रिसते रिश्ते
दो शब्द
आधुनिकता की दौड़ में प्रगति के साथ
साथ हमारा सामाजिक पतन भी हो रहा है| पूरे गाँव में आपसी भाई चारा होता था |सभी एक
दूसरे का सम्मान करते थे| गाँव के बूढ़े
बुजर्गों को ताऊ ,दादा,चाची,दादी और माँ का सम्मान और संबोधन दिया जाता था | पड़ोस
की लड़की सभी की बेटी,बहिन या बुआ हुआ करती थी| जैसे हम अपनी बहिन या बुआ को सम्मान
देते थे वैसा ही सभी को मिलता था| शादी विवाह केवल एक परिवार का कार्यक्रम नहीं
होता था| इसमें पूरे गाँव का योगदान होता था| यह योगदान केवल शारीरिक ही नहीं यह
आर्थिक और मानसिक भी हुआ करता था| उस समय बरात तीन दिन तक रूकती थी| हर समय का
बारात का खाना और चाय नास्ता अलग अलग परिवारों से होता था | बारात का स्वागत सभी
आत्मीयता से करते थे |रात्री को बारात जनवासे में नहीं मिलती थी|एक एक बाराती अलग
अलग घरों में चले जाते थे | वहां उनकी भरपूर आवाभगत होती थी| उस समय चाय का इतना
प्रचलन नहीं होता था| हुक्का पानी की आवाभगत में कोई कमी नहीं होती थी| आराम और
सोने का उचित प्रबंध होता था|
समय के साथ हमारा परिधान,परिवेश और खानपान सभी बदल गया |संयुक्त परिवार से
एकाकी परिवार हो गए |अपने घर के बुजर्ग पराये हो गए |दूसरों की तो बात ही क्या?
विवाह और गमी केवल अपनो तक सिमित रह गयी| अपनो की परिभाषा भी बदल गई| जो मेरे आता
है मैं उसके जाउंगा |वह ही मेरा अपना है|
इसमें भाई और बहिन का कोई विचार नहीं है| विवाह घर की देहली की बजाय आजकल समारोह
स्थल पर होने लग गए| भाई चारा और आपसी लगाव ख़त्म हो गया | खर्चे बढ़ गए और आमदनी
सीमित रह गई| सामर्थ्य अनुसार खर्च की बजाय आपसी स्पर्धा बढ़ गई| पैसे की कमी
अनैतिक साधनों से की जाने लगी| समाज में दिखावा ज्यादा हो गया| नशे की लत बढ़ने
लगी| यह भी प्रतिष्ठा और समान का सूचक बन गया| गरीब और गरीब और अमीर और अमीर होने
लग गया| आपसी रिश्ते दरक गए| रिश्तों में दरार आ गयी | अपने घर में बेटी सुरक्षित
नहीं रही|
ऐसे परिद्रश्य में हिन्दू मुस्लिम सामंजस्य की कामना बेमानी है| परन्तु कुछ
घटनाए इस को पुनर्जीवित कर देती है| प्रस्तुत कहानी इन्हीं रिश्तों के ताने बाने
पर बुनी गई है| आशा है पाठकों को पसंद आएगी|
लेखक
रिसते
रिश्ते
कहानी ज्यादा पुरानी नहीं है| समय ने इस
पीढ़ी को कई परिवर्तन एक साथ दिखा दिए| टी वी,रेडियो,टेप रिकार्डर ,घडी,वी सी
आर,फ़ोन, अलार्म और न जाने क्या क्या आया और चले गए| इन सब का स्थान एक मोबाइल ने
ले लिया|पहले गाय को बच्छडा और एक पोता हो जाए तो ये माना जाता था की उस आदमी के दिन
संवर गए| परतु अब तो गाय बेचारी स्वयं कचरे में मुह मारती रहती है| आदमी के पास
पैसा चाहिए |कैसे आया इससे कोई लेना देना नहीं है| पहले कर्ज को एक कलंक समझा जाता था| परतु अब कर्ज एक सरकारी अनुदान
की तरह माना जाता है| मुफ्त की सरकारी योजनाये आमजन को मुफ्तखोर बना रही है|आज का
युवा काम चोर होता जा रहा है| कोई काम करना भी चाहे तो काम मिलता कहाँ है| इसके साथ ही समाज में आपसी सामंजस्य भी ख़तम
हो रहा है| गावों में रिस्तों में जो प्रगाढ था वह अब रिसने लगा है| रिश्तों के गिरते स्तर पर यह कहानी है|
मिश्रा जी का परिवार गाँव में अच्छी साख
रखता था|गाँव में पंडिताई करके गुजर बसर कर रहा था|उनका एक पुत्र कैलाश था |पढ़ाई
में वह चल नहीं पाया|
शीघ्र ही वह अपने पिताजी का काम में हाथ बताने लगा| संयोग से कैलाश को गाँव में ही
डाकिये की नौकरी मिल गई| पुस्तैनी काम के अलावा वह गाँव में डाक बांटने लगा| विवाह
शादी में वह फेरे करवाने लगा|चूँकि वह ज्यादा नहीं पढ़ा था संस्कृत के श्लोकों का
उच्चारण भी ठीक से नहीं कर सकता था| ज्यादातर वह मन में ही उच्चारण कर क्रिया क्रम
पूरे कर लेता था|पत्र बाँटते समय किसी किसी के निवेदन पर पत्र पढ़ कर भी सुना देता
था| किसी किसी के निवेदन पर पत्र लिख भी दिया करता था|जवानी की देहली पर कैलाश की
जिन्दगी पींगें ले रही थी|
भारत पाक बटवारे के बाद गाँव में कुछ
मुस्लिम परिवार गाँव वालों की सहमती से ही रुक गए थे |अब उनके लगभग पचास घर हो गए
थे| जमीर की बहिन नजदीक के गाँव में ही
ब्याही थी| उन का रंगाई का पुस्तैनी काम था | औधोगिकीकरण के कारण यह काम बंद हो
गया था| जुबेदा जमीर की बहिन के पति का एक बिमारी में देहांत हो गया था| वहां उनकी
देख भाल करने वाला कोई नहीं था| अतः जमीर अपनी बहिन जुबेदा को अपनी भांजी सहित अपने
घर ले आया था| जमीर की पत्नी का भी देहांत हो चूका था| कुछ साल जुबेदा के आराम से
गुजरे| अचानक उसके भाई जमीर का भी देहांत हो गया| अब जुबेदा और उसकी लड़की
रेशमा पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पडा था| घर
चलाने में भारी कठिनाई आ रही थी| मुस्लिम होने के कारण लोग घरों में काम करवाने
में भी संकोच करते थे|
डाक बाँटते एक दिन वह उनके घर की तरफ से
जा रहा था की उसे जुबेदा ने आवाज लगाईं| घर आने पर जुबेदा ने उसे एक फ़ार्म भरने को
दिया| वह फार्म बिधवा पेंशन का आवेदन पत्र था| फ़ार्म में वह जो जो पंक्तिया भर
सकता था भर दिया बाकी कल भर कर लाने का वादा करके फ़ार्म अपने साथ ले कर चला गया|
उसने अपने विद्यालय के अध्यापक की मदद से फ़ार्म पूरा किया और पेंशन की प्रक्रिया
को भी समझा| वादे के अनुसार वह फ़ार्म ले कर उनके घर पहुंचा| जहाँ जुबेदा और रेशमा
पहले से ही इंतज़ार कर रही थी| दरवाजे पर रेशमा आई और उसे अन्दर ले कर गई| कैलाश को
चारपाई पर बैठाया गया| उसके दाए बाए रेशमा और जुबेदा बैठ गई|उसने उनको फ़ार्म दिया
और आगे की प्रक्रिया समझाई| उस आवेदन के साथ उसके पति का मृत्यु प्रमाणपत्र,आधार
कार्ड,राशन कार्ड आदि आवश्यक दतावेज लगाने थे| उनके पास मृत्यु प्रमाणपत्र नहीं था
|यह बनवाने के लिए जुबेदा के ससुराल से पटवारी और सचिव से लिखवाकर देना था| जुबेदा
के लिए वहां जाना और कागजी कार्यवाही करवाना एक मुसकिल काम | जुबेदा रुवाशी हो गई
और अपनी मजबूरी जाहिर करने लगी| परन्तु कैलाश फ़ार्म दे कर अपने काम पर चला गया|
दूसरे दिन कैलाश को रेशमा रास्ते से पकड़
कर अपने घर ले आई| अभी तक वह उसे मामा कह केर संबोधित करती थी| परन्तु आज मामा की
जगह वह पंडितजी संबोधित कर रही थी| वैसे गाँव में लोग उसे पंडितजी के नाम से ही
संबोधन करते थे| जुबेदा भी उसे कभी भाई और कभी पंडितजी के नाम से संबोधन करने लगी|
अचानक रेशमा ने कहा यदि बुरा न मानो तो आप को चाय पिला देते है|हमारे घर से न पीवो
तो पड़ोस के हिदू परिवार से बनवा दे| इस पर कैलाश ने कहा ,“हिन्दू मुस्लिम की कोई
बात नहीं” | मैं शाकाहारी हूँ और आपके यहाँ अक्सर मांस बनता है|इसलिए चाय का लिए
परेशान न हो |इस पर रेशमा ने कहा आप मांस की बात
करते ,दो समय का खाना मिल जाए तो कम है| आप ने मुझे क्यों बुलाया है ,काम बताओ |रेशमा
कहने लगी पिताजी का मृत्यु प्रमाणपत्र बनवाने में आप की मदद चाहिए |कैलाश ने कहा
पटवारी और सचिव से लिखवा लिया क्या? रेशमा कहने लगी समस्या तो वहां जाने की ही है|
मैं आप दे साथ चलती हूँ दोनों जाकर लिखवा लायेगें |थोड़ी ना नुकर के बाद कैलाश
रेशमा के साथ जाने को सहमत हो गया|
कैलाश के सहयोग से जुबेदा की विधवा पेंशन
बन गई| बार बार घर आने जाने से कैलाश और रेशमा के मन में प्यार का अंकुर फूटने
लगा| कैलाश अब उनके छोटे मोटे बाहर के काम भी करने लगा| कुछ समय पश्चात वह उनके घर
की चाय भी पीने लगा|आरम्भ में जुबेदा इससे बेखबर थी| परन्तु यह उम्र जुबेदा की भी
आई थी| उसने अपनी मजबूरी और बेटी की उम्र को देख सब कुछ अनदेखा कर दिया| कैलाश
उनके यहाँ रोज आने लगा|अब मामा भांजी के रिश्ते बदल चुके थे|कैलाश के इस नए रिश्ते
की खबर आस पास में भी फ़ैलाने लगी| हिन्दू और मुस्लिम दोनों समुदायों में इस की
चर्चा हो रही थी| लोग चटकारे ले कर इसकी चर्चा करने लगे|अब कैलाश उनकी आर्थिक
सहायता भी करने लगा|सामाजिक बदलाव के साथ साथ गाँव का परिदृश्य भी बदल गया था| जिन
लड़कों का कहीं रिश्ता नहीं हो रहा था उनके रिश्ते बंगाल, बिहार और मध्यप्रदेश से
होने लगे| या यूँ कहो बहुए खरीद कर लायी जाने लगी|इस प्रकार के रिश्तों में जातपात
और धर्म का कोई अवरोध नहीं था| पहले रिश्ता करते समय कुल,खानदान,जाति,धर्म और
बराबरी का बिचार किया जाता था| इन सब के
अलावा गोत्र ,शासन और कुंडली का मिलान भी किया जाता था|
भ्रूण ह्त्या से यह समस्या और विकट होती
जा रही है| अब हर गाँव में बिहार,ओड़िसा और मध्यप्रदेश से लायी गयी बहुए मिल
जायेगी| माँ बाप लाखों खर्च कर के लड़के का घर बसाते है| परन्तु वही लड़का अपनी
मर्जी से कोई अंतर जातीय विवाह कर लेता है तो समाज में तूफ़ान आ जाता है| उनका
परिवार से बहिष्कार कर दिया जाता है| नयी पीढ़ी अपने रास्ते स्वयं बना रही है| एक
गाँव या एक गोत्र में शादी करने पर ह्त्या
तक कर दी जाती है|इस सम्बन्ध में कई खाप पंचायते अपने अपने फरमान जारी कर चुकी है,
जो कानून के खिलाफ और काफी खतरनाक भी है| लेकिन इन सब के उलटा कैलाश और रेशमा के
सम्बन्ध पर कोई उबाल नहीं आया| फिर समाज में रिसते पहले की तरह इतने मजबूत नहीं थे
| अब तक गाँव में भी पाश्चात्य सभ्यता और फिल्मों का प्रभाव आ चुका था| सभी अपने
तक ही सीमित रहना उचित समझते थे|
कैलाश पूर्ववत गाँव में विवाह शादी आदि
समारोह में जाता रहा| और दूसरी और रेशमा के घर भी आना जाना बना रहा| कभी कभी वह
रात को भी वहां रुकने लगा| एक दिन रेशमा ने एक लड़के को जन्म दिया| वह बिना शादी
किये माँ बन चुकी थी| पुनः गाँव में एक विषय चर्चा के लिए आ गया था| दूसरी और
कैलाश ने अपनी जिम्मेवारी पूरी निष्ठा से निभाई| उसके माँ बाप, माँ और पुत्र को घर लाने को
तैयार नहीं थे| काफी विवाद के बाद कैलाश रेशमा के घर पर ही रहने लगा| वहीँ रह कर
वह डाक और जजमानी करने लगा| हम उम्र मजाक
में तो कैलाश से चुटकी ले लेते थे परन्तु कोई इस रिश्ते पर आपति नहीं करता था| करे
भी कैसे? यही रिश्ता बंगाल और आसाम से होता तो सब ठीक था? इस पर जाती धर्म का कोई
अवरोध नहीं था| फिर रेशमा का गाँव और धर्म भी दूसरा ही था| विवादों में फ़सने की
बजाय लोगों ने दूर रहना ही उचित समझा |
समय ने पुनः करवट ली और तीन साल के बाद
रेशमा ने दूसरे पुत्र को जन्म दिया |इस बार रेशमा और उसकी माँ पहले की बजाय काफी
सहज महसूस कर रही थी| गाँव और समाज से कोई छिन्टा कसी नहीं थी| विधवा पेंशन और
कैलाश की सहायता से गुजर बसर चल रहा था| परतु परिवार बढ़ने के साथ साथ घर खर्च भी
बढ़ने लगा |परन्तु आमदनी वही थी| रेशमा ने इधर उधर काम करने का प्रयास किया परन्तु
सफलता नहीं मिली| उसने कैलाश की संपत्ति से अपना हिस्सा माँगने को कहा| परन्तु
मिश्रा जी कुछ भी देने को तैयार नहीं हुए | मामला अदालत तक गया परन्तु मिश्रा जी
के पास रहने के मकान के अलावा कुछ था ही नहीं| चुनाव प्रणाली ने आपस का भाई चारा
भी ख़तम कर लिया था| गाँव में गुटबाजी आम हो गई थी| यह गुटबाजी दोनों पक्षों को हवा
देने लगी| परिणाम स्वरुप बेटा परिवार से बहिष्कृत कर दिया गया|
कुछ दिन कैलाश अपने ससुराल में ही रहा
|परन्तु गुटबाजी का शिकार हो उसे गाँव भी छोड़ना पड़ा |वह अपनी सास , पत्नी और
बच्चों के साथ नजदीक ही शहर में आ गया| यहाँ जीविका चलाना और भी कठिन हो गया था|
डाक का काम छूट गया था| गाँव की जजमानी भी नहीं रही थी| और मकान का किराया भी देना
पद रहा था|कम से कम गाँव में मकान किराया तो नहीं देना पद रहा था| अब रेशमा से वह
रेशमी मिश्रा हो गई थी|उसने अपना मुस्लिम परिधान त्याग साडी पहनना आरम्भ कर दिया था| जुबेदा हमेशा सूट सलवार ही पहनती
थी| हाँ वह घर से बाहर कम ही निकलती थी|
रेशमी घर में ही सिलाई और छपाई का काम
आरम्भ किया | उसने अपना स्वयं सहायता समूह बनाया और जिला ग्रामीण विकास प्राधिकरण
से प्रशिक्षण लिया|उसने एक बैंक से ऋण ले कर अपना काम आरम्भ किया| उसके पास खोने
को तो कुछ था ही नहीं |निडर हो आत्मीयता से काम आरम्भ किया| आरम्भ में उसके साथ एक
मोहल्ले की महिलाए जुडी|उसके उत्पाद उत्कृष्ठ गुणवत्ता के थे | लोंगों ने काफी
पसंद किया| जिला स्तर की प्रतियोगता में
प्रथम स्थान पाया| इसके बाद उसे सूरजकुंड मेले में भी भाग लेने का मौका
मिला| वहां पर उसकी मुलाक़ात राजस्थान से आई रुमा देवी से हुई| रुमा
देवी को अपनी हस्तकला की प्रदर्शनी का पहला अवसर दिल्ली के फैशन शो में मिला|
विभिन्न तरह के कपड़ो और साड़ियों पर उनकी कशीदाकारी की इन शो में प्रदर्शनी की गई|
इसके पश्चात राजस्थान हेरिटेज वीक जयपुर के फैशन शो में भी रूमा देवी ने भाग लिया|
अब तक इन्हें कोई ख़ास लोकप्रियता हासिल नहीं हुई|अगली बार राजस्थान स्थापना दिवस
पर आयोजित मेगा शो की फैशन प्रदर्शनी में रुमा शामिल हुई|. यह शो 112 देशों में
प्रसारित किया गया था| राजस्थानी वेशभूषा को इस बार अच्छी पहुँच मिली और कई बड़े
फैशन डिजायनरों के आर्डर आने लगे| मेहनत, संघर्ष और सफलता का मिश्रण बनी रूमा
से रेशमी काफी प्रभावित हुई|उसने अपने उत्पादों में और निखार लाया और काफी संख्या
में महिलाए उसके समूह से जुड़ने लगी| अब वह राजस्थानी हस्तशिल्प जैसे साड़ी, बेडशीट, कुर्ता समेत अन्य
कपड़े लंदन, जर्मनी, सिंगापुर और
कोलंबो तक भेजने लगी|
रेशमी की सफलता की कहानी आम चर्चा का विषय बन चुकी थी| कई मुस्लिम
समुदायों ने उसे अपनी और खींचने की कोशीश की | इस विवाद के बाद रेशमा से रेशमी तक
की कहानी सार्वजनिक हो गई| परतु इससे उसको कोई फर्क नहीं पडा |उसके समूह में सभी
समुदायों की महिला आने लगी| मिश्रा जी भी बेटे बहु को अपना कहने लगे| अचानक एक दिन
जुबेदा का देहांत हो गया| दोनों समुदायों ने अपने अपने रीती रिवाजों के अनुसार
अंतिम क्रिया करने पर जोर दिया| प्रशाशन के हस्तक्षेप से ही धार्मिक संघर्ष होते
होते टला| अंतिम फैसला रेशमी पर ही छोड़ दिया गया|
दोनों समुदायों की सभा ने फैसला लिया
की जुबैदा जन्म और शादी के बाद भी मुस्लिम ही थी अतः उसका अन्तं संस्कार मुस्लिम
रीती से किया जाना चाहिये| इस फैसले का कैलाश स्वागत किया| रेशमी ने मृत्यु बाद की रस्में पूरी की | इसके बाद की रस्म सूहा
और अरबिन कैलाश ने निभाई| हालाकि कैलाश इन सब से परिचित नहीं था परन्तु मुस्लिम
समुदाय से प्रबुद्ध व्यक्तियों की सलाह अनुसार किया| कैलाश ने सभी वाजिब कार्य
किये| यह घटना हिन्दू मुस्लिम एकता की एक मिसाल बन गया| समय गुजरने के साथ साथ कैलाश और रेशमी
की कहानी लोग भूल गए थे |
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