Thursday, 6 September 2018

मानस राष्ट्रीय उद्यान

 

मानस राष्ट्रीय उद्यान

   
अनवी अपनी अगली यात्रा पर मानस राष्ट्रीय उद्यान पहुंची| उसकी सहेली शिबांगी उसके साथ थी| शिबांगी ने इस उद्यान का परिचय कुछ इस प्रकार से दिया|


मानस राष्ट्रीय उद्यान या मानस वन्यजीव अभयारण्य, असम में स्थित एक राष्ट्रीय उद्यान हैं। यह अभयारण्य यूनेस्को द्वारा घोषित एक प्राकृतिक विश्व धरोहर स्थल, बाघ के आरक्षित परियोजना, हाथियों के आरक्षित क्षेत्र एक आरक्षित जीवमंडल हैं। हिमालय की तलहटी में स्थित यह उद्यान भूटान के रॉयल मानस नेशनल पार्क के निकट है। यह पार्क अपने दुर्लभ और लुप्तप्राय स्थानिक वन्यजीव के लिए जाना जाता है जैसे असम छत वाले कछुए, हेपीड खरगोश, गोल्डन लंगुर और पैगी हॉग। मानस जंगली भैंसों की आबादी के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ एक सींग का गैंड और बारह सिंगा के लिए विशेष रूप से पाये जाते है। यह भूटानकी तराई में बोडो क्षेत्रीय परिषद् की देखरेख में ९५० वर्ग किलोमीटर से भी बड़े इलाके में फैला हुआ है, जिसके अंतर्गत १९७३ में टाइगर प्रोजेक्ट  के तहत स्थापित ८४०.०४ वर्ग किलोमीटर का इलाका मानस व्याग्र संरक्षित क्षेत्र भी आता है।


मानस नेशनल पार्क असम का एक प्रसिद्ध पार्क है। इसे यूनेस्को नेचुरल वर्ल्ड हेरिटेज साइट के साथ-साथ प्रोजेक्ट टाइगर रिजर्व, बायोस्फियर रिजर्व और एलिफेंट रिजर्व घोषित किया गया है। यह हिमालय के फुट्हिल पर स्थित है और भूटान तक फैला हुआ है, जहां इसे रॉयल मानस नेशनल पार्क के नाम से जाना जाता है। यह पार्क बालों वाले खरगोश, असम के छतरी वाले कछुए, नाटे कद वाले सुअर और सुनहरे लंगूर सहित कई लुप्तप्राय: जानवरों का घर है। यहां जंगली पानी की भैंस भी बड़ी संख्या में पाई जाती है। इस पार्क में स्तनपाई की 55, पक्षीयों की 380, सरीसृपों की 50 और उभयचर की 3 से ज्यादा प्रजातियां पाई जाती है। आप चाहें तो यहां जंगल सफारी और प्राकृतिक रास्तों पर चलने का भी आनंद उठा सकते हैं। यह नेशनल पार्क कोकराझार, चिरांग, बकसा, उदालगुरी और दारांग सहित कई जिलों में पड़ता है। अक्टूबर से मार्च के बीच में यह पार्क घूमना सबसे अच्छा माना जाता है।इस पार्क का नाम मानस नदी पर रखा गया है, जिसे सर्पों की देवी मनसा के नाम पर रखा गया है। मानस नदी ब्रह्मपुत्र नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है, जो इस राष्ट्रीय उद्यान के मुख्य केंद्र से होकर गुजरती है।राष्ट्रीय उद्यान के मुख्य भाग में अग्रगंज एक जंगलो से घिरा हुआ गांव है। इस गांव के अलावा 56 से अधिक गांव पार्क को चारों ओर से घेरे हुए हैं।इस पार्क को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है। इसकी पश्चिमी सीमा पनबारी, केंद्रीय सीमा बारपेटा रोड के पास बंसबाड़ी में और पाथस्ला के निकट भूईयापुर में पूर्वी सीमा स्थित हैं। ये श्रेणियां आपस में अच्छी तरह से जुड़ी नहीं हैं।


मानस पूर्वी हिमालय की तलहटी में स्थित है और घने जंगलों से आच्छादित है। मानस नदी पार्क के पश्चिम छोर से बहती है और यह इस अभयारण्य की मुख्य नदी है। यह ब्रह्मपुत्र नदी की सबसे बड़ी सहायक नदी है और बाद में दो अलग-अलग नदियों, बेकी और भौलादुबा में बिभक्त हो जाती है। मानस नदी भारत और भूटान को विभाजित करने वाली एक अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में भी कार्य करती है।


मानस में दो प्रमुख जैव वातावरण मौजूद हैं:


· चारागाह बायोम: पिग्मी हॉग, भारतीय गैंडे, बंगाल फ्लोरिकन, जंगली एशियाई भैंस आदि।


· वन बायोम: धीमी चलने वाली लॉरी, टोपी वाला लंगूर, जंगली सुअर, सांबर, महान हॉर्नबिल, मलाया की विशाल गिलहरी या काले विशाल गिलहरी आदि।


मानस के मानसून के जंगलों में ब्रह्मपुत्र घाटी के अर्ध-सदाबहार जंगल के जैव क्षेत्र में पड़ते हैं। अभयारण्य के अन्य प्राणियों में भारतीय हाथी, भारतीय गैंडे, गौरा, एशियाई जल भैंस, बारासिंगा, भारतीय बाघ, भारतीय तेंदुओं, एशियाई स्वर्ण बिल्ली, ढोल, टोपी वाले लंगूर, स्वर्ण लंगूर, सांभर हिरण और चीतल इत्यादि हैं।


मानस राष्ट्रीय उद्यान पश्चिमी असम के भाबर क्षेत्र में पूर्वी हिमालय की तलहटी में स्थित है। पार्क का क्षेत्र असम के पांच जिलों चिरांग, कोकराझार, दरांग, उदलगुड़ी और बस्का को कवर करता है। पार्क का क्षेत्र 950 वर्ग किलोमीटर है और समुद्र तल के 110 मीटर से ऊपर से इसकी ऊंचाई 61 मीटर है।


मानस अभयारण्य विभिन्न प्रकार के विशेष पक्षियों के लिए रहने का एक आदर्श स्थान है। मानस में दुनिया में लुप्तप्राय बंगाल फ्लोरिसन की सबसे बड़ी आबादी रहती है औऱ यहां पर ग्रेट हॉर्नबिल भी देखे जा सकते हैं।इस राष्ट्रीय उद्यान में पक्षियों की 380 प्रजातियां रहती हैं। जिनमें प्रमुख रूप से ग्रेटर एडजुटेंट, काले पूंछ वाले क्रेक, लाल सिर वाला टोर्गो, जंगली तीतर, हॉर्नबिल, मार्श और जेर्डोन का बैबलर, रूफस (बादामी) पूंछ वाली चिड़िया, हॉजसन की बुश चैट, रूफस वेंटेक लॉफिंगथ्रश, फिन वेवर, आईबिस बिल और तलहटी प्रजातियां शामिल हैं।




आप चाहें तो यहां जंगल सफारी और प्राकृतिक रास्तों पर चलने का भी आनंद उठा सकते हैं। यह नेशनल पार्क कोकराझार, चिरांग, बकसा, उदालगुरी और दारांग सहित कई जिलों में पड़ता है। अक्टूबर से मार्च के बीच में यह पार्क घूमना सबसे अच्छा माना जाता है। उद्यान में प्रवेश के लिए बांसबाड़ी रेंज आफिस से आपकों १०० रूपए प्रति व्यक्ति की टिकट लेनी पड़ेगी। साथ ही वाहन के लिए अलग से फीस है। यहां जीप सफारी की भी व्यवस्था है। इसके साथ ही ध्यान देने योग्य बात यह है कि यहां सूर्योदय तक ही घूमने की अनुमति है और पैदल घूमनी सख्त मना है। यहां रहकर भी आप वाइल्ड लाइफ का मजा ले सकते हैं। आप यहां से प्राकृति का भरपूर आंनद ले सकते हैं।
सबसे नजदीक का हवाई अड्डा गुवाहाटी एयरपोर्ट से मानस राष्ट्रीय उधान १४५ किमी है जबकि करीब का स्टेशन बरपेटा रोड है। यहां से उद्यान की दूरी २० किमी है| यहाँ पर आप जीप सफारी , हाथी सफारी का आनंद ले सकते है|रिवर राफ्टिंग का ३५ की.मी. का रोमांचकारी लुत्फ़ उठाया जा सकता है|घाटी गाँव और रघु बील गाँवों के छाया के बागन में काम करने वाली जा जातियों के मध्य उनके संगीत और नृत्य का आनन्द ले सकते हो| अपनी दूरबीन द्वारा पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों का विन्हावलोकन कर सकते हो|इस उद्यान का नाम साँपों की देवी मानस से लिया है , ब्रह्मपुत्र की सहायक नदी मानस इस उद्यान को दो भागों में विभिक्त करती है|

अनवी शिबांगी के साथ अपनी एक पुरानी सहेली के साथ रघु बील गाँव में ठहरी| यह गाँव एक आदिवासी गाँव है जो यहाँ पर चाय के बागों में काम करते है|हमने आदिवासियों के साथ चायबागान घूम कर देखे और रात्री को उनके साथ वहां के परम्परागत लोक नृत्य और संगीत का आनंद उठाया|इस कार्यक्रम के दोरान एक आदमी को चक्कर आगये और वह नाचते नाचते ही जमीन पर ही गिर गया,और बुद्बबुदाने लगा| लोंगों ने बताया की उसमें मानसा देवी का असर है| ऐसा अक्सर महीने में एक बार हो ही जाता है|
गहन पूछताछ के बाद वहां की एक औरत ने बताया की यह आदमी पहले असम पुलिस में काम करता था| देबांग नाम का एक पुलिस अधिकारी यहीं पर कार्यरत था |एक मेले में वह अपने दल के साथ सुरक्षा व्यवस्था देख रहा था| उसकी पत्नी भी मेले में आई हुई थी| अचानक वर्षा आने के कारण मेले में भगदड़ मच गई और उस भगदड़ में उसकी पत्नी मर गई|उसके परिवार में उआकी एक लड़की शोभा और उसकी बूढी माँ थी| मा के बार बार कहने के बाद भी देबांग ने शादी नहीं की| एक दिन वह माँ कामख्या के मंदिर में पहुँचा और माकी पूजा आराधना की | इसके बाद वह उमानंद मंदिर में गया| अन्य लोगों के साथ वह नदी पार कर रहा था| अचानक उनकी नाव पलट गई| और सारे यात्री बह गए| अथक प्रयास के बाद वह एक छोटे लड़के को बचाने में कामयाब रहा| मा का आशीर्वाद समझ वह बच्चे को घर ले आया| भगवान् शिव की कृपा समझ उसका नाम शिवा ही रखा गया|
माँ देबांग की दूसरी शादी करवाना चाहती थी| परन्तु शिवा के आने के बाद उसकी आशा और धूमिल पड़ गई| वह शिवा से नफ़रत करने लगी| उससे घर का सारा काम करवाने लगी| शोभा अपनी दादी को बहुत प्यारी लगाती थी| गाँव के लड़के शिवा के साथ नहीं खेलते थे| वे उसे पनोती समझ कर चिढाते थे| इस पर उसका अक्सर दूसरे लड़कों से झगडा होने लगता| झगडा मारपीट में भी बदल जाता था|दादी के सौतेले व्यवहार के कारण लड़का भी असंतुस्ट रहने लगा|
रोज रोज के कलेश के कारण वह एकांत में बैठ कर अपनी किस्मत पर रोने लगता|एक दिन उनके घर पर घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया| अब शिवा ने बाहर खेलना बंद कर दिया और सारा समय उस घोड़ी के बच्चे के साथ बिताने लगा| बड़ा होने पर शिवा को पुलिस अकादमी में भरी करवा दिया|पढाई पूरी करने के बाद वह असम पुलिस में भरती हो गया| समय ने करवट बदली और दादी का देहांत हो गया| अब आदमी ने अपनी दूसरी शादी करली जो उम्र में उससे काफी छोटी थी| वह एक तांत्रिक थी| उसने अपनी तंत्र विद्या से अपने पति को पूरी तरह काबू में कर लिया था|अब शोभा एक एक दिन गिन गिन कर व्यतीत करने लगी|उसके पिताजी अब उसको प्यार नहीं करते थे|उसकी सौतेली माँ के पास उसके पुराने दोस्त आने लगे | उनमें से एक की नजर शोभा पर थी | शोभा खतरे को भाप चुकी थी|
प्रशिक्षण ख़तम होने पर शिव को बेस्ट कैडिट का इनाम मिला और गोवर्धन पोलिस स्टेशन पर ही उसकी तैनाती हो गई| जब वह घर आया और शोभा को घर का सारा काम करते देखा तो वह काफी परेसान हो गया था| गोवर्धन में ही उसने मकान ले लिया और शोभा के साथ वहीँ रहने लगा| उनकी सोतेली माँ शोभा की शादी कहीं और करना चाहती थी| उसने शोभा का अपहरण करवा लिया और तंत्र विद्या से शिवा को भी पागल बना दिया| शिवा की नौकरी भी छुट गई थी|और अब वह हमारे साथ ही रहता है| अपना विगत याद कर अक्सर ऐसे दौरें आते ही रहते है|
पुछताछ करने पर पता चला की शोभा को भी उसकी सौतेली माँ ने पागल बना कर घर में बंद कर रखा है| शोभा के पिताजी सेवा निवृत हो चुके थे अब वह भी पान ताम्बुल खा और ताड़ी पी कर पडा रहता है | अनवी को इस दुखद कहानी से काफी अफसोश हुआ| उसने शिबांगी से पूछा क्या इनका कभी उद्धार नहीं होगा|दोनों सलाह मसवरा करके शोभा के पिताजी के पास पहुंचे|शिबांगी ने उसको अभिमंत्रित जल पिलाया इससे उसकी पत्नी के जादू का असर होना बंद हो गया| अब वह सारी परिस्थितियां समझ चुका था| शिबांगी की मदद से उसने अपनी लड़की और शिवा पर भी जादू का असर खत्म करवाया| इस नेक काम से अनवी और शिबंगी दोनों खुश थे| मानस राष्ट्रीय उद्यान की इस यात्रा से अनवी काफी खुश थी|नए अनुभव के साथ वह अपने विद्यालय में लौटी |

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