Sunday, 9 September 2018

नमेरी राष्ट्रीय उद्यान

 नमेरी राष्ट्रीय उद्यान


 

नमेरी राष्ट्रीय उद्यान असम राज्य के शोणितपुर ज़िले में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान है।यह पूर्वी हिमालय के गिरिपीठ में स्थित है |तेजपुर से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित, नमेरी राष्ट्रीय उद्यान सोनितपुर जिले के अंतर्गत आता है। राष्ट्रीय पार्क लगभग 200 वर्ग कि.मी क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी उत्तरी सीमायें अरुणाचल प्रदेश के पाखुइ वन्यजीव अभयारण्य के साथ जुड़ी हुई हैं। निचले हिमालय की तलहटी पर स्थित नमेरी राष्ट्रीय उद्यान विविध वनस्पतियों और जीवों की कई प्रजातियों का आश्रय स्थल है। पार्क में हाथी बड़ी संख्या में हैं, जबकि यह तेंदुए, जंगली काले भैंसे, काले भालू जंगली सूअर, कैप्ड लंगूर आदि का भी निवास स्थल है। पर्यटक यहां हार्नबिल्स, प्लोवर, वुड बतख, पतेना और बकवादी जैसे पक्षियों को देखने का भी आनंद ले सकते हैं। पार्क के अंदर प्रवाहित होने वाली कई छोटी छोटी नदियों का भी पर्यटक लुत्फ उठा सकते हैं। यह स्थान मछली पकड़ने के लिए भी काफी लोकप्रिय है क्योंकि मछली पकड़ने के लिए एक आदर्श स्थल है। इस पार्क की यात्रा करने के लिए सबसे अच्छा समय नवम्बर से मई तक है। पर्यटक गुवाहाटी (198 किलोमीटर) से सीधे पार्क पहुंच सकते हैं या रास्ते में तेजपुर में ठहराव लेकर भी यहां पहुंचा जा सकता है। 


दौड़ती भागती जिंदगी से दो पल आराम के कौन नहीं चाहता हैं और इसके लिए लोग क्या कुछ नहीं करते हैं, कई लोग योगा करते हैं तो कई पहाड़ो पर घूमने जाते हैं, लेकिन आज हम आपको एक ऐसी जगह के बारें में बताने जा रहे हैं जहां जाकर ना सिर्फ आप तरो ताजा महसूस करेंगे बल्कि प्राकृति के और भी करीब आ जाएंगे यहां पेड़ों की 600 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं। असम के तेजपुर से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सोनीपुर जिले में है| यहां आप को हाथी देखने को मिलेंगे। इस पार्क में पक्षियों की ढेरों प्रजातियां पाई जाती हैं|इस क्षेत्र में लिया-भोरोली और इसकी सहायक नदियों (दिजी,दिने, दोइगुरुंग, नामेरी, दिकोरै,खरी आदि) का जाल फैला हुआ है|वर्षा ऋतू में कुछ झील भी दिखाई देती है| 

यहाँ पर पंखों वाले जंगली बतख, महान चितकबरा हॉर्नबिल, माल्यार्पण हॉर्नबिल, रुफौस चुम्मा हॉर्नबिल, काले सारस, इबिस बिल, बड़ी सीटी चैती, आम मेर्गेर्न्सेर, राजा गिद्ध, लंबे बिल की अंगूठी प्लोवर, खल्लेज तीतर, हिल मैना, पिन पूंछ हरे कबूतर, हिमालयन चितकबरा हॉर्नबिल आदि पक्षी पाए जाते है| सरी सर्प:- किंग कोबरा, कोबरा, पिट वाइपर, रसेल वाइपर, बैंडेड क्रेट, पायथन, राइट सांप, असम रूफ टर्टल, मलयान बॉक्स कछुए, कीलड बॉक्स कछुए, एशियाई पत्ता कछुए, संकीर्ण मुलायम शेलड कछुए, भारतीय मुलायम शेलड कछुए, आदि पाए जाते हैं|
मछलियाँ:- यहाँ पर गोल्डन महासेर, शार्ट गिल महासेर, सिल्गारिया, आदि किंगफिशर, थ्री टूड किंगफिशर, फेयरली ब्लू बर्ड इत्यादि मछलियाँ पाई जाती है|

टाइगर, तेंदुए, ब्लैक पैंथर, क्लाउड तेंदुए, लेडी बिल्लियों, स्लोथ बीयर, हिमालयी ब्लैक बीयर, हाथी, भारतीय बाइसन, ढोल, सांबर, बार्किंग हिरण, कुत्ते हिरण, फॉक्स, हिसपिद हरे, भारतीय हरे, कैप्ड लैंगुर, धीमी लॉरीस, असमिया मैकक, रीसस मैकक, हिमालयी पीले थ्रोटेड मार्टिन, मलयान विशाल गिलहरी, फ्लाइंग गिलहरी, जंगली सुअर इत्यादि जंगली पशु पाए जाते है।

उत्तर पूर्व भारत की तितलिया:-पूर्वी असम में जंगल का निवास उष्णकटिबंधीय सदाबहार, अर्ध-सदाबहार, असम घाटी गीले सदाबहार जंगल, नम पर्णपाती जंगलों और बेंत घास के मैदान से गन्ना और बांस ब्रेक और खुले घास के मैदानों के झरनों से बना है जो तितलियों के लिए उपयुक्त आवास है। तितलियों विभिन्न जलवायु क्षेत्र और आवास में प्रचलित सबसे विविध जीवों में से एक हैं|कई अन्य प्राणियों के विपरीत तितलियों, हिंसक हमले से लड़ने के लिए डंक या काटने नहीं कर सकते हैं। इसलिए, शिकारियों से बचने के लिए, तितलियों ने अंडा से वयस्क स्तर तक, विभिन्न सुरक्षात्मक अनुकूलन विकसित किए हैं। गर्म खून वाले जानवरों के विपरीत तितलियों में लगातार शरीर का तापमान नहीं होता है। उनका शरीर का तापमान आस-पास के परिवेश के तापमान पर निर्भर करता है।कम तापमान उनके शारीरिक प्रक्रिया को धीमा कर देता है। तितलियों को अपने तापमान को नियंत्रित करने की आवश्यकता होती है और इसलिए वे सूरज की रोशनी में अपने तापमान को कम करने के लिए एक पत्ते के नीचे छुप सकती हैं।

यह क्षेत्र तितली उत्साही के लिए मक्का है। इस क्षेत्र में कुल 1501 प्रजातियों में से 50 प्रतिशत से अधिक पाई जाती है। नामरी नेशनल पार्क में अब तक दर्ज की गई प्रजातियां पापीलिओनिडे (14 स्पीसी), निम्फालिडे (62 प्रजातियां), पेरिडे (17 प्रजातियां), लाइकाइडेडे (1 9 प्रजातियां) और हेस्परिडे (12 स्पीसी) हैं।

वनस्पति एवं पशुवर्ग :-नमेरी का निवास उष्णकटिबंधीय सदाबहार, अर्द्ध सदाबहार, नमक पर्णपाती जंगलों से बना है जो बेंत और बांस ब्रेक और नदियों के साथ खुले घास के मैदान के संकीर्ण पट्टियों से बना है। घास के मैदानो में पार्क के कुल क्षेत्रफल का 10% से भी कम है, जबकि अर्द्ध सदाबहार और नम पर्णपाती प्रजातियां क्षेत्र पर हावी होती हैं। कुछ उल्लेखनीय प्रजातियां गमारी,तिताचोपा,अमरी , बोगिपोमा,अजर, उरीम पोमा, भेलौ, अग्रू, रुद्राक्ष, बोनजोलोकिया, हैटिपोलिया अखाकान, अहलॉक, नाहोर, सिया नाहर, सिमुल, बोन्सम आदि हैं। ऑरोचिड्स में डेंडरोबियम, सिम्बिडियम, लेडीज़ स्लीपर इत्यादि शामिल हैं। ट्री फर्न, लिआनास, क्रीपर्स इस जंगल की कुछ विशेषताओं हैं।सबसे मूल्यवान और सबसे महत्वपूर्ण खोज व्हाइट विंगड वुड डक है, जिसकी नामांकन नेमेररी में 1995 में आधिकारिक तौर पर पुष्टि की थी। अब तक पार्क में 315 एवियन प्रजातियां दर्ज की गई हैं।

कैसे पहुंचे:- गुवाहाटी हवाई अड्डे पर पहुंचे और सड़क से नमेररी पहुंचे। नियमित उड़ान भारतीय गुवाहाटी-बागडोग्रा, कोलकाता, नई दिल्ली, मुंबई, बैंगलोर, चेन्नई, जयपुर, हैदराबाद, गोवा, डिब्रूगढ़, जोरहाट से भारतीय एयरलाइंस (एयर इंडिया), जेट एयरवेज, जेटलाइट, इंडिगो, और गो एयर संचालित होती है। । ड्रुकेयर गुवाहाटी के साथ सप्ताह में दो बार बैंकाक और पारो (भूटान) को जोड़ता है।

तेजपुर हवाई अड्डे को सैलोनिबरी हवाई अड्डे के रूप में भी जाना जाता है, जो निकटतम हवाई अड्डा है जो शहर के केंद्र से बलिपारा तक सड़क पर 8 किलोमीटर दूर है। तेजपुर में एयरफील्ड का निर्माण १९४२ में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश रॉयल इंडियन वायुसेना द्वारा किया गया था। इसका इस्तेमाल 7 वें बमबारी समूह द्वारा बी -24 लाइबेरेटर भारी बॉम्बर बेस के रूप में संयुक्त राज्य आर्मी एयर फोर्स दसवीं वायुसेना द्वारा किया गया था। युद्ध के बाद, इसे बाद में में एक पूर्ण वायुसेना बेस में विकसित किया गया। इसकी स्थापना के बाद से यह भारत के पूर्वोत्तर में सबसे सक्रिय अड्डों में से एक रहा है। हालांकि, तेजपुर हवाई अड्डे से घरेलू उड़ानें वापस ले ली गई हैं।

कार्य कलाप :- वन अधिकारियों और जंगल गार्ड के साथ आयोजित मोटी जंगल और सूखे नदी के किनारे के माध्यम से प्रकृति के निशान, पक्षी आदि आगंतुकों को देखने का मौका प्रदान करते हैं। पक्षी विविध और प्रचुर मात्रा में है जिसमें लगभग 400 प्रजातियां हमेशा मिल जायेगी । नमरी के सबसे महत्वपूर्ण एवियन निवासी व्हाइट-पंख वाले बतख हैं। अन्य प्रमुख पक्षियों में व्हाइट-गालड पार्ट्रिज, ग्रेट, माली, और रूफस-गर्दन हॉर्नबिल्स, रुड्डी, ब्लू-ईयर और ओरिएंटल बौना शामिल हैं| किंगफिशर, ओरिएंटल हॉबी, अमूर फाल्कन, जेरडन और ब्लैक बाजा, पलास, ग्रे-हेड, और लेसर फिश ईगल्स, सिल्वर समर्थित बैकलेट, माउंटेन इंपीरियल कबूतर, ब्लू-नेपड पिट्टा, स्लेण्डर-बिल ओरिओल, हिल ब्लू फ्लाईकैचर, व्हाइट-क्राउन फोर्कटेल, सुल्तान टिट, ब्लैक-बेलेड टर्न, जेरडन बाब्बलर, रूफस बैकड सिबिया, पीले-बेलेड फ्लॉवरपेकर, रेड-थ्रोटेड पिपिट, लांग-बिल प्लोवर और इबिस्बिल।

पूरे परिवार के लिए जिया-भोरोली नदी के सौम्य रैपिड्स में राफ्टिंग अनिवार्य रूप से आनंददायक यात्राएं हैं। नदी-राफ्टिंग इबिसबिल और लांग-बिल प्लोवर जैसे पक्षियों को देखने का एक लोकप्रिय और सुखद तरीका है। नदी पर पार्क के दक्षिण पूर्व में नदी राफ्टिंग की अनुमति है-राफ्टिंग आमतौर पर 13 किमी शुरू होती है। अपस्ट्रीम और बिना रुकावट के पूरा होने में लगभग 3 घंटे लगते हैं।



इतनी प्रशंशा सुनने के बाद अनवी का मन भी नमेरी राष्ट्रीय उद्यान घुमाने को हुआ| उसने अपनी छुट्टियों का कार्यक्रम बनाया | पालम अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ान भरने के बाद जहाज़ की खिड़की से नीचे झाँका तो दिल्ली काले धुएं की गहरी चादर में लिपटी थी। धीरे धीरे धुआँ छटने लगा और उत्तरी क्षितिज पर धौलाधार के बर्फीले पहाड़ चमकने लगे। शहर की भीड़-भाड़, गन्दगी और भागदौड़ भरी जिन्दगी से मुक्ति का सुखद अहसास। शायद बादलों के पार की हिम-मण्डित रचनाएँ एक रहस्यमय सँसार का आभास दे रही है जिसमें अपनी काया से बाहर विचरण करने वाले और पक्षियों से बात करने वाले हज़ार-साला साधु निवास करते हैं|अचानक बादलों में मुझे एक मानव आकृति दिखाई दी | मुझे ऐसा आभास हुआ जैसे वश आक्रति मुझे बाला रही हो| गोर से देखने पर कभी शिबांगी, कभी मेरी विद्यालय में मैडम और कभी मेरी अन्य सहेलियों जैसी आकृति दिखाई देती थी| अजब झोल है। जहाज़ की खिड़की से हरयाली और बरसाती बहाव के मार्ग दिखने लगे हैं। पूर्वोत्तर भारत की मेरी यह यात्रा परिचित सी लग रही थी । क्रू ने खिला-पिला कर उनके साथ यात्रा करने के लिए धन्यवाद दिया। अब गौहाटी उतरने के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग 27 से तेजपुर और तेज़पुर से नामेरी राष्ट्रीय उद्यान। सड़क किनारे नारियल पानी और बाँस के सामान की दुकाने थी । साफ़ हवा और हरे-सुनहरे खेतमन मोहक लग रहे थे । हवाई जहाज़ का सफर समय तो बचाता है पर सैलानियों को सुख सड़क ही देती है। दो घंटे कैसे बीत गए यह पता ही नहीं चला| 



पूरे रास्ते शिबांगी मुझे बताती रही की असम में और कहाँ क्या देखे| तेजपुर भी अपने अंदर ऐतिहासिक स्‍थलों को समेटे हुए है। ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित यह शहर एक बेहद शांत जगह है। यहां पर बड़ी संख्‍या में पयर्टक आते हैं। तेजपुर में अग्निगढ़, कोलिया भोमोरा सेतु, पदम पुखुरी, महाभैरव मंदिर, हलेश्वर मंदिर आदि घूमने की खास जगहों में शामिल हैं। डिगबोई नगर छोटा है लेकिन आकृषण के मामले में कम नही है। 19वीं सदी के अंत में यहां कच्चे तेल की खोज हुई थी। इसलिए इसे असम की तेल नगरी के रूप में भी जाना जाता है। यहां नामेरी राष्ट्रीय उद्यान, बुरा-चापोरी वन्यजीव अभयारण्य, नागशंकर मंदिर और केतकेश्वर देवल आदि घूमने की जगहें हैं।दिफू भी असम के छोटे शहरों में गिना जाता है लेकिन इसकी भी जि‍तनी तारीफ की जाए कम है। दिफू में भी घूमने की एक से बढ़कर एक खूबसूरत जगहे हैं। यहां पर बॉटनिकल गार्डन, जिला संग्रहालय, अर्बोरेटम, तरलांगो सांस्कृतिक केंद्र जैसी जगहें घूमने के स्‍थान हैं। जहां बड़ी संख्‍या में पयर्टक आते हैं।गोलाघाट भी यहां के पयर्टन स्‍थलों में एक है क्‍योंकी यहां काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान स्‍थ‍ित है। यूनेस्को के विश्व विरासत में शामि‍ल यह उद्यान गैंडों के लिए प्रसि‍द्ध है। यहां हाथी, एशियाई भैंसे, धमाचौकड़ी करते हरिन और बाघ भी देखने को मिल जाते हैं। वहीं रंग-बिरंगे पक्षी भी पयर्टकों को आकर्ष‍ित करते हैं।सुरमा नदी पर स्थित सिलचर भी असम की शान को बढ़ाने वाले स्‍थलों में शामिल हैं। यहां चाय के बागानों के अलावा चावल की खेती भी होती है। सिलचर में पयर्टकों को घूमने के लिए भुवन मंदिर, कंचन कांति काली मंदिर, खासपुर, मणि हरण सुरंग, गांधी बाग के अलावा इस्कॉन मंदिर आदि हैं।असम का डिब्रूगढ़ इलाका भी बहुत ही खूबसूरत है। असम के डिब्रूगढ़ में ब्रम्‍हपुत्र नदी के किनारे शाम के समय डूबता हुआ सूरज देखना पयर्टकों को काफी अच्‍छा लगता है। इसके अलावा डिब्रूगढ़ में घूमने के लिए दीन्‍जोय सतरा, दीहिंग सतरा और कोलीआई थान जैसे क‍ई दूसरे ऐतिहासिक व प्राचीन स्‍थल बने है| 



घने जँगलों में पर्यटकों को एक सुरक्षित दायरे तक ही प्रवेश की अनुमति मिलती है। उसके आगे जाने के लिए वन विभाग की कृपा ही एकलौता मार्ग है। यदि जँगल ही देखना है तो नमदफा जाओ ! तो नमदफा राष्ट्रीय उद्यान का मानस पक्का हुआ और सुदूर पूर्वोत्तर का कार्यक्रम बन गया और हम नामेरी राष्ट्रीय उद्यानपहुँच गए| हमारे रुकने की व्यवस्था नामेरी के नजदीक एक आदिवासी गाँव थी। तेज़पुर से इस गाँव का रास्ता करीब 38 किलोमीटर है | अरुणांचल सीमा वहाँ से मात्र दस किलोमीटर की दूरी पर है। वहाँ खाने को क्या मिलेगा कैसा मिलेगा को लेकर हम थोड़ा आशंकित थे। आगे कोई और कस्बा नहीं है इसलिए कुछ फल और नमकीन हमने तेज़पुर से ख़रीदे।पूर्वांचल में सर्दियों की साँझ चार बजे ही ढल आती है। गाँव पहुँचे तो अच्छी भली चाँदनी रात घिर आयी थी। छोटे से गाँव में मध्यम रौशनी में हमारा प्रवेश हुआ। हरी घास के बीच में लकड़ी ओर बाँस के छप्पर और झोपडिया बनी हुई थी। एक बड़े से पेड़ के नीचे टेंट लगा कर हमारे ठहरने की व्यवस्था की हुई थी जिसमें आराम दायक बिस्तर था । लॉन के बीच जलते अलाव के इर्द-गिर्द आदिवासियों का समूह बैठा था। एक तरफ रसोई में अच्छा सस्ता शाकाहारी खाना बन रहा था । हम भी खाना खा कर अलाव के पास घंटों बैठे बतियाते रहे । सारे दिन के सफर के बाद भी थकान का नामोनिशां नहीं था। सर्दियों की चादनी रातें यूँ ही बहुत दिलक़श होती हैं पेड़ पौधों की आकृतियाँ मन के मुताबिक आकार ले रही थी|और तारों भरी रात , जँगल की खुशबू और लकड़ियों की आँच मन को दुलाये मान कर रही थी ।लेकिन सुबह छः बजे जल्दी तैयार हो कर नामेरी के घने जँगल में जाना था| पशु-पक्षियोँ की भी दिनचर्या होती है और उन्हें देखना हो तो प्रातःकाल या शाम का समय सही होता है। वे सुबह-शाम भोजन पानी के लिए खुले में निकलते हैं और हल्का दिन चढ़ते ही अपने घरों में लौट जाते हैं। 



बिस्तर से सिर टिकाते ही नीँद ने आ घेरा।आँख खुली पाँच बजे। तैयार हो चाय पी इतने में सूरज की रौशनी फूट पड़ी। कैंप के पेड़ों पर बन्दरों की धमाचौकड़ी चालू हो गयी। मेरे सामने के घर वाली आदिवासी महिला पक्षी की आवाज़ निकालती है जिसके जवाब में कहीं से कोई पक्षी जवाब देता है। अचानक से एक ग्रेट हार्नबिल सन्न से निकलता है | परंतू मेरे पास मेरा कैमरा नहीं था । मैंने अवसर गंवाया और पूरी यात्रा में मैं हार्नबिल का एक भी फोटो नहीं ले पायी। फारेस्ट गार्ड के ऑफिस से जँगल का पास बनवा कर लाती हूँ। नामेरी के जँगल में बिना गार्ड जाने की अनुमति नहीं है।गाँव से डेढ़ किलोमीटर दूरी पर ही गाड़ी उतार देती है | एक शांत स्वच्छ नीले जल की धारा के तट पर जिस का नाम -जिया भोरेली। कहीं गन्दगी या प्रदूषण का नामो -निशाँ नहीं था । उस पार घना जँगल पहाड़ बर्फीली चोटियाँ दिखाई डे रही थी । चप्पू वाली नाव से नदी की धारा पार की तो सूखी रेत पर चमकते के मोटे कणों पर हाथियों के पैरों के निशान दिखाई दिए डे रहे थे । मल्लाहों के ख्याल से हाथियों को पानी पी कर गए ज्यादा समय नहीं हुआ। 



नदी पार का जँगल बहुत घना है। सैलानियों को मात्र दो ट्रेल पर जाने की अनुमति है - एक सात किलोमीटर लंबी और दूसरी तेरह किलोमीटर लम्बी। नामेरी की प्रसिद्ध 'वाइट विंग वुड डक' और 'सुल्तान बर्ड' देखने जाना हो तो छोटी ट्रेल जाना होता है। बहुत सारी अब तक अनदेखी लाल-पीली-हरी-काली चिड़िया देखते हुए हम चुपचाप आगे बढ़ते हैं | हमें बाक़ायदा चुप रहने की हिदायत के साथ आगे बढ़ते रहने और दबे पाँव तालाब के किनारे पहुँचे लेकिन हमारे पैरों की आवाज़ का आभास उन्हें फिर भी हो गया था । हम उसके दूर होते परों की एक झलक भर देख पाए। वापसी में नदी किनारे की ट्रेल पर बाघ के पँजों के ताज़ा निशान और मिटटी पर कुछ घसीटे जाने के निशान दिखाई पड़े। शायद अभी अभी कोई बाघ शिकार घसीट कर ले गया था। हमने गार्ड से मिन्नतें शुरू कर दी की हमें ओई बाघ दिखा दे | बतख तो तूने दिखाये नहीं। उसने अपने मोबाइल पर एक गार्ड पर बाघ के झपटने की फोटो दिखाई, इसके बाद किसीने बाघ दिखाने का आग्रह नहीं किया । अब तो बहस का कोई सवाल ही न था। ताज़ा शिकार के साथ बाघ बहुत आक्रामक होता है। 

ट्रेल के अन्तिम सिरे पर चाय की दुकान पर बैठ कर हमने चाय पी। बतख ठीक से न दिख पाना मन में थोड़ा असन्तोष हो रहा था, पर विशाल गिलहरी के मामले में हम भाग्यशाली रहे।गार्ड ने जब इशारा किया तो टहनियों के बीच से उसकी बड़ी पूँछ दिखाई दे रही थी। इस आकर की गिलहरी देश में नामेरी में ही पायी जाती है। वापिस गाँव लौटे तो ग्यारह बज चुके थे । थकान काफी हो गयी थी। खाना खा कर सोये तो चार बजे नींद खुली। शाम की जँगल सफारी का समय निकल चुका था। तय किया कि ढलती शाम का सिंदूर जिया भोरेली पर बिखरते देखा जाये। हमने ड्राइवर से आग्रह किया कि हमें नदी किनारे किसी और जगह ले जाये। ले तो जाऊँगा पर उधर थोड़ा खतरा है जगह थोड़ा अंदर में है और यह बोडो उग्रवादियों का इलाका है| काफी उहापोह के बाद कोई बीस किलोमीटर जंगल के अन्दर के भाग की यात्रा के बाद हम फिर जिया भोरेली के तट पर पहुंचे । पास में सेना का कैंप था। सेना की यूनिट पास होने के कारण हम अपने आप को काफी सुरक्षित महसूस कर रहे थे| नदी किनारे एक मन्दिर था जहाँ सेना की तरफ से प्रसाद वितरण किया जा रहा था । धीरे धीरे नदी पर्वत आसमाँ सब सुरमयी हो चले और पानी पर जैसे केसर बिखर गया हो । नदी के पानी में पैर डाल धीरे धीरे डूबती साँझी में मैं भी ढलती जा रही थी । मन्दिर में आये जवान सड़क पर नाचते गाते जा रहे । 

आज सुबह निकलते सात बज गए। जिया भोरेली पार कर लम्बी ट्रेल का रुख किया तो पैर मशीन की तरह चल रहे थे। मन में जच गयी कि आज कुछ नहीं दिखाई देने वाला। कोई आधा किलोमीटर ही चले होंगे कि गार्ड ने आवाज़ ना करने का इशारा किया। नज़र उठायी तो सामने खुले मैदान में एक हथिनी अपने छोटे से बच्चे के साथ चर रही थी। बच्चा छोटा हो तो हथिनी बहुत आक्रामक हो जाती है। हमें बहुत धीमे हल्के पैरों से मैदान पार करना था। एक तरफ हथिनी थी और दूसरी तरफ सिर की ऊँचाई जितनी घास। 'इसमें बाघ हो सकता है ?' मैंने गार्ड से फुसफुसा कर पूछा। उसने हामी में सिर हिला दिया। अब एक तरफ बाघ का भय और दूसरी तरफ हथिनी ने हमें देख लिया था। जँगल का थ्रिल अब समझ आ रहा था। हथिनी ने तमाम कोशिश के बावजूद हमें देख लिया था। उसने अपना बच्चा हमारी नज़र से छिपा लिया। उसकी तरफ देखते देखते लगभग भाग कर ही मैदान पार किया। मैदान खत्म कर फिर बड़े पेड़ों का जँगल आया तो साँसे सामान्य हुईं। 

सुबह का आलस्य अब पूरी तरह दूर हो चूका था । रँग बिरंगी चिड़ियों की चहचाहट के बीच पहली वॉच टावर पहुँचे तो जँगल की सघनता के कारण हरियाली से परे कुछ दिखाई न दिया। यहाँ से दूसरी वॉच टावर तक पहुँचे जहाँ एक साफ़ सुथरी क्षीण नाला बह रहा था। कुछ देर बच्चों की तरह पानी में खेलने के बाद गार्ड ने वापसी का फरमान जारी कर दिया। उसकी भी ड्यूटी का समय है ! 

अनमने मन से वापस जिया भोरेली के किनारे लौटे। किस्मत बड़ी बलवान थी। नदी के बीच धार में एक हाथी मस्ती के साथ डुबकियाँ लगा कर नहा रहा था। खूब तैराकी करने के बाद वह सूंड से अपने शरीर पर पानी उछलता दूसरे किनारे चला गया। हम मुग्ध भाव से उसे देखते रहे और फोटो लेते रहे। 

नामेरी का जँगल बेहद घना, खूबसूरत और जीवन से भरपूर है। पक्षियों और वनस्पति की अनेकों दुर्लभ प्रजातियाँ यहाँ विद्यमान हैं। प्रकृति के शौकीनों के लिए यह किसी स्वर्ग से कम नहीं। वापस तो लौटना ही था| गाँव में वापिस आ कर थोड़े आराम करने के बाद खाना खाया और आराम करने लगी| सुस्ता ही रही थी कभी नींद की झपकी आ रही उसी समय सामने वाली आदिवासी महिला आ गई| वह पूछने लगी क्या जंगल में बाघ देखने को मिला| मेने कहा नहीं| लम्बी सांस लेने के बाद वह कहने लगी यहाँ जंगली जानवरों के अलावा उग्रवादियों और बुरी आत्माओं का भी डर रहता है| वह कहने लगी आपने जहाँ सेना का कैंप देखा है ना वहां कभी २०-२५ घरों का एक गाँव हुआ करता था|उग्रवादियों का विरोध करने पर उग्रवादियों ने पुरे गाँव ओ आग लगा दी | २५ के लगभग आदि, औरते, और बच्चे ज़िंदा ही जल कर मर गये थे| उबकी आत्मा यही पर भटकती रहती है|गांव वालों के मन में सुरक्षा की भावना बनी रहे इसलिए यहाँ पर सेना का अस्थाई कैंप बना दिया है| इन के डर से अब उग्रवादी भी इधर नहीं आते|एक बार एक पर्यटक दल पर एक बाघ ने हमला कर दिया था | चालक किसी तरह यात्रियों कोटो बचा लाया परन्तु इस भाग दोड में एक बच्चा वहीँ पर गिर गया| एक शेरनी उसे मुह में पकड़ कर उठा ले गयी| शेरनी का मातृतव जाग उठा और उसने बच्चे खो खाया नहीं| कुछ दिनों बाद वह उस बच्चे को इस गाँव के पास छोड़ गई| एक वन गार्ड ने बच्चे को पाला पोषा और पढाया| कुछ दिन शेरनी ने पाला था इस लिए उसका नाम शेरू ही रखा गया| 

बच्चा किस्मत का धनी था|पढ़ लिख कर वह सेना की इसी यूनिट में आ गया|एक दिन वह सेना की गाड़ी से गस्त लगा रहा था, बीच रास्ते एक भरी पेड़ गिर गया था| उस रास्ते गाडी आगे नहीं जा सकती थी| गाडी को वापिस घुमाते समय संतुलन बिगड़ने पर गाडी भी उलट गयी थी| उसके दो साथियों की मौके पर ही मौत हो गयी थी| जंगल में भारी वर्षा ह रही थी|मदद की कोई आस नहीं थी | नजदीक ही घने जंगल में एक पुराना लेकिन भव्या मंदिर था|रखरखाव ने होने क्र कारण वह जर्जर हो चूका था| पूजा पाठ तो कई सालों से नहीं हुई थी| वह मंदिर के ऊपर के हिस्से में छुपा कर बैठ गया| तभी उसे बाघ की आवाज सुनाई दी| बाघ उसकी गाडी के पास आया और गाडी के नीचे दबे शवों को खाने लगा| अचानक मंदिर से एक औरत बाहर आई और उसको देख कर शेर वहां से वापिस चला गया |शेर के जाने के बाद शेरू नीचे आया और उसने सारा मंदिर छान मारा परन्तु वह औरत उसको कहीं दिखाई दी|सुबह जब वह उठा तो उसने देखा की उशी गाडी रास्ते में सीधी खड़ी थी उसके साथी गाडी की पिछली सीट पर सो रहे थे | उनको कोई हानि नहीं हुई थी| वह अपनी गाडी ले कर वापिस यूनिट में आया और रात का सारा वृतांत कह सुनाया| उसके साथ के दो साथियों को इतना तो ध्यान था की आगे रास्ते में पेड़ पडा हुआ था और रास्ता ना होने के कारण शेरू गाडी वापिस कर रहा था| और इसी दौरान गाडी उलट गई थी| इसके बाद क्या हुआ और कैसे हुआ उन्हें नहीं पता था| शेरू ने बताया सुबह रास्ते में पेड़ भी नहीं पड़ा हुआ था| 

इस आश्चर्यजनक घटना से सभी अचम्भित थे | अन्य साथियों के साथ शेरू दिन में पुनः वहां पर आया| सभी ने देखा की रास्ते में पेड़ गिरने के निशान भी थे परन्तु कोई पेड़ उखडा हुआ नहीं था|उसक गाडी के पलटने और शेर के पंजों के निशान भी थे| दो आदमियों के गाडी के नीचे दबने और खून के धब्बे भी मिटटी में पड़े मिले| सभी ने पास के मंदिर को भी देखा| वहां उसके अन्दर पूजा पाठ के भी कोई लक्षण नहीं दिखाई दिए| जैसा शेरू ने बताया कोई औरत भी नहीं दिखाई दी| बाकी सभी घटनाओं के निशान स्पष्ट दिखाई डे रहे थे | रात को शेरू जहां छिप कर बैठा था वह जगह और वहां शेरू के बैठने के चिन्ह भी दिख रहे थे | यह घटना पूरी यूनिट में चर्चा का विषय बनी हुई थी| 

अंत में सेना के उस यूनिट ने उस मंदिर का पुनःउद्धार किया और इस मंदिर में सेना के पंडितजी रोज पूजा पाठ करते है| हर रविवार को सभी सैनिकों को अनिवार्य रूप से मंदिर में आना होता है|यहाँ पूजा पाठ के बाद प्रसाद का वितरण होता है और सैनिक नाचते गाते वापिस अपनी यूनिट में जाते है| अब इस मंदिर की साफ़ सफाई और देख रेख सेना के हाथ में है| पूर्णमांसी के दिन यहाँ रात्री में भजन कीर्तन होता है| और सभी को वह देवी मंदिर की छत पर घूमती दिखाई देती है| ऐसा माना जाता है की आने वाली धटनाओं का आभास भी पहले ही ओ जाता है| और इसके लिए सेना पहले से ही सतर्क हो जाती है| उग्रवादियों के संभावित् हमले की सूचना पहले ही मिल जाती है | इससे सैनिक पहले से ही सतर्क हो जाते है|यहाँ लगभग ११ हमले हो चुके परन्तु किसी भी जवान को कोई चोट नहीं आई| हर रविवार को मंदिर आना एक आवश्यक किर्याकलाप है| इस को मंदिर परेड के नाम से जाना जाता है|सभी सैनिक इस में केवल आदेश ही नहीं श्रद्धा से शामिल होते है|सेना में मंदिर परेड के नाम से अनवी को आचर्य भी हुआ और श्रद्धा नत मस्तिक भी हुई| घर वापिस आकर उसने इस मंदिर परेड का जिक्र अपने दादा जी से किया तो उन्होंने बताया की हर यूनिट में मंदिर , मस्जिद, गुरुद्वारा या चर्च अवश्य होता है| और रविवार को मंदिर परेड होती है| केवल रविवार को ही नहीं सैनिक अपनी श्रद्धा अनुसार सुबह और सांयकाल की आरती में भी जाते है|दादाजी ने बताया की ऐसा की एक मंदिर जैसलमेर में है| 



राजस्थान के जैसलमेर में भारत-पाकिस्तान की सरहद पर मौजूद देवी मां का वो मंदिर जिससे पाकिस्तानी फौज भी डरती है। तनोट माता के तेज के आगे पाकिस्तानी फ़ौज के गोले भी बेकार हो जाते हैं। 1965 की जंग में पाकिस्तान ने इस मंदिर को निशाना बनाकर हजारों गोले दागे। लेकिन सब बेअसर साबित हुए। बीएसएफ़ के जवान ड्यूटी पर जाने से पहले तनोट माता का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते हैं।जैसलमेर की सीमा जो भारत और पाकिस्तान को बांटती है, इसकी सुरक्षा का जिम्मा बीएसएफ़ के जवानों पर है। लेकिन ये जांबाज़ मीलों फैले रेगिस्तान में अकेले नहीं हैं। इन जवानों की रक्षा करती है बॉर्डर वाली माता। बीएसएफ़ के जवान इन्हें बम वाली माता भी कहते हैं। ये है भारत-पाकिस्तान सीमा पर मौजूद तनोट माता का मंदिर। तनोट माता मंदिर के चमत्कार के आगे पाकिस्तान भी नत-मस्तक हो चुका है। 


1965 के युद्ध में पाकिस्तान ने जैसलमेर के तनोट पर कब्जे के लिए तीन तरफ से हमला बोला था। आसमान से पाकिस्तानी फाइटर प्लेन भी बम गिरा रहे थे तो जमीन पर तोप से गोले दागे जा रहे थे। कहते हैं कि यहां करीब 3000 गोले दागे गए थे। इनमें से करीब 450 गोले तो मंदिर के आंगन में गिरे थे। लेकिन कोई भी गोला फटा ही नहीं और मंदिर को एक खरोंच तक नहीं आई। तभी से ये मंदिर बम वाली माता के मंदिर के नाम से मशहूर हो गया। तनोट माता मंदिर का सारा कामकाज बीएसएफ के जवान ही देखते हैं। पुजारी की जिम्मेदारी भी जवान ही निभाते हैं। जवानों का विश्वास है कि तनोट माता मंदिर की वजह से जैसलमेर की सरहद के रास्ते हिंदुस्तान पर कभी भी कोई आफत नहीं आ सकती है। मंदिर में 1965 और 1971 के जंग की गौरवगाथा सुनाती तस्वीरों की पूरी झांकी भी सजी हुई है। मंदिर के भीतर बम के वो गोले भी रखे हुए हैं जो यहां आ कर गिरे थे। जवानों का मानना है कि यहां कोई दैवीय शक्ति है। 


Thursday, 6 September 2018

मानस राष्ट्रीय उद्यान

 

मानस राष्ट्रीय उद्यान

   
अनवी अपनी अगली यात्रा पर मानस राष्ट्रीय उद्यान पहुंची| उसकी सहेली शिबांगी उसके साथ थी| शिबांगी ने इस उद्यान का परिचय कुछ इस प्रकार से दिया|


मानस राष्ट्रीय उद्यान या मानस वन्यजीव अभयारण्य, असम में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान हैं। यह अभयारण्य यूनेस्को द्वारा घोषित एक प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थल, बाघ के आरक्षित परियोजना, हाथियों के आरक्षित क्षेत्र एक आरक्षित जीवमंडल हैं। हिमालय की तलहटी में स्थित यह उद्यान भूटान के रॉयल मानस नेशनल पार्क के निकट है। यह पार्क अपने दुर्लभ और लुप्तप्राय स्थानिक वन्यजीव के लिए जाना जाता है जैसे असम छत वाले कछुए, हेपीड खरगोश, गोल्डन लंगुर और पैगी हॉग। मानस जंगली भैंसों की आबादी के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ एक सींग का गैंड और बारह सिंगा के लिए विशेष रूप से पाये जाते है। यह भूटानकी तराई में बोडो क्षेत्रीय परिषद् की देखरेख में ९५० वर्ग किलोमीटर से भी बड़े इलाके में फैला हुआ है, जिसके अंतर्गत १९७३ में टाइगर प्रोजेक्ट  के तहत स्थापित ८४०.०४ वर्ग किलोमीटर का इलाका मानस व्याग्र संरक्षित क्षेत्र भी आता है।


मानस नेशनल पार्क असम का एक प्रसिद्ध पार्क है। इसे यूनेस्को नेचुरल वर्ल्ड हेरिटेज साइट के साथ-साथ प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व, बायोस्फियर रिजर्व और एलिफेंट रिजर्व घोषित किया गया है। यह हिमालय के फुट्हिल पर स्थित है और भूटान तक फैला हुआ है, जहां इसे रॉयल मानस नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता है। यह पार्क बालों वाले खरगोश, असम के छतरी वाले कछुए, नाटे कद वाले सुअर और सुनहरे लंगूर सहित कई लुप्तप्राय: जानवरों का घर है। यहां जंगली पानी की भैंस भी बड़ी संख्या में पाई जाती है। इस पार्क में स्तनपाई की 55, पक्षीयों की 380, सरीसृपों की 50 और उभयचर की 3 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती है। आप चाहें तो यहां जंगल सफारी और प्राकृतिक रास्तों पर चलने का भी आनंद उठा सकते हैं। यह नेशनल पार्क कोकराझार, चिरांग, बकसा, उदालगुरी और दारांग सहित कई जिलों में पड़ता है। अक्टूबर से मार्च के बीच में यह पार्क घूमना सबसे अच्छा माना जाता है।इस पार्क का नाम मानस नदी पर रखा गया है, जिसे सर्पों की देवी मनसा के नाम पर रखा गया है। मानस नदी ब्रह्मपुत्र नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है, जो इस राष्ट्रीय उद्यान के मुख्य केंद्र से होकर गुजरती है।राष्ट्रीय उद्यान के मुख्य भाग में अग्रगंज एक जंगलो से घिरा हुआ गांव है। इस गांव के अलावा 56 से अधिक गांव पार्क को चारों ओर से घेरे हुए हैं।इस पार्क को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है। इसकी पश्चिमी सीमा पनबारी, केंद्रीय सीमा बारपेटा रोड के पास बंसबाड़ी में और पाथस्ला के निकट भूईयापुर में पूर्वी सीमा स्थित हैं। ये श्रेणियां आपस में अच्छी तरह से जुड़ी नहीं हैं।


मानस पूर्वी हिमालय की तलहटी में स्थित है और घने जंगलों से आच्छादित है। मानस नदी पार्क के पश्चिम छोर से बहती है और यह इस अभयारण्य की मुख्य नदी है। यह ब्रह्मपुत्र नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है और बाद में दो अलग-अलग नदियों, बेकी और भौलादुबा में बिभक्त हो जाती है। मानस नदी भारत और भूटान को विभाजित करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में भी कार्य करती है।


मानस में दो प्रमुख जैव वातावरण मौजूद हैं:


· चारागाह बायोम: पिग्मी हॉग, भारतीय गैंडे, बंगाल फ्लोरिकन, जंगली एशियाई भैंस आदि।


· वन बायोम: धीमी चलने वाली लॉरी, टोपी वाला लंगूर, जंगली सुअर, सांबर, महान हॉर्नबिल, मलाया की विशाल गिलहरी या काले विशाल गिलहरी आदि।


मानस के मानसून के जंगलों में ब्रह्मपुत्र घाटी के अर्ध-सदाबहार जंगल के जैव क्षेत्र में पड़ते हैं। अभयारण्य के अन्य प्राणियों में भारतीय हाथी, भारतीय गैंडे, गौरा, एशियाई जल भैंस, बारासिंगा, भारतीय बाघ, भारतीय तेंदुओं, एशियाई स्वर्ण बिल्ली, ढोल, टोपी वाले लंगूर, स्वर्ण लंगूर, सांभर हिरण और चीतल इत्यादि हैं।


मानस राष्ट्रीय उद्यान पश्चिमी असम के भाबर क्षेत्र में पूर्वी हिमालय की तलहटी में स्थित है। पार्क का क्षेत्र असम के पांच जिलों चिरांग, कोकराझार, दरांग, उदलगुड़ी और बस्का को कवर करता है। पार्क का क्षेत्र 950 वर्ग किलोमीटर है और समुद्र तल के 110 मीटर से ऊपर से इसकी ऊंचाई 61 मीटर है।


मानस अभयारण्य विभिन्न प्रकार के विशेष पक्षियों के लिए रहने का एक आदर्श स्थान है। मानस में दुनिया में लुप्तप्राय बंगाल फ्लोरिसन की सबसे बड़ी आबादी रहती है औऱ यहां पर ग्रेट हॉर्नबिल भी देखे जा सकते हैं।इस राष्ट्रीय उद्यान में पक्षियों की 380 प्रजातियां रहती हैं। जिनमें प्रमुख रूप से ग्रेटर एडजुटेंट, काले पूंछ वाले क्रेक, लाल सिर वाला टोर्गो, जंगली तीतर, हॉर्नबिल, मार्श और जेर्डोन का बैबलर, रूफस (बादामी) पूंछ वाली चिड़िया, हॉजसन की बुश चैट, रूफस वेंटेक लॉफिंगथ्रश, फिन वेवर, आईबिस बिल और तलहटी प्रजातियां शामिल हैं।




आप चाहें तो यहां जंगल सफारी और प्राकृतिक रास्तों पर चलने का भी आनंद उठा सकते हैं। यह नेशनल पार्क कोकराझार, चिरांग, बकसा, उदालगुरी और दारांग सहित कई जिलों में पड़ता है। अक्टूबर से मार्च के बीच में यह पार्क घूमना सबसे अच्छा माना जाता है। उद्यान में प्रवेश के लिए बांसबाड़ी रेंज आफिस से आपकों १०० रूपए प्रति व्यक्ति की टिकट लेनी पड़ेगी। साथ ही वाहन के लिए अलग से फीस है। यहां जीप सफारी की भी व्यवस्था है। इसके साथ ही ध्यान देने योग्य बात यह है कि यहां सूर्योदय तक ही घूमने की अनुमति है और पैदल घूमनी सख्त मना है। यहां रहकर भी आप वाइल्ड लाइफ का मजा ले सकते हैं। आप यहां से प्राकृति का भरपूर आंनद ले सकते हैं।
सबसे नजदीक का हवाई अड्डा गुवाहाटी एयरपोर्ट से मानस राष्ट्रीय उधान १४५ किमी है जबकि करीब का स्टेशन बरपेटा रोड है। यहां से उद्यान की दूरी २० किमी है| यहाँ पर आप जीप सफारी , हाथी सफारी का आनंद ले सकते है|रिवर राफ्टिंग का ३५ की.मी. का रोमांचकारी लुत्फ़ उठाया जा सकता है|घाटी गाँव और रघु बील गाँवों के छाया के बागन में काम करने वाली जा जातियों के मध्य उनके संगीत और नृत्य का आनन्द ले सकते हो| अपनी दूरबीन द्वारा पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों का विन्हावलोकन कर सकते हो|इस उद्यान का नाम साँपों की देवी मानस से लिया है , ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी मानस इस उद्यान को दो भागों में विभिक्त करती है|

अनवी शिबांगी के साथ अपनी एक पुरानी सहेली के साथ रघु बील गाँव में ठहरी| यह गाँव एक आदिवासी गाँव है जो यहाँ पर चाय के बागों में काम करते है|हमने आदिवासियों के साथ चायबागान घूम कर देखे और रात्री को उनके साथ वहां के परम्परागत लोक नृत्य और संगीत का आनंद उठाया|इस कार्यक्रम के दोरान एक आदमी को चक्कर आगये और वह नाचते नाचते ही जमीन पर ही गिर गया,और बुद्बबुदाने लगा| लोंगों ने बताया की उसमें मानसा देवी का असर है| ऐसा अक्सर महीने में एक बार हो ही जाता है|
गहन पूछताछ के बाद वहां की एक औरत ने बताया की यह आदमी पहले असम पुलिस में काम करता था| देबांग नाम का एक पुलिस अधिकारी यहीं पर कार्यरत था |एक मेले में वह अपने दल के साथ सुरक्षा व्यवस्था देख रहा था| उसकी पत्नी भी मेले में आई हुई थी| अचानक वर्षा आने के कारण मेले में भगदड़ मच गई और उस भगदड़ में उसकी पत्नी मर गई|उसके परिवार में उआकी एक लड़की शोभा और उसकी बूढी माँ थी| मा के बार बार कहने के बाद भी देबांग ने शादी नहीं की| एक दिन वह माँ कामख्या के मंदिर में पहुँचा और माकी पूजा आराधना की | इसके बाद वह उमानंद मंदिर में गया| अन्य लोगों के साथ वह नदी पार कर रहा था| अचानक उनकी नाव पलट गई| और सारे यात्री बह गए| अथक प्रयास के बाद वह एक छोटे लड़के को बचाने में कामयाब रहा| मा का आशीर्वाद समझ वह बच्चे को घर ले आया| भगवान् शिव की कृपा समझ उसका नाम शिवा ही रखा गया|
माँ देबांग की दूसरी शादी करवाना चाहती थी| परन्तु शिवा के आने के बाद उसकी आशा और धूमिल पड़ गई| वह शिवा से नफ़रत करने लगी| उससे घर का सारा काम करवाने लगी| शोभा अपनी दादी को बहुत प्यारी लगाती थी| गाँव के लड़के शिवा के साथ नहीं खेलते थे| वे उसे पनोती समझ कर चिढाते थे| इस पर उसका अक्सर दूसरे लड़कों से झगडा होने लगता| झगडा मारपीट में भी बदल जाता था|दादी के सौतेले व्यवहार के कारण लड़का भी असंतुस्ट रहने लगा|
रोज रोज के कलेश के कारण वह एकांत में बैठ कर अपनी किस्मत पर रोने लगता|एक दिन उनके घर पर घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया| अब शिवा ने बाहर खेलना बंद कर दिया और सारा समय उस घोड़ी के बच्चे के साथ बिताने लगा| बड़ा होने पर शिवा को पुलिस अकादमी में भरी करवा दिया|पढाई पूरी करने के बाद वह असम पुलिस में भरती हो गया| समय ने करवट बदली और दादी का देहांत हो गया| अब आदमी ने अपनी दूसरी शादी करली जो उम्र में उससे काफी छोटी थी| वह एक तांत्रिक थी| उसने अपनी तंत्र विद्या से अपने पति को पूरी तरह काबू में कर लिया था|अब शोभा एक एक दिन गिन गिन कर व्यतीत करने लगी|उसके पिताजी अब उसको प्यार नहीं करते थे|उसकी सौतेली माँ के पास उसके पुराने दोस्त आने लगे | उनमें से एक की नजर शोभा पर थी | शोभा खतरे को भाप चुकी थी|
प्रशिक्षण ख़तम होने पर शिव को बेस्ट कैडिट का इनाम मिला और गोवर्धन पोलिस स्टेशन पर ही उसकी तैनाती हो गई| जब वह घर आया और शोभा को घर का सारा काम करते देखा तो वह काफी परेसान हो गया था| गोवर्धन में ही उसने मकान ले लिया और शोभा के साथ वहीँ रहने लगा| उनकी सोतेली माँ शोभा की शादी कहीं और करना चाहती थी| उसने शोभा का अपहरण करवा लिया और तंत्र विद्या से शिवा को भी पागल बना दिया| शिवा की नौकरी भी छुट गई थी|और अब वह हमारे साथ ही रहता है| अपना विगत याद कर अक्सर ऐसे दौरें आते ही रहते है|
पुछताछ करने पर पता चला की शोभा को भी उसकी सौतेली माँ ने पागल बना कर घर में बंद कर रखा है| शोभा के पिताजी सेवा निवृत हो चुके थे अब वह भी पान ताम्बुल खा और ताड़ी पी कर पडा रहता है | अनवी को इस दुखद कहानी से काफी अफसोश हुआ| उसने शिबांगी से पूछा क्या इनका कभी उद्धार नहीं होगा|दोनों सलाह मसवरा करके शोभा के पिताजी के पास पहुंचे|शिबांगी ने उसको अभिमंत्रित जल पिलाया इससे उसकी पत्नी के जादू का असर होना बंद हो गया| अब वह सारी परिस्थितियां समझ चुका था| शिबांगी की मदद से उसने अपनी लड़की और शिवा पर भी जादू का असर खत्म करवाया| इस नेक काम से अनवी और शिबंगी दोनों खुश थे| मानस राष्ट्रीय उद्यान की इस यात्रा से अनवी काफी खुश थी|नए अनुभव के साथ वह अपने विद्यालय में लौटी |

Wednesday, 5 September 2018

ओरांग राष्ट्रीय उद्यान

        ओरांग राष्ट्रीय उद्यान


अनवी अपनी रहस्यमयी यात्राओं के लिए विद्यालय में काफी चर्चा में थी|उसकी यात्राओ के अनुभव ज्ञान वर्धक और रोमांचकारी थे| एक बार सुनना आरम्भ करो तो बीच में छोड़ने को मन नहीं करता|विद्यालय के साथी बार बार इसे सुनना पसंद करते थे| अनवी स्वयं भी ऐसी यात्राओ पर जाने का कोई अवसर नही छोड़ना नहीं चाहती थी|इस बार उसने लाल चिड़िया को अपने घर पर ही बुला लिया|इस बार लाल चिड़िया ने अनवी को मधुमक्खी बनाया और अपने पंखों में छिपा कर यात्रा में चल पड़ी|इसबार अनवी असम के ओरांग राष्ट्रीय उद्यान में पहुंची|
    ओरांग राष्ट्रीय उद्यान  भारत  के असम  राज्य के दारांग  और शोणितपुर  ज़िलों में स्थित है जो ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर में पड़ता है| १३ अप्रैल १९९९ में इसे राष्ट्रीय उद्यान बना दिया गया।उद्यान के कुल 78.8 वर्ग किलोमीटर में फैला है| इसको राजीव  गांधी ओरांग राष्ट्रीय उद्यान  के नाम से भी जाना जाता है| इसमें काफी मात्रा में घास के मैदान, दल दल जमीन और नदी नाले है|ओरंग गुवाहाटी से १४० की.मी. और तेजपुर से ३२ की.मी. और मंगलदाई से ६८ की.मी. दूर है| यहाँ का नजदीक का रेलवे स्टेशन रोंगापारा पड़ता है|हवाई अड्डा सलोनी, तेजपुर पड़ता है|इसको छोटा काजीरंगा भी कहते है|यह उद्यान अपने प्राक्रितिक दृश्यों के लिए और वन्यप्राणी व वनस्पति के लिए प्रसिध है|कभी उद्यान की जगह जन जाती के काबिले रहा करते थे|इस में २६ मानव निर्मित झीले है|जो प्रवासी पक्षियों का प्रिय स्थल है| एक सिंग के गैंडे,शेर,मल्जुरिया हाथी, हाग हिरण,जंगली सूअर ,विवेट बिल्ली, पोर्चुपैन , पहाड़ी पाइथन(सर्प), डॉलफिनऔर पक्षियों की २२२ प्रजातीयां पाई जाती है|
    ओरांग राष्ट्रीय उद्यान में निम्नलिखित स्थान भी देखने लायक है:-
१.      मदन कामदेव मंदिर:-यह मंदिर कामरूप जिले में है जो ९वी और १०वी शताब्दी का बना हुआ है|
२.    सौल्कुची गाँव:-रेशम के लिए प्रसिद्ध यह गाँव गुवाहाटी से ३०की.मी. की दुरी पर है| यहाँ रेशम की सुंदर साड़ी बनाई जाती है|१७वी सदी का यह गाँव रेशम बुनकरों के लिए प्रसिध है|

उद्यान में क्या देखें :-

१.     वन्य जीव :घास से भरे मैदानों में सफारी की सवारी किये बिना आपकी यात्रा अधूरी है|यह उद्यान बहुत सी विलुप्त हो रही प्रजातियों का घर है|यहाँ पर गैंडे,हाथी, हिरण,सूअर और साँपों की कई प्रजातियाँ देखने को मिल जाती है|

२.   पक्षी अवलोकन:-यह उद्यान लगभग २०० प्रजातियों के पक्षियों की शरण स्थली है|आमतोर पर यहाँ पर हेरॉन,बंगाल फ्लोरिकन,पेलिकन , किंगफ़िशर,सुनहरी चील के अलावा और बहुत से पक्षी देखे जा सकते है|

३.   हाथी इस्वारी:-ओरांग में हाथी की सवारी अविस्मरिनिये होगी|जो वन विभाग द्वारा आयोजित की जाती है|

४.   क्रूज की सवारी:-उद्यान के एक सिरे से दुसरे सिरे तक ब्रहाम्पुत्र नदी में क्रूज की सवारी का आनंदा लिया जा सकता है|

ओरांग की यात्रा सिंगारी बंगाली गाँव से आरम्भ की जा सकती है|यहीं से आप लाओ-खोवा वन्य जीव अभ्यारण्य भी जा सकते हो|इस गाँव में आने पर आपके समूह बना कर आप की यात्रा की तैयारी की जाती है|यहीं से आप बूरा-चपोरी वन्य जीव अभ्यारण्य जा सकते है|यहाँ स्तनधारी जीवों की कई प्रजातिया,रॉयल बंगाल शेर,एशियाई हाथी,सुनेहरे हिरण की चार प्रजातीया और पिग्मी हॉग ( सूअर की एक विलुप्त प्रजाति) देखने को मिल जाती है |यह उद्यान पाचानोई नदी, बेल सिरी और धन श्री नदीयों से घिरा हुआ है |ये सभी ब्रहमपुत्र की सहायक नदियाँ है|उद्यान के चारों और आबादी वाले क्षेत्र है| यहाँ मच्छलियों की ५० प्रजातियाँ पाई जाती है|

    अनवी ने शिबांगी के साथ ओरांग की यात्रा आरम्भ की|शिबांगी ने बताया की उद्यान की जगह पहले आबादी हुआ करती थी| परन्तु महामारी के प्रकोप के कारण गाँव वालों ने और कही अपना आवास बना लिया| बताया जाता है की बुरी आत्माओं के डर से गाँव वाले सदा के लिए यह स्थान छोड़ कर चले गए| इस सुनसान जंगल में एक अघोरी दम्पति तंत्र साधना में काफी समय से लगा हुआ था| उसने एक छोटी झोपड़ी बना राखी थी| रात्री में अपने बचाव के लिए झोपड़ी में नीचे जमीन में एक गुफा बना राखी थी| इस से जंगली जानवरों से बाख कर गुफा में रात्री को छुपा जा सके|रात्री को गुफा का दरवाजा पेड़ों की टहनी और पत्तों से ढक दिया करते थे|वे अपनी साधना में इतने व्यस्त रहते थे की उन को यह जानकारी नहीं होती थी की पास से कौन गुजर गया|अपने आप को वर्षा से बचाने के लिए झोपड़ी में जंगली जानवरों की खाल लगा रखी थी| पशुओं की हड्डिया भी झोपड़ी पर ही पड़ी हुई थी|अघोरी प्रथा के अनुसार वे पूरण रूप से गंन्दगी और बदबू के बीच रह रहे थे|वे इस वातावरण के अभ्यस्त हो चुके थे|झोपड़ी के अन्दर ही टट्टी और पेशाब की बदबू आती थी|

    एक दिन एक राजा शिकार करने जंगल में आया और रास्ता भटक गया| रात हो चली थी| जंगली जानवरों का पूरा डर था|गहराती रात में जंगली जानवरों की आवाज साफ़ सुने डे रही थी|राजा को रात बिताने का आश्रय कहीं नहीं मिला|अंत में राजा को उस अघोरी की झोपड़ी दिखी दी| वह वहां आया और नाक बंद करते हुए रात बिताने के लिए आश्रय माँगा|अघोरी ने कहा मेरे पास जगह नहीं है| एक बार जो यहाँ ठहर जाता है फिर जाने का नाम नहीं लेता| राजा जे आश्वाशन दिया की सुबह दिन निकलते ही वह चला जाएगा| काफी आग्रह के बाद अघोरी आश्रय देने को तैयार हुआ| परन्तु कहने लगा की नीचे गुफा में केवल दो प्राणी ही आराम कर सकते है|उसमें केवल इतनी ही जगह है| अन्त में यह तय हुआ की गुफा में अघोरी कि पत्नी और राजा आराम करेंगे | और अघोरी झोपड़ी में पहरा देगा | राजा को काफी देर तक बदबू के कारण नींद नहीं आई| परंतू दिन की थकान के कारण राजा को ऐसी नींद आई की सुबह ही आँख खुली| वह गुफा से बाहर आया तो देखा की अघोरी को हिंसक जानवर खा गए थे| अघोरिकी पत्नी विलाप करने लगी| राजा उसको धाडस बंधने लगा किन्तु सब बेकार|अघोरी की पत्नी चुप होने का नाम ही नहीं लेती थी| उधर राजा के सैनिक राजा की तलास में वहां पहुँच गए|मामला पेचीदा हो गया था|

    अन्त में राजा ने सैनिक को कहा की में एक महीने में इसके पति को ज़िन्दा कर दूँगा| तब तक यह राज कार्य संभालेगी | इसके पति के ज़िन्दा होने पर यह वापिस झोपड़ी में आ जायेगी  और में राज कार्य देखने लगुगा|तब तक के लिए यह ही तुम्हारी राजा है  सभी को इस के दिशा निर्देशों का पालन करना होगा | यह सुन सैनिक अघोरी की पत्नी को सम्मान पूर्वक महल में लाए आयें और उसके आदेशों पर राज कार्य चलने लगा | उधर राजा उसी बदबू वाली झोपड़ी में रह कर भगवान आशुतोष की आराधना करने लगे| अघोरी की पत्नी राज कार्य बखूबी से निभा रही थी|एक दिन राज कुमारी बाग़ में टहलने गई| वहां उसने एक घायल हंस को देखा राजकुमारी ने प्यार से हंस को उठाया और देख की उसके पैर में घाव था|राजकुमारी ने उसके पैर पर मरहम पट्टी बाँधी और पुचकार कर बाग़ में ही छोड़ दिया| अब राजकुमारी रोज हंस को दवाई लगाती और उसको खाने को देने लगी| दस दिन की देखभाल और उपचार के बाद हंश ठीक हो गया और राज कुमारी को अलबिदा कह उड़ गया |हंस पड़ोस के राज्य के राज कुमार के पास चला गया |

    राज कुमार को हंस ने राज कुमारी  के सोंद्रिये  और विनम्रता  की प्रशंसा की | हंस एक दूसरे के प्रेम पत्र पहुँचाने लगा | दोनों का प्यार परवान चढ़ रहा था| एक दिन राज कुमार राज कुमारी से मिलने आ पहुंचा| वह कार्यकारी राज माता से मिला और अपने आने का प्रयोजन बताया| कार्यकारी राज माता ने सेवकों के हाथ समाचार पहुँचाया और दरबार में राज कुमारी और रानी शिष्टता के साथ हाजिर हो गई |वे अतिथि गृह में राज कुमार को चाय पानी पिला कर आदर सत्कार करने लगी|विचार विमर्श के बाद रानी ने राज कुमार से एक महीने का समय माँगा ताकि राजा वापिस तपस्या के बाद अपनी राज गद्दी सम्भाल ले|इसके बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा| इस प्यार की चर्चा दूर दूर तक होने लगी| एक दिन राज कुमारी बाग़ में घूम रही थी की अचानक वह ग़ायब हो गई | सैनिकों ने बहुत तलास किया परन्तु राज कुमारी का पता नहीं चला|इस बात का जब कार्यकारी राज माता को पता चला तो उसने अपनी साधना के बल पर राजकुमारी को तलास किया तो उसको पता चला की राज कुमारी को मदन कामदेव मंदिर के पास किसी तांत्रिक ने सम्मोहित करके अपने पास रखा हुआ है| कार्यकारी राज माता ने रानी को अपने पास बुलाया और सारा माजरा समझाया| उसने अपने विश्वास पात्र सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ सेनापति को छदम वेष में एक फूल अभिमंत्रित करके दिया और मदन कामदेव मंदिर के पास भेजा जहाँ पर तांत्रिक साधना कर रहा था|सेनापति को बताया की इस फूल से उस तांत्रिक पर पानी के छीटें मारने है| यह सब गुप्त रहना चाहिये| बतायी युक्ति के अनुसार सेनापति ने कार्य को अंजाम दिया और उस सिद्ध किये फूल से पानी के छींटे लगते ही वह तांत्रिक वहीँ पर भस्म हो गया| सैनिक राजकुमारी को सकुशल वापिस ले आये| इस पर रानी बहुत खुश हुई|

   एक महिना  पूरा होने को था राजा को कोई सफलता नहीं मिलती दिखाई डे रही थी| कार्यकारी राज माता ने अपने गुप्तचरों को बुलाया और उनको अघोरी का कंकाल चुपके से उठा कर लाने को कहा|अघोरी बाबा का कंकाल आचुका था | परन्तु राजा इससे बेखबर थे| रानी ने सैनिक भेज कर राजा को महल में बुला लिया और कंकाल पर अभिमंत्रित जल छिड़कते ही अघोरी बाबा उठ खड़े हुए|अब राजा और रानी दोनों अघोरी बाबा के पैरों में गिर गए और क्षमा मांगने लगे | बाबा ने कहा क्षमा मागने वाली तो कोई नहीं है| अघोरी बाबा और उसकी पत्नी अपने वास्तिक रूप में आगये| वे दोनों शिव और पार्वती थे | भगवन शिव और पार्वती के साक्षात दर्शन पा कर पूरा दरबार धन्य हुआ और भोले बाबा का गुण गान करने लगे| इस पर राजा ने भगवान् आशुतोष से एक शंका का समाधान चाहां| राजा पूछने लगे भगवन आपकी झोपड़ी का क्या रहस्य है| यज जीवन उस झोपड़ी की तरह है| मनुष्य माँ के गर्भ में इतनी ही गन्दगी में रहता है और इस संसार में इतने ही कष्ट उठाता है,परन्तु फिर भी इस से मोह हो जाता है|इस देह को छोड़ना नहीं चाहता ही|

    आपने पिछले जन्म में मेरे दर्शन की अभिलाषा की थी उसको मैंने पूरी कर दी है |और हम दोनों ने अपना वास्तविक रूप आप सभी को दिखाया है| मनुष्य अपने कर्मों का फल अवश्य पाता है | कर्मों के अनुसार की दंड या पुरुष्कार मिलता है| इस संसार में मनुष्य आकर वासना, तृष्णा ,मोह और लोभ आदि की गंदगी में फस जाता है| आरम्भ में उसकी आत्मा इन सब को स्वीकार नहीं करती| परन्तु धीरे धीरे वह इस माहौल का आदि हो जाता है| जैसे तुम मेरी झोपड़ी के आदि हुए थे|

इसके बाद राजकुमारी माँ पार्वती  के चरणों में गिर पड़ी| माँ पार्वती कहने लगी तुम्हारी शादी में कुछ व्यवधान आयेंगे| में तुम्हे यह लाल तितली देती हूँ| इसको खुला बाग में विचरण करने दो|यह तितली जिस भी प्राणी पर बैठ जाती है वह प्राणी और तितली दोनों अदृश्य हो जाते है|जब तुम्हे इसकी जरुरत पड़ेगी यह अपने आप तुम्हार पास आ जायेगी| कोई तांत्रिक मंत्र विद्या के बल पर राज कुमार बन कर आएगा, ऐसे कपटी पर जब यह तितली बैठेगी तो वह गायब नहीं होगा| असल का राज कुमार अदृश्य हो जायेगा|इसी विधि से तुम असली और नकली राज कुमार क पहचान कर अपना स्वयंबर पूरा करना|इतन कह कर शिव-पारवती अंतरध्यान हो गए|

   कुछ समय बाद राजा ने राज कुमारी का स्वयंबर रखा| इस स्वयंबर में बहुत से राज कुमार आयें| उसकी पसंद का राजकुमार भी आया , परन्तु वे दो एक ही शक्ल के थे | राज कुमारी ने देखा की एक तितल उडती हुई आई और बारी बारी से दोनो राज कुमारों पर बैठ कर राज कुमारी को असली और नकली का आभास करवा दिया|  राजकुमारी शादी के बाद अपने ससुराल आगे वहीँ से एक तांत्रिक ने उसका अपहरण कर लिया और मायोंग गाँव ले आया| उस सिद्धि के असर से मैं राज कुमारी से शिबांगी बन कर रह गई |यह तितली मेरे और राज कुमार के बीच  में संपर्क सूत्र है | मैं तुम्हारी मदद से वापिस अपने ससुराल जा पाउंगी|राजकुमारी की बताई युक्ति के अनुसार अनवी ने तितली के मदद से एक अघोरी से सम्पर्क बनाया और उसके सुझाये तरीके से अनवी ने शिबांगी को पुनः राज कुमारी को अपने ससुराल भेज दिया

    शादी के बाद अनवी का वहां पर दिल नहीं लगा और अगले ही दिन वह अपने शेष दो दोस्तों से मिलने चली गई|अब वह बन्दर,गैंडे और चिड़िया के पास रह रही थी | तभी उसे अपनी छुट्टियाँ ख़तम होने की याद आई और लाल चिड़िया ने उसे गुरुग्राम ला कर छोड़ दिया|



Tuesday, 4 September 2018

चक्रशिला वन्य जीव अभयारण्य

चक्रशिला वन्य जीव अभयारण्य
   जिस दिन पूरी कक्षा ने अनवी को लाल चिड़िया पर हवाई यात्रा करते देखा था उसी दिन से सारे विद्यालय में अनवी की विचित्र  उडान पर चर्चा होने लगी| और धीरे धीरे यह लाल चिड़िया सब के कोतुहल का विषय बन गई थी| अनवी इस को सामान्य महसूस कर रही थी| लाल्चिदिया की सवारी एक हवाई यात्रा की तरह लग रही थी| परन्तु अनवी चिड़िया पर स्वर हो कर कहाँ गई, कैसे रही, वहां पर उसने क्या क्या देखा एक चर्चा का विषय था|इधर अनवी को मायोंग गाँव के दोस्त काफी याद आ रहे थे| उसे देवरी द्वारा बताये दृष्टान्त रह रह कर याद आ रहे थे|उसकी दोस्त एक लाल चिड़िया है या एक शेरनी या फिर रति नाम की एक नव योवना? कई सवाल बार बार उसके मन में उभर उभर कर आ रहे थे|परन्तु कुछ भी हो यह सफ़र काफी मजेदार और रोमांच से भरा हुआ था| अनवी इस बात से बेखबर थी की उसके साथी उससे क्या क्या सवाल पूछेंगे?
    अचानक कक्षा में मैडम ने प्रवेश किया और सभी विद्यार्थियों की उपस्थिति दर्ज करने लगी|जब अनवी का नाम आय तो उसका पेन वहीँ पर रुक गया और मुस्कराते हुए पूछा –अनवी लाल चिड़िया का सफ़र कैसा रहा? वह तुम्हे कहाँ ले गयी|बच्चो से ज्यादा जानने की उत्सुकता मैडम को थी| पूरे दिन अनवी ने बच्चो को अपनी यात्रा का विस्तार से वर्णन किया और उनके सभी प्रशनो के उत्तर दिए| हर तरफ से उठाये सवाल का जबाब बड़ी होशियारी और अताम्विश्वाश  से दिया|पूरा विद्यालय इन रोमांचकारी यात्राओं पर चर्चा कर रहा था| कुछ उसकी बातों पर आसानी से विश्वाश कर रहे थे कुछ थड़े तर्क के बाद विश्वाश कर रहे थे| परन्तु विज्ञानं विषय की मैडम को आज के वैज्ञानिक युग में जादू टोने पर विश्वाश नहीं हो रहा था| और आसानी से मान भी कैसे ले| उसका विज्ञानं उसके सामने आसानी से चकना चूर हो रहा था| उसने अनवी की यात्रा का रहस्य जानने के लिए हर तरह के सवाल किये| अनवी ने होशियारी से सभी सवालों के जबाब दिए|यह कोई मनगढ़ंत कहानी तो थी नहीं जिससे अनवी लडखडा जाए| सत्य तो हर बार सत्य ही होता है|अनवी तो अपने अनुभव ही तो बता रही थी| कई दिनों तक अनवी की यात्रा विद्यालय में एक शोध का विषय बनी रही|
    इस बार विद्यालय में पुनः पांच दिनों की छुट्टियाँ आई| उसकी कक्षा उसकी अगली यात्रा के बारे में जानना चाहती थी| अचानक अनवी ने कहा मेरी अगल यात्रा का बुलावा आ गया है आप लोगों को इस खिड़की में क्या दिखाई डे रहा है|सभी ने खिड़की मे गोर से देखा और बोले खिड़की में तो कुछ नहीं है केवल एक प्यारी सी तितली है| अनवी ने बताया इस बार की मेरी यात्रा की हम सफ़र यह तितली ही है| तितली? यह तितली तुम्हे कैसे यात्रा पर ले जायेगी? इस पर अनवी ने बताया की यह तितली रहस्यमई तितली है| जिस जीव पर यह तितली बीत जाती है वह प्राणी अदृश्य हो जाता है और तितली भी नहीं दिखाइ देती| अनवी के इशारे पर तितली अनवी के ऊपर आ कर बैठ गई | और अनवी सभी के सामने अदृश्य हो गई|सभी बच्चे अपनी कक्षा में अनवी को इधर उधर तलाश कर रहे थे| परन्तु अनवी किसी को भी नहीं दिखाई दे रही थी| एक बार पुनः तितली अनवी के सिर पर से हट गई और अनवी ने सभी को अलविदा कह और अपनी अगली यात्रा पर चल पड़ी| इस बार अनवी केवल अदृश्य हो सकती थी| अतः अदृश्य हो कर पालम एअरपोर्ट से विमान में बैठी आधे घंटे के आरामदायक सफ़र के बाद वह लोकप्रिय गोपीनाथ बारदोई अन्तेर्राष्ट्रिये हवाई अड्डे पर उतरी|इसको गुवाहाटी अन्तेर्राष्ट्रिये वायु अड्डा भी कहते है|पहले इसको बोरझार विमानपत्तनम  भी कहते थे|यह पूर्वोत्तर राज्यों में जाने का एक प्रमुख हवाई अड्डा है| यह दिसपुर से २६ की.मी. दूर बारझोर में स्थित है| यहाँ से स्थानीय बस द्वारा कोकराझार पहुंचे|कोकराझार से ६ की.मी. दूरी पर चक्रशिला वन्यजीव अभ्यारण्य है|यह असम का प्रसिद्ध अभ्यारण्य है|  वन्य जीव पार्क की सैर आपको हमेशा ही प्रकृति के करीब ले जाती है। वन्य जीव पार्क में आप कई प्रकार के वन्यजीवन को देखने का मौका मिलता है।इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं कि, वन्य जीव पार्कों की सैर करना परिवार के साथ एक उपयुक्त जगह है। असम राज्य में कई राष्ट्रीय उद्यान हैं, जहां आप रोमांचक तरीके से अपनी छुट्टियों को बिता सकते हैं। असम में कई सारे नेशनल पार्क है, जो यहां आने वाले पर्यटकों की सभी सुविधायों का ध्यान रखते हुए उनकी छुट्टियों को रोमांचक बनाते हैं| यहाँ पर अभ्यारण्य के आलावा हनुमान मंदिर कोकराझार और काली मंदिर कोकराझार देखने लायक है|यह अभ्यारण्य लगभग ४५कि.मी. में फैला हुआ है| यह मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्र में फैला हुआ है|इसमें दो प्रसिद्द झील है जिनको धीर बीक और दिप्लाई बील के नाम से जाना जाता है|यहाँ पर साल का पेड़ प्रमुख रूप से पाए जाते है| हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह पेड़ भगवन विषाणु का प्रिय पेड़ है|शाल संस्कृत का शब्द है| जिसका अर्थ घर होता है| यह मुख्य रूप से घर बनाने के काम आता है | जैन धर्मं के २४वे तीर्थंकर भगवान महावीर को साल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था| बौध मान्यताओं के अनुसार गौतम बुद्ध की माँ रानी माया देवी ने साल के पेड़ के नीचे ही गौतम बुद्ध को जन्म दिया था| गौतम बुद्ध को साल के पेड़ के नीचे ही निर्वाण प्राप्त हुआ था| इसलिए यह यह अभ्यारण्य बौध भिक्षुओं को काफी आकृषित करता आ रहा है|
    चक्रशिला वन्य प्राणी अभ्यारण्य में विभिन्न प्रकार के मादा,पक्षी और सृरिसृप की २३ प्रजातियाँ  पाई जाती है| यहाँ पर तितलियों की चालीस से ज्यादा प्रजातियाँपाई जाती है| यहाँ पर छोटी पूंछ के moleमोल, भारतीय उड़ने वाली लोम्बड़ी,छोटे नाक वाली चमगादड़ पक्षियों की लगभग ११९ प्रजातियाँ पपी जाती है|जिन में काला तीतर,बटेर,गाय बगुला,बैगनी बगुला, mole लाल सर का गीध  प्रमुख है| अनवी उस तितली के साथ साल्कोचा गाँव पहुंची|यहाँ का बुढा-बूढी मंदिर काफी प्रसिध है|प्रति वर्ष यहाँ अप्रैल माह में मेला लगता है और बुढा-बूढी की पूजा की जाती है| इसके नजदीक ही अन्नपूर्णा मंदिर है| अन्नपूर्णा मंदिर में बुढा-बूढी की पूजा से एक दिन पहले पूजा की जाती है| साल्कोचा गाँव के दक्षिण में ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर चंदर दीघा पहर पर पगला बाबा का मंदिर है| यह मंदिर भगवान भोले नाथ का मंदिर है|दीप्लाई बील झील पक्षी बिहार के लिए काफी उपयुक्त है|इस झील में प्रवासी पक्षी आते हैं|पश्च्स्मी किनारे पर बोरो,रावा और गारो समुदाय के लोग रहते है|यहीं पर मेरा प्रिये बंदर जो छ इंच का है, रहता है| मूल रूप से इनको सुनहरे लंगूर के नाम से जाना जाता है| यहाँ पर ये सामान्य आकार में पाये जाते है|
    सालाकोचा गाँव के पूर्व में धीर बील झील है| यहाँ पर टीन्टला,धीर घाट और डकरा  बील झीलों में विभिन्न प्रजातियों की मच्छलिया पाई जाती है| मेरी दोस्त लाल मच्छली इसी प्रजाति की है| ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी तट पर दूध नाथ मन्दिर है|जो भगवान शिव का मंदिर है|यह मंदिर तिलपाडा नामक जगह पर है|यहाँ  श्रावण मास की शिवरात्रि को भरी मेला लगता है| सालाकोचा के उत्तरी भाग में एक झरना है जिसको हवाई झोरा कहते है| यह जगह शांत और शीतल है|और तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है|
    यहाँ आने पर अनवी की दोस्त तितली की कई दोस्त उससे मिली|उनमें से एक तितली बोली में पहले एक लड़की थी| यहाँ के बूढा-बूढी मंदिर में हर साल आती थी| एक दिन में चन्द्रदीघा पहाड़ पर पगला बाबा के मंदिर चली गई|में उसे पागल समझ कर चिढाती रही| में नहीं जानती थी की यह भगवान भोले बाबा का मंदिर है|सब इसको पगला बाबा का मंदिर के नाम से जानते है| इस मंदिर में कोई तांत्रिक आया हुआ था|वह अपनी साधना में लीन था| मेरी हंसी से उसकी साधना में भंग पडा और उसने अपनी तंत्र विद्या के बल पर मुझे तितली बना दिया|मैंने भगवान् आशुतोष का बहुत जाप किया और तांत्रिक से क्षमा भी मांगी| इस पर तांत्रिक ने बताया क जब कोई तुम्हारे नाम से दूध नाथ मन्दिर में श्रावण मास की शिवरात्रि को दूध चढ़ाएगा तो तुम पुनः मानव योनी में आ जाओगी|  मेरी सहेली तितली जिसको हम प्यार से तितों कहते है मुझे इसी कार्य के लिए लेकर आई है| अनवी ने साड़ी बाते ध्यान से सुनी और उनके बताये नियमानुसार हवाई झोरा जल प्रपात में स्नान किया और पास के दूकान से दूध ला कर दूध नाथ मंदिर में दूध चढ़ाया|इसके तुरंत बाद वह तितली पुनः एक सुंदर लड़की बन गई|शिव कृपा से पुनः मानव योनी मिली इसलिए उसने अपना नाम शिबंगी रख लिया| अब अनवी, शिबाँगी और लाल तितली मंदिर प्रांगण में ही रहने लगी| शिबांगी को एक युवक से बिहू के अवसर पर एक युवक से प्यार हो गया और दोनों ने शादी करना तय कर लिया था|मेरी छुट्टियाँ ख़तम होने को थी|अतः मैंने अपनी यात्रा को स्थगित कर पुनः लाल तितली के साथ अपने विद्यालय आ गई| शिबाँगी ने अपनी शादी में आने का निमंत्रण पहले ही डे दिया था|
    निश्चित समय पर अनवी शिवांगी की शादी में पहुँच गई थी| उसके पास असमियां शादी के रीती रिवाज समझने का काफी समय था|शिबंगी ने बताया:- आसाम के बोंगाई गाँव जिले में लड़की जब पहली बार रजस्वला होती है तो उसकी पहली शादी पेड़ से करवाते है|केले के पेड़ के साथ लड़की की शादी एक अजीब परम्परा है|इस शादी को तोलिनी विवाह कहते है|इस दौरान लड़की को सूर्य की किरणों से बचा कर रखा जाता है|शादी के दौरान लड़की को केवल फल और कच्चा दूध दिया जाता है|तोलिनी ब्याह को पहली शादी भ कहते है| सही उम्र पर लड़कियों की शादी कर दी जाती है|हिन्दू मान्यताओं के अनुसार जब वर्ष नहीं होती तो इंद्र देवता को खुश करने के लिए यज्ञ हवन आदि किया जाता है|परन्तु जब असम में वर्षा नहीं होती तो मेंढकों की शादी करवाई जाती है|
    असम में शादी की कुछ रश्में निम्न लिखित है- शादी से पूर्व की रश्में
·        जुरान दिया –यह शादी से इ या दो दिन पहले किया जाने वाली रश्म है|
·        तेल दिया-इसमें दुल्हे की माँ अपनी होने वाली बहु को अंगूठी और सुपारी भेंट करती है| और बालों में कंघी करती है|
असामी लोगों में शादी की रश्मों को बिया कहा जाता है| असामी शादी सामुदायिक रीती-रिवाजों की एक मिसाल है|जो बहुत ही साधारण तरीके से की जाती है|शादी का पूरा समारोह दो से तीन दिन तक चलता है| पहले दिन बिया नाम या बिया गीत के नाम होता है| जहाँ महिलाये शादी के गीत गाती है|पुरे शादी समारोह में कौंच और उरुली बजाई जाती है|महिलाओ द्वारा जीभ से एक विशेष आवाज निकली जाती है|जुरान दिया में सभी घरों में आम के पत्तों की बंदरवार बना कर दरवाजों पर लटकाई जाती है|यह बंदरवार बुरी आत्माओ को दूर रखती है|इसको असामी में दली गाथा कहते है|इस दिन दुल्हे की अन्य औरतों के साथ दुल्हन के घर जाती है और शादी की अनेकों रश्मे पूरी करती है|एक ताम्बे की प्लेट में पान और ताम्बुल(सुपारी) एक गमछे से धक् कर देती है|दुल्हन को अन्य औरतें पकड़ कर शादी के पांडाल में ले कर आती है|दुल्हन अपन सर ढक कर आती है|दुल्हे की माँ द्वारा लाये उपहार उसे भेंट किये जाते है| तेल दिया में इसमें दुल्हे की माँ अपनी होने वाली बहु को अंगूठी और सुपारी भेंट करती है| और बालों में मांग निकालती है|अपने साथ लाया तेल दुल्हन के बालों में तीन बार लगाती है| इसके बाद सास द्वारा मांग में सिन्दूर भरा जाता है| शेष भारत में दूल्हा मांग भरता है|इस राशम के बाद दुल्हन हमेशा अपनी मांग में सिन्दूर भारती है|यहाँ की शादी के पारम्परिक परिधान होते है|दूल्हा  धोती कुर्ता और चेलांग ( एक प्रकार का शाल) पहनता है| यह विशेष रूप से मूंगा सिल्क का बना होता है| फूलों की माला के साथ वह तुलसी के पत्तों की माला भी पहनता है| दुल्हन के परिधान में मेखला चद्दर जो मूंगा सिल्क की बनी होती है|एक भाग साडी और दूसरा ब्लाउज की तरह पहना जाता है|सोने के गहने(जुन बिरी) पहनने का रिवाज है|
पानी तुला:-इस समारोह में दूल्हा और दुल्हन की माँ नजदीक के तालाब या नदी पर जाती है और वहां से पानी भर कर लाती है| इस पानी से शादी के लिए स्नान किया जाता है|दोनों पक्ष चावल के ढेर पर जलता हुआ दीपक रखते है|इसके साथ सुपारी का जोड़ा , चाक़ू ,सिक्का और ताम्बुल के पत्ते होते है|गीत गाती औरतें नदी या तालाब से पानी लाती है| पानी का पात्र घर पर रख कर बिना मुड़े और पीछे देखे नदी पर जाया जाता है| सिक्का दूल्हा/दुहन को दे दिया जाता है|चाक़ू को दुल्हे के गम्च्छे से बाँध दिया जाता है| यह चाक़ू बुरी आत्माओं को दूर रखता है|काला जादू से बचा कर रखता है|
दाइयां दिया :-दूल्हा पक्ष प्रातः काल दुल्हन के घर दही भेजता है| इसमें से आधा दही दुल्हन खाती  है| शेष आधा वापिस दुल्हे के पास भेज दिया जाता है|
नौ पुरुशौर शरदो :-इस रश्म में दोनों परिवारों के पूर्वजों को श्रधांजलि  अर्पित की जाती है| यह रश्म प्रायः दूल्हा और दुल्हन के पिता  करते है| अपने पूर्वजो की  पिछली नौ पीढ़ियों अभय दान मांगते है|
नौनी (स्नान समारोह) में दूल्हा और दुल्हन नदी से लाये जल से स्नान करते है| पहले माँ तेल और दही लगाती है|इसके बाद उड़द की दाल और हल्दी का लेप लगाया जाता है और इसके बाद शेष औरतें इसमें भाग लेती है| इसके बाद नदी जल से स्नानं करा जाता है|
स्वागत:-स्वागत समरोह में दुल्हन को समारोह में बने विशेष मंच पर बैठाया जाता है|वह अपने अभिन्न मित्रों और रिश्तेदारों का स्वागत सौफ डे कर करती है| दुल्हे के पहुँचने पर दुल्हन को अन्दर ले जाया जाता है|दुल्हन पक्ष की और से दी गयी पोषक में दूल्हा समारोह स्थल पर आता है|वह सर्वप्रथम अपनी माँ से आशीर्वाद प्राप्त करता है| माँ इसके बाद आगे की शादी की रश्मे माँ नहीं देखेगी एसी प्रथा है|आशीर्वाद देने के बाद वह जलूस के साथ वापिस घर लौट जाती है| इसके बाद दुल्हन का परिवार विभिन्न रश्मों में भाग लेता है|
डोरा आहा :-जब बारात दुल्हन के घर पहुंचती है तो उन्हें एक रश्म अदा करनी पड़ती है|यहाँ काफी हास्य विनोद होता है| एक रकम अदा करने पर बारात को घर में प्रवेश करने की इजाजत मिल जाती है|
भोरी धुवा :- दुल्हन की माँ आरते की थाली के साथ स्वागत कर्ट है और साली दुल्हे के पैर धोती है|इसके बाद दुल्हे को जमीन पर पैर रखने की इजाजत नहीं है|उसके साले उसे उठा कर समारोह स्थल में ले जाते है| दुलहन को पंचामृत  (दही, घी,शहद,मीठा और कच्चे दूध का मिश्रण) दिया जाता है|
बिया- दुहां को उसके मामा अपने कन्धों पर उठा कर समारोह स्थल पर लाते है| पवित्र अग्नि के समक्ष शादी संपन्न होती है| सप्तपदी रश्म के साथ शादी सम्पन्न होती है|अंत में  दुल्हन ताम्बुल के सात पत्तों पर अपना दाहिना पैर रखती है|
शादी की उत्तरोतर रश्में:- खेल धमाली में नव दम्पति शादी के पारंपरिक खेलों में भाग लेते है|
मान धोरा:-नवयुगल बड़े बूढों का आशीर्वाद लेते है और बदले में उनसे उपहार देते है|बिदाई समारोह में आश्रुपूर्ण बिदाई होती है|दुहां के ऊपर चावल फेंके जाते है ताकि माँ बाप के ऋण से मुक्त हो सके| नव दम्पति शादी के बाद घर पहुँचने पर उसकी माँ उनका स्वागत करती है इसको घोर मोसोका कहते है| दुल्हन थाली में रखे दूध में कदम रखती हुई आगे बढती है|मिटटी के दीये तोड़ती हुई घर में प्रवेश करती है| कुछ सामान्य सी रस्में पूरी करने के बाद दुल्हन वापिस अपने पिता के घर पहुंचती है| अगली सुबह दूल्हा अपनी ससुराल में आता हैऔर पुरोहित से खुबा खूबी की कहानी सुनते है| अपने देवताओ का आशर्वाद पा कर अपने घर पहुँचते है| वहां पर फूल सोजा और अस्टमगाला की रश्में होती है|अनवी शादी का आरम्भा से अंत तक का विवरण सुन कर थक cथी| शिबंगी ने बताया की हमारी शादी में प्रेत आत्माओं से बचने के लिए काफी रश्म और रिवाज किये जाते है|
    शिबाँगी बताती है:-मेरे पड़ोस में एक अम्मा अपने पति के साथ रहती थी उनके एक लड़का भी था|भरी वर्षा में उनका मकान बह गया|दोनो अपने बच्चे के साथ मुसीबत में फस गए | भरी वर्षा बाढ़ का रूप धारण कर चुकी थी|अंत में उन्होंने दूध नाथ मंदिर में शरण लेने की सोची| दोनो बच्चे के साथ आगे बढ़ रहे थे उनके रास्ते में हवाई झोरा नाम का झरना आया  इसे पार करते समय तीनो पानी में बह गए| यह जगह तंत्र विद्या के लिए प्रसिध है|लड़का नदी के दूसरे किनारे पर और उसकी माँ दुसरे किनारे पर दूर जा कर पानी से बाहर निकले| आदमी सालकोचा गाँव के पूर्व में स्थित धीर बील के किनारे पहुच गया| तीनो को एक दूसरे की कोई जानकारी नहीं थी|हालात से परेसान आदमी दर दर की ठोकरें खाता रहा  परन्तु अपने परिवार की कोई खबर नहीं थी| हार परेसान आदमी पगले बाबा के मंदिर पहुंचा| वहा भगवन आशुतोष की पूजा अर्चना की| उधर वह लड़का शिवांगी के हर के बाहर पहुँच कर रोने लगा | शिवांगी के घर पर उसे खाने पीने को दिया गया और उसको पुत्रवत पाला गया | आदमी विगत पांच वर्षों से अपनी पतनी और लड़के को तलाश कर रहा था| अंत मे  वह मंदिर से हवाई झरने के पास पहुंचा|वहां पास ही एक झोपड़ी में एक औरत धान  सुखा रही थी|वह उस औरत के पास गया और अपनी व्यथा कथा कह सुनाइ और उससे खाने को कूचा माँगा |उसने झोपड़ी में झांक कर देखा तो एक दूसरी औरत खाना पका रही थी| उसने चूल्हे में लकड़ की जगह पर अपना पैर लगाया हुआ था|उसने उस बूढी औरत से जानना चाहा की इसका क्या रहस्य है? इतना पूछते ही वह बेहोश हो गया और होश आने पर अपने आप को दिपलाई झील के पास पाया |अब उसको यकीं हो गया था की वह औरत उसकी पत्नी और लड़के के बारे में अवश्य जानती है| परन्तु वह उसके जादू के प्रभाव को पहले ही समझ चुका था|वहीँ झील के किनारे एक साल के पेड़ के नीचे एक अघोरी बाबा साधना में लीन था|वह उस बाबा की शरण में चला गया| बाबा की सेवा करने लगा| श्रावण मास के अंत में अघोरी की साधना सफल हुई|बाबा उस आदमी की सेवा से काफी खुश था| एक दिन बाबा ने उसका हालचाल जाना और वह कैसे परेसान है जाना| अघोरी उसकी मनोव्यथा को समझ चुका था| उसने उस आदमी से एक कच्चा नारियल मंगवाया और उसको सावधानी से ऊपर से काटा | नारियल में पानी भरा हुआ था| नारियल के पानी को अभिमंत्रित किया और उसमें अपनी धूनी की राख की एक चुटकी डाली | अब नारियल के पानी में प्रीतिबिम्ब दिखाई देने लगा | उससे अघोरी ने बताया की उसकी पत्नी कैसे उस बुढिया के जाल में फसी हुई है| वह बुढिया उसको अपने बेटे की बहु बनाना चाहती है|परन्तु वह इस काम के लिए मना कर रही है| इसलिए उसको यातना झेलनी पड़ रही है|प्रतिदिन उसका पैर जलाती है और मन्त्रों द्वारा पुनः ठीक कर देती है|अघोरी के कहे अनुसार वह आदमी राख की पुडिया लेकर उस बुढिया की झ्पदी के पास गया और उचित अवसर पा कर वह राख अपनी पत्नी पर दाल दी| शेष राख अपने ऊपर दाल ली | इससे बुढिया के जादू का कोई असर नहीं हुआ और अपनी पत्नी को ले कर  पुनः अघोरी बाबा के पास आ गया |अघोरी ने बताया की उनका लड़का शिबांगी के पास सकुशल है| वह उसका अपने बेटे की तरह लालन-पालन कर रही है| तुम वहां जाओ शिबांगी तुम्हारा इन्तजार कर रही है| थोड़ी देर में वह दम्पति वहां पहुँच गया| इस पर अनवी ने पूछा उम्हे कैसे पता चला की वे लोग यहाँ आ रहे है| इस पर शिबांगी ने बताया की  हम अपनी तंत्र विद्या से अपने संपर्क सूत्रों से सम्बंध बनाए रखते है| हम नारियल के पानी या थाली में पानी डाल कर उसको अभिमंत्रित करके प्रीतिबिम्ब में हालचाल जान सकते है|जिससे हमारा संपर्क नहीं होता उसको तलाश करना मुस्किल होता है| यह ठीक वैसे ही है जैसे मोबाइल नंबर के बिना बात नहीं हो सकती| शिबांगी ने बच्चा उनके हवाले किया| अनवी ने पुछ इन के साथ ये घटना क्यों घटी? उसने पानी में झाँक कर बताया की इन दोनों ने अपनी शादी में नौ पुरुशौर शरदो रश्म नहीं की| इस रश्म में अपने नौ पीढ़ियों तक के पूर्वजों से अभयदान माँगना होता है|उनको शर्द्धांजलि देनी होती है| आप लोग पगला बाबा के मदिर जाओ और वहीँ पर यह रश्म पूरा करो |

    अनवी शादी समारोह में पूरी तरह व्यस्त रही| फुरसत के समय में अभ्यारण्य में घूमी और वन्य प्राणियों के बारे में जाना| दिल छह रहा था की कुछ समय और बिताया जाए परन्तु छुट्टियाँ खत्म हो रही थी| अनवी अपनी कक्षा में आई तो उसके साथी मनोरंजक और रहस्यमई यात्राओं का मजा ले रहे थे| कुछ बच्चे अनवी की बातों को मनगढ़ंत समझ रहे थे| अनवी ने बताया की आप लोगों ने मुझे जाते हुए देखा है| अपने किसी परिचित से जो असम में रहता हो इन तथ्यों की पड़ताल कर सकता है|

Monday, 3 September 2018

पोबित्तरो वन्य जीव अभ्यारण्य

   

                                                      पोबित्तरो वन्य जीव अभ्यारण्य



    दो घंटे के सफ़र के बाद अनवी माया नगरी माँयोंग पहुंची|पोबित्तरो वन्य जीव अभ्यारण्य के गैंडे और अन्य हिंसक जानवर इस गाँव में देखने को मिल जाते है| जंगल से घिरे इस गाँव में पहुंचते ही एक अनछुए रहस्मयी स्थान पर पर पहुँचाने का आभाश होने लगता है|इस स्थान के पारम्परिक महत्व का पता इसी तथ्य से लगता है कि इसे देश की जादू-टोने की राजधानी माना जाता है। इस गांव की यात्रा कुछ ऐसे दुर्लभ तरीकों को देखने का अवसर दे सकती है जो आधुनिक जगत को अप्राकृतिक लग सकते हैं परंतु ये किसी को भी हिला देने में सक्षम हैं।गांव में एक अनूठा उत्सव मायोंग-पोबित्र भी आयोजित किया जाता है जिसे जादू तथा वन्य जीवन के संगम के रूप में मनाया जाता है।दिलचस्प है कि यहां रहने वालों को नहीं पता है कि यह स्थान जादू-टोने के लिए किस तरह से इतना लोकप्रिय हो गया अथवा यहां जादू-टोने का अभ्यास करने वाला पहला व्यक्ति कौन था? फिर भी अन्य विधाओं की ही तरह इस गांव में जादू-टोने की कलातथा हुनरएक पीढ़ी से दूसरी को मिलता रहा है।
    लाल चिड़िया ने अनवी को मायोंग गाँव के नज़दीक अभ्यारण्य में एक झोपड़ी के पास पहुँचाया|वहां पहुंचते ही लाल चिड़िया ने अपने सामान्य आकर में आकर अपनी एक सहेली को आवाज़ लगाई| युवती आवाज़ के साथ ही झोपड़ी से बाहर आ गई  और उनका दिल से स्वागत किया|लाल चिड़िया ने अपनी सहेली का परिचय करवाया |उसकी सहेली का नाम देवरी था| देवरी बिहू नृत्य की एक किस्म का नाम है|बिहू नृत्य के कई प्रकार हैं| उदाहरण के लिए "देवरी बिहु नृत्य", "माइजिंग बिहु नृत्य" रति बिहू इत्यादि| हालाँकि नृत्य का मूल लक्ष्य एक ही रहता है| दर्द और खुशी दोनों को महसूस करने की इच्छा व्यक्त करना।इस नृत्य शैली पर ही लाल चिड़िया की सहेली का नाम रखा गया था|

    देवरी  आकर्षक व्यक्तित्व की सुंदरी थी| बिहू नृत्य के दौरान ही उसने अपनी पसंद के युवक से शादी कर ली थी| मायोंग गाँव में रह कर देवरी ने जादू सीख लिया था| उसने पानी को अभिमंत्रित कर के लाल चिड़िया पर छींटे मारे इस से लाल चिड़िया एक सुंदर युवती में परिवर्तित हो गयी|वह काला जादू के प्रभाव से ही लाल चिड़िया बनी हुई थी|लाल चिड़िया से युवती बनी लड़की का नाम रति था| अब देवरी रति और अनवी में अच्छी दोस्ती हो गई थी|अनवी ने पूछा यह सब आपने कब और कैसे सीखा ? इस तरफ आप का झुकाव कैसे हुआ?

    देवरी बताने लगी मैंने बिहू नृत्य के दौरान लड़का पसंद किया था और इसके बाद शादी कर ली थी| मेरा पति काफी सुंदर और स्वभाव का अच्छा था| हमारी एक पड़ोसिन  ने मेरे पति को  काला जादू से मेंढा बना कर अपने घर बाँध लिया| मुझे इसकी जानकारी नहीं थी| में कई सालों तक अपने पति को तलाश  करती रही परन्तु सफलता नहीं मिली| में अपनी एक भैंस के साथ खेतों में काम करती रही और अपना गुजरा करने  लगी|खेतों में चावल और पास के तालाब में मच्छली हो जाती थी|निचले असम के कुछ हिस्सों में जाली मौसम (धान की खेती का सबसे व्यस्त मौसम जो जून में शुरू होता है और दिसंबर में खत्म होता है) के दौरान, यहां का लगभग हर किसान एक विशेष प्रकार का स्वदेशी चावल पर ज़ोर देता है। जिन्हें बोका साल या 'मिट्टी चावल' के नाम से जाना जाता है। यहां के किसानों को इस चावल के बारे में पता है। बता दें कि इस चावल को हाल ही में बौद्धिक संपदा भारत (आईपीआई) द्वारा भौगोलिक संकेत (जी आई) टैग मिला है।बोका साल को निचले असम के नलबारी, बारपेटा, गोल पारा, काम रूप, धरांग, धुबरी, चिरांग, बोंगाईगांव, कोकराझार, बक्का आदि स्थानों पर उगाया जाता है।यह खेतों में अपना खून पसीना बहाने वाले सैकड़ों किसानों के लिए ईंधन है और उनका मुख्य खाद्य पदार्थ है। 
    बस इसी दिनचर्या से गुजारा होने लगा|सुबह और सांयकाल घर के बाहर ताम्बुल(सुपारी) और शराब बेच कर अपना  गुजारा करने लगी| असम के लोग शराब को अलग-अलग विधा से तैयार करते हैं और यहां कई क्वालिटी की शराब मिलती हैं| असम में शराब निषिद्ध नहीं है और लोग अपने-अपने घरों में भी शराब बनाते हैं| जतिंगा  भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम घाटी में एक गांव है। यह  गुवाहाटी के दक्षिण में 330 कि.मी. दूरी पर स्थित है। यह गांव  पक्षियों के सामूहिक रूप एवं  गोपनीयता आत्महत्या के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है| मानसून के अंत में, विशेष रूप से चंद्रमा ना होने पर पक्षी कोहरे भरी रात काली रातों  में शाम 6 बजे से रात 9:30 बजे  तक के बीच में परेशान हो कर प्रकाश की और जाते हैं। इस समय वह मदहोशी में होते हैं  और चारों ओर पेड़ के साथ टकरा कर मर जाते हैं।  इस  घाटी में चुंबकीय शक्ति  अचानक बदलने  लगती है जिसकी वजह से पक्षी साधारण से अलग व्यवहार  करते हैं| 
    उसके पति देबोग को मेढा बना कर पड़ोसन ने बाँध लिया था| रात्रि में पुरुष बना कर घर में रख लेती थी|और सुबह पुनः मेंढा बना देती थी|देवरी ने दस साल तक अपने पति को ढूंढा परन्तु सफलता नहीं मिली| अंत में वह एक अघोरी बाबा के पास गई|उसको अपनी समस्या बताई | बाबा ने अपनी सिद्धियों के प्रताप से बताया की उस का पति उसके सामने वाली पड़ोसन के घर में है| उसने उसको मेंढा बना कर रख हुआ है| उसने बताया उसके पति कान में बाली पहनते थे| इस पर देवरी ने बताया की हाँ, परन्तु वह तो केवल बायें कान में ही पहनते थे | अघोरी ने बताया  की उस मेंढे के भी बाएँ कान में ही बाली है| काला जादू से बाली का स्वरूप या रंग नहीं बदलता| वह अपने वास्तविक रूप में ही रहती है|आरम्भ में तो देबोंग उस से पीछा छुड़ा कर तुम्हारे पास आना चाहता था है| परन्तु अब उसको उस पड़ोसन से ही प्यार हो गया है| अब वह दिन में आदमी बना रहे तो भी तुम्हारे पास नहीं आएगा|यह सुन कर देवरी को काफी अफसोस हुआ|  इसके बाद देवरी ने बताया की मायोंग गाँव के एक हिस्से को बुढा माँयोंग कहते है| दूर से देखने पर ये इलाक़ा भी देश के किसी दूसरे गांव की तरह ही है| लेकिन जैसे-जैसे गांव की ओर बढ़ेगे, धड़कनें तेज़ होने लगाती है| गांव में घुसते ही एक अजीब सी जगह दिखाई देती है| ये वही जगह है, जहां तांत्रिक, तंत्र साधना करते हैं| इलाके के लोग इसे बूढ़ा मायोंग भी कहते हैं| यहां मौजूद अजीबोगरीब चीज सब  को हैरत में डाल देती है| और मायोंग के एक तांत्रिक बताया कि ये वही जगह है, जहां हर 100 साल में एक बार नर बलि दी जाती है| इस शख्स के दावे को जांच ने को में  आगे बढ़ी | वाकई यहां दो कबूतर मौजूद थे|. इतने शोर-गुल के बाद भी कबूतर यहां से नहीं भागे| लोगों का दावा है कि हर रोज़ दो कबूतर यहां अपने आप आते हैं और बलि को कबूल करते हैं|
 देवरी ने थोड़ा रास्ता  और तय किया तो पहाड़ों की चट्टानों पर भगवान की प्रतिमाएं मिलीं| जिसमें से कुछ भगवान गणेश की थीं| और  कुछ भगवान शंकर और मां पार्वती की| इलाके के तांत्रिकों ने देवरी  को एक योनि कुंड दिखाया| देवरी  को बताया गया कि इस कुंड में भी तांत्रिक साधना किया करते थे| जिसके पास कुछ अजीबोगरीब मंत्र लिखे हुए हैं और दावा किया जाता है कि मंत्रों की शक्ति की बदौलत ही इस कुंड में पानी हमेशा मौजूद रहता है, जो गर्मी के मौसम में भी नहीं सूखता|
   बूढ़े मायोंग के लोग इतने सिद्धहस्त है की आदमी को ग़ायब कर देते है या फिर उसको जानवर बना देते है|अपनी सम्मोहन शक्ति से जंगली जानवरों को पालतू पशु की तरह बना कर घर के बाहर बांध देते है| अघोरी बाबा से कठिन साधना के बाद उसने भी काला जादू सिखा है|काला जादू के प्रभाव से मैने पड़ोसन और अपने पति को पक्षी बनाया और जतिंगा के पेड़ो से टकरा कर दोनों की मार दिया| इसके बाद मैने एक आदमी को सम्मोहित कर के अपने घर रखा जो मेरे खेत और तालाब पर काम करता था|साप्ताहिक बाजार में सामान बेच और ख़रीद कर लाता था|दस साल तक वह मेरे पास रहा और उसको घर की हर सुविधा और सुख दिया ताकि वह यहीं पर ही रहने लगे| परन्तु में दस साल की अवधि में भी उस का मन नहीं जीत सकी| इस के बाद मैने उसको काला जादू से मुक्त कर दिया| इसके बाद जब वह अपने घर गया तो उसकी पत्नी और बच्चे ने उसे स्वीकार नहीं किया|
    रति भी मुझे पबित्रो वन्य जीव प्राणी अभ्यारण्य में मुझे घायल अवस्था में मिली थी|असल में यह एक शेरनी है| जादू से इसे लड़की बनाया हुआ है| रति ने बताया की तीन शेरों में  अपना अपना अधिपत्य ज़माने के लिए भयंकर लड़ाई हुई| इस लड़ाई में दो शेर तो वहीँ मारे गए और तीसरा घायल हो कर गिर गया| इस लड़ाई में मै भी गंभीर रूप से घायल हो गई| देवरी ने बताया की में घायल शेरनी को उठाकर घर नहीं ला सकती थी | इसको लाल चिड़िया बना कर अपने घर ले आई|लम्बे इलाज के बाद यह स्वस्थ्य हो गई| काफी समय साथ रहने के कारण हम दोनों में प्यार हो गया|मैंने काफी बार इसको कहा चलो मै तुम्हे जंगल में तुम्हारे असली रूप( शेरनी) में छोड़ आती हूँ, परन्तु वह हर बार मना कर देती है|वह हिंसात्मक जीवन से ऊब चुकी है|उसे मेरी दोस्ती और मेरा प्यार काफी पसंद आ रहा है| मैंने इसे अपना आकार छोटा और बड़ा बनाना सिखा दिया है ,जिससे यह अपना बचाव हर संकट में कर सकती है| अब इसकी दोस्ती तुम्हारे से भी हो रही है, यह एक अच्छा संकेत है|मायोंग गाँव के बूढ़े मायोंग में योनी कुण्ड हिंदुओं की साधना के लिए और अष्टदल कुण्ड  बोधिक तांत्रिकों के लिए है| देवरी ने बताया मुझे लोगों को कष्ट पहुँचाना पसंद नहीं आता|मैं जादू का प्रयोग लोगो की भलाई के लिए करती हूँ| लोगों की बीमारियाँ ठीक करती हूँ |मेरा प्रयास है की मै अपनी जादू विद्या से लोगो का जीवन ओर सुखी बना सकूँ |जो तंत्र साधक अपनी विद्या का प्रयोग दूसरों को कष्ट पहुँचाने में करते है उनका अन्त समय भी यातानाओं से गुजरता है| मैं अपनी तंत्र विद्या का प्रयोग काफी सोच समझ कर करती हूँ|
    अनवी देवरी की बातों से काफी विचलित लग रही थी|जब उसे पता चला की लाल चिड़िया वास्तव में एक शेरनी है तो उसे काफी डर लगा| परन्तु देवरी ने आश्वस्त किया की दोस्त कभी किसी दोस्त को नुकसान नहीं पहुँचाते| इसके बाद देवरी ने ताम्बे की थाली में पानी लिया और उसको अभिमन्त्रीत किया| मंत्रों  के प्रभाव से पानी उबलने लगा और थोड़ी देर बाद पानी ठंडा हो गया| उसमें कांच  की तरह पर्तिबिम्ब दिखने लगा| वह अनवी से कहने लगी ये देखो पबित्रो वन्य प्राणी अभ्यारण्य में वह बाग़ है जहाँ तुम लाल चिड़िया, बन्दर और गैंडे के साथ खेला करती थी| यहीं पर तुम्हारे पास एक तितली भी आई थी| ये सभी मेरे दोस्त है और मेरी सम्मोहन शक्ति से मेरे वश में रहते है| हम कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाते है| हाँ अपनी सुरक्षा अवश्य करते है| एक सिंग वाला गैंडा अपने परिवार के साथ हंसी ख़ुशी से रह रह है| नदी किनारे बाग़ हमारा मिलने का स्थान है| में उसे एक फुट का आकार दे देती हूँ| मेरे निर्देशों के अनुसार ही वह तुम्हारे साथ बाग़ में खेल रहा था| बन्दर भी मेरे मन्त्रों के प्रभाव से आकार में छोटा और बड़ा हो जाता है| यह कामाख्या मंदिर के नज़दीक ब्रह्मपुत्र नदी के टापू पर बने उमानंद मंदिर के पास बीमार अवस्था में मिला| इसका असली रंग सोने जैसा है| सुनहरा लंगूर (Golden langoor): ब्रह्मपुत्र नदी के आसपास पाया जाता है। अब इनकी संख्या तेजी से घट रही है।असम के चिड़ियाघर के परिसर में विलुप्तप्राय: सुनहरे लंगूरों के अस्तित्व को बचाने के लिए जल्द ही एक प्रजनन केन्द्र खोला जा रहा है| विशाल ब्रह्मपुत्र के पीकाक टापू पर स्थित उमानंद मंदिर अपनी वास्तुशिल्पीये विशेषता के लिए जाना जाता है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर का निर्माण अहोम राजा गदाधर सिंह के शासन काल में हुआ था। यहां हर साल फरवरी के महीने में पड़ने वाली शिवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालू आते हैं। मंदिर तो अपने आप में खूबसूरत है ही, पर मंदिर के चारों ओर बहने वाले ब्रह्मपुत्र का नज़ारा मंत्रमुग्ध कर देने वाला होता है। उपचार के बाद इसको मैने वापिस उमानंद मंदिर परिसर में छोड़ना चाहा परन्तु इसने मेरे सानिध्य में रहना ही पसंद है|एक बार  में नदी किनारे बाग़ में इस से साथ बैठी खेल रही थी , प्यार से इसके बालों में हाथ घुमा रही थी| तभी एक प्यारी से तितली मेरे सर पर बैठ गई और कहने लगी क्या सारा प्यार इसी में बाँट  दोगी ? मुझे अपना दोस्त नहीं बनाएगी ? मुझे उसकी भी दोस्ती  पसंद आई | और अब यह तितली जिस भी प्राणी पर बैठती है वह और तितली दोनो अदृश्य हो जाते है|इस प्रकार संकट में पड़े जीवो को अदृश्य कर उनका बचाव कर देती है और इस का स्वयं का भी बचाव हो जाता है| इस थाली में प्रतिबिम्ब देख कर में सभी से संपर्क बना लेती हूँ और उनकी समस्या का समाधान भी हो जाता है| अनवी को  इस रहस्मयी दुनियां से काफी डर लग रह था|वह जंगल के जीवों में इतनी प्रगाढ़ मित्रता और परोपकार की भावना  से काफी प्रभावित हो रही थी|परन्तु उसे याद आया की उसकी छुट्टियाँ ख़त्म होने को है|कल ही उसे अपनी पाठशाला जाना है|उसने रति से पाठशाला पहुँचाने का आग्रह किया| रति पूर्व की तरह एक बड़ी लाल चिड़िया बन गई और अनवी को अपने ऊपर बैठा एक लम्बी उड़ान के बाद गुरुग्राम पहुँचा  दिया| अनवी ने लाल चिड़िया को अलविदा कहा और अपनी कक्षा  में पहुँच गई|