नमेरी राष्ट्रीय उद्यान
नमेरी राष्ट्रीय उद्यान असम राज्य के शोणितपुर ज़िले में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान है।यह पूर्वी हिमालय के गिरिपीठ में स्थित है |तेजपुर से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, नमेरी राष्ट्रीय उद्यान सोनितपुर जिले के अंतर्गत आता है। राष्ट्रीय पार्क लगभग 200 वर्ग कि.मी क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी उत्तरी सीमायें अरुणाचल प्रदेश के पाखुइ वन्यजीव अभयारण्य के साथ जुड़ी हुई हैं। निचले हिमालय की तलहटी पर स्थित नमेरी राष्ट्रीय उद्यान विविध वनस्पतियों और जीवों की कई प्रजातियों का आश्रय स्थल है। पार्क में हाथी बड़ी संख्या में हैं, जबकि यह तेंदुए, जंगली काले भैंसे, काले भालू जंगली सूअर, कैप्ड लंगूर आदि का भी निवास स्थल है। पर्यटक यहां हार्नबिल्स, प्लोवर, वुड बतख, पतेना और बकवादी जैसे पक्षियों को देखने का भी आनंद ले सकते हैं। पार्क के अंदर प्रवाहित होने वाली कई छोटी छोटी नदियों का भी पर्यटक लुत्फ उठा सकते हैं। यह स्थान मछली पकड़ने के लिए भी काफी लोकप्रिय है क्योंकि मछली पकड़ने के लिए एक आदर्श स्थल है। इस पार्क की यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा समय नवम्बर से मई तक है। पर्यटक गुवाहाटी (198 किलोमीटर) से सीधे पार्क पहुंच सकते हैं या रास्ते में तेजपुर में ठहराव लेकर भी यहां पहुंचा जा सकता है।
दौड़ती भागती जिंदगी से दो पल आराम के कौन नहीं चाहता हैं और इसके लिए लोग क्या कुछ नहीं करते हैं, कई लोग योगा करते हैं तो कई पहाड़ो पर घूमने जाते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारें में बताने जा रहे हैं जहां जाकर ना सिर्फ आप तरो ताजा महसूस करेंगे बल्कि प्राकृति के और भी करीब आ जाएंगे यहां पेड़ों की 600 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। असम के तेजपुर से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सोनीपुर जिले में है| यहां आप को हाथी देखने को मिलेंगे। इस पार्क में पक्षियों की ढेरों प्रजातियां पाई जाती हैं|इस क्षेत्र में लिया-भोरोली और इसकी सहायक नदियों (दिजी,दिने, दोइगुरुंग, नामेरी, दिकोरै,खरी आदि) का जाल फैला हुआ है|वर्षा ऋतू में कुछ झील भी दिखाई देती है|
यहाँ पर पंखों वाले जंगली बतख, महान चितकबरा हॉर्नबिल, माल्यार्पण हॉर्नबिल, रुफौस चुम्मा हॉर्नबिल, काले सारस, इबिस बिल, बड़ी सीटी चैती, आम मेर्गेर्न्सेर, राजा गिद्ध, लंबे बिल की अंगूठी प्लोवर, खल्लेज तीतर, हिल मैना, पिन पूंछ हरे कबूतर, हिमालयन चितकबरा हॉर्नबिल आदि पक्षी पाए जाते है| सरी सर्प:- किंग कोबरा, कोबरा, पिट वाइपर, रसेल वाइपर, बैंडेड क्रेट, पायथन, राइट सांप, असम रूफ टर्टल, मलयान बॉक्स कछुए, कीलड बॉक्स कछुए, एशियाई पत्ता कछुए, संकीर्ण मुलायम शेलड कछुए, भारतीय मुलायम शेलड कछुए, आदि पाए जाते हैं|
मछलियाँ:- यहाँ पर गोल्डन महासेर, शार्ट गिल महासेर, सिल्गारिया, आदि किंगफिशर, थ्री टूड किंगफिशर, फेयरली ब्लू बर्ड इत्यादि मछलियाँ पाई जाती है|
टाइगर, तेंदुए, ब्लैक पैंथर, क्लाउड तेंदुए, लेडी बिल्लियों, स्लोथ बीयर, हिमालयी ब्लैक बीयर, हाथी, भारतीय बाइसन, ढोल, सांबर, बार्किंग हिरण, कुत्ते हिरण, फॉक्स, हिसपिद हरे, भारतीय हरे, कैप्ड लैंगुर, धीमी लॉरीस, असमिया मैकक, रीसस मैकक, हिमालयी पीले थ्रोटेड मार्टिन, मलयान विशाल गिलहरी, फ्लाइंग गिलहरी, जंगली सुअर इत्यादि जंगली पशु पाए जाते है।
उत्तर पूर्व भारत की तितलिया:-पूर्वी असम में जंगल का निवास उष्णकटिबंधीय सदाबहार, अर्ध-सदाबहार, असम घाटी गीले सदाबहार जंगल, नम पर्णपाती जंगलों और बेंत घास के मैदान से गन्ना और बांस ब्रेक और खुले घास के मैदानों के झरनों से बना है जो तितलियों के लिए उपयुक्त आवास है। तितलियों विभिन्न जलवायु क्षेत्र और आवास में प्रचलित सबसे विविध जीवों में से एक हैं|कई अन्य प्राणियों के विपरीत तितलियों, हिंसक हमले से लड़ने के लिए डंक या काटने नहीं कर सकते हैं। इसलिए, शिकारियों से बचने के लिए, तितलियों ने अंडा से वयस्क स्तर तक, विभिन्न सुरक्षात्मक अनुकूलन विकसित किए हैं। गर्म खून वाले जानवरों के विपरीत तितलियों में लगातार शरीर का तापमान नहीं होता है। उनका शरीर का तापमान आस-पास के परिवेश के तापमान पर निर्भर करता है।कम तापमान उनके शारीरिक प्रक्रिया को धीमा कर देता है। तितलियों को अपने तापमान को नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है और इसलिए वे सूरज की रोशनी में अपने तापमान को कम करने के लिए एक पत्ते के नीचे छुप सकती हैं।
यह क्षेत्र तितली उत्साही के लिए मक्का है। इस क्षेत्र में कुल 1501 प्रजातियों में से 50 प्रतिशत से अधिक पाई जाती है। नामरी नेशनल पार्क में अब तक दर्ज की गई प्रजातियां पापीलिओनिडे (14 स्पीसी), निम्फालिडे (62 प्रजातियां), पेरिडे (17 प्रजातियां), लाइकाइडेडे (1 9 प्रजातियां) और हेस्परिडे (12 स्पीसी) हैं।
वनस्पति एवं पशुवर्ग :-नमेरी का निवास उष्णकटिबंधीय सदाबहार, अर्द्ध सदाबहार, नमक पर्णपाती जंगलों से बना है जो बेंत और बांस ब्रेक और नदियों के साथ खुले घास के मैदान के संकीर्ण पट्टियों से बना है। घास के मैदानो में पार्क के कुल क्षेत्रफल का 10% से भी कम है, जबकि अर्द्ध सदाबहार और नम पर्णपाती प्रजातियां क्षेत्र पर हावी होती हैं। कुछ उल्लेखनीय प्रजातियां गमारी,तिताचोपा,अमरी , बोगिपोमा,अजर, उरीम पोमा, भेलौ, अग्रू, रुद्राक्ष, बोनजोलोकिया, हैटिपोलिया अखाकान, अहलॉक, नाहोर, सिया नाहर, सिमुल, बोन्सम आदि हैं। ऑरोचिड्स में डेंडरोबियम, सिम्बिडियम, लेडीज़ स्लीपर इत्यादि शामिल हैं। ट्री फर्न, लिआनास, क्रीपर्स इस जंगल की कुछ विशेषताओं हैं।सबसे मूल्यवान और सबसे महत्वपूर्ण खोज व्हाइट विंगड वुड डक है, जिसकी नामांकन नेमेररी में 1995 में आधिकारिक तौर पर पुष्टि की थी। अब तक पार्क में 315 एवियन प्रजातियां दर्ज की गई हैं।
कैसे पहुंचे:- गुवाहाटी हवाई अड्डे पर पहुंचे और सड़क से नमेररी पहुंचे। नियमित उड़ान भारतीय गुवाहाटी-बागडोग्रा, कोलकाता, नई दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, चेन्नई, जयपुर, हैदराबाद, गोवा, डिब्रूगढ़, जोरहाट से भारतीय एयरलाइंस (एयर इंडिया), जेट एयरवेज, जेटलाइट, इंडिगो, और गो एयर संचालित होती है। । ड्रुकेयर गुवाहाटी के साथ सप्ताह में दो बार बैंकाक और पारो (भूटान) को जोड़ता है।
तेजपुर हवाई अड्डे को सैलोनिबरी हवाई अड्डे के रूप में भी जाना जाता है, जो निकटतम हवाई अड्डा है जो शहर के केंद्र से बलिपारा तक सड़क पर 8 किलोमीटर दूर है। तेजपुर में एयरफील्ड का निर्माण १९४२ में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश रॉयल इंडियन वायुसेना द्वारा किया गया था। इसका इस्तेमाल 7 वें बमबारी समूह द्वारा बी -24 लाइबेरेटर भारी बॉम्बर बेस के रूप में संयुक्त राज्य आर्मी एयर फोर्स दसवीं वायुसेना द्वारा किया गया था। युद्ध के बाद, इसे बाद में में एक पूर्ण वायुसेना बेस में विकसित किया गया। इसकी स्थापना के बाद से यह भारत के पूर्वोत्तर में सबसे सक्रिय अड्डों में से एक रहा है। हालांकि, तेजपुर हवाई अड्डे से घरेलू उड़ानें वापस ले ली गई हैं।
कार्य कलाप :- वन अधिकारियों और जंगल गार्ड के साथ आयोजित मोटी जंगल और सूखे नदी के किनारे के माध्यम से प्रकृति के निशान, पक्षी आदि आगंतुकों को देखने का मौका प्रदान करते हैं। पक्षी विविध और प्रचुर मात्रा में है जिसमें लगभग 400 प्रजातियां हमेशा मिल जायेगी । नमरी के सबसे महत्वपूर्ण एवियन निवासी व्हाइट-पंख वाले बतख हैं। अन्य प्रमुख पक्षियों में व्हाइट-गालड पार्ट्रिज, ग्रेट, माली, और रूफस-गर्दन हॉर्नबिल्स, रुड्डी, ब्लू-ईयर और ओरिएंटल बौना शामिल हैं| किंगफिशर, ओरिएंटल हॉबी, अमूर फाल्कन, जेरडन और ब्लैक बाजा, पलास, ग्रे-हेड, और लेसर फिश ईगल्स, सिल्वर समर्थित बैकलेट, माउंटेन इंपीरियल कबूतर, ब्लू-नेपड पिट्टा, स्लेण्डर-बिल ओरिओल, हिल ब्लू फ्लाईकैचर, व्हाइट-क्राउन फोर्कटेल, सुल्तान टिट, ब्लैक-बेलेड टर्न, जेरडन बाब्बलर, रूफस बैकड सिबिया, पीले-बेलेड फ्लॉवरपेकर, रेड-थ्रोटेड पिपिट, लांग-बिल प्लोवर और इबिस्बिल।
पूरे परिवार के लिए जिया-भोरोली नदी के सौम्य रैपिड्स में राफ्टिंग अनिवार्य रूप से आनंददायक यात्राएं हैं। नदी-राफ्टिंग इबिसबिल और लांग-बिल प्लोवर जैसे पक्षियों को देखने का एक लोकप्रिय और सुखद तरीका है। नदी पर पार्क के दक्षिण पूर्व में नदी राफ्टिंग की अनुमति है-राफ्टिंग आमतौर पर 13 किमी शुरू होती है। अपस्ट्रीम और बिना रुकावट के पूरा होने में लगभग 3 घंटे लगते हैं।
इतनी प्रशंशा सुनने के बाद अनवी का मन भी नमेरी राष्ट्रीय उद्यान घुमाने को हुआ| उसने अपनी छुट्टियों का कार्यक्रम बनाया | पालम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरने के बाद जहाज़ की खिड़की से नीचे झाँका तो दिल्ली काले धुएं की गहरी चादर में लिपटी थी। धीरे धीरे धुआँ छटने लगा और उत्तरी क्षितिज पर धौलाधार के बर्फीले पहाड़ चमकने लगे। शहर की भीड़-भाड़, गन्दगी और भागदौड़ भरी जिन्दगी से मुक्ति का सुखद अहसास। शायद बादलों के पार की हिम-मण्डित रचनाएँ एक रहस्यमय सँसार का आभास दे रही है जिसमें अपनी काया से बाहर विचरण करने वाले और पक्षियों से बात करने वाले हज़ार-साला साधु निवास करते हैं|अचानक बादलों में मुझे एक मानव आकृति दिखाई दी | मुझे ऐसा आभास हुआ जैसे वश आक्रति मुझे बाला रही हो| गोर से देखने पर कभी शिबांगी, कभी मेरी विद्यालय में मैडम और कभी मेरी अन्य सहेलियों जैसी आकृति दिखाई देती थी| अजब झोल है। जहाज़ की खिड़की से हरयाली और बरसाती बहाव के मार्ग दिखने लगे हैं। पूर्वोत्तर भारत की मेरी यह यात्रा परिचित सी लग रही थी । क्रू ने खिला-पिला कर उनके साथ यात्रा करने के लिए धन्यवाद दिया। अब गौहाटी उतरने के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग 27 से तेजपुर और तेज़पुर से नामेरी राष्ट्रीय उद्यान। सड़क किनारे नारियल पानी और बाँस के सामान की दुकाने थी । साफ़ हवा और हरे-सुनहरे खेतमन मोहक लग रहे थे । हवाई जहाज़ का सफर समय तो बचाता है पर सैलानियों को सुख सड़क ही देती है। दो घंटे कैसे बीत गए यह पता ही नहीं चला|
पूरे रास्ते शिबांगी मुझे बताती रही की असम में और कहाँ क्या देखे| तेजपुर भी अपने अंदर ऐतिहासिक स्थलों को समेटे हुए है। ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित यह शहर एक बेहद शांत जगह है। यहां पर बड़ी संख्या में पयर्टक आते हैं। तेजपुर में अग्निगढ़, कोलिया भोमोरा सेतु, पदम पुखुरी, महाभैरव मंदिर, हलेश्वर मंदिर आदि घूमने की खास जगहों में शामिल हैं। डिगबोई नगर छोटा है लेकिन आकृषण के मामले में कम नही है। 19वीं सदी के अंत में यहां कच्चे तेल की खोज हुई थी। इसलिए इसे असम की तेल नगरी के रूप में भी जाना जाता है। यहां नामेरी राष्ट्रीय उद्यान, बुरा-चापोरी वन्यजीव अभयारण्य, नागशंकर मंदिर और केतकेश्वर देवल आदि घूमने की जगहें हैं।दिफू भी असम के छोटे शहरों में गिना जाता है लेकिन इसकी भी जितनी तारीफ की जाए कम है। दिफू में भी घूमने की एक से बढ़कर एक खूबसूरत जगहे हैं। यहां पर बॉटनिकल गार्डन, जिला संग्रहालय, अर्बोरेटम, तरलांगो सांस्कृतिक केंद्र जैसी जगहें घूमने के स्थान हैं। जहां बड़ी संख्या में पयर्टक आते हैं।गोलाघाट भी यहां के पयर्टन स्थलों में एक है क्योंकी यहां काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान स्थित है। यूनेस्को के विश्व विरासत में शामिल यह उद्यान गैंडों के लिए प्रसिद्ध है। यहां हाथी, एशियाई भैंसे, धमाचौकड़ी करते हरिन और बाघ भी देखने को मिल जाते हैं। वहीं रंग-बिरंगे पक्षी भी पयर्टकों को आकर्षित करते हैं।सुरमा नदी पर स्थित सिलचर भी असम की शान को बढ़ाने वाले स्थलों में शामिल हैं। यहां चाय के बागानों के अलावा चावल की खेती भी होती है। सिलचर में पयर्टकों को घूमने के लिए भुवन मंदिर, कंचन कांति काली मंदिर, खासपुर, मणि हरण सुरंग, गांधी बाग के अलावा इस्कॉन मंदिर आदि हैं।असम का डिब्रूगढ़ इलाका भी बहुत ही खूबसूरत है। असम के डिब्रूगढ़ में ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे शाम के समय डूबता हुआ सूरज देखना पयर्टकों को काफी अच्छा लगता है। इसके अलावा डिब्रूगढ़ में घूमने के लिए दीन्जोय सतरा, दीहिंग सतरा और कोलीआई थान जैसे कई दूसरे ऐतिहासिक व प्राचीन स्थल बने है|
घने जँगलों में पर्यटकों को एक सुरक्षित दायरे तक ही प्रवेश की अनुमति मिलती है। उसके आगे जाने के लिए वन विभाग की कृपा ही एकलौता मार्ग है। यदि जँगल ही देखना है तो नमदफा जाओ ! तो नमदफा राष्ट्रीय उद्यान का मानस पक्का हुआ और सुदूर पूर्वोत्तर का कार्यक्रम बन गया और हम नामेरी राष्ट्रीय उद्यानपहुँच गए| हमारे रुकने की व्यवस्था नामेरी के नजदीक एक आदिवासी गाँव थी। तेज़पुर से इस गाँव का रास्ता करीब 38 किलोमीटर है | अरुणांचल सीमा वहाँ से मात्र दस किलोमीटर की दूरी पर है। वहाँ खाने को क्या मिलेगा कैसा मिलेगा को लेकर हम थोड़ा आशंकित थे। आगे कोई और कस्बा नहीं है इसलिए कुछ फल और नमकीन हमने तेज़पुर से ख़रीदे।पूर्वांचल में सर्दियों की साँझ चार बजे ही ढल आती है। गाँव पहुँचे तो अच्छी भली चाँदनी रात घिर आयी थी। छोटे से गाँव में मध्यम रौशनी में हमारा प्रवेश हुआ। हरी घास के बीच में लकड़ी ओर बाँस के छप्पर और झोपडिया बनी हुई थी। एक बड़े से पेड़ के नीचे टेंट लगा कर हमारे ठहरने की व्यवस्था की हुई थी जिसमें आराम दायक बिस्तर था । लॉन के बीच जलते अलाव के इर्द-गिर्द आदिवासियों का समूह बैठा था। एक तरफ रसोई में अच्छा सस्ता शाकाहारी खाना बन रहा था । हम भी खाना खा कर अलाव के पास घंटों बैठे बतियाते रहे । सारे दिन के सफर के बाद भी थकान का नामोनिशां नहीं था। सर्दियों की चादनी रातें यूँ ही बहुत दिलक़श होती हैं पेड़ पौधों की आकृतियाँ मन के मुताबिक आकार ले रही थी|और तारों भरी रात , जँगल की खुशबू और लकड़ियों की आँच मन को दुलाये मान कर रही थी ।लेकिन सुबह छः बजे जल्दी तैयार हो कर नामेरी के घने जँगल में जाना था| पशु-पक्षियोँ की भी दिनचर्या होती है और उन्हें देखना हो तो प्रातःकाल या शाम का समय सही होता है। वे सुबह-शाम भोजन पानी के लिए खुले में निकलते हैं और हल्का दिन चढ़ते ही अपने घरों में लौट जाते हैं।
बिस्तर से सिर टिकाते ही नीँद ने आ घेरा।आँख खुली पाँच बजे। तैयार हो चाय पी इतने में सूरज की रौशनी फूट पड़ी। कैंप के पेड़ों पर बन्दरों की धमाचौकड़ी चालू हो गयी। मेरे सामने के घर वाली आदिवासी महिला पक्षी की आवाज़ निकालती है जिसके जवाब में कहीं से कोई पक्षी जवाब देता है। अचानक से एक ग्रेट हार्नबिल सन्न से निकलता है | परंतू मेरे पास मेरा कैमरा नहीं था । मैंने अवसर गंवाया और पूरी यात्रा में मैं हार्नबिल का एक भी फोटो नहीं ले पायी। फारेस्ट गार्ड के ऑफिस से जँगल का पास बनवा कर लाती हूँ। नामेरी के जँगल में बिना गार्ड जाने की अनुमति नहीं है।गाँव से डेढ़ किलोमीटर दूरी पर ही गाड़ी उतार देती है | एक शांत स्वच्छ नीले जल की धारा के तट पर जिस का नाम -जिया भोरेली। कहीं गन्दगी या प्रदूषण का नामो -निशाँ नहीं था । उस पार घना जँगल पहाड़ बर्फीली चोटियाँ दिखाई डे रही थी । चप्पू वाली नाव से नदी की धारा पार की तो सूखी रेत पर चमकते के मोटे कणों पर हाथियों के पैरों के निशान दिखाई दिए डे रहे थे । मल्लाहों के ख्याल से हाथियों को पानी पी कर गए ज्यादा समय नहीं हुआ।
नदी पार का जँगल बहुत घना है। सैलानियों को मात्र दो ट्रेल पर जाने की अनुमति है - एक सात किलोमीटर लंबी और दूसरी तेरह किलोमीटर लम्बी। नामेरी की प्रसिद्ध 'वाइट विंग वुड डक' और 'सुल्तान बर्ड' देखने जाना हो तो छोटी ट्रेल जाना होता है। बहुत सारी अब तक अनदेखी लाल-पीली-हरी-काली चिड़िया देखते हुए हम चुपचाप आगे बढ़ते हैं | हमें बाक़ायदा चुप रहने की हिदायत के साथ आगे बढ़ते रहने और दबे पाँव तालाब के किनारे पहुँचे लेकिन हमारे पैरों की आवाज़ का आभास उन्हें फिर भी हो गया था । हम उसके दूर होते परों की एक झलक भर देख पाए। वापसी में नदी किनारे की ट्रेल पर बाघ के पँजों के ताज़ा निशान और मिटटी पर कुछ घसीटे जाने के निशान दिखाई पड़े। शायद अभी अभी कोई बाघ शिकार घसीट कर ले गया था। हमने गार्ड से मिन्नतें शुरू कर दी की हमें ओई बाघ दिखा दे | बतख तो तूने दिखाये नहीं। उसने अपने मोबाइल पर एक गार्ड पर बाघ के झपटने की फोटो दिखाई, इसके बाद किसीने बाघ दिखाने का आग्रह नहीं किया । अब तो बहस का कोई सवाल ही न था। ताज़ा शिकार के साथ बाघ बहुत आक्रामक होता है।
ट्रेल के अन्तिम सिरे पर चाय की दुकान पर बैठ कर हमने चाय पी। बतख ठीक से न दिख पाना मन में थोड़ा असन्तोष हो रहा था, पर विशाल गिलहरी के मामले में हम भाग्यशाली रहे।गार्ड ने जब इशारा किया तो टहनियों के बीच से उसकी बड़ी पूँछ दिखाई दे रही थी। इस आकर की गिलहरी देश में नामेरी में ही पायी जाती है। वापिस गाँव लौटे तो ग्यारह बज चुके थे । थकान काफी हो गयी थी। खाना खा कर सोये तो चार बजे नींद खुली। शाम की जँगल सफारी का समय निकल चुका था। तय किया कि ढलती शाम का सिंदूर जिया भोरेली पर बिखरते देखा जाये। हमने ड्राइवर से आग्रह किया कि हमें नदी किनारे किसी और जगह ले जाये। ले तो जाऊँगा पर उधर थोड़ा खतरा है जगह थोड़ा अंदर में है और यह बोडो उग्रवादियों का इलाका है| काफी उहापोह के बाद कोई बीस किलोमीटर जंगल के अन्दर के भाग की यात्रा के बाद हम फिर जिया भोरेली के तट पर पहुंचे । पास में सेना का कैंप था। सेना की यूनिट पास होने के कारण हम अपने आप को काफी सुरक्षित महसूस कर रहे थे| नदी किनारे एक मन्दिर था जहाँ सेना की तरफ से प्रसाद वितरण किया जा रहा था । धीरे धीरे नदी पर्वत आसमाँ सब सुरमयी हो चले और पानी पर जैसे केसर बिखर गया हो । नदी के पानी में पैर डाल धीरे धीरे डूबती साँझी में मैं भी ढलती जा रही थी । मन्दिर में आये जवान सड़क पर नाचते गाते जा रहे ।
आज सुबह निकलते सात बज गए। जिया भोरेली पार कर लम्बी ट्रेल का रुख किया तो पैर मशीन की तरह चल रहे थे। मन में जच गयी कि आज कुछ नहीं दिखाई देने वाला। कोई आधा किलोमीटर ही चले होंगे कि गार्ड ने आवाज़ ना करने का इशारा किया। नज़र उठायी तो सामने खुले मैदान में एक हथिनी अपने छोटे से बच्चे के साथ चर रही थी। बच्चा छोटा हो तो हथिनी बहुत आक्रामक हो जाती है। हमें बहुत धीमे हल्के पैरों से मैदान पार करना था। एक तरफ हथिनी थी और दूसरी तरफ सिर की ऊँचाई जितनी घास। 'इसमें बाघ हो सकता है ?' मैंने गार्ड से फुसफुसा कर पूछा। उसने हामी में सिर हिला दिया। अब एक तरफ बाघ का भय और दूसरी तरफ हथिनी ने हमें देख लिया था। जँगल का थ्रिल अब समझ आ रहा था। हथिनी ने तमाम कोशिश के बावजूद हमें देख लिया था। उसने अपना बच्चा हमारी नज़र से छिपा लिया। उसकी तरफ देखते देखते लगभग भाग कर ही मैदान पार किया। मैदान खत्म कर फिर बड़े पेड़ों का जँगल आया तो साँसे सामान्य हुईं।
सुबह का आलस्य अब पूरी तरह दूर हो चूका था । रँग बिरंगी चिड़ियों की चहचाहट के बीच पहली वॉच टावर पहुँचे तो जँगल की सघनता के कारण हरियाली से परे कुछ दिखाई न दिया। यहाँ से दूसरी वॉच टावर तक पहुँचे जहाँ एक साफ़ सुथरी क्षीण नाला बह रहा था। कुछ देर बच्चों की तरह पानी में खेलने के बाद गार्ड ने वापसी का फरमान जारी कर दिया। उसकी भी ड्यूटी का समय है !
अनमने मन से वापस जिया भोरेली के किनारे लौटे। किस्मत बड़ी बलवान थी। नदी के बीच धार में एक हाथी मस्ती के साथ डुबकियाँ लगा कर नहा रहा था। खूब तैराकी करने के बाद वह सूंड से अपने शरीर पर पानी उछलता दूसरे किनारे चला गया। हम मुग्ध भाव से उसे देखते रहे और फोटो लेते रहे।
नामेरी का जँगल बेहद घना, खूबसूरत और जीवन से भरपूर है। पक्षियों और वनस्पति की अनेकों दुर्लभ प्रजातियाँ यहाँ विद्यमान हैं। प्रकृति के शौकीनों के लिए यह किसी स्वर्ग से कम नहीं। वापस तो लौटना ही था| गाँव में वापिस आ कर थोड़े आराम करने के बाद खाना खाया और आराम करने लगी| सुस्ता ही रही थी कभी नींद की झपकी आ रही उसी समय सामने वाली आदिवासी महिला आ गई| वह पूछने लगी क्या जंगल में बाघ देखने को मिला| मेने कहा नहीं| लम्बी सांस लेने के बाद वह कहने लगी यहाँ जंगली जानवरों के अलावा उग्रवादियों और बुरी आत्माओं का भी डर रहता है| वह कहने लगी आपने जहाँ सेना का कैंप देखा है ना वहां कभी २०-२५ घरों का एक गाँव हुआ करता था|उग्रवादियों का विरोध करने पर उग्रवादियों ने पुरे गाँव ओ आग लगा दी | २५ के लगभग आदि, औरते, और बच्चे ज़िंदा ही जल कर मर गये थे| उबकी आत्मा यही पर भटकती रहती है|गांव वालों के मन में सुरक्षा की भावना बनी रहे इसलिए यहाँ पर सेना का अस्थाई कैंप बना दिया है| इन के डर से अब उग्रवादी भी इधर नहीं आते|एक बार एक पर्यटक दल पर एक बाघ ने हमला कर दिया था | चालक किसी तरह यात्रियों कोटो बचा लाया परन्तु इस भाग दोड में एक बच्चा वहीँ पर गिर गया| एक शेरनी उसे मुह में पकड़ कर उठा ले गयी| शेरनी का मातृतव जाग उठा और उसने बच्चे खो खाया नहीं| कुछ दिनों बाद वह उस बच्चे को इस गाँव के पास छोड़ गई| एक वन गार्ड ने बच्चे को पाला पोषा और पढाया| कुछ दिन शेरनी ने पाला था इस लिए उसका नाम शेरू ही रखा गया|
बच्चा किस्मत का धनी था|पढ़ लिख कर वह सेना की इसी यूनिट में आ गया|एक दिन वह सेना की गाड़ी से गस्त लगा रहा था, बीच रास्ते एक भरी पेड़ गिर गया था| उस रास्ते गाडी आगे नहीं जा सकती थी| गाडी को वापिस घुमाते समय संतुलन बिगड़ने पर गाडी भी उलट गयी थी| उसके दो साथियों की मौके पर ही मौत हो गयी थी| जंगल में भारी वर्षा ह रही थी|मदद की कोई आस नहीं थी | नजदीक ही घने जंगल में एक पुराना लेकिन भव्या मंदिर था|रखरखाव ने होने क्र कारण वह जर्जर हो चूका था| पूजा पाठ तो कई सालों से नहीं हुई थी| वह मंदिर के ऊपर के हिस्से में छुपा कर बैठ गया| तभी उसे बाघ की आवाज सुनाई दी| बाघ उसकी गाडी के पास आया और गाडी के नीचे दबे शवों को खाने लगा| अचानक मंदिर से एक औरत बाहर आई और उसको देख कर शेर वहां से वापिस चला गया |शेर के जाने के बाद शेरू नीचे आया और उसने सारा मंदिर छान मारा परन्तु वह औरत उसको कहीं दिखाई दी|सुबह जब वह उठा तो उसने देखा की उशी गाडी रास्ते में सीधी खड़ी थी उसके साथी गाडी की पिछली सीट पर सो रहे थे | उनको कोई हानि नहीं हुई थी| वह अपनी गाडी ले कर वापिस यूनिट में आया और रात का सारा वृतांत कह सुनाया| उसके साथ के दो साथियों को इतना तो ध्यान था की आगे रास्ते में पेड़ पडा हुआ था और रास्ता ना होने के कारण शेरू गाडी वापिस कर रहा था| और इसी दौरान गाडी उलट गई थी| इसके बाद क्या हुआ और कैसे हुआ उन्हें नहीं पता था| शेरू ने बताया सुबह रास्ते में पेड़ भी नहीं पड़ा हुआ था|
इस आश्चर्यजनक घटना से सभी अचम्भित थे | अन्य साथियों के साथ शेरू दिन में पुनः वहां पर आया| सभी ने देखा की रास्ते में पेड़ गिरने के निशान भी थे परन्तु कोई पेड़ उखडा हुआ नहीं था|उसक गाडी के पलटने और शेर के पंजों के निशान भी थे| दो आदमियों के गाडी के नीचे दबने और खून के धब्बे भी मिटटी में पड़े मिले| सभी ने पास के मंदिर को भी देखा| वहां उसके अन्दर पूजा पाठ के भी कोई लक्षण नहीं दिखाई दिए| जैसा शेरू ने बताया कोई औरत भी नहीं दिखाई दी| बाकी सभी घटनाओं के निशान स्पष्ट दिखाई डे रहे थे | रात को शेरू जहां छिप कर बैठा था वह जगह और वहां शेरू के बैठने के चिन्ह भी दिख रहे थे | यह घटना पूरी यूनिट में चर्चा का विषय बनी हुई थी|
अंत में सेना के उस यूनिट ने उस मंदिर का पुनःउद्धार किया और इस मंदिर में सेना के पंडितजी रोज पूजा पाठ करते है| हर रविवार को सभी सैनिकों को अनिवार्य रूप से मंदिर में आना होता है|यहाँ पूजा पाठ के बाद प्रसाद का वितरण होता है और सैनिक नाचते गाते वापिस अपनी यूनिट में जाते है| अब इस मंदिर की साफ़ सफाई और देख रेख सेना के हाथ में है| पूर्णमांसी के दिन यहाँ रात्री में भजन कीर्तन होता है| और सभी को वह देवी मंदिर की छत पर घूमती दिखाई देती है| ऐसा माना जाता है की आने वाली धटनाओं का आभास भी पहले ही ओ जाता है| और इसके लिए सेना पहले से ही सतर्क हो जाती है| उग्रवादियों के संभावित् हमले की सूचना पहले ही मिल जाती है | इससे सैनिक पहले से ही सतर्क हो जाते है|यहाँ लगभग ११ हमले हो चुके परन्तु किसी भी जवान को कोई चोट नहीं आई| हर रविवार को मंदिर आना एक आवश्यक किर्याकलाप है| इस को मंदिर परेड के नाम से जाना जाता है|सभी सैनिक इस में केवल आदेश ही नहीं श्रद्धा से शामिल होते है|सेना में मंदिर परेड के नाम से अनवी को आचर्य भी हुआ और श्रद्धा नत मस्तिक भी हुई| घर वापिस आकर उसने इस मंदिर परेड का जिक्र अपने दादा जी से किया तो उन्होंने बताया की हर यूनिट में मंदिर , मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च अवश्य होता है| और रविवार को मंदिर परेड होती है| केवल रविवार को ही नहीं सैनिक अपनी श्रद्धा अनुसार सुबह और सांयकाल की आरती में भी जाते है|दादाजी ने बताया की ऐसा की एक मंदिर जैसलमेर में है|
राजस्थान के जैसलमेर में भारत-पाकिस्तान की सरहद पर मौजूद देवी मां का वो मंदिर जिससे पाकिस्तानी फौज भी डरती है। तनोट माता के तेज के आगे पाकिस्तानी फ़ौज के गोले भी बेकार हो जाते हैं। 1965 की जंग में पाकिस्तान ने इस मंदिर को निशाना बनाकर हजारों गोले दागे। लेकिन सब बेअसर साबित हुए। बीएसएफ़ के जवान ड्यूटी पर जाने से पहले तनोट माता का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते हैं।जैसलमेर की सीमा जो भारत और पाकिस्तान को बांटती है, इसकी सुरक्षा का जिम्मा बीएसएफ़ के जवानों पर है। लेकिन ये जांबाज़ मीलों फैले रेगिस्तान में अकेले नहीं हैं। इन जवानों की रक्षा करती है बॉर्डर वाली माता। बीएसएफ़ के जवान इन्हें बम वाली माता भी कहते हैं। ये है भारत-पाकिस्तान सीमा पर मौजूद तनोट माता का मंदिर। तनोट माता मंदिर के चमत्कार के आगे पाकिस्तान भी नत-मस्तक हो चुका है।
1965 के युद्ध में पाकिस्तान ने जैसलमेर के तनोट पर कब्जे के लिए तीन तरफ से हमला बोला था। आसमान से पाकिस्तानी फाइटर प्लेन भी बम गिरा रहे थे तो जमीन पर तोप से गोले दागे जा रहे थे। कहते हैं कि यहां करीब 3000 गोले दागे गए थे। इनमें से करीब 450 गोले तो मंदिर के आंगन में गिरे थे। लेकिन कोई भी गोला फटा ही नहीं और मंदिर को एक खरोंच तक नहीं आई। तभी से ये मंदिर बम वाली माता के मंदिर के नाम से मशहूर हो गया। तनोट माता मंदिर का सारा कामकाज बीएसएफ के जवान ही देखते हैं। पुजारी की जिम्मेदारी भी जवान ही निभाते हैं। जवानों का विश्वास है कि तनोट माता मंदिर की वजह से जैसलमेर की सरहद के रास्ते हिंदुस्तान पर कभी भी कोई आफत नहीं आ सकती है। मंदिर में 1965 और 1971 के जंग की गौरवगाथा सुनाती तस्वीरों की पूरी झांकी भी सजी हुई है। मंदिर के भीतर बम के वो गोले भी रखे हुए हैं जो यहां आ कर गिरे थे। जवानों का मानना है कि यहां कोई दैवीय शक्ति है।