निम्बो के चाचा को लगी | उसने हर प्रयास किया की निम्बो और रंजन का सम्बन्ध विच्छेद हो जाए | चाचा के दखल से दोनों और उग्र हो गए| और रंजन ने अपने परिवार से मिलना जुलना भी छोड़ दिया |

       एक दिन रंजन की बहिन रचना निम्बो के घर आ गई |और अपने भाई को शादी के लिए मनाने का आग्रह करने लगी| निम्बो ने बताया की उसने रंजन से शादी की है| वह उसे ही अपनी ग्रहस्थी बरबाद करने को कह रही है| मैं तुम्हारी भाभी ही हूँ|  तर्क में रचना निम्बो को नहीं मना सकी | अन्तमें वह निम्बो के कंधे पर अपना सर रख कर रोने लगी |निम्बो ने रचना को खाना अपने हाथ से खिलाया और उसकी वेदना को शांत करनी की कोशीश की| रंजन के आने से पहले ही रचना अपने घर लौट चुकी थी|एक साल तक कभी रचना और कभी रंजन की माँ निम्बो के पास आते रहे | निम्बो ने हर बार उनका यथोचित आदर सत्कार किया जैसे एक सास ससुर और ननद का किया जाता है|

       एक दिन रंजन के माँ-बाप सुबह सुबह ही निम्बो के घर आ गए|अब ही तक रंजन अपने काम पर नहीं गया था| अचानक उनको घर देख कर रंजन चौक गया| उसे लगा की वे पहली बार उसके यहाँ आ रहे है| परन्तु निम्बो ने हर बार की तरह सर पर पल्लू ले कर दोनों के पैर छुए और आदर के साथ बैठाया| उचित आदर सत्कार किया| इस अप्रत्याशित व्यवहार से रंजन चकित था|  संक्षिप्त परिचय के बाद रंजन अपने काम पर चला गया| निम्बो ने दोनों की खूब सेवा की |खाना खिलाने के बाद तीनो एक जगह बैठ कर बतलाने लगे| अवसर पा कर रंजन की माँ निम्बो के पास बैठी और अपना आँचल निम्बो के पैरों में डाल दिया| वह अपने लड़के की शादी करवाने का आग्रह करने लगी| निम्बो ने बड़े आदर और सत्कार के साथ माँ को उठाया और अपने साइन से लगाया| माँ कहने लगी मेरे एक ही बेटा है | तुम्हारे साथ रह कर मेरे वंश तो चलेगा नहीं| उसकी जवान बहिन भी जिद्द करके बैठी है|पहले भाई की शादी करो बाद में मैं  करवाउंगी| वह मुझसे दस साल बड़ा है| मानो तो तुम्हारे एक पोता और एक पोती है| भगवान् ऐसा ना करे शादी  के बाद भी  रंजन को कोई औलाद ना हुई तो ! रचना की भाभी मैं हूँ आप शादी की तैयारी कीजिये बाकी काम मैं देख लूंगी|

          माँ कहने लगी एक ही बेटा है| जब इसके भी संतान नहीं होगी तो  हमारा तो वंश ही ख़त्म हो जाएगा| हमारे बुढापे का सहारा ख़त्म हो जाएगा| इसे में हमारे जीने की इच्छा भी ख़त्म होती जा रही है| फिर हम दोनों में केवल सात साल का फर्क है|तुम्हे बहु समझू या सहेली| निम्बो एक माँ के दुःख को समझ चुकी थी |परन्तु उसकी स्वीकारौक्ति उसे स्वयं को अन्धकार में धकेल रही थी| अब उसका स्वार्थ आड़े आ रहा था| रंजन भी उसको नहीं छोड़ना चाह रहा था| अंत में निम्बो ने कुछ समय माँगा और इस का समाधान निकालने का आश्वासन दिया | निराश मन से रंजन के माँ-बाप घर से विदा हुए |उन्हें कोई समाधान की उम्मीद नहीं थी| उन्हें यह तो लड़ रहा था की निम्बो तो सम्बन्ध विच्छेद कर लेगी परन्तु रंजन दूसरी शादी के लिए तैयार नहीं  होगा|

       अगली प्रातः रंजन की छुट्टी  थी | पूरे दिन दोनों मैं यही चर्चा होती रही  निम्बो ने कहा मुसकिल की घडी में निस्वार्थ हो कर तुमने मेरा साथ दिया |मेरे बच्चों ने तुम्हे स्वीकार कर ही लिया था| माँ के सुझाव पर ही हमने शादी की थी| और बच्चा भी नहीं करेंगे | यह बात पहले ही साफ़ हो चुकी थी| मेरे विचार से तुम्हे अपने माँ-बाप की इच्छा का सम्मान करना चाहिए | तुम्हे दूसरी शादी कर लेनी चाहिए| मैं इतनी स्वार्थी भी बनना चाहती की किसी की भावना का सामान भी ना करू | मैं तुम्हे पूर्णतया इस रिश्ते से आजाद करती हूँ | अब मेरे अपने बच्चे भी शादी योग्य हो गए है|तुम्हारे साथ बिताये सुखद पलों को याद कर शेष जीवन बिताने की कौशिश करुँगी| हमारा प्यार निष्कलंक है| परतु माँ की पीड़ा मुझे रह रह कर परेशान कर रही है| मेरे मन मस्तिष्क  में एक अंतर्दिवंद मचा हुआ है| निम्बो की आँखों के सामने अन्धेरा छा गया और निढाल हो कर जमीन पर गिर गई| रंजन ने उसको बिस्तर पर लिटाया और पानी पिलाया| काफी मान मनोहर के बाद रंजन ने अपने माँ बाप की बात मानने को तैयार हो गया|

       लड़की पसंद करने को रंजन निम्बो को बुलाना चहाता था | परन्तु घरवाले उसका विरोध कर रहे थे | उन्हें डर था की लड़की पक्ष को क्या परिचय करवायेगे| निम्बो खुद भी ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना चाहती थी| रंजन अपनी माँ की इच्छा अनुसार शादी करने जा रहा था| काफी जिद्दोजहद के बाद निम्बो रंजन के लिए लड़की देखने गयी | दुल्हन के परिवार से निम्बो का क्या परिचय करवाया पता नहीं चला | परन्तु वे क्षण निम्बो की टीस को बढ़ा रहे थे | सगाई की रस्म में भाग ले निम्बो वापिस अपने घर आ चुकी थी| उसको भविष्य की चिंता हो रही थी| वस्त्र बिना बदले ही वह बिस्तर पर जा गिरी और तकिये में मुह छिपा कर रोने लगी| सुबह दूध वाले ने घंटी बजाई तब उसकी आँख खुली| दूध लेने के बाद निम्बो ने एक चाय बनाई और पीते पीते कभी अपने बारे में कभी बच्चों के बारे में और कभी रंजन के बारे में सोचती रही| निम्बो की मनोस्थिति से बच्चे बे खबर थे | एक बार पुनः वैधन्त्व निम्बो के भविष्य में झांक रहा था| समाज, परिवार और जाति से तरह तरह के आक्षेप निम्बो के मन को झकझोर रहे  थे | रिश्तेदार मेरी सम्पति पर नजर गडाये बैठे थे | निम्बो अपने भूत की भविष्य से तुलना करती जा रही थी|

      पक्षियों की चचाहट से पुनः निम्बो की तंद्रा टूटी और खड़ी हुई |निम्बो को इसे लग रहा था जैसे वह बुखार से उठी हो| वह रंजन के साथ बिताए दिनों को नहीं भुला पा रही थी| एक बार पुनः निम्बो की गृहस्थ की गाडी धीरे धीरे रेंगने लगी| अब रंजन की शादी हो चुकी थी| रंजन की तरफ से शादी का निमंत्रण आया था परन्तु निम्बो ने न जाना ही उचित समझा| शादी की सभी रस्मों के लिए निम्बो के पास रंजन का निमंत्रण आया परन्तु निम्बो नहीं समझ पा रही थी की यह निमंत्रण है या रंजन की तरफ से शिकायत|

       समय सभी घाव भर देता है| हरदिन परिस्थितियां एक जैसी नहीं होती| किश्मत एक चक्र की तरह होती है जिसका एक हिस्सा ऊपर होता है और दूसरा नीचे रहता है| ये बारी बारी से अपना स्थान बदलते रहते  है| अब निम्बो की जिन्दगी सामान्य होती जा रही थी| एक दिन रंजन अपनी नयी दुल्हन के साथ मेरे हगर आ गया | निम्बो इस अप्रत्याशित आगमन  से चकित हो रही थी| दोनों की आवाभगत से निवृत हो कर चाय की चुस्की के साथ निम्बो दोनों से बतियाने लगी| निम्बो काफी सहज महसूस कर रही थी| अन्तमें रंजन ने कहा की मैंने इसे अपने पुराने सम्बन्ध के बारे में सब कुछ बता दिया है|यह सुन निम्बो आवाक रह गई| इसकी जिद्द के कारण ही मैं इसे  तुमसे मिलाने ले कर आया हूँ| अंजलि की उत्सुकता देख निम्बो दंग रह गई| सगाई के बाद अंजलि काफी बदल चुकी थी| वह पहले से अधिक आकर्षक लग रही थी| निम्बो की दुविधा थी की वह अंजलि को क्या कह कर संबोधित करे ? हर क्षण निम्बो की टीस बढ़ा रहा था| वह निम्बो से लगभग पंद्रह साल छोटी होगी| उनके आपसी संबंधों को जान कर भी वह सहज वर्ताव कर रही थी| दोनों की जोड़ी जैम रही थी|

       अचानक अंजलि ने मौन को तोडा और बोली दीदी आप शीघ्र ही एक खुश खबरी सुनोगी| निम्बो ने दोनों को मुबारकबाद दी | दीदी शब्द ने निम्बो के दिमाक में एक घंटा बजा दिया| वह सोचने लगी दीदी शब्द इतना  विस्तृत है या अंजलि का मन? इस शब्द में बहिन , सौत,भाभी,नन्द और सहेली जैसे किरदार समाये हुए है| रिश्ते की व्याख्या अपनी सुविधानुसार कर सकते है| काफी लम्बी वार्ता के बाद अंजलि ने जाने का आग्रह किया और निम्बोने उसे अपनी छोटी बहिन की तरह विदा किया| अंजलि ने जाते जाते निम्बो को घर आने का निमंत्रण दे डाला| जो निम्बो ने स्वीकार तो कर लिया परन्तु जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी| रह रह कर अंजलि का चेहरा उसकी आँखों के सामने आ रहा था| उसके मन के उद्वेग दीदी और सौत के अंतर को नहीं पात पा रहे थे| रंजन मुझे क्या संबोधित करेगा|

       इस उह्पोह में निम्बो अंजलि के घर नहीं गई| कुछ समय बाद रंजन के यहाँ एक लड़की ने जन्म लिया |इस ख़ुशी में निम्बो भी सम्मलित हुई| वहां निम्बो का परिचय अंजलि की दीदी के रूप में करवाया गया| जो अंजलि और निम्बो को काफी सहज करने लगा| सारे उत्सव में रंजन निम्बो के सामने नहीं आया| रंजन की बहिन को निम्बो ने अपने घर आने का निमंत्रण दिया| रंजन अब अपने नए परिवार में काफी खुश नजर आ रहा था| हमें अब हमारे रिश्ते को लेकर कोई चिंता नहीं थी| अब दोनों के मध्य दूरियां बढ़ने लगी | बच्चे बाहर बस गए थे | निम्बो एकाकी जीवन व्यतीत कर रही थी|उम्र भी ढलने लगी थी| बुढापा अपने आप में एक बिमारी है| निम्बो की देखभाल के लिए कोई नहीं था| रंजन के माँ-बाप चल बसे थे |रंजन निम्बो से बेखबर था|एक दिन रंजन  निम्बो की मुलाक़ात अस्पताल में हुई | निम्बो के स्वास्थ्य को लेकर उसको काफी चिंता हुई| वह अपने साथ निम्बो को ले जाने की जिद्द करने लगा परन्तु निम्बो उनकी गृहस्थी में दखल नहीं करना चाहती थी|

      एक  दिन रंजन और अंजलि बच्ची सहित निम्बो का हाल चाल पूछने आ गए | निम्बो की दशा देख वे सभी वहीँ पर रहने आगये| निम्बो ने अपनी सम्पति रंजन की लड़की के नाम करदी| उसके बच्चे उसकी कोई खबर नहीं ले रहे थे | कुछ समय बाद निम्बो का स्वर्गवास हो गया | उसकी सम्पति से रंजन ने निम्बो मेमोरियल अस्पताल बनवा दिया| जहाँ केवल निम्बो का नाम उकेरा हुआ है|