Wednesday, 5 September 2018

ओरांग राष्ट्रीय उद्यान

        ओरांग राष्ट्रीय उद्यान


अनवी अपनी रहस्यमयी यात्राओं के लिए विद्यालय में काफी चर्चा में थी|उसकी यात्राओ के अनुभव ज्ञान वर्धक और रोमांचकारी थे| एक बार सुनना आरम्भ करो तो बीच में छोड़ने को मन नहीं करता|विद्यालय के साथी बार बार इसे सुनना पसंद करते थे| अनवी स्वयं भी ऐसी यात्राओ पर जाने का कोई अवसर नही छोड़ना नहीं चाहती थी|इस बार उसने लाल चिड़िया को अपने घर पर ही बुला लिया|इस बार लाल चिड़िया ने अनवी को मधुमक्खी बनाया और अपने पंखों में छिपा कर यात्रा में चल पड़ी|इसबार अनवी असम के ओरांग राष्ट्रीय उद्यान में पहुंची|
    ओरांग राष्ट्रीय उद्यान  भारत  के असम  राज्य के दारांग  और शोणितपुर  ज़िलों में स्थित है जो ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तर में पड़ता है| १३ अप्रैल १९९९ में इसे राष्ट्रीय उद्यान बना दिया गया।उद्यान के कुल 78.8 वर्ग किलोमीटर में फैला है| इसको राजीव  गांधी ओरांग राष्ट्रीय उद्यान  के नाम से भी जाना जाता है| इसमें काफी मात्रा में घास के मैदान, दल दल जमीन और नदी नाले है|ओरंग गुवाहाटी से १४० की.मी. और तेजपुर से ३२ की.मी. और मंगलदाई से ६८ की.मी. दूर है| यहाँ का नजदीक का रेलवे स्टेशन रोंगापारा पड़ता है|हवाई अड्डा सलोनी, तेजपुर पड़ता है|इसको छोटा काजीरंगा भी कहते है|यह उद्यान अपने प्राक्रितिक दृश्यों के लिए और वन्यप्राणी व वनस्पति के लिए प्रसिध है|कभी उद्यान की जगह जन जाती के काबिले रहा करते थे|इस में २६ मानव निर्मित झीले है|जो प्रवासी पक्षियों का प्रिय स्थल है| एक सिंग के गैंडे,शेर,मल्जुरिया हाथी, हाग हिरण,जंगली सूअर ,विवेट बिल्ली, पोर्चुपैन , पहाड़ी पाइथन(सर्प), डॉलफिनऔर पक्षियों की २२२ प्रजातीयां पाई जाती है|
    ओरांग राष्ट्रीय उद्यान में निम्नलिखित स्थान भी देखने लायक है:-
१.      मदन कामदेव मंदिर:-यह मंदिर कामरूप जिले में है जो ९वी और १०वी शताब्दी का बना हुआ है|
२.    सौल्कुची गाँव:-रेशम के लिए प्रसिद्ध यह गाँव गुवाहाटी से ३०की.मी. की दुरी पर है| यहाँ रेशम की सुंदर साड़ी बनाई जाती है|१७वी सदी का यह गाँव रेशम बुनकरों के लिए प्रसिध है|

उद्यान में क्या देखें :-

१.     वन्य जीव :घास से भरे मैदानों में सफारी की सवारी किये बिना आपकी यात्रा अधूरी है|यह उद्यान बहुत सी विलुप्त हो रही प्रजातियों का घर है|यहाँ पर गैंडे,हाथी, हिरण,सूअर और साँपों की कई प्रजातियाँ देखने को मिल जाती है|

२.   पक्षी अवलोकन:-यह उद्यान लगभग २०० प्रजातियों के पक्षियों की शरण स्थली है|आमतोर पर यहाँ पर हेरॉन,बंगाल फ्लोरिकन,पेलिकन , किंगफ़िशर,सुनहरी चील के अलावा और बहुत से पक्षी देखे जा सकते है|

३.   हाथी इस्वारी:-ओरांग में हाथी की सवारी अविस्मरिनिये होगी|जो वन विभाग द्वारा आयोजित की जाती है|

४.   क्रूज की सवारी:-उद्यान के एक सिरे से दुसरे सिरे तक ब्रहाम्पुत्र नदी में क्रूज की सवारी का आनंदा लिया जा सकता है|

ओरांग की यात्रा सिंगारी बंगाली गाँव से आरम्भ की जा सकती है|यहीं से आप लाओ-खोवा वन्य जीव अभ्यारण्य भी जा सकते हो|इस गाँव में आने पर आपके समूह बना कर आप की यात्रा की तैयारी की जाती है|यहीं से आप बूरा-चपोरी वन्य जीव अभ्यारण्य जा सकते है|यहाँ स्तनधारी जीवों की कई प्रजातिया,रॉयल बंगाल शेर,एशियाई हाथी,सुनेहरे हिरण की चार प्रजातीया और पिग्मी हॉग ( सूअर की एक विलुप्त प्रजाति) देखने को मिल जाती है |यह उद्यान पाचानोई नदी, बेल सिरी और धन श्री नदीयों से घिरा हुआ है |ये सभी ब्रहमपुत्र की सहायक नदियाँ है|उद्यान के चारों और आबादी वाले क्षेत्र है| यहाँ मच्छलियों की ५० प्रजातियाँ पाई जाती है|

    अनवी ने शिबांगी के साथ ओरांग की यात्रा आरम्भ की|शिबांगी ने बताया की उद्यान की जगह पहले आबादी हुआ करती थी| परन्तु महामारी के प्रकोप के कारण गाँव वालों ने और कही अपना आवास बना लिया| बताया जाता है की बुरी आत्माओं के डर से गाँव वाले सदा के लिए यह स्थान छोड़ कर चले गए| इस सुनसान जंगल में एक अघोरी दम्पति तंत्र साधना में काफी समय से लगा हुआ था| उसने एक छोटी झोपड़ी बना राखी थी| रात्री में अपने बचाव के लिए झोपड़ी में नीचे जमीन में एक गुफा बना राखी थी| इस से जंगली जानवरों से बाख कर गुफा में रात्री को छुपा जा सके|रात्री को गुफा का दरवाजा पेड़ों की टहनी और पत्तों से ढक दिया करते थे|वे अपनी साधना में इतने व्यस्त रहते थे की उन को यह जानकारी नहीं होती थी की पास से कौन गुजर गया|अपने आप को वर्षा से बचाने के लिए झोपड़ी में जंगली जानवरों की खाल लगा रखी थी| पशुओं की हड्डिया भी झोपड़ी पर ही पड़ी हुई थी|अघोरी प्रथा के अनुसार वे पूरण रूप से गंन्दगी और बदबू के बीच रह रहे थे|वे इस वातावरण के अभ्यस्त हो चुके थे|झोपड़ी के अन्दर ही टट्टी और पेशाब की बदबू आती थी|

    एक दिन एक राजा शिकार करने जंगल में आया और रास्ता भटक गया| रात हो चली थी| जंगली जानवरों का पूरा डर था|गहराती रात में जंगली जानवरों की आवाज साफ़ सुने डे रही थी|राजा को रात बिताने का आश्रय कहीं नहीं मिला|अंत में राजा को उस अघोरी की झोपड़ी दिखी दी| वह वहां आया और नाक बंद करते हुए रात बिताने के लिए आश्रय माँगा|अघोरी ने कहा मेरे पास जगह नहीं है| एक बार जो यहाँ ठहर जाता है फिर जाने का नाम नहीं लेता| राजा जे आश्वाशन दिया की सुबह दिन निकलते ही वह चला जाएगा| काफी आग्रह के बाद अघोरी आश्रय देने को तैयार हुआ| परन्तु कहने लगा की नीचे गुफा में केवल दो प्राणी ही आराम कर सकते है|उसमें केवल इतनी ही जगह है| अन्त में यह तय हुआ की गुफा में अघोरी कि पत्नी और राजा आराम करेंगे | और अघोरी झोपड़ी में पहरा देगा | राजा को काफी देर तक बदबू के कारण नींद नहीं आई| परंतू दिन की थकान के कारण राजा को ऐसी नींद आई की सुबह ही आँख खुली| वह गुफा से बाहर आया तो देखा की अघोरी को हिंसक जानवर खा गए थे| अघोरिकी पत्नी विलाप करने लगी| राजा उसको धाडस बंधने लगा किन्तु सब बेकार|अघोरी की पत्नी चुप होने का नाम ही नहीं लेती थी| उधर राजा के सैनिक राजा की तलास में वहां पहुँच गए|मामला पेचीदा हो गया था|

    अन्त में राजा ने सैनिक को कहा की में एक महीने में इसके पति को ज़िन्दा कर दूँगा| तब तक यह राज कार्य संभालेगी | इसके पति के ज़िन्दा होने पर यह वापिस झोपड़ी में आ जायेगी  और में राज कार्य देखने लगुगा|तब तक के लिए यह ही तुम्हारी राजा है  सभी को इस के दिशा निर्देशों का पालन करना होगा | यह सुन सैनिक अघोरी की पत्नी को सम्मान पूर्वक महल में लाए आयें और उसके आदेशों पर राज कार्य चलने लगा | उधर राजा उसी बदबू वाली झोपड़ी में रह कर भगवान आशुतोष की आराधना करने लगे| अघोरी की पत्नी राज कार्य बखूबी से निभा रही थी|एक दिन राज कुमारी बाग़ में टहलने गई| वहां उसने एक घायल हंस को देखा राजकुमारी ने प्यार से हंस को उठाया और देख की उसके पैर में घाव था|राजकुमारी ने उसके पैर पर मरहम पट्टी बाँधी और पुचकार कर बाग़ में ही छोड़ दिया| अब राजकुमारी रोज हंस को दवाई लगाती और उसको खाने को देने लगी| दस दिन की देखभाल और उपचार के बाद हंश ठीक हो गया और राज कुमारी को अलबिदा कह उड़ गया |हंस पड़ोस के राज्य के राज कुमार के पास चला गया |

    राज कुमार को हंस ने राज कुमारी  के सोंद्रिये  और विनम्रता  की प्रशंसा की | हंस एक दूसरे के प्रेम पत्र पहुँचाने लगा | दोनों का प्यार परवान चढ़ रहा था| एक दिन राज कुमार राज कुमारी से मिलने आ पहुंचा| वह कार्यकारी राज माता से मिला और अपने आने का प्रयोजन बताया| कार्यकारी राज माता ने सेवकों के हाथ समाचार पहुँचाया और दरबार में राज कुमारी और रानी शिष्टता के साथ हाजिर हो गई |वे अतिथि गृह में राज कुमार को चाय पानी पिला कर आदर सत्कार करने लगी|विचार विमर्श के बाद रानी ने राज कुमार से एक महीने का समय माँगा ताकि राजा वापिस तपस्या के बाद अपनी राज गद्दी सम्भाल ले|इसके बाद ही कोई निर्णय लिया जाएगा| इस प्यार की चर्चा दूर दूर तक होने लगी| एक दिन राज कुमारी बाग़ में घूम रही थी की अचानक वह ग़ायब हो गई | सैनिकों ने बहुत तलास किया परन्तु राज कुमारी का पता नहीं चला|इस बात का जब कार्यकारी राज माता को पता चला तो उसने अपनी साधना के बल पर राजकुमारी को तलास किया तो उसको पता चला की राज कुमारी को मदन कामदेव मंदिर के पास किसी तांत्रिक ने सम्मोहित करके अपने पास रखा हुआ है| कार्यकारी राज माता ने रानी को अपने पास बुलाया और सारा माजरा समझाया| उसने अपने विश्वास पात्र सैनिकों की एक टुकड़ी के साथ सेनापति को छदम वेष में एक फूल अभिमंत्रित करके दिया और मदन कामदेव मंदिर के पास भेजा जहाँ पर तांत्रिक साधना कर रहा था|सेनापति को बताया की इस फूल से उस तांत्रिक पर पानी के छीटें मारने है| यह सब गुप्त रहना चाहिये| बतायी युक्ति के अनुसार सेनापति ने कार्य को अंजाम दिया और उस सिद्ध किये फूल से पानी के छींटे लगते ही वह तांत्रिक वहीँ पर भस्म हो गया| सैनिक राजकुमारी को सकुशल वापिस ले आये| इस पर रानी बहुत खुश हुई|

   एक महिना  पूरा होने को था राजा को कोई सफलता नहीं मिलती दिखाई डे रही थी| कार्यकारी राज माता ने अपने गुप्तचरों को बुलाया और उनको अघोरी का कंकाल चुपके से उठा कर लाने को कहा|अघोरी बाबा का कंकाल आचुका था | परन्तु राजा इससे बेखबर थे| रानी ने सैनिक भेज कर राजा को महल में बुला लिया और कंकाल पर अभिमंत्रित जल छिड़कते ही अघोरी बाबा उठ खड़े हुए|अब राजा और रानी दोनों अघोरी बाबा के पैरों में गिर गए और क्षमा मांगने लगे | बाबा ने कहा क्षमा मागने वाली तो कोई नहीं है| अघोरी बाबा और उसकी पत्नी अपने वास्तिक रूप में आगये| वे दोनों शिव और पार्वती थे | भगवन शिव और पार्वती के साक्षात दर्शन पा कर पूरा दरबार धन्य हुआ और भोले बाबा का गुण गान करने लगे| इस पर राजा ने भगवान् आशुतोष से एक शंका का समाधान चाहां| राजा पूछने लगे भगवन आपकी झोपड़ी का क्या रहस्य है| यज जीवन उस झोपड़ी की तरह है| मनुष्य माँ के गर्भ में इतनी ही गन्दगी में रहता है और इस संसार में इतने ही कष्ट उठाता है,परन्तु फिर भी इस से मोह हो जाता है|इस देह को छोड़ना नहीं चाहता ही|

    आपने पिछले जन्म में मेरे दर्शन की अभिलाषा की थी उसको मैंने पूरी कर दी है |और हम दोनों ने अपना वास्तविक रूप आप सभी को दिखाया है| मनुष्य अपने कर्मों का फल अवश्य पाता है | कर्मों के अनुसार की दंड या पुरुष्कार मिलता है| इस संसार में मनुष्य आकर वासना, तृष्णा ,मोह और लोभ आदि की गंदगी में फस जाता है| आरम्भ में उसकी आत्मा इन सब को स्वीकार नहीं करती| परन्तु धीरे धीरे वह इस माहौल का आदि हो जाता है| जैसे तुम मेरी झोपड़ी के आदि हुए थे|

इसके बाद राजकुमारी माँ पार्वती  के चरणों में गिर पड़ी| माँ पार्वती कहने लगी तुम्हारी शादी में कुछ व्यवधान आयेंगे| में तुम्हे यह लाल तितली देती हूँ| इसको खुला बाग में विचरण करने दो|यह तितली जिस भी प्राणी पर बैठ जाती है वह प्राणी और तितली दोनों अदृश्य हो जाते है|जब तुम्हे इसकी जरुरत पड़ेगी यह अपने आप तुम्हार पास आ जायेगी| कोई तांत्रिक मंत्र विद्या के बल पर राज कुमार बन कर आएगा, ऐसे कपटी पर जब यह तितली बैठेगी तो वह गायब नहीं होगा| असल का राज कुमार अदृश्य हो जायेगा|इसी विधि से तुम असली और नकली राज कुमार क पहचान कर अपना स्वयंबर पूरा करना|इतन कह कर शिव-पारवती अंतरध्यान हो गए|

   कुछ समय बाद राजा ने राज कुमारी का स्वयंबर रखा| इस स्वयंबर में बहुत से राज कुमार आयें| उसकी पसंद का राजकुमार भी आया , परन्तु वे दो एक ही शक्ल के थे | राज कुमारी ने देखा की एक तितल उडती हुई आई और बारी बारी से दोनो राज कुमारों पर बैठ कर राज कुमारी को असली और नकली का आभास करवा दिया|  राजकुमारी शादी के बाद अपने ससुराल आगे वहीँ से एक तांत्रिक ने उसका अपहरण कर लिया और मायोंग गाँव ले आया| उस सिद्धि के असर से मैं राज कुमारी से शिबांगी बन कर रह गई |यह तितली मेरे और राज कुमार के बीच  में संपर्क सूत्र है | मैं तुम्हारी मदद से वापिस अपने ससुराल जा पाउंगी|राजकुमारी की बताई युक्ति के अनुसार अनवी ने तितली के मदद से एक अघोरी से सम्पर्क बनाया और उसके सुझाये तरीके से अनवी ने शिबांगी को पुनः राज कुमारी को अपने ससुराल भेज दिया

    शादी के बाद अनवी का वहां पर दिल नहीं लगा और अगले ही दिन वह अपने शेष दो दोस्तों से मिलने चली गई|अब वह बन्दर,गैंडे और चिड़िया के पास रह रही थी | तभी उसे अपनी छुट्टियाँ ख़तम होने की याद आई और लाल चिड़िया ने उसे गुरुग्राम ला कर छोड़ दिया|



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