Saturday, 1 September 2018

यात्रा का शुभारम्भ

                                              मेरी पहली यात्रा 

      यहाँ पर उपरोक्त विवरण केवल इस लिए किया गया है की आप आगे की कहानी को समझ सके और पूरा मनोरंजन कर सके |असम में कई वन्य प्राणी अभ्यारण्य है | जो सभी के लिए ज्ञानवर्धक है |गुरूग्राम के एक विद्यालय के विद्यार्थी अपने साथियों के साथ असम घूमने गए और वहाँ  पर उन्होंने क्या देखा और क्या समस्याएँ आई , इस कथा का असली कथानक है |

    अनवी अपनी कक्षा के साथ असम भ्रमण के लिए आती है | उनका विचार असम के वन्य प्राणी अभ्यारण्य और वन्य राष्ट्रिय उद्यान देखने का था| इनमे प्रमुख निम्नलिखित है :-

राष्ट्रीय उद्यान व वन्यजीव अभ्यारण्य में अंतर :- वन्यजीव अभ्यारन्यो   का गठन किसी एक प्रजाति अथवा कुछ विशिष्ट प्रजातियों के संरक्षण के लिये किया जाता है, अर्थात ये विशिष्ट प्रजाति आधारित संरक्षित क्षेत्र होते हैं ! जबकि राष्ट्रीय पार्क का गठन विशेष प्रकार की शरणस्थली के रूप में संरक्षण के लिये किया जाता है अर्थात इस विशेष शरणस्थली क्षेत्र में रहने वाले सभी जीवों का संरक्षण समान रूप से किया जाता है !
·          राष्ट्रीय पार्क में किसी भी प्रकार के अधिवास और मानवीय गति विधि की अनुमति नही होती है , यहां तक कि जानवरों को चराने या जंगली उत्पादों को इकट्ठा करने की अनुमति भी नही होती है| जबकि वन्यजीव अभयारण्य में मानव गतिविधियों की अनुमति दे दी जाती है !
·          एक वन्यजीव अभ्यारण्य में शिकार अनुमति के बिना निषिद्ध है , हालांकि पशु चराने और मवेशियों की आवाजाही की अनुमति है ! जबकि एक राष्ट्रीय उद्यान में शिकार और चराना पूरी तरह से निषिद्ध हैं !
·          एक वन्यजीव अभ्यारण्य को राष्ट्रीय पार्क में परिवर्तित किया जा सकता है जबकि एक राष्ट्रीय पार्क को अभ्यारण्य घोषित नही किया जा सकता !
·          वन्यजीव अभ्यारण्य और राष्ट्रीय पार्क दोनों की घोषणा राज्य सरकार केवल आदेश देकर कर सकती है जबकि सीमा में परिवर्तन के लिये राज्य विधान मंडल को एक संकल्प पारित करना होता है !

. मानस नेशनल पार्क:-असम के गुवाहाटी में स्‍थित मानस नेशनल पार्क विश्‍व धरोहरों में शामिल है। हिमालय की तलहटी में स्‍थित इस अभ्यारण्य में दुर्लभ वन्‍य जीव पाए जाते हैं। जिसमें कि हेपीड खरगोश, गोल्‍डन लंगूर और पैगी हॉग शामिल हैं। इन्‍हें देखने लोग दूर-दूर से आते हैं। 
2. ओरंग नेशनल पार्क:-असम के शोणितपुर जिले में स्‍थित ओरंग नेशनल पार्क गैंडे के लिए जाना जाता है। यहां आपको काफी संख्‍या में गैंडे मिलेंगे। साल 1985 में इसको अभ्यारण्य घोषित किया गया। इसके बाद यहां पर पर्यटकों का तांता सा लगने लगा।
 ३. नमेरी नेशनल पार्क:-असम के तेजपुर से करीब 35 किमी दूर स्‍थित है नमेरी नेशनल पार्क। यहां आपको हाथी देखने को मिल जाएंगे आप इनकी सवारी भी कर सकते हैं। इसके अलावा पक्षियों से लगाव रखते हैं तो करीब 300 चिड़ियों की प्रजातियां यहां पाई जाती हैं।
. काजीरंगा नेशनल पार्क:-यह असम का सबसे बड़ा और मशहूर राष्‍ट्रीय उद्यान है। यह अभ्यारण्य एक सींग वाले गैंडा के लिए जाना जाता है। इसके अलावा पक्षियों व अन्‍य जीव-जंतुओं की तमाम प्रजातियां यहां देखने को मिल जाती हैं।
.  डिब्रू सैखोवा नेशनल पार्क:-असम के डिब्रूगढ़ में स्‍थित सैखोवा नेशनल पार्क मुख्‍य रूप से सफेद पंखों वाले देवहंस के संरक्षण के लिए बनाया गया था। बाद में यह राष्‍ट्रीय उद्यान जंगली घोड़ों और चमकदार सफेद पंखों वाली बत्तख के रूप में प्रसिद्ध हो गया। यहां पक्षियों की करीब 350 से ज्‍यादा प्रजातियां पाई जाती हैं।
पोबीटोरा वन्य जीव अभ्यारण्य :- यह गुव्हाटी से ५० किलोमीटर दूर मारी गाँव जिले में है |इसके किनारे पर मायोंग गाँव स्थित है | यह अभ्यारण्य मुख्य रूप से एक सींग वाले गेंडे के लिए जाना जाता है। 30.8 वर्ग किमी में फैले इस अभ्यारण्य में 16 वर्ग किमी में सिर्फ गेंडे रहते हैं। चूंकि यहां बड़ी संख्या में गेंडें हैं, इसलिए ऐसा कहा जाता है कि गेंडे अभ्यारण्य से बाहर भी निकल आते हैं। गेंडें के अलावा इस वन्य जीव अभ्यारण्य की दूसरी विशेषता यहां हर साल आने वाले प्रवासी पक्षी हैं। यहां हर साल करीब 2000 प्रवासी पक्षियां आते हैं। अभ्यारण्य में एशियाई भैंस, तेंदुआ, जंगली बिल्ली और जंगली भालू सहित कई अन्य जीव भी देखे जा सकते हैं ७.  चक्रशिला वन्यजीव अभयारण्य:- चक्रशिला वन्यजीव अभयारण्य भारत का दूसरा गोल्डन लंगूर के निवास स्थान के लिए प्रसिद्ध है। यह पहले एक आरक्षित वन था, लेकिन वर्ष 1 99 4 में इसे वन्यजीव अभयारण्य घोषित किया गया था। इस पार्क में पर्यटक 14 विभिन्न प्रजातियों की सब्जियों, 60 प्रकार की मछली और उभयचर की 11 प्रजातियों के अलावा पक्षियों की 273 प्रजातियों को देख सकते हैं। वन्यजीव अभयारण्य में दो झीलें हैं, जो इस पार्क की सुन्दरता को बढ़ाती हैं, इन झीलों को धीर बील और डिप्लाई बील कहा जाता है, और ये अभयारण्य पर दोनों तरफ स्थित हैं।
८. होलोगापार गिब्बन वन्यजीव अभयारण्य :- भारत में एकमात्र वन्यजीव अभयारण्य है जो पहाड़ी गिब्बन का घर है। यह छोटा वन्यजीव अभयारण्य बंगाल धीमी लॉरी, हाथी, बाघ, तेंदुए, पैंगोलिन, सुअर-पूंछ वाले मैकक, असमिया मैकक, स्टंप पूंछ मैकक, रीसस मैकक और कैप्ड लैंगर्स का घर है। इसके अलावा यहां भारतीय पाइड हॉर्न बिल, ओस्प्रे, हिल मन्ना और कालीज फिजेंट जैसे अभयारण्य में कई प्रकार के प्रवासी और निवासी पक्षियों को देखा जा सकता है।
    पूरी कक्षा के साथ अनवी असम घुमाने चल पड़ती है |एक सिंग वाले गेंडे को देखने उन का पहला पड़ाव पोबीटोरा वन्य जीव अभ्यारण्य चुना गया| अध्यापक को आचानक ही मायोंग का ख्याल आया, परन्तु उसने बच्चो को मायोंग के बारे में कुच्छ नहीं बताया| पूरा समूह पोबीटोरा वन्य जीव अभ्यारण्य की और बढ़ रहा था| अचानक अनवी को रास्ते में एक गुड़ियाँ मिली| जिसको अनवी ने छुपाके अपने पास रख लिया| अनवी एक बहदुर लड़की थी| उसे डर नहीं लगता था |वह अपने साथियों के साथ अभ्यारण्य में घूम रही थी | सभी बच्चे बड़े चाव से अभ्यारण्य देख रहे थे | बच्चे हाथी की सवारी का आनंद ले रहे थे |यहाँ तरह तरह के पक्षी थे | अनवी रंग बिरंगे पक्षियों को देख कर काफी खुश थी |अचानक एक छोटी लाल चिड़िया उड़ कर अनवी के कंधे पर आ बैठी| अनवी  चिड़िया को देख काफी खुश हुई | वह प्यार से उसे सहलाने लगी |वह उससे बातें करने लगी | यह जान कर अनवी को आश्चर्य हुआ की चिड़िया उस की बोली समझ रही थी और हिंदी बोल भी रही थी |अपनी जेब से बिस्कुट निकल कर अनवी ने चिड़िया को खिलाया |अनवी प्यार से उसे पूछ रही थी भूख लगी है प्यास लगी है | इस पर चिरिया ने कहा नहीं मुझे भूख प्यास नहीं लगी परन्तु मै तुम्हे अपना दोस्त बनाना चाहती हूँ | अनवी ने ख़ुशी ख़ुशी उस की दोस्ती स्वीकार कर ली और उसे प्यार करने लगी | नए दोस्त पाने के चक्कर में अनवी अपनी कक्षा से बिछुड़ गयी और उसके साथ बैटन में लगी रही |जब उसो अपने साथी कहि नहीं मिले तो वह उदास हो गयी |कोई बात नहीं मैं तुम्हे अपने घर ले जाउंगी| अब अनवी चिड़िया के घर चली गई | चिड़िया एक पेड़ की शाखा पर बैठ गई और पेड़ से एक मीठा फल उसको खाने को दिया| अनवी ने वह फल खाय और खाते ही वह चिड़िया जितनी छोटी हो गयी |अब वह लाल चिड़िया के साथ पेड़ की टहनी पर बैठ सकती थी | अचानक अनवी का पेड़ की शाखा से संतुलन बिगड़ गया और नीचे बह रही नदी में गिर गई |वह नदी के पानी में नीचे और नीचे जाती जा रही थी| उसको पानी में साँस लेने में कोई परेशानी नहीं हो रही थी | नदी के तल में उसे सुंदर सुंदर रंग बिरंगी मच्छालियाँ मिली |इन्हें पा कर अनवी काफी खुश थी| अचानक एल लाल मच्छली उसके हाथ पर आ बैठी | अनवी ने प्यार से उस मच्छली पर हाथ फेरा और वह अपनी वास्तविक आकार में आ गई | अब वह नदी जल से बाहर आ गई थी | वहां उसको लाल चिड़िया भी नहीं डिकी दी | ना ही लाल मच्छली उसके साथ थी | अब वह अकेली नदी किनारे बैठी थी |वह अपनी कक्षा से भी बिछुड़ चुकी थी |उसको रह रह कर अपने पापा की याद आ रही थी |घर पर उसके पास एक प्यारा सा पिल्ला था| आब अनवी को उस पिल्ले की चिंता सताने लगी | उसका नाम मिन्नी रखा हुआ था | उसको अपनी चिंता की बजाय मिन्नी की चिंता सता रही थी | पता नहीं मिन्नी ने खाना खाया या नहीं| वह पहली बार मिन्नी से लम्बे समय के लिए अलग हुई थी | अनवी विचारों में खोई हुई थी अचानक उस को लाल चिड़िया की आवाज सुनाई  दी |वह उसको इधर उधर खोजने लगी |लाल चिड़िया एक पेड़ से दुसरे पेड़ पर फुदक रही थी| अनवी उसका पीछा करती करती दूर पहुँच गयी | वहां उसको एक दरवाजा दिखाई दिया | अनवी उस दरवाजे में प्रवेश कर गई| दरवाजे से वह एक बड़े कमरे में पहुँच गई |वहां उसे चार दरवाजे दिखाई दिए | परन्तु सभी पर ताले लगे हुए थे| पास में पड़ी एक मेज पर एक चाबी रखी हुई थी| उस ने चाबी उठाई और बरी बरी से ताले खोलने का प्रयास करने लगी| अंत में एक दरवाजा खुल गया| और वह उस कमरे में प्रवेश कर गई| उस कमरे में एक रसोई थी| उसने रसोई में रखे सामान की तलासी ली | अंत में उसे एक बर्तन में दूध मिला|दूध का स्वाद कुछ अलग लग रहा था| परन्तु भूख में जो मिले वाही उपयुक्त होता है| जैसे ही अनवी ने दूध पिया उसे नींद आने लगी| और वह वहीँ पर लुढ़क गई | जब उसकी आँख खुली तो उसने अपने आप को एक सुंदर बैग में पाया|उसके कपडे भी बदले जा चुके थे |किसी ने उसे स्नान करवा कर कपडे बदल दिए थे|अचानक रास्ते में मिली गुडिया का ख्याल आया  और उसने पाया की गुडिया नए कपड़ो में भी थी|उसने गुडिया को धयान से देखा उसके कपडे भी बदले जा चुके थे| वह उसके बालों में हाथ घुमाने लगी| हाथ घुमाने से उसके पास लाल चिड़िया, एक छोटा सुनहरे रंग का बन्दर जो केवल छ इंच का था| अनवी ने उसको अपनी हथेली पर बैठाया और प्यार करने लगी| तभी वहां पर एक छोटा एक सिंग वाला गैंडा आ गया| वह मुसकिल से आकर में एक फूट का होगा| अनवी उसको आराम से उठा सकती थी| अनवी ने पहले कभी गैंडा नहीं देखा था| हाँ गैंडे के चित्र अवश्य देखे थे| उसके छोटे आकर को देख वह चकित नहि हुई | उसको गैंडे के असली आकर का पता ही नहीं था| अब बन्दर और चिड़िया उसके कंधो पर बैठे थे| वे दोनों उसके बालों से खेल रहे थे| नए ख़ूबसूरत साथी पा कर अनवी अपनी चिंताए भूल चुकी थी | उसके पास ही एक नदी बह रही थी| उसमें उसे एक नौका आती दिखाई दी | वहां यात्री एसी नौकाओं की यात्रा का आनद लेते है| नौका उसके नजदीक से गुजर रही थी| नौका में बैठे यात्रियों में काफी कोतुहल था| यात्री कह रहे थे एक प्यारी सी बच्ची बाघ में अकेली बैठी थी| उस के पास वह लाल चिड़िया, सुनहरे छोटे लंगूर के साथ खेल रही थी| उसके पास एक छोटा सा गैंडा भी था| नाविक ने उन सभी को चुप रहे की सलाह दी और जल्दी से नौका आगे बाधा ली|उस इलाके से बाहर आने पर नाविक ने सुख की साँस ली | उसने यात्रियों को बताया की बहुत अच्छा हुआ हम सकुशल बहार आ गए| आप लोंगों ने बाग़ में क्या देखा? क्या इतना छोटा गैंडा कभी होता है? सभी यात्रियों ने कहा नहीं| गैंडा औसतन एक हाथी जितना आकार में होता है| फिर वह कोई मूर्ति भी नहीं थी| नाविक ने बताया यह इलाका मयोंग गाँव के नजदीक पड़ता है| यहाँ हर घर में जादू टोना होता है|यहं की औरते इन्सान को पशु-पक्षी, मधुमक्खी, चिड़िया या बोना बना कर घर में पालतू पशु की तरह रख लेती है और घर का कम करवाती है| जंगली हिंसक जानवरों को सम्मोहित कर के पालतू बना लेती है|आप सभी ने देखा होगा एक सुंदर सी लड़की के पास केवल छ इंच का लंगुर और एक फुट का एल सिंग वाला गैंडा था| क्या आप में से किसी ने एक फुट का गैंडा इस से पहले देखा या सुना है| नाविक की बात सुन कर कुछ यात्री डर गए|और शेष यात्रयों में इस बारे में और जानने की उत्सुकता दिखाई|यात्रियों को नदी के किनारे उतार कर नाविक ने विदा ली|
    उधर अनवी बाग़ में नदी किनारे लाल चिड़िया,छोटे लंगूरऔर गैंडे के साथ खेल रही थी|वह नए साथियों के साथ खेल में व्यस्त थी| उसे घर और पाठशाला की याद बिलकुल नहीं आई|वह इन सभी नए साथियों की बोली समझती थी|थोड़ी देर में अनवी को प्यास लगी | उसने लंगूर से पानी माँगा| लंगूर झटसे एक नारियल के पेड़ से नारियल तोड़ लाया और उसका पानी पीने के लिए नवी को डे दिया| नारियल का ताजा पानी स्वादिष्ठ था| अनवी ने उनको कहा आओ अब हम खेलते है| मैं तुम्हारी अध्यापिका हूँ| में तुम्हें पढ़ती हूँ| बन्दर बहुत से केले के पत्ते तोड़ कर ले आया और पत्तों पर तिनके से लिख लिख कर एक घंटा पाठशाला चली| सभी को भूख लग आई थी|अब कुछ खाने को मिलाना चाहिए| बन्दर ने गैंडे को लाल फूल खाने को दिए | जिनको खा कर गैंडा अपने वास्तविक रूप में आ गया| तीनो को अपनी पीठ पर बैठा कर सघन वन की और चल पड़ा| आधे घंटे की यात्रा के बाद वह एक आलीशान महल के सामने खड़ा था|महल की भव्यता देखते ही बनती थी| उसके सामने गैंडे की सवारी कोई शाही सवारी जैसी लग रही थी| द्वार पर पहुचते ही हमारा भव्य स्वागत किया गया| हमें वहां शाही मेहमान की तरह रखा गया|पूरा महल रोशनी से जगमगा रहा था| नाच गाने का कार्यक्रम चल रहा था|युगल अपनी सर्वश्रेठ कला का प्रदर्शन का कर रहे थे| पूछताछ करने पर पता चला की यह सब बिहू की तैयारी चल रही थी|२०-२५ युवक युवतीयों का समूह अपनी कला का प्रदर्शन करता है | और इस दौरान अपनी पसंद का जीवन साथी का चुनाव कर शादी संपन्न करते है|यही कारण है की असम में ज्यादातर शादीयां बैशाख मास में ही संपन्न हो जाती है|
    बिहु असम के तीन अलग अलग सांस्कृतिक उत्सवों के एक समूह को दर्शाता है और दुनिया भर के असमी प्रवासी इसे धूमधाम से मनाते हैं। यद्यपि वे प्राचीन संस्कार और प्रथाओं को उनका  मूल मानते है |हालांकि उन लोगो ने निश्चित शहरी सुविधाओं को अपना लिया है |और हाल की दशकों में शहरी और लोकप्रिय त्योहार बन गए हैं। उनमें से एक अप्रैल में मनाये जाने वाले असमिया नव वर्ष भी शामिल है। बिहु शब्द बिहु नृत्य और बिहू लोक गीत दोनो की और संकेत करते है। रोंगाली बिहु या बोहाग बिहु असम का एक महत्वपूर्ण त्योहार है। बिहु असम के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहार है, जो सभी असमियों द्वारा बहुतायत में मस्ती के साथ मनाया जाता है बिना उनके जाति, धर्म और विश्वास में भेद किये।
    बिहु शब्द दिमासा लोगों की भाषा से ली गई है| जो की प्राचीन काल से एक कृषि समुदाय है। उनका सर्वोच्च देवता ब्राई शिबराई या पिता शिबराई हैं। मौसम की पहली फसल अपनी शांति और समृद्धि की कामना करते हुए ब्राई शिबराई के नाम पर अर्पित किया जाता हैं। तो 'बि' मतलब 'पुछना' और 'शु' मतलब पृथ्वी में 'शांति और समृद्धि' हैं। अत: शाब्दिक रूप से बिशु धीरे-धीरे भाषाई तहजीह को समायोजित करने के लिये बिहु बन गया। अन्य सुझाव यह हैं कि 'बि' मतलब 'पुछ्ना' और 'हु' मतलब 'देना' और वही से बिहु नाम उत्पन्न हुआ। यह " कलागुरु " विष्णु प्रसाद राभा द्वारा कहा गया था । असम में रोंगाली बिहू बहुत सारे परंपराओं से ली जाती हैं जैसे की- बर्मी-चीन, ऑस्ट्रो - एशियाटिक, हिंद-आर्यन| बिहू बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता हैं। त्योहार अप्रैल के मध्य में शुरू होता हैं और आम तौर पर एक महीने के लिए जारी रह्ता हैं। यह पारंपरिक नव वर्ष है। इसके अलावा दो और बिहु हैं: अक्टूबर में कोंगाली बिहु (सितम्बर विषुव के साथ जुड़े) और जनवरी में भोगाली बिहु (जनवरी संक्रांति से जुड़े)। अधिकांश अन्य भारतीय त्योहारों की तरह, बिहू (तीनों ही) खेती के साथ जुड़ा हुआ हैं, जैसे की पारंपरिक असमिया समाज मुख्य रूप से कृषि पर ही निर्भरीत हैं। वास्तव में, वैसा ही बहुत सारे उत्सब लगभग उसी वक्त पे पुरे भारतबर्श में मनाया जाता हैं।असम में एक साल में तीन बिहु मनाया जाता हैं बोहाग (बैसाख, अप्रैल के मध्य), माघ (जनवरी के मध्य में) और काटी (कार्तिक, अक्टूबर के मध्य) के महीनों में। बिहु प्राचीन काल से असम में मनाया जा रहा हैं। प्रत्येक बिहु खेती कैलेंडर में एक विशिष्ट चरण के साथ मेल खाता हैं। सबसे महत्वपूर्ण और तीन बिहू उत्सव में सब्से रंगीन हैं वसंत महोत्सव "बोहाग बिहू" या रोंगाली बिहू जो कि अप्रैल के मध्य में मनाया जाता हैं। यह उत्सब कृषि सीज़न की शुरुआत को भी दर्शाता हैं। बिहु असम कि सभी भागो में और सभी जाति-जनजाति और धर्म के लोगो द्वारा मनाया जाता हैं। प्रत्यक्षतया यह कहा जा सकता हैं कि बिहु एक धर्मनिरपेक्ष त्योहार हैं जो भीन्न जाति और धर्म के बीच मानवता, शांति और भाईचारा लाता हैं। बिहू में ताल, पेपा (भैंस के सींग से बना एक वाद्य यंत्र) टोका, बाँहि (बांसुरी), क्शुतुली ,गोगोना आदि वाध्य यन्त्र बजाये जाते है|

बिहू नाम के तीन त्योहार
एक वर्ष में यह त्योहार तीन बार मनाते हैं। पहला सर्दियों के मौसम में पौष संक्रांति के दिन, दूसरा विषुव संक्राति के दिन और तीसरा कार्तिक माह में मनाया जाता है। पौष माह या संक्राति को भोगाली बिहू, विषुव संक्रांति को रोंगाली बिहू और कार्तिक माह में कोंगाली बिहू मनाया जाता है।

भोगाली बिहू :पौष माह या संक्राति को भोगाली बिहू मनाते हैं, जो कि जनवरी माह के मध्य में अर्थात मकर संक्रांति के आसपास आता है। इस माघ को बिहू या संक्रांति भी कहते हैं।भोगाली बिहू पौष संक्रांति के दिन अर्थात मकर संक्रांति के दिन या आसपास आता है। इसे भोगाली इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसमें भोग का महत्व है अर्थात इस दौरान खान-पान धूमधाम से होता है और तरह-तरह की खाद्य सामग्री बनाई और खिलाई जाती है।

भोगाली या माघ बिहू के पहले दिन को उरुका कहते हैं। इस दिन लोग खुली जगह में धान की पुआल से अस्थायी छावनी बनाते हैं जिसे भेलाघर कहते हैं। इस छावनी के पास ही 4 बांस लगाकर उस पर पुआल एवं लकड़ी से ऊंचे गुम्बज जैसे का निर्माण करते हैं जिसे मेजी कहते हैं। गांव के सभी लोग यहां रात्रिभोज करते हैं।अम्बुबाशी मेला, परशुराम मेला, दोल जात्रा मेला, अशोकष्टमी मेला असम के प्रसिद्ध मेले है| उरुका के दूसरे दिन स्नान करके मेजी जलाकर बिहू का शुभारंभ किया जाता है। गांव के सभी लोग इस मेजी के चारों ओर एकत्र होकर भगवान से मंगल की कामना करते हैं।अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए लोग विभिन्न वस्तुएं भी मेजी में भेंट चढ़ाते हैं। बिहू उत्सव के दौरान वहां के लोग अपनी खुशी का इजहार करने के लिए लोकनृत्य भी करते हैं।नारियल के लड्डू, तिल पीठा, घिला पीठा, मच्छी पीतिका और बेनगेना खार के अलावा अन्य पारंपरिक पकवान भी बनाए जाते हैं।
    व्यस्त सप्तांत के बाद काफी तोफो के साथ विदा किया गया| गैंडा अपनी तीनो सवारियों को लेकर पुनः नदी किनारे बगीचे में आ  गया | यहाँ से हम शाही सवारी पर बैठ अभ्यारण्य देखने गए| पोबीटोरा वन्य जीव अभ्यारण्य गुवाहाटी से 50 किमी दूर मारीगांव जिले में स्थित है। यह अभ्यारण्य मुख्य रूप से एक सींग वाले गेंडे के लिए जाना जाता है। 30.8 वर्ग किमी में फैले इस अभ्यारण्य में 16 वर्ग किमी में सिर्फ गेंडे रहते हैं। चूंकि यहां बड़ी संख्या में गेंडें हैं, इसलिए ऐसा कहा जाता है कि गेंडे अभ्यारण्य से बाहर भी निकल आते हैं। गेंडें के अलावा इस वन्य जीव अभ्यारण्य की दूसरी विशेषता यहां हर साल आने पर्यटक के लिए  पशु पक्षियों,वनस्पति और गेंडें के अलावा इस वन्य जीव अभ्यारण्य की दूसरी विशेषता यहां हर साल आने वाले प्रवासी पक्षी हैं। यहां हर साल करीब 2000 प्रवासी पक्षियां आते हैं। अभ्यारण्य में एशियाई भैंस, तेंदुआ, जंगली बिल्ली और जंगली भालू सहित कई अन्य जीव भी देखे जा सकते हैं। अक्टूबर से अप्रैल के बीच इस अभ्यारण्य को घूमना सबसे अच्छा रहता है। सड़क मार्ग के जरिए गुवाहाटी से पोबीटोरा वन्य जीव अभ्यारण्य पहुंचने में एक घंटे का समय लगता है। पर्यटकों का एक दल हमारे पास आकर रूका | उन्हों बताया  की सड़क मार्ग से एक घंटे के सफ़र के बबाद ब्रहमपुत्र नदी के पुल को पार कर के मायोंग गाँव पहुंचे है|१६किलोमीटर में केवल गैंडे ही रहते है| भोजन की तलाश में गैंडे नजदीक के गाँव में भी आ जाते है| दो घंटे की यात्रा के बाद हम अपने प्रिय बगीचे में वापिस आ गए| हमें सभी को भूख लग रही थी| बन्दर द्वारा लाया लाल फूल खाने से गैंडा पुनः छोटी आकृति में आ गया| हम चारों उसी बगीचे में मस्ती कर रहे थे| अचानक एक तितली वहां पर आ गई |और वह अनवी के बालों में बैठ गई| तितली के बैठते ही अनवी अद्रश्य हो गई| बन्दर यह सब देख रह था | उसने बिना समय गंवाए तितली को पकड लिया| तितली के अनवी के ऊपर से हटते ही अनवी फिर से दिखाई देने लगी| ज्यों ही बन्दर तितली को अपने मुहं में डालने लगा वह चिल्लाई मुझे छोड़ दो में फिर से एसी गलती नहीं करूंगी | अनवी सब से पूछने लगी क्या बात है क्या हुआ? इस पर तितली ही बताने लगी की में जिस प्राणी पर बैठ जाती हूँ ना तो वह और नहीं मैं किसी को दिखाई देते है| अनवी को यह काफी अच्छा लगा| उसने तितली को अपने हाथ में लिया और प्यार से तितली को देखने लगी| बन्दर ने कहा अब तितली को छोड़ दो| तितली को छोड़ देने से अनवी पुनः दिखाई देने लगी| अब तितली भी उनके समूह में शामिल हो गई | काफी दिन यों ही सैर सपाटे में बीत गया|एक दिन अचानक अनवी को घर की याद आ गई और वह उदास हो गई और रोने लगी|दोस्तों ने अनवी के रोने का कारन पूछा तो उसने बताया की वह घर जाना चाहती है| चरों दोस्त अनवी को मानाने में लगे हुए थे तभी अनवी की आँख से आंसू उसके पास रखी गुडिया पर गिर गए | आंसू गिरते ही गुडिया जोर जोर से हंसाने लगी| अचानक हंसने की आवाज से सभी चोक गए|  बन्दर ने गुडिया को अपने हाथ में उठाया| वह गुड़ियाँ जादू की गुडिया थी| बन्दर ने गुडिया का हाथ मरोड़ा तो वह रोने लगी और कहने लगी-मैं रस्ते में पारी हुई थी| सारे बच्चे आगे निकल गए परन्तु अनवी ने मुझे उठा लिया|तभी से में इस के साथ घूम रही हूँ|मुझ पर काला जादू कर के रास्ते में डाला गया था|मेरे जादू से असर से आप सभी पर कोई विपत्ति नहीं आई| यदि मेरे गले में बंधा काला धागा कोई तोड़ दे तो में जादू से मुक्त हो जाऊंगी |धागा पुनः बांधने से में फिर सर जादुमइ हो जाऊंगी| बन्दर ने झट से व कला धागा तोड़ दिया और अनवी को धागा दे दिया|अब गुडिया एक साधारण गुडिया रह गई थी|
    सारे दोस्त बैठे बैठे एक दुसरे को अपनी अपनी कहानी बता रहे थे| अबे से पहले गैंडे ने बताया – दिखने को तो में गैंडा हूँ परन्तु मैं भी इन्सान हूँ | एक जादूगर ने अभिमंत्रित कर के एक लोहे की कील रस्ते में गाड दी ताकि वहां से गुजरने वाले किसी भी हिंसक जानवर के पैर में लगे और जादूगर उस को वश में कर सके| दुर्भाग्य से वह कील मेरे पैर में लगी और अब में पूर्ण रूप से उसके काबू में हूँ|  मन्त्रों सर उसने मेरी सीमा को बांध रखा है| में इस से बाहर नहीं जा सकता हूँ| में इंसान से पालतू गैंडा बन गया हूँ| यदि मेरे पैर से यह कील निकल दी जाये तो में पुनः इंसान बन जाऊँगा | अनवी ने गैंडे के पैर से कील निकल दी और वह गैंडे से इंसान बन गया|उस आदमी ने बताया की में पूरी तरह जादू के प्रभाव से मुक्त नहीं हुआ हूँ| यदि तुम यह कील फिर से जमीन में गाड दो गी तो में तुम्हारे पास गैंडा बनकर ही आ जाऊँगा| अनवी ने उस कील ओ अपने पास रखा और उसको अलविदा कहा|
    अब लाल चिड़िया ने अपनी कहानी सुनानी आरम्भ की | वह कहने लगी – मायोंग गाँव में मै अपने पति के साथ रह रही थी| मेरा नाम शुबाँगी है| मेरी पडोसन ने मेरे पति को मेंढा बना कर अपने घर में बांध लिया| रात को उसको आदमी बना कर अपने पास रखती और घर व खेत का सारा काम करवाती| कई सालों तक में अपने पति को तलाश करती रही| साद साल बाद मुझे एक अघोरी बाबा ने सारा रहस्य बताया| बदले की आग में मैंने अघोरी बाबा से साधना सीखी और अपने पति को मुक्त करवाना चाहा| परन्तु बाबा के कहने पर मैंने अपनी कला का उपयोग जन कल्याण में लगाना आरम्भ कर दिया|अब में अपनी इच्छा अनुसार जवान लड़की या लाल चिड़िया बन सकती हूँ| में अपना आकर अपनी इच्छा अनुसार छोटा या बड़ा कर सकती हूँ|

    सुनहरे लंगूर जिसे हम यहाँ बन्दर कह रहे है ने अपनी कहानी बतानी आरम्भ की – मै कामख्या मंदिर के पास नदी के टापू में अपने परिवार के साथ रहता था| एक दिन अम्बुवाची पर्व के दोरान एक अघोरी अपनी साधना में लीन था| मैने शरारत वश उसकी हवन सामग्री उठा कर ब्रहमपुत्र नदी में डाल दी| अघोरी ने मुझे तंत्र विद्या से इस अभ्यारण तक सीमित कर दिया| मेरे परिवार के विलाप करने पर उसने कहा की एक लड़की के साथ रहने पर वह तुम्हारे साथ उमानंद मंदिर में आएगी और तुम्हे यहीं छोड़ जायेगी| इसके बाद तुम पुनः यहाँ रह ने लगोगे|

    अब लाल तितली अपनी कहानी सुनाने लगी- में एक सुंदर लड़की थी| बिहू नृत्य के दोरान एक लड़के से प्यार करने लगी| परन्तु वह लड़का किसी और लड़की से प्यार करता था| वह लड़की काला जादू जानती थी| उसने मुझे जादू से तितली बना दिया| एक अघोरी की कृपा से में अदृश्य होने का जादू जानती हूँ | में पुनः लड़की भी बन सकती हूँ परन्तु मायोंग की सीमा से बहार|

अब बन्दर ने लाल चिड़िया को एक लाल मच्छली दी जिससे उसका आकर एक हाथी जितना हो गया| अनवी उस पर बैठ गई| चिड़िया ने पल झपकते ही उसे अनवी के घर के पास वाले बगीचे में उतार दिया|घर के दरवाजे पर पहुँचते ही अनवी का मिन्नी ने अपना  पुन्छ हिला कर स्वागत किया| उसके विद्यालय वाले और अनवी के पापा अनवी को गुवाहटी में तलाश कर रहे थे| अनवी के सहपाठी और मैडम पिछले सप्ताह ही गुरुग्राम पहुँच चुके थे|अनवी ने घर की छत पर खड़े हो कर लाल चिड़िया को बिदाई दी| लाल चिड़िया अब अपने सामान्य आकार में आ चुकी थी|अनवी को उसके घर छोड़ चिड़िया पुनः पोबितोरा के बाग़ में पहुच चुकी थी|

    अनवी अपनी पाठशाला में काफी चर्चा में थी| जब वह अपनी कक्षा में आई तो साथियों के कई सवालों के जबाब देने पड़े|एक ने पूछा अनवी कहा खो गई थी? अनवी ने कहा अरे में खोई थोड़े ही थी , में तो अपने नए दोस्तों के साथ गहन जंगल की सैर कर रही थी| वहाँ पर एक लाल चिड़िया,एक सुनहरे रंग का लंगूर, एक गैंडा और एक तितली मेरे दोस्त बन गए थे|सारे विद्यार्थी अनवी की कहानी अनवी की जुबानी सुन रहे थे| सारे विद्यार्थी अनवी को घेरे खड़े थे, अचानक कमरे में मैडम आई और कहने लगी ये क्या हो रह है| मैडम की आवाज सुन कर सभी विद्यार्थी अपनी अपनी जगह पर बैठ गये |मैडम ने अनवी को अपने पास बुलाया और एक सप्ताह की पूरी कहानी कक्षा में बताने को कहा|अनवी ने अपना सारा वृतांत कह सुनाया |कक्षा के सामने अपनी कहानी सुना कर अनवी गर्वित महसूस कर रही थी| मैडम ने मज़ाक में पूछा अनवी अब मायोंग कब जा रही हो?अनवी ने कहा मैडम जल्दी ही जाना पड़ेगा,साथियों की बहुत याद आ रही है| वे भी मुझे याद कर रहे है|अनवी अब पशु पक्षियों की आवाज समझ सकती थी|इतने में उसे खिड़की में लाल चिड़िया दिखाई दी| वह उसको कक्षा के बाहर बुला रही थी| कक्षा में बात करते करते उसने चिड़िया को कहा ठहरो अभी कक्षा ख़तम होने पर आउंगी| मैडम ने खिड़की की और देखा और पूछा कौन है? तुम्हे कौन बुला रहा है? बाहर तो कोई नहीं है| अनवी ने कहा मैडम दरवाजे पर कोई नहीं है| इस खिड़की में देखो यह लाल चिड़िया पोबीटोरा वन्य जीव अभ्यारण्य से यहाँ मुझे बुलाने आई है|इसने ही मुझे यहाँ तक पहुँचाया था|अनवी की बात सुन कर सारी कक्षा हंसने लगी| यह चिड़िया अपनी इच्छा अनुसार आकर में बड़ी छोटी हो सकती है| इसने मुझे अपने ऊपर बैठा कर केवल दो घंटे में यहाँ पहुंचा दिया था| सारे विद्यार्थी अनवी की बातों पर आश्चर्य कर रहे थे|अनवी ने कहा अब आगामी छुट्टियों में मेरा फिर से जाने का कार्यक्रम है |यह लाल चिड़िया मुझे फिर से वहा ले जायेगी| आप सभी लोग मुझे खिड़की से देखना यह चिड़िया मुझे बैठा कर ले जायेगी |अनवी छत पर गई और लाल चिड़िया उसे लेकर उड़ गई| कक्षा के बच्चे खिड़की से उसे जाता देख रहे थे| और अनवी को हाथ हिला कर अलविदा कर रहे थे|


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