Tuesday, 4 September 2018

चक्रशिला वन्य जीव अभयारण्य

चक्रशिला वन्य जीव अभयारण्य
   जिस दिन पूरी कक्षा ने अनवी को लाल चिड़िया पर हवाई यात्रा करते देखा था उसी दिन से सारे विद्यालय में अनवी की विचित्र  उडान पर चर्चा होने लगी| और धीरे धीरे यह लाल चिड़िया सब के कोतुहल का विषय बन गई थी| अनवी इस को सामान्य महसूस कर रही थी| लाल्चिदिया की सवारी एक हवाई यात्रा की तरह लग रही थी| परन्तु अनवी चिड़िया पर स्वर हो कर कहाँ गई, कैसे रही, वहां पर उसने क्या क्या देखा एक चर्चा का विषय था|इधर अनवी को मायोंग गाँव के दोस्त काफी याद आ रहे थे| उसे देवरी द्वारा बताये दृष्टान्त रह रह कर याद आ रहे थे|उसकी दोस्त एक लाल चिड़िया है या एक शेरनी या फिर रति नाम की एक नव योवना? कई सवाल बार बार उसके मन में उभर उभर कर आ रहे थे|परन्तु कुछ भी हो यह सफ़र काफी मजेदार और रोमांच से भरा हुआ था| अनवी इस बात से बेखबर थी की उसके साथी उससे क्या क्या सवाल पूछेंगे?
    अचानक कक्षा में मैडम ने प्रवेश किया और सभी विद्यार्थियों की उपस्थिति दर्ज करने लगी|जब अनवी का नाम आय तो उसका पेन वहीँ पर रुक गया और मुस्कराते हुए पूछा –अनवी लाल चिड़िया का सफ़र कैसा रहा? वह तुम्हे कहाँ ले गयी|बच्चो से ज्यादा जानने की उत्सुकता मैडम को थी| पूरे दिन अनवी ने बच्चो को अपनी यात्रा का विस्तार से वर्णन किया और उनके सभी प्रशनो के उत्तर दिए| हर तरफ से उठाये सवाल का जबाब बड़ी होशियारी और अताम्विश्वाश  से दिया|पूरा विद्यालय इन रोमांचकारी यात्राओं पर चर्चा कर रहा था| कुछ उसकी बातों पर आसानी से विश्वाश कर रहे थे कुछ थड़े तर्क के बाद विश्वाश कर रहे थे| परन्तु विज्ञानं विषय की मैडम को आज के वैज्ञानिक युग में जादू टोने पर विश्वाश नहीं हो रहा था| और आसानी से मान भी कैसे ले| उसका विज्ञानं उसके सामने आसानी से चकना चूर हो रहा था| उसने अनवी की यात्रा का रहस्य जानने के लिए हर तरह के सवाल किये| अनवी ने होशियारी से सभी सवालों के जबाब दिए|यह कोई मनगढ़ंत कहानी तो थी नहीं जिससे अनवी लडखडा जाए| सत्य तो हर बार सत्य ही होता है|अनवी तो अपने अनुभव ही तो बता रही थी| कई दिनों तक अनवी की यात्रा विद्यालय में एक शोध का विषय बनी रही|
    इस बार विद्यालय में पुनः पांच दिनों की छुट्टियाँ आई| उसकी कक्षा उसकी अगली यात्रा के बारे में जानना चाहती थी| अचानक अनवी ने कहा मेरी अगल यात्रा का बुलावा आ गया है आप लोगों को इस खिड़की में क्या दिखाई डे रहा है|सभी ने खिड़की मे गोर से देखा और बोले खिड़की में तो कुछ नहीं है केवल एक प्यारी सी तितली है| अनवी ने बताया इस बार की मेरी यात्रा की हम सफ़र यह तितली ही है| तितली? यह तितली तुम्हे कैसे यात्रा पर ले जायेगी? इस पर अनवी ने बताया की यह तितली रहस्यमई तितली है| जिस जीव पर यह तितली बीत जाती है वह प्राणी अदृश्य हो जाता है और तितली भी नहीं दिखाइ देती| अनवी के इशारे पर तितली अनवी के ऊपर आ कर बैठ गई | और अनवी सभी के सामने अदृश्य हो गई|सभी बच्चे अपनी कक्षा में अनवी को इधर उधर तलाश कर रहे थे| परन्तु अनवी किसी को भी नहीं दिखाई दे रही थी| एक बार पुनः तितली अनवी के सिर पर से हट गई और अनवी ने सभी को अलविदा कह और अपनी अगली यात्रा पर चल पड़ी| इस बार अनवी केवल अदृश्य हो सकती थी| अतः अदृश्य हो कर पालम एअरपोर्ट से विमान में बैठी आधे घंटे के आरामदायक सफ़र के बाद वह लोकप्रिय गोपीनाथ बारदोई अन्तेर्राष्ट्रिये हवाई अड्डे पर उतरी|इसको गुवाहाटी अन्तेर्राष्ट्रिये वायु अड्डा भी कहते है|पहले इसको बोरझार विमानपत्तनम  भी कहते थे|यह पूर्वोत्तर राज्यों में जाने का एक प्रमुख हवाई अड्डा है| यह दिसपुर से २६ की.मी. दूर बारझोर में स्थित है| यहाँ से स्थानीय बस द्वारा कोकराझार पहुंचे|कोकराझार से ६ की.मी. दूरी पर चक्रशिला वन्यजीव अभ्यारण्य है|यह असम का प्रसिद्ध अभ्यारण्य है|  वन्य जीव पार्क की सैर आपको हमेशा ही प्रकृति के करीब ले जाती है। वन्य जीव पार्क में आप कई प्रकार के वन्यजीवन को देखने का मौका मिलता है।इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं कि, वन्य जीव पार्कों की सैर करना परिवार के साथ एक उपयुक्त जगह है। असम राज्य में कई राष्ट्रीय उद्यान हैं, जहां आप रोमांचक तरीके से अपनी छुट्टियों को बिता सकते हैं। असम में कई सारे नेशनल पार्क है, जो यहां आने वाले पर्यटकों की सभी सुविधायों का ध्यान रखते हुए उनकी छुट्टियों को रोमांचक बनाते हैं| यहाँ पर अभ्यारण्य के आलावा हनुमान मंदिर कोकराझार और काली मंदिर कोकराझार देखने लायक है|यह अभ्यारण्य लगभग ४५कि.मी. में फैला हुआ है| यह मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्र में फैला हुआ है|इसमें दो प्रसिद्द झील है जिनको धीर बीक और दिप्लाई बील के नाम से जाना जाता है|यहाँ पर साल का पेड़ प्रमुख रूप से पाए जाते है| हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह पेड़ भगवन विषाणु का प्रिय पेड़ है|शाल संस्कृत का शब्द है| जिसका अर्थ घर होता है| यह मुख्य रूप से घर बनाने के काम आता है | जैन धर्मं के २४वे तीर्थंकर भगवान महावीर को साल के पेड़ के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था| बौध मान्यताओं के अनुसार गौतम बुद्ध की माँ रानी माया देवी ने साल के पेड़ के नीचे ही गौतम बुद्ध को जन्म दिया था| गौतम बुद्ध को साल के पेड़ के नीचे ही निर्वाण प्राप्त हुआ था| इसलिए यह यह अभ्यारण्य बौध भिक्षुओं को काफी आकृषित करता आ रहा है|
    चक्रशिला वन्य प्राणी अभ्यारण्य में विभिन्न प्रकार के मादा,पक्षी और सृरिसृप की २३ प्रजातियाँ  पाई जाती है| यहाँ पर तितलियों की चालीस से ज्यादा प्रजातियाँपाई जाती है| यहाँ पर छोटी पूंछ के moleमोल, भारतीय उड़ने वाली लोम्बड़ी,छोटे नाक वाली चमगादड़ पक्षियों की लगभग ११९ प्रजातियाँ पपी जाती है|जिन में काला तीतर,बटेर,गाय बगुला,बैगनी बगुला, mole लाल सर का गीध  प्रमुख है| अनवी उस तितली के साथ साल्कोचा गाँव पहुंची|यहाँ का बुढा-बूढी मंदिर काफी प्रसिध है|प्रति वर्ष यहाँ अप्रैल माह में मेला लगता है और बुढा-बूढी की पूजा की जाती है| इसके नजदीक ही अन्नपूर्णा मंदिर है| अन्नपूर्णा मंदिर में बुढा-बूढी की पूजा से एक दिन पहले पूजा की जाती है| साल्कोचा गाँव के दक्षिण में ब्रह्मपुत्र नदी के तट पर चंदर दीघा पहर पर पगला बाबा का मंदिर है| यह मंदिर भगवान भोले नाथ का मंदिर है|दीप्लाई बील झील पक्षी बिहार के लिए काफी उपयुक्त है|इस झील में प्रवासी पक्षी आते हैं|पश्च्स्मी किनारे पर बोरो,रावा और गारो समुदाय के लोग रहते है|यहीं पर मेरा प्रिये बंदर जो छ इंच का है, रहता है| मूल रूप से इनको सुनहरे लंगूर के नाम से जाना जाता है| यहाँ पर ये सामान्य आकार में पाये जाते है|
    सालाकोचा गाँव के पूर्व में धीर बील झील है| यहाँ पर टीन्टला,धीर घाट और डकरा  बील झीलों में विभिन्न प्रजातियों की मच्छलिया पाई जाती है| मेरी दोस्त लाल मच्छली इसी प्रजाति की है| ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी तट पर दूध नाथ मन्दिर है|जो भगवान शिव का मंदिर है|यह मंदिर तिलपाडा नामक जगह पर है|यहाँ  श्रावण मास की शिवरात्रि को भरी मेला लगता है| सालाकोचा के उत्तरी भाग में एक झरना है जिसको हवाई झोरा कहते है| यह जगह शांत और शीतल है|और तंत्र साधना के लिए प्रसिद्ध है|
    यहाँ आने पर अनवी की दोस्त तितली की कई दोस्त उससे मिली|उनमें से एक तितली बोली में पहले एक लड़की थी| यहाँ के बूढा-बूढी मंदिर में हर साल आती थी| एक दिन में चन्द्रदीघा पहाड़ पर पगला बाबा के मंदिर चली गई|में उसे पागल समझ कर चिढाती रही| में नहीं जानती थी की यह भगवान भोले बाबा का मंदिर है|सब इसको पगला बाबा का मंदिर के नाम से जानते है| इस मंदिर में कोई तांत्रिक आया हुआ था|वह अपनी साधना में लीन था| मेरी हंसी से उसकी साधना में भंग पडा और उसने अपनी तंत्र विद्या के बल पर मुझे तितली बना दिया|मैंने भगवान् आशुतोष का बहुत जाप किया और तांत्रिक से क्षमा भी मांगी| इस पर तांत्रिक ने बताया क जब कोई तुम्हारे नाम से दूध नाथ मन्दिर में श्रावण मास की शिवरात्रि को दूध चढ़ाएगा तो तुम पुनः मानव योनी में आ जाओगी|  मेरी सहेली तितली जिसको हम प्यार से तितों कहते है मुझे इसी कार्य के लिए लेकर आई है| अनवी ने साड़ी बाते ध्यान से सुनी और उनके बताये नियमानुसार हवाई झोरा जल प्रपात में स्नान किया और पास के दूकान से दूध ला कर दूध नाथ मंदिर में दूध चढ़ाया|इसके तुरंत बाद वह तितली पुनः एक सुंदर लड़की बन गई|शिव कृपा से पुनः मानव योनी मिली इसलिए उसने अपना नाम शिबंगी रख लिया| अब अनवी, शिबाँगी और लाल तितली मंदिर प्रांगण में ही रहने लगी| शिबांगी को एक युवक से बिहू के अवसर पर एक युवक से प्यार हो गया और दोनों ने शादी करना तय कर लिया था|मेरी छुट्टियाँ ख़तम होने को थी|अतः मैंने अपनी यात्रा को स्थगित कर पुनः लाल तितली के साथ अपने विद्यालय आ गई| शिबाँगी ने अपनी शादी में आने का निमंत्रण पहले ही डे दिया था|
    निश्चित समय पर अनवी शिवांगी की शादी में पहुँच गई थी| उसके पास असमियां शादी के रीती रिवाज समझने का काफी समय था|शिबंगी ने बताया:- आसाम के बोंगाई गाँव जिले में लड़की जब पहली बार रजस्वला होती है तो उसकी पहली शादी पेड़ से करवाते है|केले के पेड़ के साथ लड़की की शादी एक अजीब परम्परा है|इस शादी को तोलिनी विवाह कहते है|इस दौरान लड़की को सूर्य की किरणों से बचा कर रखा जाता है|शादी के दौरान लड़की को केवल फल और कच्चा दूध दिया जाता है|तोलिनी ब्याह को पहली शादी भ कहते है| सही उम्र पर लड़कियों की शादी कर दी जाती है|हिन्दू मान्यताओं के अनुसार जब वर्ष नहीं होती तो इंद्र देवता को खुश करने के लिए यज्ञ हवन आदि किया जाता है|परन्तु जब असम में वर्षा नहीं होती तो मेंढकों की शादी करवाई जाती है|
    असम में शादी की कुछ रश्में निम्न लिखित है- शादी से पूर्व की रश्में
·        जुरान दिया –यह शादी से इ या दो दिन पहले किया जाने वाली रश्म है|
·        तेल दिया-इसमें दुल्हे की माँ अपनी होने वाली बहु को अंगूठी और सुपारी भेंट करती है| और बालों में कंघी करती है|
असामी लोगों में शादी की रश्मों को बिया कहा जाता है| असामी शादी सामुदायिक रीती-रिवाजों की एक मिसाल है|जो बहुत ही साधारण तरीके से की जाती है|शादी का पूरा समारोह दो से तीन दिन तक चलता है| पहले दिन बिया नाम या बिया गीत के नाम होता है| जहाँ महिलाये शादी के गीत गाती है|पुरे शादी समारोह में कौंच और उरुली बजाई जाती है|महिलाओ द्वारा जीभ से एक विशेष आवाज निकली जाती है|जुरान दिया में सभी घरों में आम के पत्तों की बंदरवार बना कर दरवाजों पर लटकाई जाती है|यह बंदरवार बुरी आत्माओ को दूर रखती है|इसको असामी में दली गाथा कहते है|इस दिन दुल्हे की अन्य औरतों के साथ दुल्हन के घर जाती है और शादी की अनेकों रश्मे पूरी करती है|एक ताम्बे की प्लेट में पान और ताम्बुल(सुपारी) एक गमछे से धक् कर देती है|दुल्हन को अन्य औरतें पकड़ कर शादी के पांडाल में ले कर आती है|दुल्हन अपन सर ढक कर आती है|दुल्हे की माँ द्वारा लाये उपहार उसे भेंट किये जाते है| तेल दिया में इसमें दुल्हे की माँ अपनी होने वाली बहु को अंगूठी और सुपारी भेंट करती है| और बालों में मांग निकालती है|अपने साथ लाया तेल दुल्हन के बालों में तीन बार लगाती है| इसके बाद सास द्वारा मांग में सिन्दूर भरा जाता है| शेष भारत में दूल्हा मांग भरता है|इस राशम के बाद दुल्हन हमेशा अपनी मांग में सिन्दूर भारती है|यहाँ की शादी के पारम्परिक परिधान होते है|दूल्हा  धोती कुर्ता और चेलांग ( एक प्रकार का शाल) पहनता है| यह विशेष रूप से मूंगा सिल्क का बना होता है| फूलों की माला के साथ वह तुलसी के पत्तों की माला भी पहनता है| दुल्हन के परिधान में मेखला चद्दर जो मूंगा सिल्क की बनी होती है|एक भाग साडी और दूसरा ब्लाउज की तरह पहना जाता है|सोने के गहने(जुन बिरी) पहनने का रिवाज है|
पानी तुला:-इस समारोह में दूल्हा और दुल्हन की माँ नजदीक के तालाब या नदी पर जाती है और वहां से पानी भर कर लाती है| इस पानी से शादी के लिए स्नान किया जाता है|दोनों पक्ष चावल के ढेर पर जलता हुआ दीपक रखते है|इसके साथ सुपारी का जोड़ा , चाक़ू ,सिक्का और ताम्बुल के पत्ते होते है|गीत गाती औरतें नदी या तालाब से पानी लाती है| पानी का पात्र घर पर रख कर बिना मुड़े और पीछे देखे नदी पर जाया जाता है| सिक्का दूल्हा/दुहन को दे दिया जाता है|चाक़ू को दुल्हे के गम्च्छे से बाँध दिया जाता है| यह चाक़ू बुरी आत्माओं को दूर रखता है|काला जादू से बचा कर रखता है|
दाइयां दिया :-दूल्हा पक्ष प्रातः काल दुल्हन के घर दही भेजता है| इसमें से आधा दही दुल्हन खाती  है| शेष आधा वापिस दुल्हे के पास भेज दिया जाता है|
नौ पुरुशौर शरदो :-इस रश्म में दोनों परिवारों के पूर्वजों को श्रधांजलि  अर्पित की जाती है| यह रश्म प्रायः दूल्हा और दुल्हन के पिता  करते है| अपने पूर्वजो की  पिछली नौ पीढ़ियों अभय दान मांगते है|
नौनी (स्नान समारोह) में दूल्हा और दुल्हन नदी से लाये जल से स्नान करते है| पहले माँ तेल और दही लगाती है|इसके बाद उड़द की दाल और हल्दी का लेप लगाया जाता है और इसके बाद शेष औरतें इसमें भाग लेती है| इसके बाद नदी जल से स्नानं करा जाता है|
स्वागत:-स्वागत समरोह में दुल्हन को समारोह में बने विशेष मंच पर बैठाया जाता है|वह अपने अभिन्न मित्रों और रिश्तेदारों का स्वागत सौफ डे कर करती है| दुल्हे के पहुँचने पर दुल्हन को अन्दर ले जाया जाता है|दुल्हन पक्ष की और से दी गयी पोषक में दूल्हा समारोह स्थल पर आता है|वह सर्वप्रथम अपनी माँ से आशीर्वाद प्राप्त करता है| माँ इसके बाद आगे की शादी की रश्मे माँ नहीं देखेगी एसी प्रथा है|आशीर्वाद देने के बाद वह जलूस के साथ वापिस घर लौट जाती है| इसके बाद दुल्हन का परिवार विभिन्न रश्मों में भाग लेता है|
डोरा आहा :-जब बारात दुल्हन के घर पहुंचती है तो उन्हें एक रश्म अदा करनी पड़ती है|यहाँ काफी हास्य विनोद होता है| एक रकम अदा करने पर बारात को घर में प्रवेश करने की इजाजत मिल जाती है|
भोरी धुवा :- दुल्हन की माँ आरते की थाली के साथ स्वागत कर्ट है और साली दुल्हे के पैर धोती है|इसके बाद दुल्हे को जमीन पर पैर रखने की इजाजत नहीं है|उसके साले उसे उठा कर समारोह स्थल में ले जाते है| दुलहन को पंचामृत  (दही, घी,शहद,मीठा और कच्चे दूध का मिश्रण) दिया जाता है|
बिया- दुहां को उसके मामा अपने कन्धों पर उठा कर समारोह स्थल पर लाते है| पवित्र अग्नि के समक्ष शादी संपन्न होती है| सप्तपदी रश्म के साथ शादी सम्पन्न होती है|अंत में  दुल्हन ताम्बुल के सात पत्तों पर अपना दाहिना पैर रखती है|
शादी की उत्तरोतर रश्में:- खेल धमाली में नव दम्पति शादी के पारंपरिक खेलों में भाग लेते है|
मान धोरा:-नवयुगल बड़े बूढों का आशीर्वाद लेते है और बदले में उनसे उपहार देते है|बिदाई समारोह में आश्रुपूर्ण बिदाई होती है|दुहां के ऊपर चावल फेंके जाते है ताकि माँ बाप के ऋण से मुक्त हो सके| नव दम्पति शादी के बाद घर पहुँचने पर उसकी माँ उनका स्वागत करती है इसको घोर मोसोका कहते है| दुल्हन थाली में रखे दूध में कदम रखती हुई आगे बढती है|मिटटी के दीये तोड़ती हुई घर में प्रवेश करती है| कुछ सामान्य सी रस्में पूरी करने के बाद दुल्हन वापिस अपने पिता के घर पहुंचती है| अगली सुबह दूल्हा अपनी ससुराल में आता हैऔर पुरोहित से खुबा खूबी की कहानी सुनते है| अपने देवताओ का आशर्वाद पा कर अपने घर पहुँचते है| वहां पर फूल सोजा और अस्टमगाला की रश्में होती है|अनवी शादी का आरम्भा से अंत तक का विवरण सुन कर थक cथी| शिबंगी ने बताया की हमारी शादी में प्रेत आत्माओं से बचने के लिए काफी रश्म और रिवाज किये जाते है|
    शिबाँगी बताती है:-मेरे पड़ोस में एक अम्मा अपने पति के साथ रहती थी उनके एक लड़का भी था|भरी वर्षा में उनका मकान बह गया|दोनो अपने बच्चे के साथ मुसीबत में फस गए | भरी वर्षा बाढ़ का रूप धारण कर चुकी थी|अंत में उन्होंने दूध नाथ मंदिर में शरण लेने की सोची| दोनो बच्चे के साथ आगे बढ़ रहे थे उनके रास्ते में हवाई झोरा नाम का झरना आया  इसे पार करते समय तीनो पानी में बह गए| यह जगह तंत्र विद्या के लिए प्रसिध है|लड़का नदी के दूसरे किनारे पर और उसकी माँ दुसरे किनारे पर दूर जा कर पानी से बाहर निकले| आदमी सालकोचा गाँव के पूर्व में स्थित धीर बील के किनारे पहुच गया| तीनो को एक दूसरे की कोई जानकारी नहीं थी|हालात से परेसान आदमी दर दर की ठोकरें खाता रहा  परन्तु अपने परिवार की कोई खबर नहीं थी| हार परेसान आदमी पगले बाबा के मंदिर पहुंचा| वहा भगवन आशुतोष की पूजा अर्चना की| उधर वह लड़का शिवांगी के हर के बाहर पहुँच कर रोने लगा | शिवांगी के घर पर उसे खाने पीने को दिया गया और उसको पुत्रवत पाला गया | आदमी विगत पांच वर्षों से अपनी पतनी और लड़के को तलाश कर रहा था| अंत मे  वह मंदिर से हवाई झरने के पास पहुंचा|वहां पास ही एक झोपड़ी में एक औरत धान  सुखा रही थी|वह उस औरत के पास गया और अपनी व्यथा कथा कह सुनाइ और उससे खाने को कूचा माँगा |उसने झोपड़ी में झांक कर देखा तो एक दूसरी औरत खाना पका रही थी| उसने चूल्हे में लकड़ की जगह पर अपना पैर लगाया हुआ था|उसने उस बूढी औरत से जानना चाहा की इसका क्या रहस्य है? इतना पूछते ही वह बेहोश हो गया और होश आने पर अपने आप को दिपलाई झील के पास पाया |अब उसको यकीं हो गया था की वह औरत उसकी पत्नी और लड़के के बारे में अवश्य जानती है| परन्तु वह उसके जादू के प्रभाव को पहले ही समझ चुका था|वहीँ झील के किनारे एक साल के पेड़ के नीचे एक अघोरी बाबा साधना में लीन था|वह उस बाबा की शरण में चला गया| बाबा की सेवा करने लगा| श्रावण मास के अंत में अघोरी की साधना सफल हुई|बाबा उस आदमी की सेवा से काफी खुश था| एक दिन बाबा ने उसका हालचाल जाना और वह कैसे परेसान है जाना| अघोरी उसकी मनोव्यथा को समझ चुका था| उसने उस आदमी से एक कच्चा नारियल मंगवाया और उसको सावधानी से ऊपर से काटा | नारियल में पानी भरा हुआ था| नारियल के पानी को अभिमंत्रित किया और उसमें अपनी धूनी की राख की एक चुटकी डाली | अब नारियल के पानी में प्रीतिबिम्ब दिखाई देने लगा | उससे अघोरी ने बताया की उसकी पत्नी कैसे उस बुढिया के जाल में फसी हुई है| वह बुढिया उसको अपने बेटे की बहु बनाना चाहती है|परन्तु वह इस काम के लिए मना कर रही है| इसलिए उसको यातना झेलनी पड़ रही है|प्रतिदिन उसका पैर जलाती है और मन्त्रों द्वारा पुनः ठीक कर देती है|अघोरी के कहे अनुसार वह आदमी राख की पुडिया लेकर उस बुढिया की झ्पदी के पास गया और उचित अवसर पा कर वह राख अपनी पत्नी पर दाल दी| शेष राख अपने ऊपर दाल ली | इससे बुढिया के जादू का कोई असर नहीं हुआ और अपनी पत्नी को ले कर  पुनः अघोरी बाबा के पास आ गया |अघोरी ने बताया की उनका लड़का शिबांगी के पास सकुशल है| वह उसका अपने बेटे की तरह लालन-पालन कर रही है| तुम वहां जाओ शिबांगी तुम्हारा इन्तजार कर रही है| थोड़ी देर में वह दम्पति वहां पहुँच गया| इस पर अनवी ने पूछा उम्हे कैसे पता चला की वे लोग यहाँ आ रहे है| इस पर शिबांगी ने बताया की  हम अपनी तंत्र विद्या से अपने संपर्क सूत्रों से सम्बंध बनाए रखते है| हम नारियल के पानी या थाली में पानी डाल कर उसको अभिमंत्रित करके प्रीतिबिम्ब में हालचाल जान सकते है|जिससे हमारा संपर्क नहीं होता उसको तलाश करना मुस्किल होता है| यह ठीक वैसे ही है जैसे मोबाइल नंबर के बिना बात नहीं हो सकती| शिबांगी ने बच्चा उनके हवाले किया| अनवी ने पुछ इन के साथ ये घटना क्यों घटी? उसने पानी में झाँक कर बताया की इन दोनों ने अपनी शादी में नौ पुरुशौर शरदो रश्म नहीं की| इस रश्म में अपने नौ पीढ़ियों तक के पूर्वजों से अभयदान माँगना होता है|उनको शर्द्धांजलि देनी होती है| आप लोग पगला बाबा के मदिर जाओ और वहीँ पर यह रश्म पूरा करो |

    अनवी शादी समारोह में पूरी तरह व्यस्त रही| फुरसत के समय में अभ्यारण्य में घूमी और वन्य प्राणियों के बारे में जाना| दिल छह रहा था की कुछ समय और बिताया जाए परन्तु छुट्टियाँ खत्म हो रही थी| अनवी अपनी कक्षा में आई तो उसके साथी मनोरंजक और रहस्यमई यात्राओं का मजा ले रहे थे| कुछ बच्चे अनवी की बातों को मनगढ़ंत समझ रहे थे| अनवी ने बताया की आप लोगों ने मुझे जाते हुए देखा है| अपने किसी परिचित से जो असम में रहता हो इन तथ्यों की पड़ताल कर सकता है|

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