Thursday, 27 January 2022

रिसते रिश्ते

  

 

रिसते रिश्ते

 

  

  

दो शब्द

       आधुनिकता की दौड़ में  प्रगति के साथ साथ हमारा सामाजिक पतन भी हो रहा है| पूरे गाँव में आपसी भाई चारा होता था |सभी एक दूसरे का सम्मान करते थे|  गाँव के बूढ़े बुजर्गों को ताऊ ,दादा,चाची,दादी और माँ का सम्मान और संबोधन दिया जाता था | पड़ोस की लड़की सभी की बेटी,बहिन या बुआ हुआ करती थी| जैसे हम अपनी बहिन या बुआ को सम्मान देते थे वैसा ही सभी को मिलता था| शादी विवाह केवल एक परिवार का कार्यक्रम नहीं होता था| इसमें पूरे गाँव का योगदान होता था| यह योगदान केवल शारीरिक ही नहीं यह आर्थिक और मानसिक भी हुआ करता था| उस समय बरात तीन दिन तक रूकती थी| हर समय का बारात का खाना और चाय नास्ता अलग अलग परिवारों से होता था | बारात का स्वागत सभी आत्मीयता से करते थे |रात्री को बारात जनवासे में नहीं मिलती थी|एक एक बाराती अलग अलग घरों में चले जाते थे | वहां उनकी भरपूर आवाभगत होती थी| उस समय चाय का इतना प्रचलन नहीं होता था| हुक्का पानी की आवाभगत में कोई कमी नहीं होती थी| आराम और सोने का उचित प्रबंध होता था|

       समय के साथ हमारा परिधान,परिवेश और खानपान सभी बदल गया |संयुक्त परिवार से एकाकी परिवार हो गए |अपने घर के बुजर्ग पराये हो गए |दूसरों की तो बात ही क्या? विवाह और गमी केवल अपनो तक सिमित रह गयी| अपनो की परिभाषा भी बदल गई| जो मेरे आता है मैं  उसके जाउंगा |वह ही मेरा अपना है| इसमें भाई और बहिन का कोई विचार नहीं है| विवाह घर की देहली की बजाय आजकल समारोह स्थल पर होने लग गए| भाई चारा और आपसी लगाव ख़त्म हो गया | खर्चे बढ़ गए और आमदनी सीमित रह गई| सामर्थ्य अनुसार खर्च की बजाय आपसी स्पर्धा बढ़ गई| पैसे की कमी अनैतिक साधनों से की जाने लगी| समाज में दिखावा ज्यादा हो गया| नशे की लत बढ़ने लगी| यह भी प्रतिष्ठा और समान का सूचक बन गया| गरीब और गरीब और अमीर और अमीर होने लग गया| आपसी रिश्ते दरक गए| रिश्तों में दरार आ गयी | अपने घर में बेटी सुरक्षित नहीं रही|

       ऐसे परिद्रश्य में हिन्दू मुस्लिम सामंजस्य की कामना बेमानी है| परन्तु कुछ घटनाए इस को पुनर्जीवित कर देती है| प्रस्तुत कहानी इन्हीं रिश्तों के ताने बाने पर बुनी गई है| आशा है पाठकों को पसंद आएगी|

 

लेखक

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

रिसते रिश्ते

       कहानी ज्यादा पुरानी नहीं है| समय ने इस पीढ़ी को कई परिवर्तन एक साथ दिखा दिए| टी वी,रेडियो,टेप रिकार्डर ,घडी,वी सी आर,फ़ोन, अलार्म और न जाने क्या क्या आया और चले गए| इन सब का स्थान एक मोबाइल ने ले लिया|पहले गाय को बच्छडा और एक पोता हो जाए तो ये माना जाता था की उस आदमी के दिन संवर गए| परतु अब तो गाय बेचारी स्वयं कचरे में मुह मारती रहती है| आदमी के पास पैसा चाहिए |कैसे आया इससे कोई लेना देना नहीं है| पहले कर्ज को एक कलंक  समझा जाता था| परतु अब कर्ज एक सरकारी अनुदान की तरह माना जाता है| मुफ्त की सरकारी योजनाये आमजन को मुफ्तखोर बना रही है|आज का युवा काम चोर होता जा रहा है| कोई काम करना भी चाहे तो काम मिलता कहाँ  है| इसके साथ ही समाज में आपसी सामंजस्य भी ख़तम हो रहा है| गावों में रिस्तों में जो प्रगाढ था वह अब रिसने लगा है| रिश्तों  के गिरते स्तर पर यह कहानी है|

      मिश्रा जी का परिवार गाँव में अच्छी साख रखता था|गाँव में पंडिताई करके गुजर बसर कर रहा था|उनका एक पुत्र कैलाश था |पढ़ाई में वह चल नहीं पाया|
शीघ्र ही वह अपने पिताजी का काम में हाथ बताने लगा| संयोग से कैलाश को गाँव में ही डाकिये की नौकरी मिल गई| पुस्तैनी काम के अलावा वह गाँव में डाक बांटने लगा| विवाह शादी में वह फेरे करवाने लगा|चूँकि वह ज्यादा नहीं पढ़ा था संस्कृत के श्लोकों का उच्चारण भी ठीक से नहीं कर सकता था| ज्यादातर वह मन में ही उच्चारण कर क्रिया क्रम पूरे कर लेता था|पत्र बाँटते समय किसी किसी के निवेदन पर पत्र पढ़ कर भी सुना देता था| किसी किसी के निवेदन पर पत्र लिख भी दिया करता था|जवानी की देहली पर कैलाश की जिन्दगी पींगें ले रही थी|

       भारत पाक बटवारे के बाद गाँव में कुछ मुस्लिम परिवार गाँव वालों की सहमती से ही रुक गए थे |अब उनके लगभग पचास घर हो गए थे| जमीर की बहिन नजदीक  के गाँव में ही ब्याही थी| उन का रंगाई का पुस्तैनी काम था | औधोगिकीकरण के कारण यह काम बंद हो गया था| जुबेदा जमीर की बहिन के पति का एक बिमारी में देहांत हो गया था| वहां उनकी देख भाल करने वाला कोई नहीं था| अतः जमीर अपनी बहिन जुबेदा को अपनी भांजी सहित अपने घर ले आया था| जमीर की पत्नी का भी देहांत हो चूका था| कुछ साल जुबेदा के आराम से गुजरे| अचानक उसके भाई जमीर का भी देहांत हो गया| अब जुबेदा और उसकी लड़की रेशमा  पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पडा था| घर चलाने में भारी कठिनाई आ रही थी| मुस्लिम होने के कारण लोग घरों में काम करवाने में भी संकोच करते थे|

       डाक बाँटते एक दिन वह उनके घर की तरफ से जा रहा था की उसे जुबेदा ने आवाज लगाईं| घर आने पर जुबेदा ने उसे एक फ़ार्म भरने को दिया| वह फार्म बिधवा पेंशन का आवेदन पत्र था| फ़ार्म में वह जो जो पंक्तिया भर सकता था भर दिया बाकी कल भर कर लाने का वादा करके फ़ार्म अपने साथ ले कर चला गया| उसने अपने विद्यालय के अध्यापक की मदद से फ़ार्म पूरा किया और पेंशन की प्रक्रिया को भी समझा| वादे के अनुसार वह फ़ार्म ले कर उनके घर पहुंचा| जहाँ जुबेदा और रेशमा पहले से ही इंतज़ार कर रही थी| दरवाजे पर रेशमा आई और उसे अन्दर ले कर गई| कैलाश को चारपाई पर बैठाया गया| उसके दाए बाए रेशमा और जुबेदा बैठ गई|उसने उनको फ़ार्म दिया और आगे की प्रक्रिया समझाई| उस आवेदन के साथ उसके पति का मृत्यु प्रमाणपत्र,आधार कार्ड,राशन कार्ड आदि आवश्यक दतावेज लगाने थे| उनके पास मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं था |यह बनवाने के लिए जुबेदा के ससुराल से पटवारी और सचिव से लिखवाकर देना था| जुबेदा के लिए वहां जाना और कागजी कार्यवाही करवाना एक मुसकिल काम | जुबेदा रुवाशी हो गई और अपनी मजबूरी जाहिर करने लगी| परन्तु कैलाश फ़ार्म दे कर अपने काम पर चला गया|

       दूसरे दिन कैलाश को रेशमा रास्ते से पकड़ कर अपने घर ले आई| अभी तक वह उसे मामा कह केर संबोधित करती थी| परन्तु आज मामा की जगह वह पंडितजी संबोधित कर रही थी| वैसे गाँव में लोग उसे पंडितजी के नाम से ही संबोधन करते थे| जुबेदा भी उसे कभी भाई और कभी पंडितजी के नाम से संबोधन करने लगी| अचानक रेशमा ने कहा यदि बुरा न मानो तो आप को चाय पिला देते है|हमारे घर से न पीवो तो पड़ोस के हिदू परिवार से बनवा दे| इस पर कैलाश ने कहा ,“हिन्दू मुस्लिम की कोई बात नहीं” | मैं शाकाहारी हूँ और आपके यहाँ अक्सर मांस बनता है|इसलिए चाय का लिए परेशान न हो |इस पर रेशमा ने कहा आप मांस की बात  करते ,दो समय का खाना मिल जाए तो कम है|  आप ने मुझे क्यों बुलाया है ,काम बताओ |रेशमा कहने लगी पिताजी का मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने में आप की मदद चाहिए |कैलाश ने कहा पटवारी और सचिव से लिखवा लिया क्या? रेशमा कहने लगी समस्या तो वहां जाने की ही है| मैं आप दे साथ चलती हूँ दोनों जाकर लिखवा लायेगें |थोड़ी ना नुकर के बाद कैलाश रेशमा के साथ जाने को सहमत हो गया|

       कैलाश के सहयोग से जुबेदा की विधवा पेंशन बन गई| बार बार घर आने जाने से कैलाश और रेशमा के मन में प्यार का अंकुर फूटने लगा| कैलाश अब उनके छोटे मोटे बाहर के काम भी करने लगा| कुछ समय पश्चात वह उनके घर की चाय भी पीने लगा|आरम्भ में जुबेदा इससे बेखबर थी| परन्तु यह उम्र जुबेदा की भी आई थी| उसने अपनी मजबूरी और बेटी की उम्र को देख सब कुछ अनदेखा कर दिया| कैलाश उनके यहाँ रोज आने लगा|अब मामा भांजी के रिश्ते बदल चुके थे|कैलाश के इस नए रिश्ते की खबर आस पास में भी फ़ैलाने लगी| हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों में इस की चर्चा हो रही थी| लोग चटकारे ले कर इसकी चर्चा करने लगे|अब कैलाश उनकी आर्थिक सहायता भी करने लगा|सामाजिक बदलाव के साथ साथ गाँव का परिदृश्य भी बदल गया था| जिन लड़कों का कहीं रिश्ता नहीं हो रहा था उनके रिश्ते बंगाल, बिहार और मध्यप्रदेश से होने लगे| या यूँ कहो बहुए खरीद कर लायी जाने लगी|इस प्रकार के रिश्तों में जातपात और धर्म का कोई अवरोध नहीं था| पहले रिश्ता करते समय कुल,खानदान,जाति,धर्म और बराबरी का बिचार किया जाता था| इन  सब के अलावा गोत्र ,शासन और कुंडली का मिलान भी किया जाता था|

       भ्रूण ह्त्या से यह समस्या और विकट होती जा रही है| अब हर गाँव में बिहार,ओड़िसा और मध्यप्रदेश से लायी गयी बहुए मिल जायेगी| माँ बाप लाखों खर्च कर के लड़के का घर बसाते है| परन्तु वही लड़का अपनी मर्जी से कोई अंतर जातीय विवाह कर लेता है तो समाज में तूफ़ान आ जाता है| उनका परिवार से बहिष्कार कर दिया जाता है| नयी पीढ़ी अपने रास्ते स्वयं बना रही है| एक गाँव या  एक गोत्र में शादी करने पर ह्त्या तक कर दी जाती है|इस सम्बन्ध में कई खाप पंचायते अपने अपने फरमान जारी कर चुकी है, जो कानून के खिलाफ और काफी खतरनाक भी है| लेकिन इन सब के उलटा कैलाश और रेशमा के सम्बन्ध पर कोई उबाल नहीं आया| फिर समाज में रिसते पहले की तरह इतने मजबूत नहीं थे | अब तक गाँव में भी पाश्चात्य सभ्यता और फिल्मों का प्रभाव आ चुका था| सभी अपने तक ही सीमित रहना उचित समझते थे|

       कैलाश पूर्ववत गाँव में विवाह शादी आदि समारोह में जाता रहा| और दूसरी और रेशमा के घर भी आना जाना बना रहा| कभी कभी वह रात को भी वहां रुकने लगा| एक दिन रेशमा ने एक लड़के को जन्म दिया| वह बिना शादी किये माँ बन चुकी थी| पुनः गाँव में एक विषय चर्चा के लिए आ गया था| दूसरी और कैलाश ने अपनी जिम्मेवारी पूरी निष्ठा से निभाई| उसके माँ बाप, माँ और पुत्र  को घर लाने को तैयार नहीं थे| काफी विवाद के बाद कैलाश रेशमा के घर पर ही रहने लगा| वहीँ रह कर वह डाक और जजमानी  करने लगा| हम उम्र मजाक में तो कैलाश से चुटकी ले लेते थे परन्तु कोई इस रिश्ते पर आपति नहीं करता था| करे भी कैसे? यही रिश्ता बंगाल और आसाम से होता तो सब ठीक था? इस पर जाती धर्म का कोई अवरोध नहीं था| फिर रेशमा का गाँव और धर्म भी दूसरा ही था| विवादों में फ़सने की बजाय लोगों ने दूर रहना ही उचित समझा |

       समय ने पुनः करवट ली और तीन साल के बाद रेशमा ने दूसरे पुत्र को जन्म दिया |इस बार रेशमा और उसकी माँ पहले की बजाय काफी सहज महसूस कर रही थी| गाँव और समाज से कोई छिन्टा कसी नहीं थी| विधवा पेंशन और कैलाश की सहायता से गुजर बसर चल रहा था| परतु परिवार बढ़ने के साथ साथ घर खर्च भी बढ़ने लगा |परन्तु आमदनी वही थी| रेशमा ने इधर उधर काम करने का प्रयास किया परन्तु सफलता नहीं मिली| उसने कैलाश की संपत्ति से अपना हिस्सा माँगने को कहा| परन्तु मिश्रा जी कुछ भी देने को तैयार नहीं हुए | मामला अदालत तक गया परन्तु मिश्रा जी के पास रहने के मकान के अलावा कुछ था ही नहीं| चुनाव प्रणाली ने आपस का भाई चारा भी ख़तम कर लिया था| गाँव में गुटबाजी आम हो गई थी| यह गुटबाजी दोनों पक्षों को हवा देने लगी| परिणाम स्वरुप बेटा परिवार से बहिष्कृत कर दिया गया|

       कुछ दिन कैलाश अपने ससुराल में ही रहा |परन्तु गुटबाजी का शिकार हो उसे गाँव भी छोड़ना पड़ा |वह अपनी सास , पत्नी और बच्चों के साथ नजदीक ही शहर में आ गया| यहाँ जीविका चलाना और भी कठिन हो गया था| डाक का काम छूट गया था| गाँव की जजमानी भी नहीं रही थी| और मकान का किराया भी देना पद रहा था|कम से कम गाँव में मकान किराया तो नहीं देना पद रहा था| अब रेशमा से वह रेशमी मिश्रा हो गई थी|उसने अपना मुस्लिम परिधान त्याग साडी पहनना आरम्भ  कर दिया था| जुबेदा हमेशा सूट सलवार ही पहनती थी| हाँ वह घर से बाहर कम ही निकलती थी|

       रेशमी घर में ही सिलाई और छपाई का काम आरम्भ किया | उसने अपना स्वयं सहायता समूह बनाया और जिला ग्रामीण विकास प्राधिकरण से प्रशिक्षण लिया|उसने एक बैंक से ऋण ले कर अपना काम आरम्भ किया| उसके पास खोने को तो कुछ था ही नहीं |निडर हो आत्मीयता से काम आरम्भ किया| आरम्भ में उसके साथ एक मोहल्ले की महिलाए जुडी|उसके उत्पाद उत्कृष्ठ गुणवत्ता के थे | लोंगों ने काफी पसंद किया| जिला स्तर की प्रतियोगता में  प्रथम स्थान पाया| इसके बाद उसे सूरजकुंड मेले में भी भाग लेने का मौका मिला| वहां पर उसकी मुलाक़ात   राजस्थान से आई रुमा देवी से हुई| रुमा देवी को अपनी हस्तकला की प्रदर्शनी का पहला अवसर दिल्ली के फैशन शो में मिला| विभिन्न तरह के कपड़ो और साड़ियों पर उनकी कशीदाकारी की इन शो में प्रदर्शनी की गई| इसके पश्चात राजस्थान हेरिटेज वीक जयपुर के फैशन शो में भी रूमा देवी ने भाग लिया| अब तक इन्हें कोई ख़ास लोकप्रियता हासिल नहीं हुई|अगली बार राजस्थान स्थापना दिवस पर आयोजित मेगा शो की फैशन प्रदर्शनी में रुमा शामिल हुई|. यह शो 112 देशों में प्रसारित किया गया था| राजस्थानी वेशभूषा को इस बार अच्छी पहुँच मिली और कई बड़े फैशन डिजायनरों के आर्डर आने लगे| मेहनत, संघर्ष और सफलता का मिश्रण बनी रूमा से रेशमी काफी प्रभावित हुई|उसने अपने उत्पादों में और निखार लाया और काफी संख्या में महिलाए उसके समूह से जुड़ने लगी| अब वह राजस्थानी हस्तशिल्प जैसे साड़ी, बेडशीट, कुर्ता समेत अन्य कपड़े लंदन, जर्मनी, सिंगापुर और कोलंबो तक भेजने लगी|

       रेशमी की सफलता की  कहानी आम चर्चा का विषय बन चुकी थी| कई मुस्लिम समुदायों ने उसे अपनी और खींचने की कोशीश की | इस विवाद के बाद रेशमा से रेशमी तक की कहानी सार्वजनिक हो गई| परतु इससे उसको कोई फर्क नहीं पडा |उसके समूह में सभी समुदायों की महिला आने लगी| मिश्रा जी भी बेटे बहु को अपना कहने लगे| अचानक एक दिन जुबेदा का देहांत हो गया| दोनों समुदायों ने अपने अपने रीती रिवाजों के अनुसार अंतिम क्रिया करने पर जोर दिया| प्रशाशन के हस्तक्षेप से ही धार्मिक संघर्ष होते होते टला| अंतिम फैसला रेशमी पर ही छोड़ दिया गया|

       दोनों समुदायों की सभा ने फैसला लिया  की जुबैदा जन्म और शादी के बाद भी मुस्लिम ही थी अतः उसका अन्तं संस्कार मुस्लिम रीती से किया जाना चाहिये| इस फैसले का कैलाश स्वागत किया| रेशमी ने मृत्यु  बाद की रस्में पूरी की | इसके बाद की रस्म सूहा और अरबिन कैलाश ने निभाई| हालाकि कैलाश इन सब से परिचित नहीं था परन्तु मुस्लिम समुदाय से प्रबुद्ध व्यक्तियों की सलाह अनुसार किया| कैलाश ने सभी वाजिब कार्य किये| यह घटना हिन्दू मुस्लिम एकता की एक मिसाल बन गया| समय गुजरने के साथ साथ कैलाश और रेशमी की कहानी लोग भूल गए थे |      

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